रांचीः झारखंड की राजनीति में रघुवर दास के नाम कई रिकॉर्ड दर्ज हैं. राज्य के पहले और इकलौते गैर आदिवासी सीएम बने. पहली बार बतौर सीएम पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. झारखंड के पहले ऐसे पूर्व सीएम हैं जो किसी राज्य के राज्यपाल बने. राज्य की अलग-अलग सरकारों में श्रम मंत्री, भवन निर्माण मंत्री, वित्त मंत्री, नगर विकास मंत्री और उपमुख्यमंत्री रहे. संगठन में भी जिम्मेदारी निभाई. भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और प्रदेश अध्यक्ष भी रहे. 1977 में जनता पार्टी से जुड़कर राजनीति में पहला कदम रखा. 1980 में स्थापना के साथ भाजपा के सक्रिय सदस्य बने.
1995 में जमशेदपुर पूर्वी सीट पर जीत हासिल की और 2014 तक लगातार पांच बार विधायक रहे. करीब 45 साल का स्वर्णीम राजनीतिक दौर गुजारने के बाद 10 जनवरी 2025 को एक बार फिर सक्रिय राजनीति की तरफ कदम बढ़ाया है, लेकिन भाजपा ज्वाइन किए एक माह से ज्यादा का वक्त गुजर चुका है. अबतक कोई जिम्मेदारी नहीं मिली है. लिहाजा, चर्चाओं का बाजार फिर शुरू हो गया है. लोग जानना चाह रहे हैं कि राजनीति के अर्श से फर्श पर पहुंचे रघुवर दास को कोई जिम्मेदारी क्यों नहीं मिल रही है.
रघुवर दास पर कब बरसेगी कृपा ?
पिछले दिनों ईटीवी भारत ने वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्रा से रघुवर दास की संभावित पारी पर पक्ष लिया था. उन्होंने दो टूक कहा था कि सारी कवायद प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी देने के लिए ही की गई है. लेकिन बीतते वक्त के साथ संगठन के कई वरीय नेताओं ने ऑफ द रिकॉर्ड बातचीत में उनके प्रति सहानुभूति में बस इतना कहा कि ‘ पब्लिक के बीच रहने वाले नेता हैं. राजभवन कैसे अच्छा लगेगा. यह पूछने पर कि कोई जिम्मेदारी मिलेगी या नहीं. इसपर बस इतना कहा गया कि 2019 में परीक्षा तो दे ही चुके हैं. वैसे केंद्रीय नेतृत्व को ही तय करना है.
वरिष्ठ पत्रकार मधुकर के मुताबिक वर्तमान में प्रदेश संगठन में इनकी स्वीकार्यता नहीं दिख रही है. सीएम रहते भी इन्होंने पार्टी को अपने कुछ फैसलों की वजह से बैकफुट पर लाया था. सीएनटी में संशोधन और स्थानीयता से जुड़े उनके फैसलों का खामियाजा आज भी पार्टी भुगत रही है. भाजपा की सदस्यता ग्रहण करते ही अगले दिन दिशोम गुरु शिबू सोरेन को जन्मदिन की बधाई देने उनके घर पहुंच गये थे. जबकि पार्टी का कोई भी दूसरा बड़ा नेता शिबू सोरेन के आवास पर नहीं गया था. सीएम रहते उनका जाना और एक कार्यकर्ता बनकर जाने में काफी फर्क होता है.
वरिष्ठ पत्रकार मधुकर का मानना है कि 2024 के झारखंड विधानसभा चुनाव को जीतने के लिए भाजपा ने बड़ी तैयारी की थी. इसी का नतीजा था कि संगठन में पावर बैलेंस करने के लिए रघुवर दास को राज्यपाल बनाकर मेन स्ट्रीम पॉलिटिक्स से आउट कर दिया गया था. अब कम बैक करना चाह रहे हैं. यह सही है कि केंद्रीय नेतृत्व में रघुवर दास की अच्छी पैठ है. इसका मतलब यह नहीं कि शीर्ष नेतृत्व प्रदेश में गुटबाजी को हवा देने वाला फैसला लेगा. संभव है कि उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर कहीं एडजस्ट किया जाए.
इस्तीफा के बाद रघुवर दास के बयान जो सुर्खियों में रहे
करीब 14 माह तक ओडिशा के राज्यपाल के पद पर रहने के बाद उन्होने 24 दिसंबर को राज्यपाल के पद से इस्तीफा दिया था. 25 दिसंबर को पुरी में जगन्नाथ स्वामी की पूजा के बाद उन्होंने कहा था कि पार्टी तय करेगी कि हमारी अगली भूमिका क्या होगी. फिर उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा था कि राज्यपाल रहते यह काम करना मुश्किल हो रहा था. इसलिए राज्यपाल पद को छोड़ दिया. अब झारखंड के गांव, जंगल, पहाड़ और झरनों के साथ आदिवासी, मूलवासी, गरीब-गुरबा के साथ जिंदगी गुजारना चाह रहे हैं.
झारखंड लौटने पर उन्होंने कहा था कि सीएम हैं और सीएम ही रहेंगे. सीएम का मतलब है कॉमन मैन. 10 जनवरी को भाजपा की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण करने के बाद रघुवर दास का पंच लाइन था वी विल कम बैक. 11 जनवरी को छिन्नमस्तिका मंदिर में पूजा अर्चना कर झारखंड की गरीब जनता की सेवा की कामना की थी. फिर चतरा के भद्रकाली मंदिर में पूजा करने पहुंचे थे. पार्टी कार्यकर्ताओं से खुलकर मिल रहे थे.
राज्यपाल पद का इस्तीफा मंजूर हुआ तो उनको ऐसे प्रोजेक्ट किया गया मानो केंद्रीय नेतृत्व में बड़ी जगह मिलने वाली है. लिहाजा, शुभकामनाओं का दौर शुरू हो गया. रांची में कई नेताओं ने तो उनके स्वागत में होर्डिंग की बाढ़ ला दी. फिर हवा उड़ी कि दोबारा प्रदेश अध्यक्ष बनाए जा सकते हैं. लेकिन बीतते समय के साथ रघुवर दास चर्चा से आउट हो गये हैं. खासकर रांची में. पार्टी ने उनको अबतक कोई जिम्मेदारी नहीं दी है. फिलहाल, एक कार्यकर्ता की भूमिका में हैं. जमशेदपुर पूर्वी क्षेत्र में सक्रिय हैं. पिछले दिनों मकर संक्रांति के मौके पर पतंग उड़ाते दिखे थे.
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