ETV Bharat / state

खंडहर में तब्दील होता हजारीबाग का वैभवशाली इतिहास, वजूद की जंग लड़ रहा पदमा किला - हजारीबाग का किला बना खंडहर

झारखंड में कई ऐतिहासित इमारते हैं जो आपनी खास पहचान रखती हैं. इन्हीं में से एक हजारीबाग का प्राचीन पदमा किला. कई यादगार घटनाओं का साक्षी रहा यह किला आज अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है. स्थापत्य कला के बेहतर नमूनों में से एक यह इमारत आज जर्जर होती जा रही है.

पदमा किला
पदमा किला
author img

By

Published : Apr 7, 2021, 4:20 PM IST

Updated : Apr 9, 2021, 3:56 PM IST

हजारीबागः हजारीबाग जिले में कई ऐतिहासिक इमारते हैं. खासकर यहां के पदमा किले को प्राचीन धरोहर के रूप में माना जाता है, लेकिन आज यह वैभवशाली इमारत खंडहर में तब्दील होती जा रही है, यदि जल्द ही इसके उचित रखखाव की व्यवस्था नहीं की गई, तो कई यादगार पलों का साक्षी रहा पदमा किले इतिहास के पन्नों में सिमट जाएगा.

देखें स्पेशल खबर.

यह भी पढ़ेंः राजधानी में फूटा 'कोरोना बम', एक दिन में मिले 562 मरीज, प्रदेश में कुल 1312 संक्रमित मिले

हजारीबाग शहर से महज 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पदमा किला राजा राम नारायण सिंह के वंशजों का ऐतिहासिक किला है, जिसे देखने लोग दूर दूर से आते हैं. आज रजवाड़े में न तो पहले जैसी रौनक रही, न ही पहले जैसी ठाट. बाकी है तो सिर्फ यहां से जुड़ी यादें. कभी यहां इम्पोर्टेड गाड़ियों की कतार होती थी और हाथी दरवाजे पर आगंतुक का स्वागत करते थे. कहा जाता है कि इस किले में 2,000 से अधिक हाथी ,घोड़ा और पैदल सेना थी, जहां सभी सुख सुविधाएं मौजूद थीं.

पदमा किला की दयनीय हालत
पदमा किला की दयनीय हालत

वर्तमान समय में इस किले को देखने वाला कोई नहीं है. महज कुछ ग्रामीणों के कंधों पर इसके रखरखाव की जिम्मेदारी है. इस वंशज के युवराज सौरभ नारायण सिंह कभी-कभार इस मिलकियत को देखने आते हैं.

बदहाल पदमा किला
बदहाल पदमा किला

रामगढ़ राज की नींव राजा रामगढ़ कामाख्या नारायण सिंह के पूर्वज राजा बाघदेव सिंह और सिंहदेव देव नामक सगे भाइयों ने 1366 में रखी थी. राजा वासुदेव सिंह एवं सिंहदेव ने 1366 से 1403 तक शासन किया है.

बदहाली पर आंसू बहा रहा पदमा किला
बदहाली पर आंसू बहा रहा पदमा किला


पदमा किला का इतिहास

  • राजा शासन
  • बाघदेव सिंह 1403 तक
  • करेत सिंह 1449 तक
  • राम सिंह 1537 तक
  • माधव सिंह 1554 तक
  • जुगत सिंह 1604 तक

राजा हरमीत सिंह, राजा दलित सिंह, राजा विष्णु सिंह, राजा मुकुंद सिंह, राजा तेज सिंह और पटेरा नाथ सिंह समेत कई राजाओं ने परिवार का मान सम्मान बढ़ाया.

नहीं हो रहा रखरखाव
नहीं हो रहा रखरखाव

कामाख्या नारायण सिंह अंतिम राजा

राजा बहादुर कामाख्या नारायण सिंह इस राजवंश के गुलाम भारत के अंतिम राजा रहे. इनके ही कार्यकाल के समय हमारा देश आजाद हुआ. वे 1970 तक रहे. इसके बाद राजा इंद्र जितेंद्र ने राजपरिवार की कमान संभाली जो तत्कालीन विधायक सौरभ नारायण सिंह के पिता हैं.

कब सुध लेगा प्रशासन
कब सुध लेगा प्रशासन

यह भी पढ़ेंः गोड्डा से दिल्ली के लिए दौड़ेगी 'हमसफर एक्सप्रेस', गोड्डा रेल नेटवर्क से जुड़ा

अंग्रेजों से आजादी मिलने के वक्त देश भर में कई राजे रजवाड़े थे. राज परिवार के रूप में विख्यात इस राज्य परिवार के अंतिम शासक राजा बहादुर कामाख्या नारायण सिंह हुए. देश को जब आजादी मिली और एकीकृत भारत में पूरे छोटनागपुर इलाके में राजा कामाख्या नारायण सिंह का दबदबा रहा है.

