गिरिडीहः बिहार और कोडरमा से सटे गिरिडीह के गावां और तिसरी प्रखण्ड में अभ्रक प्रचुर मात्रा में है. अभ्रक से भरे इस क्षेत्र में माइका के खनन पर पूरी तरह रोक है. इसके बावजूद इस इलाके में अभी अभ्रक की दो दर्जन से अधिक खदानें संचालित हैं. इनमें से ज्यादातर खदानें वन भूमि पर स्थित हैं. इन खदानों में हर रोज सैकड़ों मजदूरों को उतारा जाता है. मजदूर 9-9 घंटे तक काम करते हैं और इसके एवज में इन्हें महज डेढ़ सौ से ढाई सौ रुपया ही प्रति दिन नसीब होता है. वहीं सुरक्षा के अभाव में खदानों में आए दिन हादसे भी हो रहे हैं पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. इन मजदूरों के द्वारा निकाले गए माइका की तस्करी कर माफिया करोड़ों में खेल रहे हैं और यह सब खेल प्रशासन की नाक के नीचे हो रहा है.
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चीख नहीं सुन रहा प्रशासन
तिसरी व गावां के इलाके में संचालित अवैध खदानों में मजदूरों की मौत आम बात है. यहां आए दिन मजदूर मरते हैं. ज्यादातर मामले को माफिया दबा देते हैं. जो मामला सामने आता है वह कुछ दिनों तक मीडिया की सुर्खियों में तो छाया रहता है लेकिन समय गुजरते गुजरते यह मामला भी शांत पड़ जाता है.
सवाल का जवाब नहीं है अधिकारियों के पास
दो दिनों पूर्व तिसरी प्रखण्ड अंतर्गत मनसाडीह पंचायत के सक्सेकिया जंगल के पास रखवा माइका खदान में अवैध तौर पर अभ्रक निकालने के क्रम में हादसा हो गया था. मंगलवार की दोपहर इस खदान में धंसान हो गया तो दो युवक सतीश कुमार व रंजीत राय लगभग 500 फीट नीचे ही दब गए. घटना में बचे 8-10 मजदूरों ने इसकी जानकारी लोगों को दी, जिसके बाद बुधवार को प्रशासन हरकत में आया. बुधवार को प्रशासन की टीम यहां पहुंची और उनकी मौजूदगी में ग्रामीण इस खदान के अंदर भी गए. दो दिनों तक अधिकारी की मौजूदगी में दबे हुए मजदूरों की खोज की गई लेकिन दोनों की लाश को ढूंढ़ा नहीं जा सका.
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बस टालमटोल
अब चूंकि जिस खदान में मजदूरों की मौत हुई है वह जब पिछले पांच साल से संचालित है तो निश्चित तौर पर वन विभाग, खनन विभाग सवालों के घेरे में आता ही है. इन अवैध खनन के सवालों का जवाब इनके पास है ही नहीं. वन विभाग के अधिकारी तो सीधे तौर पर कहते हैं कि सीमा क्षेत्र देखकर कार्रवाई होती है. वहीं खनन विभाग के अधिकारी तो कहते हैं कि जिला टास्क फोर्स कार्रवाई करेगी.