गोड्डाः ECL राजमहल परियोजना ललमटिया के कोयले से बिहार, बंगाल और झारखंड के बड़े इलाके रोशन होते हैं. वहीं यहां के विस्थापितों का बारह साल बाद भी पुनर्वास नहीं कराया गया है. दरअसल, ईसीएल प्रबंधन ने पुराने क्वार्टर में कुछ परिवारों को शिफ्ट कराया था, लेकिन अब उन्हें भी मकान खाली करने का नोटिस दिया जा रहा है. जबकि ये विस्थापित परिवार जिस क्वार्टर में रह रहे हैं, वह भी पूरी तरह से जर्जर हो चुका है.
देश की सबसे बड़ी ओपन कास्ट माइंस कोल एरिया
ECL राजमहल परियोजना ललमटिया पूरे देश की सबसे बड़ी ओपन कास्ट माइंस कोल एरिया है. जहां पिछले चार दशकों से कोयला निकाला जाता है. इसके कोयले से देश के दो बड़े ताप संयंत्र एनटीपीसी कहलगांव और एनटीपीसी फरक्का संचालित होता है. इसकी मदद से दो राज्य बिहार, पश्चिम बंगाल समेत झारखंड के एक बड़े हिस्से रोशन होते हैं, लेकिन इस कोयला उत्खनन में जिन लोगों की जमीन गई, उनके जीवन का अंधियारा मिटना तो दूर आज तक उन्हें घर भी नसीब नहीं हुआ है.
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क्वार्टर ने नाम पर जर्जर भवन
ऐसा ही एक बड़ा भोडाय का क्षेत्र है. जहां 70 परिवारों का विस्थापन महज 24 घंटे के अंदर ECL प्रबंधन ने कर दिया. आनन-फानन में जमीन नहीं आवंटित होने पर उन्हें पुराने क्वार्टर में शिफ्ट भी कर दिया. ये वाकया 2008 का है, लेकिन 12 साल बाद भी न जमीन आवंटित हुई और न सही तरीके से मुआवजा ही दिया गया और तो और नौकरी भी इन्हें आज तक नसीब नहीं हुई. वहीं, क्वार्टर में विस्थापितों के लिए बिजली और पानी की भी सुविधा नहीं है. हर बार उन्हें सिर्फ जल्द ही पुनर्वासित कर दिए जाने का आश्वासन दिया जाता है.
खाली किए जाने का अल्टीमेटम
ईसीएल प्रबंधन ने जिन लोगों को शिफ्ट कराया है, उनके क्वार्टर में कोई सुविधाएं नहीं हैं. क्वार्टर भी पूरी तरह से जर्जर हो चुका है और तो और उन क्वार्टर को भी किसी दूसरे के नाम आवंटित कर खाली किए जाने का अल्टीमेटम दिया जा रहा है. इन विस्थापितों का दर्द कोई सुनने को तैयार नहीं है. प्रबंधन हर दिन प्रशासन की मदद से नई जमीन अधिग्रहण ये कहते हुए करता है कि जिस जमीन के अंदर कोयला है उस पर सरकार का अधिकार है.