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झारखंड विधानसभा चुनाव 2019: चतरा में मतदाताओं ने कहा- सड़क नहीं तो वोट नहीं - elections in Jharkhand

चतरा में विकास नहीं होने से नाराज ग्रामीणों ने वोट बहिष्कार का फैसला किया है. ग्रामीणों ने गांव में जनप्रतिनिधियों की एंट्री पर रोक लगाने की नीयत से जगह-जगह वोट बहिष्कार का बैनर भी लगा दिया है.

मतदाताओं ने किया वोट बहिष्कार का ऐलान
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Published : Nov 14, 2019, 9:43 AM IST

चतरा: झारखंड में विधानसभा चुनाव के शंखनाद के साथ ही चुनावी सरगर्मी तेज हो गई है. चुनाव आयोग की ओर से तारीखों की घोषणा के बाद लोकतंत्र के इस महापर्व की तैयारी में क्या नेता, क्या आम लोग सभी जुट गए हैं. हालांकि चतरा सदर प्रखंड के टिकर, ओबरा और डहुरी गांव के लोगों ने ऐतिहासिक जितनी पथ जीर्णोद्धार की मांग को लेकर मतदान बहिष्कार का फैसला लिया है.

वीडियो में देखें पूरी खबर

ग्रामीणों ने गांव में जनप्रतिनिधियों की एंट्री पर रोक लगाने की नीयत से जगह-जगह वोट बहिष्कार का बैनर भी लगा दिया है. दरअसल, जिला मुख्यालय से पत्थलगड्डा प्रखंड को जोड़ने वाली जितनी सड़क सालों से बदहाल है. इससे डहुरी, टिकर, ओबरा समेत दर्जनों गांव के लोगों को आने जाने में बेहद परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

ये भी पढ़ें- लोहरदगा विधानसभा सीट पर आजसू प्रत्याशी ने किया नामांकन, इस पार्टी के साथ हो सकता है मुकाबला

यहां के ग्रामीण लगातार गांव में सड़क निर्माण की मांग को लेकर जनप्रतिनिधियों-अधिकारियों का दरवाजा खटखटाते रहे हैं. इसके बावजूद आजतक उनकी समस्याओं का निराकरण करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया. ऐसे में वो सरकारी तंत्र से ही खफा हो चुके हैं और विकास के मुद्दे पर उन्होंने वोट बहिष्कार का फैसला लिया है.

चतरा: झारखंड में विधानसभा चुनाव के शंखनाद के साथ ही चुनावी सरगर्मी तेज हो गई है. चुनाव आयोग की ओर से तारीखों की घोषणा के बाद लोकतंत्र के इस महापर्व की तैयारी में क्या नेता, क्या आम लोग सभी जुट गए हैं. हालांकि चतरा सदर प्रखंड के टिकर, ओबरा और डहुरी गांव के लोगों ने ऐतिहासिक जितनी पथ जीर्णोद्धार की मांग को लेकर मतदान बहिष्कार का फैसला लिया है.

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ग्रामीणों ने गांव में जनप्रतिनिधियों की एंट्री पर रोक लगाने की नीयत से जगह-जगह वोट बहिष्कार का बैनर भी लगा दिया है. दरअसल, जिला मुख्यालय से पत्थलगड्डा प्रखंड को जोड़ने वाली जितनी सड़क सालों से बदहाल है. इससे डहुरी, टिकर, ओबरा समेत दर्जनों गांव के लोगों को आने जाने में बेहद परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

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यहां के ग्रामीण लगातार गांव में सड़क निर्माण की मांग को लेकर जनप्रतिनिधियों-अधिकारियों का दरवाजा खटखटाते रहे हैं. इसके बावजूद आजतक उनकी समस्याओं का निराकरण करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया. ऐसे में वो सरकारी तंत्र से ही खफा हो चुके हैं और विकास के मुद्दे पर उन्होंने वोट बहिष्कार का फैसला लिया है.

