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स्कूल को बिल्डिंग तक नहीं है नसीब, झोपड़ी में पढ़कर संवार रहे बच्चे अपना भविष्य - स्कूल का अपना भवन है न ही कोई और सुविधा

झारखंड राज्य में एक ऐसा विद्यालय ईटीवी की नजर में आया है जहां न स्कूल का अपना भवन है न ही कोई और सुविधा. सबसे बड़ी बात यह है कि यह स्कूल मुख्यमंत्री रघुवर सरकार के अपने ही गृह जिले की है.

झोंपड़ी में पढ़कर संवार रहे बच्चे अपना भविष्य
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Published : Aug 27, 2019, 9:22 AM IST

Updated : Aug 27, 2019, 10:35 AM IST

पूर्वी सिंहभूम/ घाटशिला: सब पढ़ें, सब बढ़ें को अपना ध्येय मानने वाली रघुवर सरकार के राज्य में शिक्षण संस्थानों की हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके अपने ही जिले पूर्वी सिंहभूम के मुसाबनी प्रखंड के रतनुकोचा प्राथमिक विद्यालय की अपनी बिल्डिंग तक नहीं है. बिल्डिंग के नाम पर है तो बस फुस से बनी झोंपड़ी. यह झोंपड़ी है भी तो चारों ओर से खुली.

देखें स्पेशल स्टोरी


सबसे बड़ी बात यह है कि यहां के बच्चे पिछले एक साल से ऐसे ही गर्मी-धूप-जाड़ा-बरसात झेलते हुए, फुस की झोपड़ी में पढ़ने को मजबूर हैं. यहां पढ़ रहे बच्चे बारिश में भिगते भी हैं, ठंड में सर्द हवा के थपेड़े भी खाते हैं और गर्मी में धूप से अपनी देह भी जलाते हैं.

यह भी पढ़ें- ना क्लास रूम और ना ही ब्लैक बोर्ड, छात्रावास में पढ़ने को मजबूर हैं यहां की छात्राएं


मौसम की मार के साथ सांप-बिच्छुओं का डर
इस स्कूल में जब बिल्डिंग ही नहीं है तो बच्चों के बैठने की व्यवस्था क्या ही होगी, नतीजा ये बच्चे मौसम की मार तो झेल ही रहे हैं साथ ही प्रकृति के जीव-जंतुओं का डर इन्हें अलग ही सताता है. यहां पर पढ़ रहे बच्चे बताते हैं कि बारिश के समय उनको काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि यह जंगली क्षेत्र है. वे जमीन पर बैठकर पढ़ते हैं जिससे उन्हें सांप-बिच्छू का डर लगा रहता है.

यह भी पढ़ें- ETV BHARAT IMPACT: कल्याण विभाग के स्कूल से निकाला गया पानी, छात्राओं ने ईटीवी भारत को दिया धन्यवाद


क्यों चल रहा है स्कूल झोंपड़ी में
अब सवाल उठता है कि आखिर स्कूल ऐसा है क्यों? इस सवाल के जवाब में यहां के शिक्षक का कहना है कि विद्यालय का भवन पूरी तरह जर्जर हो चुका था. जिसे देखते हुए शिक्षा विभाग ने स्कूल भवन को तोड़वा दिया. लेकिन इसके लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई. ऐसे में पास के ही एक झोपड़ी को विद्यालय बना दिया गया.

यह भी पढ़ें- मुख्यमंत्री शैक्षणिक भ्रमण योजना का दूसरा चरण, दिल्ली के ऐतिहासिक धरोहर से छात्र होंगे रुबरु

बनगोड़ा प्राथमिक विद्यालय का भी यही हाल

यह स्कूल अकेला ऐसा नहीं है. इस स्कूल जैसा ही कुछ हाल है बनगोड़ा प्राथमिक विद्यालय का. यहां भी बच्चे कुछ ऐसी ही स्थिति में पढ़ने को मजबूर हैं.


