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Naxal Affected Village: लाल आतंक के गढ़ नारोटांड गांव में है शांति, फिर भी लोगों के मन में नक्सलियों का डर

गिरिडीह-बिहार की सीमा पर नक्सलवाद की धमक वर्षों पुरानी है. यहां कई दशक से नक्सलियों का राज चलता रहा है. इसी इलाके में बड़े बड़े नरसंहार को अंजाम दिया गया था. हालांकि यह भी सच है कि नक्सलवादियों के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद करने का काम इसी क्षेत्र के लोगों ने किया था. ऐसा ही गांव है नारोटांड. अब यहां शांति है लेकिन आज भी एक बेचैनी लोगों के अंदर है.

Naxal Affected Village
नारोटांड गांव में है शांति
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Published : Dec 27, 2021, 10:31 AM IST

Updated : Dec 27, 2021, 1:23 PM IST

गिरिडीहः बिहार से सटी सीमा पर स्थित हैं जिले के चार प्रखंड. इन चार प्रखंडों में गावां, तिसरी, देवरी और बेंगाबाद शामिल हैं. इन प्रखंडों के कई गांव बिहार से सटे हुए हैं. यह पूरा इलाका जंगल और पहाड़ों से घिरा है. इस इलाके में नक्सलवाद हमेशा ही हावी रहा है. हालांकि इसी इलाके से नक्सलियों के खिलाफ ग्रामीणों ने बगावत का बिगुल भी फूंका था. नक्सलियों से लोगों ने लोहा लिया था. कई बार नक्सलियों व ग्रामीणों में मुठभेड़ भी हुई. ऐसा ही एक गांव है नारोटांड. नारोटांड तिसरी प्रखंड में है. जबकि इसका विधानसभा क्षेत्र धनवार है. यहां के लोगों ने नक्सलियों के खिलाफ एकजुटता दिखाई. नक्सलियों को खदेड़ा जाने लगा. बाद में पुलिस और सुरक्षा बलों का भी साथ मिला इसका परिणाम हुआ कि आज इस गांव के लोग सुकून से रहते हैं. इस सुकून के बीच अभी भी यहां के लोगों को डर है. डर है कि यदि यहां से सीआरपीएफ का कैंप हटा तो नक्सली एक बार फिर लोगों को परेशान कर सकते हैं.

ये भी पढ़ेंः गिरिडीह में बंद कैमरों से शहर की निगरानी, 32 में से 17 CCTV खराब

आतंक से तंग लोग हुए एकजुट

स्थानीय सुबोध साव ने बताया कि 2004 से पहले इस गांव में नक्सलियों का आतंक था. एक तरह से नक्सलियों की समानांतर सरकार चलती थी. लोगों का जीना मुहाल था. सड़क बदहाल थे. ऐसे में लोग एकजुट हुए और नक्सलियों के खिलाफ एक तरह से युद्ध छेड़ दिया. इसका परिणाम हुआ कि नक्सलियों का पांव यहां से उखड़ गया. आज यहां की सड़क बन चुकी है. गांव में प्रशासन का कैंप है. लोग शांति से जीवन यापन करते हैं. सुबोध कहते हैं भले ही आज शांति है लेकिन आज प्रशासन के कुछ लोग उन्हें ही तंग करते हैं.

देखें पूरी खबर
कैंप बनने से डर हुआ खत्म

यहां के मुखिया बालेश्वर का कहना है कि पहले और अब में अंतर हैं. अब यहां सीआरपीएफ का कैंप है. लोगों के मन के अंदर जो नक्सलियों का डर था वह खत्म हो चुका है. अब लोग शांति से रहते हैं. किशोरी साव बताते हैं कि राज्य अलग होने के पहले से उग्रवादियों का आना-जाना लगा रहता था. वर्ष 2000 से आतंक बढ़ गया. बाद में बाबूलाल मरांडी और सरकार का साथ मिला. नक्सलियों से लड़ाई हुई. अब सब शांति है. अब यहां चहल पहल है. उन्होंने कहा कि यहां कैंप रहना जरूरी है. कैंप के रहने से लोगों को काफी राहत है. चूंकि नक्सलियों के मन में अभी भी बदले की भावना है ऐसे में कैंप का रहना जरूरी है.


बाबूलाल मरांडी का है इलाका

यहां बता दें कि नारोटांड जिस तिसरी प्रखंड में पड़ता है वह प्रखंड राज्य के पहले मुख्यमंत्री सह भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी का है. कहा जाता है कि बाबूलाल ने ही नक्सलियों के खिलाफ अभियान छेड़ा था. उन्होंने लोगों को जागरूक किया साथ ही साथ प्रशासन को भी इस इलाके की तरफ विशेष ध्यान देने के लिए मजबूर किया था. हालांकि इसका नुकसान भी बाबूलाल के साथ साथ यहां के लोगों को उठाना पड़ा था. इसी सीमावर्ती इलाके में नक्सलियों ने बदले की भावना से भेलवाघाटी नरसंहार और चिलखारी नरसंहार को अंजाम दिया था. इन दो घटनाओं में तीन दर्जन लोगों की जान ली गई. मरने वालों में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के पुत्र अनूप भी शामिल हैं.

