हजारीबागः हजारीबाग जिले में कई ऐतिहासिक इमारते हैं. खासकर यहां के पदमा किले को प्राचीन धरोहर के रूप में माना जाता है, लेकिन आज यह वैभवशाली इमारत खंडहर में तब्दील होती जा रही है, यदि जल्द ही इसके उचित रखखाव की व्यवस्था नहीं की गई, तो कई यादगार पलों का साक्षी रहा पदमा किले इतिहास के पन्नों में सिमट जाएगा.
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हजारीबाग शहर से महज 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पदमा किला राजा राम नारायण सिंह के वंशजों का ऐतिहासिक किला है, जिसे देखने लोग दूर दूर से आते हैं. आज रजवाड़े में न तो पहले जैसी रौनक रही, न ही पहले जैसी ठाट. बाकी है तो सिर्फ यहां से जुड़ी यादें. कभी यहां इम्पोर्टेड गाड़ियों की कतार होती थी और हाथी दरवाजे पर आगंतुक का स्वागत करते थे. कहा जाता है कि इस किले में 2,000 से अधिक हाथी ,घोड़ा और पैदल सेना थी, जहां सभी सुख सुविधाएं मौजूद थीं.
वर्तमान समय में इस किले को देखने वाला कोई नहीं है. महज कुछ ग्रामीणों के कंधों पर इसके रखरखाव की जिम्मेदारी है. इस वंशज के युवराज सौरभ नारायण सिंह कभी-कभार इस मिलकियत को देखने आते हैं.
रामगढ़ राज की नींव राजा रामगढ़ कामाख्या नारायण सिंह के पूर्वज राजा बाघदेव सिंह और सिंहदेव देव नामक सगे भाइयों ने 1366 में रखी थी. राजा वासुदेव सिंह एवं सिंहदेव ने 1366 से 1403 तक शासन किया है.
पदमा किला का इतिहास
- राजा शासन
- बाघदेव सिंह 1403 तक
- करेत सिंह 1449 तक
- राम सिंह 1537 तक
- माधव सिंह 1554 तक
- जुगत सिंह 1604 तक
राजा हरमीत सिंह, राजा दलित सिंह, राजा विष्णु सिंह, राजा मुकुंद सिंह, राजा तेज सिंह और पटेरा नाथ सिंह समेत कई राजाओं ने परिवार का मान सम्मान बढ़ाया.
कामाख्या नारायण सिंह अंतिम राजा
राजा बहादुर कामाख्या नारायण सिंह इस राजवंश के गुलाम भारत के अंतिम राजा रहे. इनके ही कार्यकाल के समय हमारा देश आजाद हुआ. वे 1970 तक रहे. इसके बाद राजा इंद्र जितेंद्र ने राजपरिवार की कमान संभाली जो तत्कालीन विधायक सौरभ नारायण सिंह के पिता हैं.
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अंग्रेजों से आजादी मिलने के वक्त देश भर में कई राजे रजवाड़े थे. राज परिवार के रूप में विख्यात इस राज्य परिवार के अंतिम शासक राजा बहादुर कामाख्या नारायण सिंह हुए. देश को जब आजादी मिली और एकीकृत भारत में पूरे छोटनागपुर इलाके में राजा कामाख्या नारायण सिंह का दबदबा रहा है.
जनता के काफी नजदीक था राजपरिवार
राज परिवार के बारे में कहा जाता था ये जनता के काफी नजदीक था. इस कारण राजतंत्र के बाद भी प्रजातंत्र में भी इस परिवार को जनता ने जनप्रतिनिधि बनाया और सदन तक भेजा. कामाख्या नारायण सिंह से रामगढ़ राज परिवार का राजनीतिक जीवन शुरू होता है. वे बिहार विधानसभा में चार बार विधायक रहे. दो बार बगोदर और दो बार हजारीबाग सदर का उन्होंने प्रतिनिधित्व किया. इससे पहले 1947 में वे हजारीबाग जिला परिषद के पहले निर्वाचित अध्यक्ष रहे और लगातार 12 वर्षों तक इस पद पर बने रहे.
