दुमका: बाबूलाल मरांडी को भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने झारखंड प्रदेश की कमान सौंपी है. उनका दुमका से गहरा नाता रहा है, या यूं कहें कि दुमका उनकी कर्मभूमि रही है. 1998 के संसदीय चुनाव में दिग्गज नेता शिबू सोरेन को हराकर बाबूलाल मरांडी पहली बार जनप्रतिनिधि बने और लोकसभा पहुंचे थे.
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झारखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी का जन्म गिरिडीह के कोदायबांक गांव में हुआ, हालांकि उन्होंने अपनी कर्मभूमि दुमका को बनाया. कोदायबांक से प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने बाद उन्होंने भूगोल से एमए की डिग्री हासिल की और शिक्षक के पद पर नियुक्त हुए. उन्होंने जनसेवा को अपने जीवन का आधार बनाया और सरकारी शिक्षक से त्यागपत्र दे दिया.
आरएसएस से जुड़े बाबूलाल मरांडी: 1980 के दशक के अंतिम दौर में वे पूर्णकालिक सदस्य के रूप में आरएसएस और विश्व हिन्दू परिषद से जुड़कर संगठन के विस्तार के में जुट गए. संगठन ने भी उन्हें पूर्ण कालिक सदस्य के रूप में दुमका समेत पूरे संथालपरगना के दायित्व सौंप दिया गया. महज तीस साल की उम्र में बाबूलाल मरांडी आदिवासी समाज में राजनीतिक चेतना जाग्रत करने के अभियान में निकल पड़े. संगठन के प्रति समर्पण की बदौलत वे भाजपा के संस्थापक सदस्य कैलाशपति मिश्र जैसे नेताओं के चहेते बन गए. उस वक्त रामजन्म भूमि आंदोलन परवान चढ़ रहा था. अयोध्या रथ यात्रा के क्रम में समस्तीपुर में भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिए गए. इससे आहत भाजपा ने भी जनता दल की सरकार से समर्थन वापस ले लिया. जिससे उस समय के प्रधानमंत्री बीपी सिंह की सरकार गिर गयी. इसके बाद वर्ष 1991 में लोकसभा के मध्यावधि चुनाव की घोषणा हो गयी.
शिबू सोरेन के खिलाफ लड़े चुनाव: 1991 के चुनाव में भाजपा को संथालपरगना खासकर दुमका में झामुमो के शीर्ष नेता शिबू सोरेन के खिलाफ बेहतर प्रत्याशी की तालाश थी. बस भाजपा ने 1991 में पहली बार शिबू सोरेन के खिलाफ बाबूलाल मरांडी पर दांव लगाया. पार्टी ने बाबूलाल जैसे 32 साल के युवा को लोकसभा के चुनाव में उतार दिया. बस सीधे तौर पर 1991 से बाबूलाल मरांडी ने भाजपा के बैनर तले अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की. 1991 में पहली बार शिबू सोरेन के खिलाफ भाजपा के टिकट पर दुमका से राजनीतिक मैदान में उतरे बाबूलाल मरांडी ने 1.25 लाख वोट लेकर दुमका के राजनीतिक फिजा में हलचल मचा दी. हालांकि वे अपने जीवन का पहला चुनाव हार गए लेकिन झामुमो के दिशोम गुरु शिबू सोरेन के समक्ष भविष्य की लकीर भी खींच दी.
शिबू सोरेन को दी कड़ी टक्कर: 1994 में पार्टी ने भाजपा ने वनांचल प्रदेश कमेटी के अध्यक्ष की कमान युवा बाबtलाल को सौंपी. 1996 में पुनः लोकसभा के चुनाव हुए, इस चुनाव में भी भाजपा ने दुमका से बाबूलाल मरांडी को दूसरी बार शिबू सोरेन के खिलाफ मैदान में उतारा. 1996 में भी बाबूलाल मरांडी महज पांच हजार मतों के अंतर से झामुमो के सर्वेसर्वा शिबू सोरेन से हार गये. चुनाव के दौरान दुमका के शिकारीपाड़ा प्रखंड के सरसडंगाल गांव समेत कई स्थानों पर उन पर हमले भी हुए, लेकिन वे पीछे नहीं हटे.
हालांकि इस चुनाव में बाबूलाल खुद हार गए लेकिन वनांचल क्षेत्र के 14 में से 12 सीटों एक मुश्त जीत दिला कर झामुमो और कांग्रेस की नींव हिला दी. घर द्वार छोड़कर कर संथालपरगना खासकर दुमका को अपनी कर्मभूमि मान कर कभी पैदल, कभी साइकिल तो कभी मोटरसाइकिल से गांव-गांव का भ्रमण वाले बाबूलाल मरांडी पूरे संथाल क्षेत्र में लोकप्रिय और आम लोगों के चहेते बन गए.
1998 में पहली बार दुमका से पहुंचे लोकसभा: 1998 में पासा पलटा और तीसरे प्रयास में बाबूलाल मरांडी महज 40 साल की उम्र में झामुमो के कद्दावर नेता शिबू सोरेन को हरा कर झारखंड ही नहीं देश में राजनीतिक हलके में हलचल मचा दी. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केन्द्र में पहली बार भाजपा की बनी सरकार में दुमका के सांसद बाबूलाल मरांडी को वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री का दायित्व सौंपा गया, लेकिन कुछ महीने में अटल बिहारी की सरकार गिर गई. 1999 पुनः मध्यावधि चुनाव में भाजपा ने पुनः बाबूलाल मरांडी को दुमका से मैदान में उतारा. इस चुनाव में उन्होंने झामुमो के टिकट पर उतरीं शिबू सोरेन की पत्नी रूपी किस्कू को शिकस्त दी. बाबूलाल मरांडी दूसरी बार चुनाव में विजयी हुए. इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उन्हें पुनः वन एवं पर्यावरण मंत्री बनाया गया.
झारखंड के बने मुख्यमंत्री तब दुमका के थे सांसद: इधर अपने चुनावों में उन्होंने जनता से अलग झारखंड राज्य बनाने का वायदा किया था. वे इन वायदों को पूरा करने के लिए पार्टी के शीर्ष नेताओं को मनाते रहे. अंततः अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राजग की सरकार ने 15 नवम्बर 2000 को अलग झारखंड राज्य निर्माण की घोषणा कर दी. उस समय के दुमका के सांसद केन्द्रीय मंत्री बाबूलाल मरांडी को बतौर मुख्यमंत्री अपने नवनिर्मित अलग राज्य को संवारने संवारने की जिम्मेदारी सौंपी दी. इस तरह कहा जा सकता है कि दुमका बाबूलाल मरांडी के कर्मभूमि रही है.