क्या कहते हैं प्रखंड विकास पदाधिकारी
शिक्षा विभाग ने भवन जर्जर देखकर, स्कूल तो तोड़वा दिया लेकिन क्या एक बार भी यह नहीं सोचा कि यहां पढ़ रहे बच्चों का क्या होगा. एक साल होने को आए और विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा. विभाग की इस लापरवाही से जब ईटीवी ने मुसाबनी प्रखंड विकास पदाधिकारी संतोष गुप्ता को अवगत कराया तो उन्होंने भरोसा दिया है कि इस मामले पर जल्द ही कार्रवाई की जाएगी. विभाग की कार्रवाई अपनी जगह है लेकिन मुख्य मुद्दा तो यह है कि जब तक नया भवन नहीं मिल जाता तब तक बच्चों का क्या होगा?


अपना भविष्य संवारने की जद्दोजहद में लगे इन बच्चों की आंखों में सपने तो पल रहे हैं, लेकिन ये सपने साकार तो तभी होंगे जब इन सपनों को बेहतर सुविधा मुहैया कराई जाए. नहीं तो कहीं ऐसा न हो जाए कि सुविधा के अभाव में इन आंखों में झिलमिलाते ख्वाब ही धूमिल हो जाए. ऐसे में जरूरी है कि सरकार जल्द से जल्द कोई कार्रवाई करे.

पूर्वी सिंहभूम/ घाटशिला: सब पढ़ें, सब बढ़ें को अपना ध्येय मानने वाली रघुवर सरकार के राज्य में शिक्षण संस्थानों की हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके अपने ही जिले पूर्वी सिंहभूम के मुसाबनी प्रखंड के रतनुकोचा प्राथमिक विद्यालय की अपनी बिल्डिंग तक नहीं है. बिल्डिंग के नाम पर है तो बस फुस से बनी झोंपड़ी. यह झोंपड़ी है भी तो चारों ओर से खुली.

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सबसे बड़ी बात यह है कि यहां के बच्चे पिछले एक साल से ऐसे ही गर्मी-धूप-जाड़ा-बरसात झेलते हुए, फुस की झोपड़ी में पढ़ने को मजबूर हैं. यहां पढ़ रहे बच्चे बारिश में भिगते भी हैं, ठंड में सर्द हवा के थपेड़े भी खाते हैं और गर्मी में धूप से अपनी देह भी जलाते हैं.

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मौसम की मार के साथ सांप-बिच्छुओं का डर
इस स्कूल में जब बिल्डिंग ही नहीं है तो बच्चों के बैठने की व्यवस्था क्या ही होगी, नतीजा ये बच्चे मौसम की मार तो झेल ही रहे हैं साथ ही प्रकृति के जीव-जंतुओं का डर इन्हें अलग ही सताता है. यहां पर पढ़ रहे बच्चे बताते हैं कि बारिश के समय उनको काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि यह जंगली क्षेत्र है. वे जमीन पर बैठकर पढ़ते हैं जिससे उन्हें सांप-बिच्छू का डर लगा रहता है.

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क्यों चल रहा है स्कूल झोंपड़ी में
अब सवाल उठता है कि आखिर स्कूल ऐसा है क्यों? इस सवाल के जवाब में यहां के शिक्षक का कहना है कि विद्यालय का भवन पूरी तरह जर्जर हो चुका था. जिसे देखते हुए शिक्षा विभाग ने स्कूल भवन को तोड़वा दिया. लेकिन इसके लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई. ऐसे में पास के ही एक झोपड़ी को विद्यालय बना दिया गया.

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बनगोड़ा प्राथमिक विद्यालय का भी यही हाल

यह स्कूल अकेला ऐसा नहीं है. इस स्कूल जैसा ही कुछ हाल है बनगोड़ा प्राथमिक विद्यालय का. यहां भी बच्चे कुछ ऐसी ही स्थिति में पढ़ने को मजबूर हैं.


क्या कहते हैं प्रखंड विकास पदाधिकारी
शिक्षा विभाग ने भवन जर्जर देखकर, स्कूल तो तोड़वा दिया लेकिन क्या एक बार भी यह नहीं सोचा कि यहां पढ़ रहे बच्चों का क्या होगा. एक साल होने को आए और विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा. विभाग की इस लापरवाही से जब ईटीवी ने मुसाबनी प्रखंड विकास पदाधिकारी संतोष गुप्ता को अवगत कराया तो उन्होंने भरोसा दिया है कि इस मामले पर जल्द ही कार्रवाई की जाएगी. विभाग की कार्रवाई अपनी जगह है लेकिन मुख्य मुद्दा तो यह है कि जब तक नया भवन नहीं मिल जाता तब तक बच्चों का क्या होगा?


