गोड्डा: बंदना महज तीस साल की लड़की है लेकिन ये 40 बच्चों की मां है. इतनी कम उम्र में ये बेसहारा बच्चों के लिए कब वंदनीय हो गयीं इसका अहसास उन्हें भी नहीं हुआ. 16 साल पहले उन्होंने सड़क पर बिलबिलाते बच्चे को देखा और उसे साथ घर ले आयी. तब से यह उनकी आदत में शुमार हो गया.
जिस उम्र में बच्चे अपने सपनों को पूरा करने के लिए जी जान लगा देते हैं. उस उम्र में बंदना ने एक ऐसा सपना पाला जो हर कोई नहीं देखता. उन्होंने ठान लिया कि अब उन्हें बेसहारा बच्चों की देखभाल करनी है. बंदना के इस फैसले के बाद पहले तो घरवालों ने लताड़ा. यही नहीं समाज के लोगों ने इसे पागलपन भी कहा. लेकिन ये बातें बंदना की सपनों की उड़ान को रोक नहीं पाएं. आज बंदना एक नहीं बल्कि 40 बच्चों की मां कहलाती हैं.
पहले जो लोग बंदना के काम को पागलपन का नाम देते थे, आज उन्हीं के लिए वह बेहद सम्माननीय हैं. बंदना के मानव को देख कर 2016 में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उन्हें पुरस्कृत भी किया. बन्दना कहती हैं की सेवा ही उनका धर्म है, उन्हें सुकून मिलता जब बच्चे उन्हें मां कहकर बुलाते हैं और यही उनका सबसे बड़ा इनाम है.वहीं, नन्हें बच्चों की खुशी ये बताने के लिए काफी है कि उन्हें कुछ नहीं बस बंदना मां चाहिए. इन बच्चों के लिए बंदना का साथ किसी जन्नत से कम नहीं है.
बहरहाल दुनिया में कुछ ही लोग ऐसे होते हैं जो अपनी जिंदगी की परवाह किए बगैर अपना पूरा जीवन समाज की सेवा में लगा देते हैं. बंदना हमारे समाज के लिए एक मिसाल है जो हर किसी को जिंदगी का एक अलग रंग दिखाती है.