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मकर संक्रांति पर आदिवासी समाज बनाता है विशेष पकवान, जानें क्या है खासियत? - मकर संक्रांति पर्व

झारखंड में आदिवासी समाज की ओर से मकर संक्राति पर्व खास तौर से मनाया जाता है. इसे लेकर यहां एक महीने पहले से तैयारी की जाती है. इस पर्व में महिलाएं कई तरह के व्यंजन बनाती हैं, जिसमें पीठा सबसे खास होता है. भले ही आज के आधुनिक युग में कई तरह के मशीन हैं, लेकिन यहां की महिलाएं पीठा बनाने के लिए अपनी पुरानी परंपरा का ही इस्तेमाल करती हैं.

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मकर संक्रांति पर आदिवासी समाज बनाता है विशेष पकवान
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Published : Jan 13, 2021, 10:40 PM IST

जमशेदपुर: झारखंड में आदिवासी समाज बड़े जोश से मकर संक्रांति पर्व मनाते हैं. इस त्योहार को लेकर यहां एक महीने पहले से तैयारी की जाती है. इस पर्व में कई व्यंजन बनाये जाते हैं, लेकिन उनमें पीठा सबसे खास होता है. जिसे महिलाएं आज भी पुरानी पद्दति से बनाती हैं. मकर में यहां तीन तरह का पीठा बनाया जाता है.

देखें स्पेशल खबर
एक महीने से चलती है मकर पर्व की तैयारी झारखंड में आदिवासी समाज की ओर से मकर संक्राति पर्व खास तौर से मनाया जाता है. इसे लेकर यहां एक महीने पहले से तैयारी की जाती है. घरों को आकर्षक रंगों से सजाया जाता है. इस पर्व में महिलाएं कई तरह के व्यंजन बनाती हैं, जिसमें पीठा सबसे खास होता है. जमशेदपुर के ग्रामीण इलाकों में महिलाएं मकर पर्व के लिए पीठा बनाने में लगी हुई हैं. भले ही आज के आधुनिक युग में कई तरह के मशीन हैंं, लेकिन यहां की महिलाएं पीठा बनाने के लिए अपनी पुरानी परंपरा का ही इस्तेमाल करती हैं.

ये भी पढ़ें-किराड़ीः लक्ष्मी विहार डिस्पेंसरी में समय से नहीं आते डॉक्टर, स्थानीय परेशान

कैसे बनता है पीठा
गांव की महिलाएं बताती हैं कि मकर में तीन तरह का पीठा बनाया जाता है. गुड़ का पीठा, चीनी का पीठा और मांस का पीठा, जो नॉनवेज होता है. पहले अरवा चावल को लकड़ी की ढेकी में कूटा जाता है, जिसे गुड़ या चीनी के पाक यानी चासनी में मिलाया जाता है. पकाने के लिए मिट्टी का चूल्हा बनाया जाता है जिसमें लकड़ी जलाकर पीठा बनाया जाता है. सरसो तेल या रिफाइन तेल के अलावा तिल तेल में भी पीठा बनाया जाता है. गुड़ और चीनी का पीठा एक महीने तक खराब नहीं होता है. इससे शरीर को कोई नुकसान भी नहीं होता है. लकड़ी जलाकर पकाने से इसका स्वाद और बढ़ जाता है.

पुरानी परंपरा को सादगी के साथ निभाने की तैयारी

मकर पर्व के दिन सुबह में तिलकुट और तिल पूजा में चढ़ाया जाता है. उसके बाद एक दूसरे को पीठा देकर मकर पर्व मनाया जाता है. यह पुरानी परंपरा है. मकर में घर आने वाले मेहमानों को पीठा दिया जाता है. ग्रामीणों का कहना है कि धान की नई फसल की पूजा कर पीठा बनाया जाता है, लेकिन इस साल कोरोना को लेकर सादगी के साथ इस त्योहार को मनाएंगे और अगले साल से इसे धूमधाम से मनाएंगे. आज की युवा पीढ़ी भी अपनी पुरानी परंपरा को निभाने में व्यस्त है. वे भी पीठा बनाने में घर के लोगों का साथ दे रहे हैं. कोरोना के कारण भले ही मकर पर्व में इस साल किसी तरह का भव्य आयोजन नहीं किया जा रहा है, लेकिन आदिवासी समाज ने अपनी पुरानी परंपरा और संस्कृति को सादगी के साथ निभाने की तैयारी कर ली है.

