पूर्वी सिंहभूम/ घाटशिला: सब पढ़ें, सब बढ़ें को अपना ध्येय मानने वाली रघुवर सरकार के राज्य में शिक्षण संस्थानों की हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके अपने ही जिले पूर्वी सिंहभूम के मुसाबनी प्रखंड के रतनुकोचा प्राथमिक विद्यालय की अपनी बिल्डिंग तक नहीं है. बिल्डिंग के नाम पर है तो बस फुस से बनी झोंपड़ी. यह झोंपड़ी है भी तो चारों ओर से खुली.
सबसे बड़ी बात यह है कि यहां के बच्चे पिछले एक साल से ऐसे ही गर्मी-धूप-जाड़ा-बरसात झेलते हुए, फुस की झोपड़ी में पढ़ने को मजबूर हैं. यहां पढ़ रहे बच्चे बारिश में भिगते भी हैं, ठंड में सर्द हवा के थपेड़े भी खाते हैं और गर्मी में धूप से अपनी देह भी जलाते हैं.
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मौसम की मार के साथ सांप-बिच्छुओं का डर
इस स्कूल में जब बिल्डिंग ही नहीं है तो बच्चों के बैठने की व्यवस्था क्या ही होगी, नतीजा ये बच्चे मौसम की मार तो झेल ही रहे हैं साथ ही प्रकृति के जीव-जंतुओं का डर इन्हें अलग ही सताता है. यहां पर पढ़ रहे बच्चे बताते हैं कि बारिश के समय उनको काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि यह जंगली क्षेत्र है. वे जमीन पर बैठकर पढ़ते हैं जिससे उन्हें सांप-बिच्छू का डर लगा रहता है.
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क्यों चल रहा है स्कूल झोंपड़ी में
अब सवाल उठता है कि आखिर स्कूल ऐसा है क्यों? इस सवाल के जवाब में यहां के शिक्षक का कहना है कि विद्यालय का भवन पूरी तरह जर्जर हो चुका था. जिसे देखते हुए शिक्षा विभाग ने स्कूल भवन को तोड़वा दिया. लेकिन इसके लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई. ऐसे में पास के ही एक झोपड़ी को विद्यालय बना दिया गया.
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बनगोड़ा प्राथमिक विद्यालय का भी यही हाल
यह स्कूल अकेला ऐसा नहीं है. इस स्कूल जैसा ही कुछ हाल है बनगोड़ा प्राथमिक विद्यालय का. यहां भी बच्चे कुछ ऐसी ही स्थिति में पढ़ने को मजबूर हैं.
क्या कहते हैं प्रखंड विकास पदाधिकारी
शिक्षा विभाग ने भवन जर्जर देखकर, स्कूल तो तोड़वा दिया लेकिन क्या एक बार भी यह नहीं सोचा कि यहां पढ़ रहे बच्चों का क्या होगा. एक साल होने को आए और विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा. विभाग की इस लापरवाही से जब ईटीवी ने मुसाबनी प्रखंड विकास पदाधिकारी संतोष गुप्ता को अवगत कराया तो उन्होंने भरोसा दिया है कि इस मामले पर जल्द ही कार्रवाई की जाएगी. विभाग की कार्रवाई अपनी जगह है लेकिन मुख्य मुद्दा तो यह है कि जब तक नया भवन नहीं मिल जाता तब तक बच्चों का क्या होगा?
अपना भविष्य संवारने की जद्दोजहद में लगे इन बच्चों की आंखों में सपने तो पल रहे हैं, लेकिन ये सपने साकार तो तभी होंगे जब इन सपनों को बेहतर सुविधा मुहैया कराई जाए. नहीं तो कहीं ऐसा न हो जाए कि सुविधा के अभाव में इन आंखों में झिलमिलाते ख्वाब ही धूमिल हो जाए. ऐसे में जरूरी है कि सरकार जल्द से जल्द कोई कार्रवाई करे.