दुमका: आदिवासी संथाल समाज की महिलाओं का परंपरागत परिधान पंची-परहान है. खास तौर पर खुशी के मौके पर वे काफी आकर्षक ढंग से पंची-परहान को पहनती हैं. दुमका जिले में संथाल समुदाय की संख्या काफी अधिक है. ऐसे में यहां के कपड़ों की दुकानों में इस परिधान की बिक्री सालों भर खूब होती है(Demand of Panchi Parhan in dumka ).
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दुर्गा पूजा को लेकर पंची-परहान की बिक्री जोरों पर: दुमका पश्चिम बंगाल के सीमा को छूता है. ऐसे में यहां दुर्गा पूजा की काफी धूम रहती है. यहां इस त्योहार पर नए कपड़े पहनने की परंपरा है. इसलिए दुर्गा पूजा को लेकर पंची-परहान की काफी डिमांड है. कई ऐसे दुकान हैं जहां विशेषकर यही पोशाक मिलती ही. महिला व्यवसायी मार्था हांसदा कहती हैं कि दुर्गा पूजा में अभी मार्केट काफी अच्छा है. इसकी बिक्री खूब हो रही है. उन्होंने बताया कि यह ड्रेस दो पार्ट में होता है ऊपर के भाग को पंची और नीचे को परहान कहते हैं.
सूत के काम से की गई नक्काशी से बने पंची- परहान को महिलाएं काफी पसंद कर रही हैं. यहां 300 से लेकर 2000 रुपये तक के यह पोशाक उपलब्ध हैं. लोग अपने बजट के अनुसार इसकी खरीदारी करते हैं. मार्था कहती हैं कि भले ही यह आदिवासियों की परंपरागत पोशाक है पर अब इसे नन ट्राइबल महिलाएं भी खरीद कर काफी शौक से पहनती हैं.
क्या कहती हैं महिला ग्राहक: दुर्गा पूजा के लिए पंची-परहान खरीद रही महिला ग्राहक कहती हैं कि इसे तो खरीदना ही है चाहे कोई भी खुशी का अवसर हो, हम लोग इसे पहनते हैं. यह हमारे समाज की परंपरागत पोशाक है. हमारी संस्कृति से जुड़ा हुआ है.
महिला जनप्रतिनिधि और अधिकारियों में भी है इसका क्रेज: हम आपको बता दें कि दुमका में ऐसी महिलाएं जो जनप्रतिनिधि हैं या फिर अधिकारी चाहे वह आदिवासी समाज हो या गैर आदिवासी समाज उनमें पंची -परहान का काफी क्रेज देखा जाता है. किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम में महिला जनप्रतिनिधि इसी ड्रेस में नजर आती है. जाहिर है कि यह पोशाक आदिवासी संथाल समाज का प्रतीक है. उनकी सभ्यता - संस्कृति से जुड़ा है तो किसी भी पर्व- त्योहार में इसकी बिक्री ज्यादा बढ़ जाती है.