जनता के काफी नजदीक था राजपरिवार
राज परिवार के बारे में कहा जाता था ये जनता के काफी नजदीक था. इस कारण राजतंत्र के बाद भी प्रजातंत्र में भी इस परिवार को जनता ने जनप्रतिनिधि बनाया और सदन तक भेजा. कामाख्या नारायण सिंह से रामगढ़ राज परिवार का राजनीतिक जीवन शुरू होता है. वे बिहार विधानसभा में चार बार विधायक रहे. दो बार बगोदर और दो बार हजारीबाग सदर का उन्होंने प्रतिनिधित्व किया. इससे पहले 1947 में वे हजारीबाग जिला परिषद के पहले निर्वाचित अध्यक्ष रहे और लगातार 12 वर्षों तक इस पद पर बने रहे.

रामगढ़ में कांग्रेस का अधिवेशन करवाया

आजादी की लड़ाई में यहां के राज परिवार ने महात्मा गांधी का साथ दिया. रामगढ़ में ऐतिहासिक राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में अपनी भूमिका निभाई. गांधीजी के चरणों में राज्य समर्पण की घोषणा की. उन्हें ब्रिटिश राजबहादुर की उपाधि दी.

आलीशान महल में थिएटर

इस किले मे 150 कमरे थे. राजा का आलीशान महल में ही थिएटर था. राजा एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए हेलिकॉप्टर का उपयोग करते थे. लेकिन आज यह सब सपना बनकर रह गया है. आज इनके हवेली को देखने वाला कोई नहीं है.

स्थानीय ग्रामीणों को राज परिवार के सदस्यों ने देखभाल की जिम्मेवारी दी है. ऐसे में 80 साल के वृद्ध जो इस हवेली की 4 से 5 पीढ़ी से सेवा करते आ रहे हैं उन्होंने बताया कि हमारे राजा सौरभ नारायण सिंह ने हमें जिम्मेवारी दी है.

यह भी पढ़ेंः जमशेदपुर में सीबीआई ने की फरार चल रहे आयकर अधिकारी की संपत्ति जब्त, जानें क्या है आरोप

हम इस महल की देखभाल करते हैं. वह कभी कभार आते हैं और हम लोगों से मुलाकात करते हैं, लेकिन वे भी कहते हैं कि हमें बहुत दुख होता है कि हमारा किला अब टूटता जा रहा है और इसे देखने वाला कोई नहीं है.

इस किले की राज्य भर में चर्चा है. इस किले के दो हिस्से हैं. पहला हिस्से को हवा महल कहते हैं. हवा महल को देखने के लिए आज भी कई लोग पहुंचते हैं. राजा ने अपने राज्य काल के समय इसे बनाया था. कहा जाता है कि गर्मी के समय राजा आकर यहां बैठा करते थे और यहां दरबार लगता था.

ऐसे में यह काफी आकर्षक है. यहां कभी कभार पर्यटक भी पहुंचते हैं. ऐसे में पर्यटक ने कहा कि हमें काफी दुख होता है कि भारत जिसका इतिहास इस तरह की किले में दफन है. उसे संजोया नहीं जा रहा है.

पर्यटन का भी बड़ा केंद्र बन सकता है

अगर इसे संजोया जाता तो हमारे आने वाली पीढ़ी को जानकारी मिलती और यह एक पर्यटन का भी बड़ा केंद्र बन सकता था. लेकिन सरकार और राज्य परिवार की उदासीनता के कारण यह खंडहर में तब्दील हो गया है.

वर्तमान समय में सौरभ नारायण सिंह इस राज्य परिवार के वंशज हैं जो हजारीबाग से विधायक भी निर्वाचित हुए, लेकिन उन्होंने भी किले को संजोने की कोशिश नहीं की.

इस किले का कुछ क्षेत्र झारखंड पुलिस को दिया गया है जहां ट्रेनिंग कैंप चलता है. इसके अलावा भी राष्ट्रीय खेल प्राधिकरण इस परिसर में बनाया गया है.

इसके अलावा पूरी जमीन खाली पड़ी है. हजारीबाग के प्रसिद्ध इतिहासकार कहते हैं कि रामगढ़ राज का गौरवमयी इतिहास रहा है, लेकिन रखरखाव के अभाव में किला खंडहर में तब्दील होता जा रहा है. ऐसे में सरकार और राज परिवार को इसे संजोने की जरूरत है.

