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मकर की पुरानी धरोहर से बने पीठा का स्वाद आज भी है कायम, जानिए ढेंकी की विशेषताएं

14 और 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाने के लिए तैयारियां जोरों पर हैं. आदिवासी और मूलवासी समाज मकर को टुसू पर्व भी कहते हैं. मकर में आदिवासी समाज में पीठा का खास महत्व होता है. इसे बनाने में ढेंकी का खास महत्व होता है.

Makar sankranti, मकर संक्रांति
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Published : Jan 13, 2020, 9:13 PM IST

जमशेदपुर: झारखंड में मनाए जाने वाला महान पर्व मकर को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं. वहीं मकर में खास महत्व रखने वाला पीठा को बनाने के लिए ढेंकी का इस्तेमाल आज भी ग्रामीण क्षेत्र में किया जा रहा है. अपनी इस पुरानी धरोहर को बचाने में आज भी महिलाएं जुटी हुई हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी

नए उपकरण भी नहीं ले पाए इसकी जगह
झारखंड में 14 और 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाने के लिए तैयारियां जोरों पर हैं. आदिवासी और मूलवासी समाज मकर को टुसू पर्व भी कहते हैं. मकर में आदिवासी समाज में पीठा का खास महत्व होता है, जिसे बनाने के लिए महिलाएं दो दिन पूर्व से ही तैयारी करती हैं. बदलते युग में इंसान के रोजमर्रा की जिंदगी में होने वाले काम को कम समय में आसानीपूर्वक करने के लिए नए-नए उपकरण इजाद किए जा रहे हैं, लेकिन आदिवासी समाज में उनकी पुरानी धरोहर ढेंकी आज भी नए उपकरण को चुनौती दे रही है. जिसका इस्तेमाल महिलाएं पीठा बनाने के लिए खासतौर पर करती हैं.

ढेंकी से तीन महिलाएं कूटती हैं चावल
जमशेदपुर शहर से सटे करनडीह के एक गांव में घर के आंगन में लकड़ी से बने ढेंकी को चलाकर महिलाएं पीठा बनाने के लिए चावल को कूट रही है. लकड़ी से बने ढेंकी को दो महिलाएं अपने पैरों से चलाती हैं और लकड़ी का एक बड़े वजनदार हिस्से कि एक तरफ लकड़ी का ही एक मोटा गुटका लगा रहता है जो जमीन में किए गए गड्ढे में चावल को कूटता है और चावल का आटा बन जाता है. चावल को कूटने के बाद पीसे हुए चावल से अलग-अलग तरह का पीठा बनाया जाता है जिसका स्वाद सबसे अलग लाजवाब होता है. जिसके घर ढेंकी होती है वहां सुबह से ही आस-पास की महिलाएं अपना चावल लेकर उसे कूटने के लिए आती हैं.

ये भी पढ़ें- बीजेपी के होंगे बाबूलाल मरांडी! दोनों के पास नहीं है ऑप्शन

ढेंकी की पूजा कर कूटते हैं चावल
अपने घर के आंगन में ढेंकी चलाने वाली डुमरी मुर्मू बताती हैं कि पहले ढेंकी की पूजा करते हैं फिर चावल कूटते हैं. आज ढेंकी गांव में सभी घरों में है लेकिन लोग इसका इस्तेमाल अब कम करते हैं. ढेंकी के चावल से बने पीठा का स्वाद सबसे अलग होता है ये जल्दी खराब नहीं होता है. वहीं ढेंकी में चावल कूटने आई चांदनी बेसरा का कहना है आज कोई मेहनत नहीं करना चाहता है सब मशीन का इस्तेमाल करते हैं. वो बताती हैं कि दो किलो चावल कूटने में पांच घंटे का समय लगता है और लोगों के पास समय की कमी रहती है. ढेकी चलाने से एक्सरसाइज भी हो जाता है.

बनाये जाते हैं कई तरह का पीठा
बता दें कि मकर में चावल से कूटे गए आटे से कई तरह का व्यंजन बनता है जिनमें गुड़ पीठा, चीनी से बना पीठा, मांस पीठा और लेटो प्रमुख है. आदिवासी महिलाओं ने चावल से पीठा बनाना शुरू कर दिया है और इस पीठे से मकर के दिन एक दूसरे को पीठा खिलाकर आपसी संबंध में मिठास बनाए रखने का पहल करेंगी. झारखंड में मकर पर्व को लेकर आदिवासी समाज 14 जनवरी से लेकर 10 दिनों तक उत्साहपूर्वक पर्व को मनाते हैं. इस दौरान कई तरह का आयोजन भी किया जाता है. इससे पहले समाज की महिलाएं अपने घरों को सुंदर तरीके से रंगाई पुताई करती है जो काफी आकर्षक दिखता है.

