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कोरोना ने लौटाई खेतों की रौनक, 15 साल बाद फिर से खेतों में रमे मजदूर

धनबाद के टुंडी इलाके से लगभग 20 से 30 हजार लोग काम के सिलसिले में दूसरे राज्यों में गए हुए थे. जो लॉकडाउन के बाद काफी मुश्किल से अपने घर वापस लौट पाए हैं. घर लौटने में भी इन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. अब यह सभी मजदूर खेती के कामों में जुट गए हैं जिससे स्थानीय किसान भी काफी खुश नजर आ रहे हैं.

15 साल बाद फिर से खेतों में रमे मजदूर
15 साल बाद फिर से खेतों में रमे मजदूर
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Published : Aug 2, 2020, 10:05 PM IST

Updated : Aug 3, 2020, 10:37 AM IST

धनबाद: वैश्विक महामारी कोरोना पूरे विश्व को परेशान कर रखा है. लेकिन इसका एक सकारात्मक पहलू भी है. कोयलांचल धनबाद के नक्सल प्रभावित टुंडी इलाके में कोरोना ने खेतों में एक बार फिर से रौनक लौटा दी है और लगभग 15 साल के बाद लोग एक बार फिर से खेती में जुट गए हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी

टुंडी की गिनती अत्यंत ही पिछड़े इलाकों में होती है और अधिकांश लोग खेती पर भी इन इलाकों पर निर्भर हैं. लेकिन खेती में खर्च ज्यादा और सिर्फ वर्षा पर निर्भर रहने के कारण लोगों का खेती से मोहभंग हो गया था और काफी संख्या में इन इलाकों से लोग काम के सिलसिले में दूसरे राज्यों में पलायन कर चुके थे.अब कोरोना ने एक बार फिर से इन लोगों को अपने घर आने पर मजबूर कर दिया और यह एक बार फिर से खेती की ओर लौट आए हैं.

हरे भरे नजर आ रहे खेत

टुंडी इलाके से लगभग 20 से 30 हजार लोग काम के सिलसिले में दूसरे राज्यों में गए हुए थे जो लॉकडाउन के बाद काफी मुश्किल से अपने घर वापस लौट पाए हैं. घर लौटने में भी इन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. अब यह सभी मजदूर खेती के काम में जुट गए हैं जिससे स्थानीय किसान भी काफी खुश नजर आ रहे हैं. लगभग 15 वर्षों के बाद टुंडी ग्रामीण इलाके के एक खेत हरे-भरे नजर आ रहे हैं.

15 सालों से बंद थी इलाके में खेती

स्थानीय किसानों ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि लगभग 15 सालों से खेती इन इलाकों में बंद था क्योंकि खेती के काम के लिए मजदूर ही नहीं मिल पा रहे थे. सभी मजदूर काम के सिलसिले में इन इलाकों से पलायन कर दूसरे राज्य मुंबई, दिल्ली, गुजरात, मंगलोर, ओडिशा, राजस्थान जैसे जगहों पर चले गए थे. जिस कारण मजदूर नहीं मिल पाने की स्थिति में खेती खत्म हो गई थी.

अपनी माटी अपना गांव सबसे अच्छा

वहीं, स्थानीय मजदूरों का कहना है कि काम के सिलसिले में बाहर जरूर गए थे मजबूरी में कमाने के लिए बाहर जाना पड़ा था. लेकिन इस बार कोरोना कमर तोड़ दी है काफी मुश्किल के बाद घर पहुंच सके हैं. उनका कहना है कि अब यहीं पर खेती-बाड़ी कर अपना गुजर-बसर कर लेंगे लेकिन अब परदेस नहीं जाएंगे. उनका कहना है कि अपनी माटी अपना गांव सबसे अच्छा होता है यह कोरोना ने सिखा दिया है.

क्या है मजदूरों का कहना

ईटीवी भारत से स्थानीय मजदूरों ने अपनी समस्या को व्यक्त करते हुए कहा कि 2 महीने की खेती के बाद हम लोगों के सामने फिर से मजदूरी की समस्या उत्पन्न हो जाएगी. इसीलिए सरकार से आग्रह है कि मजदूरों की समस्या को ध्यान में रखते हुए सरकार इस ओर ध्यान दें. अगर सरकार इस ओर ध्यान देती है और हम लोगों को यहीं पर रोजगार उपलब्ध हो जाता है तो भविष्य में कभी भी बाहर जाने के बारे में नहीं सोचेंगे.