देशभर में कई ऐसे राजाओं के किले हैं जो रखरखाव के अभाव में खंडहर में तब्दील होते जा रहे हैं. ऐसे में हजारीबाग का पद्मा किला भी एक है. ऐसे में जरूरत है सरकार को ऐसे धरोहर को सुरक्षित करने की ताकि हम अपने इतिहास को संजोकर रखें और अपने पीढ़ी को बता सकें कि भारत का इतिहास कितना गौरवमयी रहा है.

हजारीबागः हजारीबाग जिले में कई ऐतिहासिक इमारते हैं. खासकर यहां के पदमा किले को प्राचीन धरोहर के रूप में माना जाता है, लेकिन आज यह वैभवशाली इमारत खंडहर में तब्दील होती जा रही है, यदि जल्द ही इसके उचित रखखाव की व्यवस्था नहीं की गई, तो कई यादगार पलों का साक्षी रहा पदमा किले इतिहास के पन्नों में सिमट जाएगा.

देखें स्पेशल खबर.

यह भी पढ़ेंः राजधानी में फूटा 'कोरोना बम', एक दिन में मिले 562 मरीज, प्रदेश में कुल 1312 संक्रमित मिले

हजारीबाग शहर से महज 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पदमा किला राजा राम नारायण सिंह के वंशजों का ऐतिहासिक किला है, जिसे देखने लोग दूर दूर से आते हैं. आज रजवाड़े में न तो पहले जैसी रौनक रही, न ही पहले जैसी ठाट. बाकी है तो सिर्फ यहां से जुड़ी यादें. कभी यहां इम्पोर्टेड गाड़ियों की कतार होती थी और हाथी दरवाजे पर आगंतुक का स्वागत करते थे. कहा जाता है कि इस किले में 2,000 से अधिक हाथी ,घोड़ा और पैदल सेना थी, जहां सभी सुख सुविधाएं मौजूद थीं.

पदमा किला की दयनीय हालत
पदमा किला की दयनीय हालत

वर्तमान समय में इस किले को देखने वाला कोई नहीं है. महज कुछ ग्रामीणों के कंधों पर इसके रखरखाव की जिम्मेदारी है. इस वंशज के युवराज सौरभ नारायण सिंह कभी-कभार इस मिलकियत को देखने आते हैं.

बदहाल पदमा किला
बदहाल पदमा किला

रामगढ़ राज की नींव राजा रामगढ़ कामाख्या नारायण सिंह के पूर्वज राजा बाघदेव सिंह और सिंहदेव देव नामक सगे भाइयों ने 1366 में रखी थी. राजा वासुदेव सिंह एवं सिंहदेव ने 1366 से 1403 तक शासन किया है.

बदहाली पर आंसू बहा रहा पदमा किला
बदहाली पर आंसू बहा रहा पदमा किला


पदमा किला का इतिहास

  • राजा शासन
  • बाघदेव सिंह 1403 तक
  • करेत सिंह 1449 तक
  • राम सिंह 1537 तक
  • माधव सिंह 1554 तक
  • जुगत सिंह 1604 तक

राजा हरमीत सिंह, राजा दलित सिंह, राजा विष्णु सिंह, राजा मुकुंद सिंह, राजा तेज सिंह और पटेरा नाथ सिंह समेत कई राजाओं ने परिवार का मान सम्मान बढ़ाया.

नहीं हो रहा रखरखाव
नहीं हो रहा रखरखाव

कामाख्या नारायण सिंह अंतिम राजा

राजा बहादुर कामाख्या नारायण सिंह इस राजवंश के गुलाम भारत के अंतिम राजा रहे. इनके ही कार्यकाल के समय हमारा देश आजाद हुआ. वे 1970 तक रहे. इसके बाद राजा इंद्र जितेंद्र ने राजपरिवार की कमान संभाली जो तत्कालीन विधायक सौरभ नारायण सिंह के पिता हैं.

कब सुध लेगा प्रशासन
कब सुध लेगा प्रशासन

यह भी पढ़ेंः गोड्डा से दिल्ली के लिए दौड़ेगी 'हमसफर एक्सप्रेस', गोड्डा रेल नेटवर्क से जुड़ा

अंग्रेजों से आजादी मिलने के वक्त देश भर में कई राजे रजवाड़े थे. राज परिवार के रूप में विख्यात इस राज्य परिवार के अंतिम शासक राजा बहादुर कामाख्या नारायण सिंह हुए. देश को जब आजादी मिली और एकीकृत भारत में पूरे छोटनागपुर इलाके में राजा कामाख्या नारायण सिंह का दबदबा रहा है.