जमशेदपुर: झारखंड में मनाए जाने वाला महान पर्व मकर को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं. वहीं मकर में खास महत्व रखने वाला पीठा को बनाने के लिए ढेंकी का इस्तेमाल आज भी ग्रामीण क्षेत्र में किया जा रहा है. अपनी इस पुरानी धरोहर को बचाने में आज भी महिलाएं जुटी हुई हैं.

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नए उपकरण भी नहीं ले पाए इसकी जगह
झारखंड में 14 और 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाने के लिए तैयारियां जोरों पर हैं. आदिवासी और मूलवासी समाज मकर को टुसू पर्व भी कहते हैं. मकर में आदिवासी समाज में पीठा का खास महत्व होता है, जिसे बनाने के लिए महिलाएं दो दिन पूर्व से ही तैयारी करती हैं. बदलते युग में इंसान के रोजमर्रा की जिंदगी में होने वाले काम को कम समय में आसानीपूर्वक करने के लिए नए-नए उपकरण इजाद किए जा रहे हैं, लेकिन आदिवासी समाज में उनकी पुरानी धरोहर ढेंकी आज भी नए उपकरण को चुनौती दे रही है. जिसका इस्तेमाल महिलाएं पीठा बनाने के लिए खासतौर पर करती हैं.

ढेंकी से तीन महिलाएं कूटती हैं चावल
जमशेदपुर शहर से सटे करनडीह के एक गांव में घर के आंगन में लकड़ी से बने ढेंकी को चलाकर महिलाएं पीठा बनाने के लिए चावल को कूट रही है. लकड़ी से बने ढेंकी को दो महिलाएं अपने पैरों से चलाती हैं और लकड़ी का एक बड़े वजनदार हिस्से कि एक तरफ लकड़ी का ही एक मोटा गुटका लगा रहता है जो जमीन में किए गए गड्ढे में चावल को कूटता है और चावल का आटा बन जाता है. चावल को कूटने के बाद पीसे हुए चावल से अलग-अलग तरह का पीठा बनाया जाता है जिसका स्वाद सबसे अलग लाजवाब होता है. जिसके घर ढेंकी होती है वहां सुबह से ही आस-पास की महिलाएं अपना चावल लेकर उसे कूटने के लिए आती हैं.

ये भी पढ़ें- बीजेपी के होंगे बाबूलाल मरांडी! दोनों के पास नहीं है ऑप्शन

ढेंकी की पूजा कर कूटते हैं चावल
अपने घर के आंगन में ढेंकी चलाने वाली डुमरी मुर्मू बताती हैं कि पहले ढेंकी की पूजा करते हैं फिर चावल कूटते हैं. आज ढेंकी गांव में सभी घरों में है लेकिन लोग इसका इस्तेमाल अब कम करते हैं. ढेंकी के चावल से बने पीठा का स्वाद सबसे अलग होता है ये जल्दी खराब नहीं होता है. वहीं ढेंकी में चावल कूटने आई चांदनी बेसरा का कहना है आज कोई मेहनत नहीं करना चाहता है सब मशीन का इस्तेमाल करते हैं. वो बताती हैं कि दो किलो चावल कूटने में पांच घंटे का समय लगता है और लोगों के पास समय की कमी रहती है. ढेकी चलाने से एक्सरसाइज भी हो जाता है.

बनाये जाते हैं कई तरह का पीठा
बता दें कि मकर में चावल से कूटे गए आटे से कई तरह का व्यंजन बनता है जिनमें गुड़ पीठा, चीनी से बना पीठा, मांस पीठा और लेटो प्रमुख है. आदिवासी महिलाओं ने चावल से पीठा बनाना शुरू कर दिया है और इस पीठे से मकर के दिन एक दूसरे को पीठा खिलाकर आपसी संबंध में मिठास बनाए रखने का पहल करेंगी. झारखंड में मकर पर्व को लेकर आदिवासी समाज 14 जनवरी से लेकर 10 दिनों तक उत्साहपूर्वक पर्व को मनाते हैं. इस दौरान कई तरह का आयोजन भी किया जाता है. इससे पहले समाज की महिलाएं अपने घरों को सुंदर तरीके से रंगाई पुताई करती है जो काफी आकर्षक दिखता है.

Intro:जमशेदपुर।



झारखंड में मनाए जाने वाला आदिवासियों का महान पर्व मकर को लेकर तैयारियां जोरों पर है वही मकर में खास महत्व रखने वाला पीठा को बनाने के लिए ढेकी का इस्तेमाल आज भी आदिवासी ग्रामीण क्षेत्र में किया जा रहा है अपनी पुरानी धरोहर को बचाने में आज भी महिलाएं जुटी हुई है।