Intro:सड़क पर उतरे ग्रामीण, ऐतिहासिक सड़क जीर्णोद्धार को ले किया वोट बहिष्कार का एलान

चतरा : झारखंड में विधानसभा चुनाव के शंखनाद के साथ ही चुनावी सरगर्मी सातवें आसमान पर है. चुनाव आयोग द्वारा तिथियों की घोषणा के बाद लोकतंत्र के इस महापर्व की तैयारी में क्या नेता, क्या आम लोग सभी जुट गए हैं, लेकिन इन सबके बीच चतरा सदर प्रखंड के टिकर, ओबरा व डहुरी गांव के ग्रामीणों ने ऐतिहासिक जितनी पथ जीर्णोद्धार की मांग को ले इस चुनाव के बहिष्कार का फैसला लिया है. ग्रामीणों ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया है कि इस चुनाव में वे वोट नहीं देंगे. इतना ही नहीं ग्रामीणों ने गांव में जनप्रतिनिधियों की एंट्री पर रोक लगाने के नियत से जगह-जगह वोट बहिस्कार का बैनर भी लगा दिया है। दूसरी ओर घोर नक्सल प्रभावित कुंदा प्रखंड के लूकोइया गांव में भी मतदाताओं ने लोकतंत्र के महापर्व में अपनी भागीदारी सुनिश्चित नहीं कराने का निर्णय लिया है। यहां के ग्रामीण भी सड़क की मांग को ले आंदोलित हैं।

बाईट : सुरेश कुमार, ग्रामीण, ओबरा चतरा।
बाईट : बसन्त यादव, ग्रामीण, लुकोईया कुंदा।
Body:क्यों लिया वोट नहीं देने का फैसला

ग्रामीणों ने इस चुनाव में वोट नहीं देने का फैसला अपनी मर्जी से नहीं बल्कि मजबूरी में लिया है. दरअसल जिला मुख्यालय से पत्थलगड्डा प्रखंड को जोड़ने वाला सन 1857 के सिपाही विद्रोह का साक्षी रहा जितनी पथ वर्षों से बदहाल है। जिससे डहुरी, टिकर, ओबरा समेत दर्जनों गांव आजादी के दशक बीत जाने के बाद भी आवागमन के सुगम साधन से वंचित हैं. यहां के ग्रामीण लगातार गांव में सड़क निर्माण की मांग को लेकर जनप्रतिनिधियों-अधिकारियों का दरवाजा खटखटाते रहे हैं. बावजूद इसके आजतक उनकी समस्याओं का निराकरण करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया. ऐसे में वे सरकारी तंत्र से ही खफा हो चुके हैं और विकास नहीं के मुद्दे पर उन्होंने वोट बहिष्कार का निर्णय लिया है. इसके साथ ही वोट मांगने गांव आने वाले नेताओं के गांव में प्रवेश पर रोक लगाने की बात भी कही है. ग्रामीणों ने इस बाबत कई गॉंवों में वोट बहिस्कार का भी बैनर लगा दिया है।

