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30 साल की बंदना है 40 बच्चों की मां, राष्ट्रपति भी कर चुके हैं सम्मानित

बंदना महज तीस साल की लड़की है लेकिन ये 40 बच्चों की मां है. इतनी कम उम्र में ये बेसहारा बच्चों के लिए कब वंदनीय हो गयीं इसका अहसास उन्हें भी नहीं हुआ. 16 साल पहले उन्होंने सड़क पर बिलबिलाते बच्चे को देखा और उसे साथ घर ले आयी. तब से यह उनकी आदत में शुमार हो गया.

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Published : Mar 7, 2019, 11:59 PM IST

गोड्डा: बंदना महज तीस साल की लड़की है लेकिन ये 40 बच्चों की मां है. इतनी कम उम्र में ये बेसहारा बच्चों के लिए कब वंदनीय हो गयीं इसका अहसास उन्हें भी नहीं हुआ. 16 साल पहले उन्होंने सड़क पर बिलबिलाते बच्चे को देखा और उसे साथ घर ले आयी. तब से यह उनकी आदत में शुमार हो गया.

जिस उम्र में बच्चे अपने सपनों को पूरा करने के लिए जी जान लगा देते हैं. उस उम्र में बंदना ने एक ऐसा सपना पाला जो हर कोई नहीं देखता. उन्होंने ठान लिया कि अब उन्हें बेसहारा बच्चों की देखभाल करनी है. बंदना के इस फैसले के बाद पहले तो घरवालों ने लताड़ा. यही नहीं समाज के लोगों ने इसे पागलपन भी कहा. लेकिन ये बातें बंदना की सपनों की उड़ान को रोक नहीं पाएं. आज बंदना एक नहीं बल्कि 40 बच्चों की मां कहलाती हैं.


पहले जो लोग बंदना के काम को पागलपन का नाम देते थे, आज उन्हीं के लिए वह बेहद सम्माननीय हैं. बंदना के मानव को देख कर 2016 में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उन्हें पुरस्कृत भी किया. बन्दना कहती हैं की सेवा ही उनका धर्म है, उन्हें सुकून मिलता जब बच्चे उन्हें मां कहकर बुलाते हैं और यही उनका सबसे बड़ा इनाम है.वहीं, नन्हें बच्चों की खुशी ये बताने के लिए काफी है कि उन्हें कुछ नहीं बस बंदना मां चाहिए. इन बच्चों के लिए बंदना का साथ किसी जन्नत से कम नहीं है.

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बहरहाल दुनिया में कुछ ही लोग ऐसे होते हैं जो अपनी जिंदगी की परवाह किए बगैर अपना पूरा जीवन समाज की सेवा में लगा देते हैं. बंदना हमारे समाज के लिए एक मिसाल है जो हर किसी को जिंदगी का एक अलग रंग दिखाती है.

गोड्डा: बंदना महज तीस साल की लड़की है लेकिन ये 40 बच्चों की मां है. इतनी कम उम्र में ये बेसहारा बच्चों के लिए कब वंदनीय हो गयीं इसका अहसास उन्हें भी नहीं हुआ. 16 साल पहले उन्होंने सड़क पर बिलबिलाते बच्चे को देखा और उसे साथ घर ले आयी. तब से यह उनकी आदत में शुमार हो गया.

जिस उम्र में बच्चे अपने सपनों को पूरा करने के लिए जी जान लगा देते हैं. उस उम्र में बंदना ने एक ऐसा सपना पाला जो हर कोई नहीं देखता. उन्होंने ठान लिया कि अब उन्हें बेसहारा बच्चों की देखभाल करनी है. बंदना के इस फैसले के बाद पहले तो घरवालों ने लताड़ा. यही नहीं समाज के लोगों ने इसे पागलपन भी कहा. लेकिन ये बातें बंदना की सपनों की उड़ान को रोक नहीं पाएं. आज बंदना एक नहीं बल्कि 40 बच्चों की मां कहलाती हैं.


पहले जो लोग बंदना के काम को पागलपन का नाम देते थे, आज उन्हीं के लिए वह बेहद सम्माननीय हैं. बंदना के मानव को देख कर 2016 में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उन्हें पुरस्कृत भी किया. बन्दना कहती हैं की सेवा ही उनका धर्म है, उन्हें सुकून मिलता जब बच्चे उन्हें मां कहकर बुलाते हैं और यही उनका सबसे बड़ा इनाम है.वहीं, नन्हें बच्चों की खुशी ये बताने के लिए काफी है कि उन्हें कुछ नहीं बस बंदना मां चाहिए. इन बच्चों के लिए बंदना का साथ किसी जन्नत से कम नहीं है.

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बहरहाल दुनिया में कुछ ही लोग ऐसे होते हैं जो अपनी जिंदगी की परवाह किए बगैर अपना पूरा जीवन समाज की सेवा में लगा देते हैं. बंदना हमारे समाज के लिए एक मिसाल है जो हर किसी को जिंदगी का एक अलग रंग दिखाती है.

Intro:चालीस बच्चों की माँ है महज तीस साल की बंदना,कहती जीवन कर दी इनके नाम


Body:वंदना महज तीस साल की युवती कब और कैसे अनाथो के लिए वंदनीय हो गयी शायद उसे भी पता।आज से 16 साल पहले जब वो खुद चौदह पंद्रह साल की रही होगी एक बिलबिलाते बच्चे को सफक पर देखा और किशोर मैन को खुद को रोक न पायी और उसे साथ घर लेते आयी।और फिर क्या था ये उनकी आदतों में शूमार हो गया।और देखते देखते 16 साल गुजर गए।घर अब आश्रम नान गया है।जहाँ हर अंत नॉनिहालो को न केवल आसरा मिलता है बल्कि मिल जाती एक माँ जो है बन्दना।
बंदना आज सेवा का पर्याय बन चुकी है।जिस उम्र में सपनो के पंख लगते है उस उम्र में एक दो नही चालीस चालीस बच्चों से घिरे रहना।किसी चुमौती से कम नही था।पहले तो घर फिर आस पास व समाज के लोगो को ये पागलपन सा लगा।सबने आलोचना शुरू कर दी।लेकिन जिद व दिन की पक्की बमदन कहा किसी सुनने वाली थी।पहले तो उसने घर वालो को मनाया और फिर घर को आश्रम बना डाला।चुकी युवा थी सो स्वामी विवेकानंद को आदर्श मानते हुए आश्रम का नाम विवेकानंद आश्रम नाम दिया।
जिस बन्दना दुबे के जिद को लोगो ने पागलपन का नाम दिया।वही बंदना उस दिन सम्माननीय हो गयी जब उसे मानव सेवा के लिए 2016 में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा पुरस्कृत किया गया।ये पहली बार किसी झारखंड के ब्यक्ति को मिला जो गौरव के चयन थे।
बन्दना कहती है की सेवा ही उनका धर्म है।उन्हें सुकून मिलता जब उसे बच्चे माँ कहके बुलाती है।यही उनका सबसे बड़ा पुरस्कार है।उनका वक़्त बच्चों के साथ खेल कूद व सेवा में गुजरता है।सबका ख्याल खुद रखती है।कहती उन्हें इन बच्चों से इतना जुड़ाव है कि आगे अपने गृहस्थ जीवन के लिए सोचने का वक़्त ही नही मिलता।
वही नन्हें बच्चों की खुशी ये बताने के लिए काफी है कि उन्हें कुछ नही बस बंदना मा चाहिए।व्व है तो सब कुछ है उनके पास
bt-बन्दना दुबे-माँ
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Conclusion:8 मार्च महिला दिवस विशेष
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