ये भी पढ़ें-डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने रेडियो खांची को बनाया पार्टनर, देश की 25 कम्युनिटी रेडियो स्टेशन में हुआ चयन

वैश्विक महामारी कोरोना ने एक तरफ लोगों को काफी परेशान किया है तो कुछ-कुछ स्थिति में कोरोना के सकारात्मक पहलू भी देखे गए हैं जैसे पर्यावरण में भी काफी हद तक सुधार हुआ है वहीं वर्षों से खेती छोड़ चुके लोग फिर से खेती की ओर आकर्षित हुए हैं.

धनबाद: वैश्विक महामारी कोरोना पूरे विश्व को परेशान कर रखा है. लेकिन इसका एक सकारात्मक पहलू भी है. कोयलांचल धनबाद के नक्सल प्रभावित टुंडी इलाके में कोरोना ने खेतों में एक बार फिर से रौनक लौटा दी है और लगभग 15 साल के बाद लोग एक बार फिर से खेती में जुट गए हैं.

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टुंडी की गिनती अत्यंत ही पिछड़े इलाकों में होती है और अधिकांश लोग खेती पर भी इन इलाकों पर निर्भर हैं. लेकिन खेती में खर्च ज्यादा और सिर्फ वर्षा पर निर्भर रहने के कारण लोगों का खेती से मोहभंग हो गया था और काफी संख्या में इन इलाकों से लोग काम के सिलसिले में दूसरे राज्यों में पलायन कर चुके थे.अब कोरोना ने एक बार फिर से इन लोगों को अपने घर आने पर मजबूर कर दिया और यह एक बार फिर से खेती की ओर लौट आए हैं.

हरे भरे नजर आ रहे खेत

टुंडी इलाके से लगभग 20 से 30 हजार लोग काम के सिलसिले में दूसरे राज्यों में गए हुए थे जो लॉकडाउन के बाद काफी मुश्किल से अपने घर वापस लौट पाए हैं. घर लौटने में भी इन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. अब यह सभी मजदूर खेती के काम में जुट गए हैं जिससे स्थानीय किसान भी काफी खुश नजर आ रहे हैं. लगभग 15 वर्षों के बाद टुंडी ग्रामीण इलाके के एक खेत हरे-भरे नजर आ रहे हैं.

15 सालों से बंद थी इलाके में खेती

स्थानीय किसानों ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि लगभग 15 सालों से खेती इन इलाकों में बंद था क्योंकि खेती के काम के लिए मजदूर ही नहीं मिल पा रहे थे. सभी मजदूर काम के सिलसिले में इन इलाकों से पलायन कर दूसरे राज्य मुंबई, दिल्ली, गुजरात, मंगलोर, ओडिशा, राजस्थान जैसे जगहों पर चले गए थे. जिस कारण मजदूर नहीं मिल पाने की स्थिति में खेती खत्म हो गई थी.

अपनी माटी अपना गांव सबसे अच्छा

वहीं, स्थानीय मजदूरों का कहना है कि काम के सिलसिले में बाहर जरूर गए थे मजबूरी में कमाने के लिए बाहर जाना पड़ा था. लेकिन इस बार कोरोना कमर तोड़ दी है काफी मुश्किल के बाद घर पहुंच सके हैं. उनका कहना है कि अब यहीं पर खेती-बाड़ी कर अपना गुजर-बसर कर लेंगे लेकिन अब परदेस नहीं जाएंगे. उनका कहना है कि अपनी माटी अपना गांव सबसे अच्छा होता है यह कोरोना ने सिखा दिया है.

क्या है मजदूरों का कहना

ईटीवी भारत से स्थानीय मजदूरों ने अपनी समस्या को व्यक्त करते हुए कहा कि 2 महीने की खेती के बाद हम लोगों के सामने फिर से मजदूरी की समस्या उत्पन्न हो जाएगी. इसीलिए सरकार से आग्रह है कि मजदूरों की समस्या को ध्यान में रखते हुए सरकार इस ओर ध्यान दें. अगर सरकार इस ओर ध्यान देती है और हम लोगों को यहीं पर रोजगार उपलब्ध हो जाता है तो भविष्य में कभी भी बाहर जाने के बारे में नहीं सोचेंगे.

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वैश्विक महामारी कोरोना ने एक तरफ लोगों को काफी परेशान किया है तो कुछ-कुछ स्थिति में कोरोना के सकारात्मक पहलू भी देखे गए हैं जैसे पर्यावरण में भी काफी हद तक सुधार हुआ है वहीं वर्षों से खेती छोड़ चुके लोग फिर से खेती की ओर आकर्षित हुए हैं.

Last Updated : Aug 3, 2020, 10:37 AM IST

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