गिरिडीहः बिहार से सटी सीमा पर स्थित हैं जिले के चार प्रखंड. इन चार प्रखंडों में गावां, तिसरी, देवरी और बेंगाबाद शामिल हैं. इन प्रखंडों के कई गांव बिहार से सटे हुए हैं. यह पूरा इलाका जंगल और पहाड़ों से घिरा है. इस इलाके में नक्सलवाद हमेशा ही हावी रहा है. हालांकि इसी इलाके से नक्सलियों के खिलाफ ग्रामीणों ने बगावत का बिगुल भी फूंका था. नक्सलियों से लोगों ने लोहा लिया था. कई बार नक्सलियों व ग्रामीणों में मुठभेड़ भी हुई. ऐसा ही एक गांव है नारोटांड. नारोटांड तिसरी प्रखंड में है. जबकि इसका विधानसभा क्षेत्र धनवार है. यहां के लोगों ने नक्सलियों के खिलाफ एकजुटता दिखाई. नक्सलियों को खदेड़ा जाने लगा. बाद में पुलिस और सुरक्षा बलों का भी साथ मिला इसका परिणाम हुआ कि आज इस गांव के लोग सुकून से रहते हैं. इस सुकून के बीच अभी भी यहां के लोगों को डर है. डर है कि यदि यहां से सीआरपीएफ का कैंप हटा तो नक्सली एक बार फिर लोगों को परेशान कर सकते हैं.

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आतंक से तंग लोग हुए एकजुट

स्थानीय सुबोध साव ने बताया कि 2004 से पहले इस गांव में नक्सलियों का आतंक था. एक तरह से नक्सलियों की समानांतर सरकार चलती थी. लोगों का जीना मुहाल था. सड़क बदहाल थे. ऐसे में लोग एकजुट हुए और नक्सलियों के खिलाफ एक तरह से युद्ध छेड़ दिया. इसका परिणाम हुआ कि नक्सलियों का पांव यहां से उखड़ गया. आज यहां की सड़क बन चुकी है. गांव में प्रशासन का कैंप है. लोग शांति से जीवन यापन करते हैं. सुबोध कहते हैं भले ही आज शांति है लेकिन आज प्रशासन के कुछ लोग उन्हें ही तंग करते हैं.

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कैंप बनने से डर हुआ खत्म

यहां के मुखिया बालेश्वर का कहना है कि पहले और अब में अंतर हैं. अब यहां सीआरपीएफ का कैंप है. लोगों के मन के अंदर जो नक्सलियों का डर था वह खत्म हो चुका है. अब लोग शांति से रहते हैं. किशोरी साव बताते हैं कि राज्य अलग होने के पहले से उग्रवादियों का आना-जाना लगा रहता था. वर्ष 2000 से आतंक बढ़ गया. बाद में बाबूलाल मरांडी और सरकार का साथ मिला. नक्सलियों से लड़ाई हुई. अब सब शांति है. अब यहां चहल पहल है. उन्होंने कहा कि यहां कैंप रहना जरूरी है. कैंप के रहने से लोगों को काफी राहत है. चूंकि नक्सलियों के मन में अभी भी बदले की भावना है ऐसे में कैंप का रहना जरूरी है.


बाबूलाल मरांडी का है इलाका

यहां बता दें कि नारोटांड जिस तिसरी प्रखंड में पड़ता है वह प्रखंड राज्य के पहले मुख्यमंत्री सह भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी का है. कहा जाता है कि बाबूलाल ने ही नक्सलियों के खिलाफ अभियान छेड़ा था. उन्होंने लोगों को जागरूक किया साथ ही साथ प्रशासन को भी इस इलाके की तरफ विशेष ध्यान देने के लिए मजबूर किया था. हालांकि इसका नुकसान भी बाबूलाल के साथ साथ यहां के लोगों को उठाना पड़ा था. इसी सीमावर्ती इलाके में नक्सलियों ने बदले की भावना से भेलवाघाटी नरसंहार और चिलखारी नरसंहार को अंजाम दिया था. इन दो घटनाओं में तीन दर्जन लोगों की जान ली गई. मरने वालों में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के पुत्र अनूप भी शामिल हैं.

Last Updated : Dec 27, 2021, 1:23 PM IST
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