रामगढ़ में कांग्रेस का अधिवेशन करवाया
आजादी की लड़ाई में यहां के राज परिवार ने महात्मा गांधी का साथ दिया. रामगढ़ में ऐतिहासिक राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में अपनी भूमिका निभाई. गांधीजी के चरणों में राज्य समर्पण की घोषणा की. उन्हें ब्रिटिश राजबहादुर की उपाधि दी.
आलीशान महल में थिएटर
इस किले मे 150 कमरे थे. राजा का आलीशान महल में ही थिएटर था. राजा एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए हेलिकॉप्टर का उपयोग करते थे. लेकिन आज यह सब सपना बनकर रह गया है. आज इनके हवेली को देखने वाला कोई नहीं है.
स्थानीय ग्रामीणों को राज परिवार के सदस्यों ने देखभाल की जिम्मेवारी दी है. ऐसे में 80 साल के वृद्ध जो इस हवेली की 4 से 5 पीढ़ी से सेवा करते आ रहे हैं उन्होंने बताया कि हमारे राजा सौरभ नारायण सिंह ने हमें जिम्मेवारी दी है.
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हम इस महल की देखभाल करते हैं. वह कभी कभार आते हैं और हम लोगों से मुलाकात करते हैं, लेकिन वे भी कहते हैं कि हमें बहुत दुख होता है कि हमारा किला अब टूटता जा रहा है और इसे देखने वाला कोई नहीं है.
इस किले की राज्य भर में चर्चा है. इस किले के दो हिस्से हैं. पहला हिस्से को हवा महल कहते हैं. हवा महल को देखने के लिए आज भी कई लोग पहुंचते हैं. राजा ने अपने राज्य काल के समय इसे बनाया था. कहा जाता है कि गर्मी के समय राजा आकर यहां बैठा करते थे और यहां दरबार लगता था.
ऐसे में यह काफी आकर्षक है. यहां कभी कभार पर्यटक भी पहुंचते हैं. ऐसे में पर्यटक ने कहा कि हमें काफी दुख होता है कि भारत जिसका इतिहास इस तरह की किले में दफन है. उसे संजोया नहीं जा रहा है.
पर्यटन का भी बड़ा केंद्र बन सकता है
अगर इसे संजोया जाता तो हमारे आने वाली पीढ़ी को जानकारी मिलती और यह एक पर्यटन का भी बड़ा केंद्र बन सकता था. लेकिन सरकार और राज्य परिवार की उदासीनता के कारण यह खंडहर में तब्दील हो गया है.
वर्तमान समय में सौरभ नारायण सिंह इस राज्य परिवार के वंशज हैं जो हजारीबाग से विधायक भी निर्वाचित हुए, लेकिन उन्होंने भी किले को संजोने की कोशिश नहीं की.
इस किले का कुछ क्षेत्र झारखंड पुलिस को दिया गया है जहां ट्रेनिंग कैंप चलता है. इसके अलावा भी राष्ट्रीय खेल प्राधिकरण इस परिसर में बनाया गया है.
इसके अलावा पूरी जमीन खाली पड़ी है. हजारीबाग के प्रसिद्ध इतिहासकार कहते हैं कि रामगढ़ राज का गौरवमयी इतिहास रहा है, लेकिन रखरखाव के अभाव में किला खंडहर में तब्दील होता जा रहा है. ऐसे में सरकार और राज परिवार को इसे संजोने की जरूरत है.
देशभर में कई ऐसे राजाओं के किले हैं जो रखरखाव के अभाव में खंडहर में तब्दील होते जा रहे हैं. ऐसे में हजारीबाग का पद्मा किला भी एक है. ऐसे में जरूरत है सरकार को ऐसे धरोहर को सुरक्षित करने की ताकि हम अपने इतिहास को संजोकर रखें और अपने पीढ़ी को बता सकें कि भारत का इतिहास कितना गौरवमयी रहा है.