Body:झारखंड में 14 और 15 जनवरी को मकर संक्रांति बनाने के लिए तैयारियां जोरों पर है। आदिवासी समाज द्वारा मकर को टुसू पर्व भी कहते हैं। मकर में आदिवासी समाज में पीठा का खास महत्व होता है जिसे बनाने के लिए महिलाएं 2 दिन पूर्व से ही तैयारी करती हैं।
बदलते युग में इंसान के रोजमर्रा की जिंदगी में होने वाले काम को कम समय में आसानी पूर्वक करने के लिए नए-नए उपकरण इजाद किए जा रहे हैं लेकिन आदिवासी समाज में उनकी पुरानी धरोहर ढेकी आज भी नए उपकरण को चुनौती दे रहा है जिसका इस्तेमाल महिलाएं पीठा बनाने के लिए खासतौर पर करती हैं ।
जमशेदपुर शहर से सटे करनडीह के एक गांव में घर के आंगन में लकड़ी से बने ढेकी को चला कर महिलाएं पीठा बनाने के लिए चावल को कूट रही है कहा जा सकता है ।
लकड़ी से बने ढेकी को दो महिलाएं अपने पैरों से चलाती है और लकड़ी का एक बड़ा वजनदार हिस्से कि एक तरफ लकड़ी का ही एक मोटा गुटका लगा रहता है जो जमीन में किए गए गड्ढे में चावल को कूटता है और चावल का आटा बन जाता है ।
ढेकी से चावल को कूटने में दी से तीन महिलाये जुटी रहती है ।
चावल को कुटने के बाद पीसे हुए चावल से अलग अलग तरह का पीठा बनाया जाता है जिसका स्वाद सबसे अलग लाजवाब होता है।जिसके घर ढेकी होता है वहां सुबह से ही आस पास की महिलाये अपना चावल लेकर उसे कूटने के लिए आती है।

अपने घर के आंगन में ढेकी चलाने वाली डुमरी मुर्मू बताती है कि पहले ढेकी की पूजा करते है फिर चावल कूटते है।आज ढेकी गांव में सभी घरों में है लेकिन लोग इसका इस्तेमाल अब कम करते है।ढेकी के चावल से बना पीठा का स्वाद सबसे अलग होता है ये जल्दी खराब नही होता है पीठा नरम रहता है लेकिन मिक्सर या चक्की से पीसा चावल का पीठा नरम नही होता है स्वाद अलग होता है पीठा जल्दी खराब भी हो जाता है।ढेकी हमारी पुरानी धरोहर है।
बाईट डुमरी मुर्मू ढेकी चलाने वाली महिला

वही ढेकी में अपना चावल कुटने आई चांदनी बेसरा का कहना है आज कोई मेहनत नही करना चाहता है सब मशीन का इस्तेमाल करते है।वो बताती है कि दो किलो चावल कूटने में पांच घंटे का समय लगता है ।और लोगों के पास समय की कमी रहती है और ढेकी से दूर हो रहे है ढेकी चलाने से एक्सरसाइज़ भी हो जाता है ।
बाईट चांदनी बेसरा

आपको बता दें कि मकर में चावल से कुटे गए आटे से कई तरह का व्यंजन बनता है जिनमें गुड़ पीठा चीनी से बना पीठा मांस पीठा और लेटो प्रमुख है।
नेहा टुडू ने पीठा बना लिया है वह बताती है कि गुड़ पीठा और चीनी पीठा को बनाने के लिए वह ढेकी से ही चावल कुटवा कर लाती है और उसका पीठा बनाती है जिसका स्वाद लाजवाब होता है।
आदिवासी महिलाएं चावल से पीठा बनाना शुरू कर दिया है और इस पीठे से मकर के दिन एक दूसरे को पीठा खिलाकर आपसी संबंध में मिठास बनाए रखने का पहल करेंगी।
गौरतलब है कि झारखंड में मकर पर्व को लेकर आदिवासी समाज 14 जनवरी से लेकर 10 दिनों तक उत्साह पूर्वक पर्व को मनाते हैं इस दौरान कई तरह का आयोजन भी किया जाता है लेकिन उससे पूर्व इस समाज की महिलाएं अपने घरों को सुंदर तरीके से रंगाई पुताई करती है जो काफी आकर्षक दिखता है ।



Conclusion:गांव की ममता टुडू बताती है कि मकर में पीठा बनाने के साथ-साथ अपने घरों का साफ-सफाई कर उसका रंग रोगन किया जाता है और आंगन जिसे बावड़ी कहते हैं उसे गाय के गोबर से लीपा जाता है यहहमारी पुरानी परंपरा है जिसे आज भी हम निभाते आ रहे हैं और हमारी कोशिश रहती है कि वर्तमान पीढ़ी अपनी पुरानी संस्कृति को देखें समझें और आगे भी बरकरार रखें
बाईट ममता टुडू ग्रामीण महिला।
बहरहाल वर्तमान में पर्व त्यौहार में अपनी पुरानी धरोहर ढेकी को बचाए रखने के लिए आदिवासी समाज प्रयासरत है।

जितेंद्र कुमार ईटीवी भारत जमशेदपुर
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