जमशेदपुर: शहर के सोनारी स्थित स्वर्णरेखा नदी तट पर आरती को लेकर निर्माण कार्य किए जा रहे हैं. इस निर्माण कार्य पर जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय ने सवाल किया है. यही नहीं उन्होंने अपने सोशल मीडिया के माध्यम से एक वीडियो और फोटो अपलोड कर उस स्थल पर स्वास्थ्य मंत्री के साथ-साथ जमशेदपुर डीसी और जमशेदपुर विशेष पदाधिकारी के खड़े होने को लेकर आपत्ति जताई है.
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विधायक सरयू राय ने इस पर लिखा है कि दोमुहान जमशेदपुर से आज जो तस्वीर और वीडियो आए हैं, वे कानूनी और प्रशासनिक दृष्टिकोण से चिंताजनक हैं. उन्होंने उपायुक्त के खड़े होने पर सवाल उठाते हुए कहा है कि जिनपर कायदा-कानून का क्रियान्वयन करने का दायित्व सरकार ने डाला है, यदि उनका ही आचरण नियम-कानून के विपरीत होगा, इन प्रावधानों का उल्लंघन करने वाला होगा तो राज्य में विधि व्यवस्था कैसे बहाल होगी.
स्वास्थ्य मंत्री से पूछे कई सवाल: उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता को आड़े हाथों लेते हुए पूछा है कि यहां हो रहे निर्माण की प्रकृति और प्रकार क्या हैं? इसका डिजाइन क्या है? इसका प्राक्कलन तैयार हुआ है या नहीं? प्राक्कलन की तकनीकी एवं वित्तीय स्वीकृति हुई है या नहीं? यही नहीं उन्होंने पूछा है कि इसके अतिरिक्त नदी पर जिस विभाग का अधिकार है, उसकी और पर्यावरण की स्वीकृति इस कार्य के लिए प्राप्त है या नहीं? वस्तुतः इस बारे में स्पष्टता नहीं है, यह सब हुआ ही नहीं है. इसके बावजूद नदी के पेट में काम शुरू हो गया है.
उपायुक्त को भी लिया निशाने पर: वहीं जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय ने जिला के उपायुक्त को भी निशाने पर लेते हुए कहा है कि उपायुक्त भी इस प्रकार के कार्य को बढ़ावा दे रही हैं. उन्होंने कहा कि मंत्री, उपायुक्त, जेएनएसी के विशेष पदाधिकारी वहां मौजूद रहकर कार्य का निरीक्षण रहे हैं. यह भी पता नहीं है कि इस कार्य के लिए निधि कहां से आएगी, लेकिन काम युद्ध स्तर पर चल रहा है. ठेकेदारों और जेएनएसी के पोकलेन, जेसीबी जबरन काम पर लगाए गये हैं. उन्होंने कहा है कि उपायुक्त जिला पर्यावरण समिति की अध्यक्ष हैं. उनका दायित्व पर्यावरण, पारिस्थितिकी का संरक्षण करना है, लेकिन वे ही नदी, पर्यावरण, पारिस्थितिकी के प्रतिकूल होने वाले अनियमित कार्य को प्रोत्साहन दे रही हैं तो किया हो सकता है.
कहा- मंगलवार को उच्च न्यायालय की शरण में जाउंगा: सरयू राय ने कहा है कि ऐसी परिस्थिति में उनके पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है कि मैं इस मामले में उच्च न्यायालय या एनजीटी जाऊं. यदि कानून का रखवाला ही कानून तोड़ने लगेगा तो न्यायपालिका के पास जाना ही विकल्प है. उन्होंने कहा है कि अगले मंगलवार को यह मामला उच्च न्यायालय के सामने उठाऊंगा. उन्होंने बताया कि इस मामले में एक पीआईएल संख्या 1325/2011 नदियों के अतिक्रमण के बारे में उच्च न्यायालय के स्वतः संज्ञान लेने से चल रहा है. इसमें मेरी हस्तक्षेप याचिका स्वीकृत है. इसमें उच्च न्यायालय के आदेश से मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी थी, जिसमें मेरे अधिवक्ता और टाटा स्टील के प्रतिनिधि शामिल थे. इस बारे में स्वर्णरेखा की पारिस्थितिकी को पुनः बहाल करने का निर्णय हुआ था टाटा स्टील के तत्कालीन वीपी सीएस ने मेरे साथ नदी तट का दौरा भी किया था और आवश्यक उपाय करने का भरोसा दिया था. आगे क्या हुआ इस बारे में टाटा स्टील ही न्यायालय को बता सकता है. उन्होंने स्पष्ट कहां कि नदी प्रकृति की धरोहर है, किसी की जागीर नहीं कि कोई जब चाहे मनमानी करे और नदी की पारिस्थितिकी के साथ छेड़छाड करे और प्रशासन ऐसे गलत काम का खुलेआम समर्थन करे.