जनता के काफी नजदीक था राजपरिवार
राज परिवार के बारे में कहा जाता था ये जनता के काफी नजदीक था. इस कारण राजतंत्र के बाद भी प्रजातंत्र में भी इस परिवार को जनता ने जनप्रतिनिधि बनाया और सदन तक भेजा. कामाख्या नारायण सिंह से रामगढ़ राज परिवार का राजनीतिक जीवन शुरू होता है. वे बिहार विधानसभा में चार बार विधायक रहे. दो बार बगोदर और दो बार हजारीबाग सदर का उन्होंने प्रतिनिधित्व किया. इससे पहले 1947 में वे हजारीबाग जिला परिषद के पहले निर्वाचित अध्यक्ष रहे और लगातार 12 वर्षों तक इस पद पर बने रहे.

रामगढ़ में कांग्रेस का अधिवेशन करवाया

आजादी की लड़ाई में यहां के राज परिवार ने महात्मा गांधी का साथ दिया. रामगढ़ में ऐतिहासिक राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में अपनी भूमिका निभाई. गांधीजी के चरणों में राज्य समर्पण की घोषणा की. उन्हें ब्रिटिश राजबहादुर की उपाधि दी.

आलीशान महल में थिएटर

इस किले मे 150 कमरे थे. राजा का आलीशान महल में ही थिएटर था. राजा एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए हेलिकॉप्टर का उपयोग करते थे. लेकिन आज यह सब सपना बनकर रह गया है. आज इनके हवेली को देखने वाला कोई नहीं है.

स्थानीय ग्रामीणों को राज परिवार के सदस्यों ने देखभाल की जिम्मेवारी दी है. ऐसे में 80 साल के वृद्ध जो इस हवेली की 4 से 5 पीढ़ी से सेवा करते आ रहे हैं उन्होंने बताया कि हमारे राजा सौरभ नारायण सिंह ने हमें जिम्मेवारी दी है.

यह भी पढ़ेंः जमशेदपुर में सीबीआई ने की फरार चल रहे आयकर अधिकारी की संपत्ति जब्त, जानें क्या है आरोप

हम इस महल की देखभाल करते हैं. वह कभी कभार आते हैं और हम लोगों से मुलाकात करते हैं, लेकिन वे भी कहते हैं कि हमें बहुत दुख होता है कि हमारा किला अब टूटता जा रहा है और इसे देखने वाला कोई नहीं है.

इस किले की राज्य भर में चर्चा है. इस किले के दो हिस्से हैं. पहला हिस्से को हवा महल कहते हैं. हवा महल को देखने के लिए आज भी कई लोग पहुंचते हैं. राजा ने अपने राज्य काल के समय इसे बनाया था. कहा जाता है कि गर्मी के समय राजा आकर यहां बैठा करते थे और यहां दरबार लगता था.

ऐसे में यह काफी आकर्षक है. यहां कभी कभार पर्यटक भी पहुंचते हैं. ऐसे में पर्यटक ने कहा कि हमें काफी दुख होता है कि भारत जिसका इतिहास इस तरह की किले में दफन है. उसे संजोया नहीं जा रहा है.

पर्यटन का भी बड़ा केंद्र बन सकता है

अगर इसे संजोया जाता तो हमारे आने वाली पीढ़ी को जानकारी मिलती और यह एक पर्यटन का भी बड़ा केंद्र बन सकता था. लेकिन सरकार और राज्य परिवार की उदासीनता के कारण यह खंडहर में तब्दील हो गया है.

वर्तमान समय में सौरभ नारायण सिंह इस राज्य परिवार के वंशज हैं जो हजारीबाग से विधायक भी निर्वाचित हुए, लेकिन उन्होंने भी किले को संजोने की कोशिश नहीं की.

इस किले का कुछ क्षेत्र झारखंड पुलिस को दिया गया है जहां ट्रेनिंग कैंप चलता है. इसके अलावा भी राष्ट्रीय खेल प्राधिकरण इस परिसर में बनाया गया है.

इसके अलावा पूरी जमीन खाली पड़ी है. हजारीबाग के प्रसिद्ध इतिहासकार कहते हैं कि रामगढ़ राज का गौरवमयी इतिहास रहा है, लेकिन रखरखाव के अभाव में किला खंडहर में तब्दील होता जा रहा है. ऐसे में सरकार और राज परिवार को इसे संजोने की जरूरत है.

देशभर में कई ऐसे राजाओं के किले हैं जो रखरखाव के अभाव में खंडहर में तब्दील होते जा रहे हैं. ऐसे में हजारीबाग का पद्मा किला भी एक है. ऐसे में जरूरत है सरकार को ऐसे धरोहर को सुरक्षित करने की ताकि हम अपने इतिहास को संजोकर रखें और अपने पीढ़ी को बता सकें कि भारत का इतिहास कितना गौरवमयी रहा है.

Last Updated : Apr 9, 2021, 3:56 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.