अपना भविष्य संवारने की जद्दोजहद में लगे इन बच्चों की आंखों में सपने तो पल रहे हैं, लेकिन ये सपने साकार तो तभी होंगे जब इन सपनों को बेहतर सुविधा मुहैया कराई जाए. नहीं तो कहीं ऐसा न हो जाए कि सुविधा के अभाव में इन आंखों में झिलमिलाते ख्वाब ही धूमिल हो जाए. ऐसे में जरूरी है कि सरकार जल्द से जल्द कोई कार्रवाई करे.

Intro:पूर्वी सिंहभूम/ घाटशिला

पूर्वी सिंहभूम जिले के ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी स्कूल बेहद दयनीय स्थिति एवं उसका पाठ पाटन उससे भी और दयनीय है
हमने मुसाबनी प्रखंड के रतनुकोचा प्राथमिक विद्यालय में शिक्षा का जायजा लेने पहुंचे वहां जाकर पता चला है कि स्कूल भवन पिछले 1 साल पहले झज्जर होने की स्थिति में शिक्षा विभाग ने स्कूल भवन को तुड़वाया लेकिन शिक्षा विभाग ने यह नहीं सोचा कि स्कूल में पढ़ रहे बच्चों का क्या होगा वह कहां पड़ेंगे स्कूल में नाम मात्र एक किचन सेट है उसी पर ही स्कूल के सारे कागजात और मिड डे मील का सारा सामान हैBody:और पास में ही बना एक झोपड़ी जिसमें बच्चे पढ़ते हैं बच्चे बताते हैं कि बारिश के समय उनको काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि यह जंगली क्षेत्र है हम जमीन पर बैठकर पढ़ते हैं तो सांप बिच्छू का डर तो लगा ही रहता है

ग्रामीणों ने बताया कि जब बारिश तेज होती है तो हम अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते क्योंकि स्कूल कान्हा तो अपना भवन है और ना ही बच्चों को बारिश से बचने की कोई दूसरी व्यवस्था है
स्कूल के शिक्षक का कहना है अगर बारिश तेज हो जाती है तो हम बच्चों के साथ किचन सेट पर ही भेड़ बकरियों की तरह घुस जाते हैं।
इस स्कूल में लगभग 30 छात्राएं हैं लेकिन आज केवल 4 छात्र हैं स्कूल पर उपस्थित थे इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बारिश के मौसम में स्कूल बंद ही रहता है
Conclusion:और दूसरा स्कूल प्राथमिक विद्यालय बांनगोड़ा का भी यही हाल है यहां भी शिक्षा विभाग ने स्कूल जर्जर होने के कारण भवन को तोड़ दिया और झोपड़ी में पड़ने पर बच्चे मजबूर है पर आज का नजारा कुछ दूसरा ही था यहां कोई भी बच्चा स्कूल नहीं आया और ना ही शिक्षक आया
हमने दिन के 11:30 बजे तक शिक्षक का इंतजार किया परंतु कोई नहीं आया फिर हमने प्रखंड कार्यालय पर प्रखंड विकास पदाधिकारी से बात की

मुसाबनी प्रखंड विकास पदाधिकारी ने तुरंत ही संज्ञान लेते हुए प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को फोन करके कहा कि इस विद्यालय के शिक्षक को कारण बताओ नोटिस जारी किया जाए कि किस लिए स्कूल बंद किए हुए हैं और कहा कि इस मामले को मैं डीसी को भी अवगत करा लूंगा
बता दूं कि पूर्वी सिंहभूम जिला झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास का गृह जिला है अगर मुख्यमंत्री का गृह जिला में शिक्षा विभाग इतना लाचार है तो बाकी जिलों का स्कूली शिक्षा इससे भी बदतर हो सकती है
बाईट
1. छात्र
2 . छात्रा
3. मुसाबनी प्रखंड विकास पदाधिकारी, संतोष गुप्ता
4. रतनुकोचा स्कूल शिक्षक, मुनेश्वर झा

रिपोर्ट
कनाई राम हेंब्रम
घाटशिला
Last Updated : Aug 27, 2019, 10:35 AM IST
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