सड़क की क्या है हालत

सड़क की हालत ऐसी है कि इस सड़क से पैदल गुजरने वाले राहगीर भी परेशान हो जाए. जरा सी बारिश में यह सड़क आने-जाने लायक ही नहीं रह जाती. यह सड़क पूरी तरह से गड्ढों और मिट्टी के खाई में बदल चुका है. मोटरसाइकिल से आने वाले लोगों को इस सड़क को पार करने में घंटों मशक्कत करनी पड़ती है. सबसे बड़ी बात यह है कि इस सड़क की दुर्दशा के कारण गांव में एंबुलेंस तक नहीं आ पाती. न ही किसी मरीज या प्रसूति महिला को हॉस्पीटल तक ले जाना ही संभव हो पाता है. सड़क की इस हालत के कारण कई बार डोली और खाट में ही लोगों को ले जाना पड़ता है. ऐसे में कई बार लोगों को अपनी जान से हाथ भी धोना पड़ा है. सरकारें आती-जाती रही लेकिन नहीं बदली सड़क की किस्मत ग्रामीणों का आरोप है कि जितनी सड़क की हालत वर्षों से यही है, सरकारें आती-जाती रही लेकिन इस सड़क कि किस्मत कभी नहीं बदली. वे यह भी कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि किसी नेता ने इस ओर का रूख नहीं किया, नेता आए, ग्रामीणों से उनका कीमती वोट भी मांगा लेकिन उन्हें दिया तो सिर्फ आश्वासन. नेताओं ने बस वोट मांगने के लिए उनके गांव का रूख किया और फिर गांव को भूल गए. यही कारण है कि ग्रामीण खुद को ठगा महसूस करने लगे हैं. उनका मानना है कि एक नेता 5 साल के लिए सरकार में आता और इस 5 साल में अगर वह चाहे तो सड़क क्या गांव की तकदीर बदलकर रख दे. लेकिन जब गांव में एक सड़क को नहीं बनाया जा सका तो फिर सरकार का चयन ही क्यों किया जाए. यही कारण है कि ग्रामीणों ने इस चुनाव में वोट नहीं देने का फैसला लिया है. इस बाबत ग्रामीण सड़क पर उतरकर जोरदार विरोध प्रदर्शन कर आक्रोश रैली निकाली।

लुकोईया बन जाता है टापू

आजादी के 73 साल बित जाने के बाद भी घोर नक्सल प्रभावित कुंदा प्रखंड के भौरुडीह से लुकुईया भाया पलामू जिला को जोड़ने वाली सड़क अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है. सड़क की हाल पगडंडी से बतर है. ग्रामीण मतदाता इस बार विधनसभा चुनाव में वोट वहिष्कार का मन बनाया है. गांव की सरकार बनने के बाद गांवों के विकास को लेकर काफी उम्मीद जगी थी, वाहन को गाँव तक पहुँचने के लिये कच्ची सड़क भी नही है, बदहाल व जर्जर सड़क से लोग आवागमन करते है.उक्त सड़क से करीब दस गांव के अलावे पलामू जिला को जोड़ती है.गांव की सड़क प्रखंड मुख्यालय से करीब आठ किमी दूर पर स्थित है. उक्त सभी गांव में हरिजन जाती के लोग रहते है. स्थानीय लोगो का कहना है कि आज कोई अधिकारी, जनप्रतिनिधि,सांसद व विधायक बदहाल सड़क की सुधि लेने नही पहुँची है.उक्त सड़क से लुकुईया,बुटकुइया,कारीमांडर,लकडमंदा, बरहमंदा, गारो, घुट्टीटोंगरी, अम्बादोहर व सिलदाग गांव के अलावे पलामू जिला के कई गांव को जोड़ती है. हर रोज दर्जनों बड़े छोटे वाहन इसी रास्ते से आवागमन करते.
कई बार पंचायत स्तरीय ग्राम सभा में पक्की सड़क बनाने का प्रस्ताव रखा पर आज तक सड़क नही बन पाया है.

गांव के लोग श्रम दान कर बनाते है सड़क

बरसात के बाद लुकुईया,बुटकुइया,कारीमांडर गांव के लोग हर वर्ष बदहाल सड़क को गांव के महिला व पुरुष श्रम दान कर सड़क को मरम्मत कर चलने लायक बनाते है. इस कार्य के लिये बरसात के मौसम आते ही लोगो को सड़क बनाने की चिंता सताने लगती है.Conclusion:बहरहाल अब देखना दिलचस्प होगा कि लंबे अरसे से ऐतिहासिक सड़क व मूलभूत सुविधाओं की मांग को ले आंदोलित ग्रामीणों की यह मांग इस चुनाव के बाद भी पूरी होती है या पूर्व के जनप्रतिनिधियों की तरह नव निर्वाचित जनप्रतिनिधि भी उन्हें कोरा आश्वासन ही देकर अपने हाल पर छोड़ देते हैं।
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