जमशेदपुर: झारखंड में मनाए जाने वाला महान पर्व मकर को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं. वहीं मकर में खास महत्व रखने वाला पीठा को बनाने के लिए ढेंकी का इस्तेमाल आज भी ग्रामीण क्षेत्र में किया जा रहा है. अपनी इस पुरानी धरोहर को बचाने में आज भी महिलाएं जुटी हुई हैं.
नए उपकरण भी नहीं ले पाए इसकी जगह
झारखंड में 14 और 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाने के लिए तैयारियां जोरों पर हैं. आदिवासी और मूलवासी समाज मकर को टुसू पर्व भी कहते हैं. मकर में आदिवासी समाज में पीठा का खास महत्व होता है, जिसे बनाने के लिए महिलाएं दो दिन पूर्व से ही तैयारी करती हैं. बदलते युग में इंसान के रोजमर्रा की जिंदगी में होने वाले काम को कम समय में आसानीपूर्वक करने के लिए नए-नए उपकरण इजाद किए जा रहे हैं, लेकिन आदिवासी समाज में उनकी पुरानी धरोहर ढेंकी आज भी नए उपकरण को चुनौती दे रही है. जिसका इस्तेमाल महिलाएं पीठा बनाने के लिए खासतौर पर करती हैं.
ढेंकी से तीन महिलाएं कूटती हैं चावल
जमशेदपुर शहर से सटे करनडीह के एक गांव में घर के आंगन में लकड़ी से बने ढेंकी को चलाकर महिलाएं पीठा बनाने के लिए चावल को कूट रही है. लकड़ी से बने ढेंकी को दो महिलाएं अपने पैरों से चलाती हैं और लकड़ी का एक बड़े वजनदार हिस्से कि एक तरफ लकड़ी का ही एक मोटा गुटका लगा रहता है जो जमीन में किए गए गड्ढे में चावल को कूटता है और चावल का आटा बन जाता है. चावल को कूटने के बाद पीसे हुए चावल से अलग-अलग तरह का पीठा बनाया जाता है जिसका स्वाद सबसे अलग लाजवाब होता है. जिसके घर ढेंकी होती है वहां सुबह से ही आस-पास की महिलाएं अपना चावल लेकर उसे कूटने के लिए आती हैं.
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ढेंकी की पूजा कर कूटते हैं चावल
अपने घर के आंगन में ढेंकी चलाने वाली डुमरी मुर्मू बताती हैं कि पहले ढेंकी की पूजा करते हैं फिर चावल कूटते हैं. आज ढेंकी गांव में सभी घरों में है लेकिन लोग इसका इस्तेमाल अब कम करते हैं. ढेंकी के चावल से बने पीठा का स्वाद सबसे अलग होता है ये जल्दी खराब नहीं होता है. वहीं ढेंकी में चावल कूटने आई चांदनी बेसरा का कहना है आज कोई मेहनत नहीं करना चाहता है सब मशीन का इस्तेमाल करते हैं. वो बताती हैं कि दो किलो चावल कूटने में पांच घंटे का समय लगता है और लोगों के पास समय की कमी रहती है. ढेकी चलाने से एक्सरसाइज भी हो जाता है.
बनाये जाते हैं कई तरह का पीठा
बता दें कि मकर में चावल से कूटे गए आटे से कई तरह का व्यंजन बनता है जिनमें गुड़ पीठा, चीनी से बना पीठा, मांस पीठा और लेटो प्रमुख है. आदिवासी महिलाओं ने चावल से पीठा बनाना शुरू कर दिया है और इस पीठे से मकर के दिन एक दूसरे को पीठा खिलाकर आपसी संबंध में मिठास बनाए रखने का पहल करेंगी. झारखंड में मकर पर्व को लेकर आदिवासी समाज 14 जनवरी से लेकर 10 दिनों तक उत्साहपूर्वक पर्व को मनाते हैं. इस दौरान कई तरह का आयोजन भी किया जाता है. इससे पहले समाज की महिलाएं अपने घरों को सुंदर तरीके से रंगाई पुताई करती है जो काफी आकर्षक दिखता है.