जमशेदपुर: झारखंड में आदिवासी समाज बड़े जोश से मकर संक्रांति पर्व मनाते हैं. इस त्योहार को लेकर यहां एक महीने पहले से तैयारी की जाती है. इस पर्व में कई व्यंजन बनाये जाते हैं, लेकिन उनमें पीठा सबसे खास होता है. जिसे महिलाएं आज भी पुरानी पद्दति से बनाती हैं. मकर में यहां तीन तरह का पीठा बनाया जाता है.

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एक महीने से चलती है मकर पर्व की तैयारी झारखंड में आदिवासी समाज की ओर से मकर संक्राति पर्व खास तौर से मनाया जाता है. इसे लेकर यहां एक महीने पहले से तैयारी की जाती है. घरों को आकर्षक रंगों से सजाया जाता है. इस पर्व में महिलाएं कई तरह के व्यंजन बनाती हैं, जिसमें पीठा सबसे खास होता है. जमशेदपुर के ग्रामीण इलाकों में महिलाएं मकर पर्व के लिए पीठा बनाने में लगी हुई हैं. भले ही आज के आधुनिक युग में कई तरह के मशीन हैंं, लेकिन यहां की महिलाएं पीठा बनाने के लिए अपनी पुरानी परंपरा का ही इस्तेमाल करती हैं.

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कैसे बनता है पीठा
गांव की महिलाएं बताती हैं कि मकर में तीन तरह का पीठा बनाया जाता है. गुड़ का पीठा, चीनी का पीठा और मांस का पीठा, जो नॉनवेज होता है. पहले अरवा चावल को लकड़ी की ढेकी में कूटा जाता है, जिसे गुड़ या चीनी के पाक यानी चासनी में मिलाया जाता है. पकाने के लिए मिट्टी का चूल्हा बनाया जाता है जिसमें लकड़ी जलाकर पीठा बनाया जाता है. सरसो तेल या रिफाइन तेल के अलावा तिल तेल में भी पीठा बनाया जाता है. गुड़ और चीनी का पीठा एक महीने तक खराब नहीं होता है. इससे शरीर को कोई नुकसान भी नहीं होता है. लकड़ी जलाकर पकाने से इसका स्वाद और बढ़ जाता है.

पुरानी परंपरा को सादगी के साथ निभाने की तैयारी

मकर पर्व के दिन सुबह में तिलकुट और तिल पूजा में चढ़ाया जाता है. उसके बाद एक दूसरे को पीठा देकर मकर पर्व मनाया जाता है. यह पुरानी परंपरा है. मकर में घर आने वाले मेहमानों को पीठा दिया जाता है. ग्रामीणों का कहना है कि धान की नई फसल की पूजा कर पीठा बनाया जाता है, लेकिन इस साल कोरोना को लेकर सादगी के साथ इस त्योहार को मनाएंगे और अगले साल से इसे धूमधाम से मनाएंगे. आज की युवा पीढ़ी भी अपनी पुरानी परंपरा को निभाने में व्यस्त है. वे भी पीठा बनाने में घर के लोगों का साथ दे रहे हैं. कोरोना के कारण भले ही मकर पर्व में इस साल किसी तरह का भव्य आयोजन नहीं किया जा रहा है, लेकिन आदिवासी समाज ने अपनी पुरानी परंपरा और संस्कृति को सादगी के साथ निभाने की तैयारी कर ली है.

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