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उपेक्षा का दंश झेल रहा बिरहोर परिवार, झोपड़ी में रहने को मजबूर है परिवार, सरकार से की मदद की अपील - बारिश में झोपड़ी में रहने को मजबूर

झारखंड की संस्कृति के रक्षक कहलाने वाले आदिवासी जनजाति परिवार इन दिनों सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं. चतरा के सिमरिया अनुमंडल के जंगलों के किनारे निवास करने वाले आदिम जनजाति बिरहोर परिवार लॉकडाउन से बदहाली में जी रहे हैं. इस मुश्किल घड़ी में इस परिवार ने सरकार से मदद की अपील की है. वैसे तो कल्याण विभाग की ओर से राशि उपलब्ध कराई जाती है. विलुप्त होती बिरहोर आदिम जनजाति के लिए कई योजनाएं भी हैं. लेकिन अफसरों की कोताही से ये राशि उन तक नहीं पहुंच पा रही है.

Birhor family living the life of helplessness in Chatra
सरकार से की मदद की अपील
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Published : Jul 14, 2020, 9:23 PM IST

Updated : Jul 15, 2020, 11:29 AM IST

चतरा: जल, जंगल, जमीन व संस्कृती की रक्षा के प्रतिमूर्ति आज अपने अस्तित्व की रक्षा की लड़ाई लड़ रहे हैं. विलुप्त होती इस आदिम जनजाति का परिवार आज बदहाली में दिन काट रहा है. कोरोना संकट, लॉकडाउन और अब इस बारिश ने इस परिवार का जीना मुहाल कर दिया है. दुर्दशा की इस घड़ी में बिरहोर परिवार ने सरकार से मदद की गुहार लगाई है.

पूरी खबर देखें

घास-फूस की छत, बेढब ईंट पर प्लास्टिक की छत, आड़ी-टेड़ी दीवार से टिकी सीधी-सादी जिंदगी, छत से टपकते पानी ने यहां जिंदगी की हालत पतली कर दी है. आसमान का पानी बारिश बनकर इस बिरहोर परिवार पर ऐसा कहर बनकर टूटा है कि इनकी पूरी जिंदगी कीचड़ से सराबोर हो गई है. चतरा के सिमरिया अनुमंडल के जंगलों के किनारे झोपड़ी में बसर करने वाला ये बिरहोर परिवार इस मुश्किल घड़ी में सरकार और अफसरों से ही मदद की आस में है.

कोरोना संकट और लॉकडाउन ने इनकी जिंदगी में भी संकट ला दिया. खाने को खाना नहीं, पीने को साफ पानी नहीं, रहने को पक्का मकान नहीं. रोजमर्रा की जिंदगी यहां किसी नर्क से कम नहीं. लेकिन समय रहते इनपर भी अफसरों का ध्यान जाता तो आज ये बिरहोर परिवार इस बारिश में यूं टपकती छत के नीचे ना रहता. झारखंड से विलुप्त होती आदिम जनजाति बिरहोर के संरक्षण की भरसक कोशिश हो रही है. जबड़ा में इनके लिये बिरसा आवास बनाया तो जा रहा है जो कई वर्षों से अधूरा है. कुल मिलाकर देखें तो जल, जमीन और संस्कृति के रक्षक बिरहोर आज सरकार की अनदेखी और अफसरशाही की कोताही का दंश झेल रहे हैं.

काश इनपर भी वक्त रहते ध्यान दिया जाता तो इनको मदद की आस ना होती. वो बिरहोर जिनके कल्याण के लिए फाइलों में ना जाने कितने करोड़ खर्च किए जाते हैं. लेकिन धरातल पर रिसता हुआ पानी ये बताने के लिए काफी है कि अफसरशाही की तरफ से इनको कितनी मदद मिली होगी, अभी कितनी मिली है और आगे कितनी मदद मिल पाएगी.

चतरा: जल, जंगल, जमीन व संस्कृती की रक्षा के प्रतिमूर्ति आज अपने अस्तित्व की रक्षा की लड़ाई लड़ रहे हैं. विलुप्त होती इस आदिम जनजाति का परिवार आज बदहाली में दिन काट रहा है. कोरोना संकट, लॉकडाउन और अब इस बारिश ने इस परिवार का जीना मुहाल कर दिया है. दुर्दशा की इस घड़ी में बिरहोर परिवार ने सरकार से मदद की गुहार लगाई है.

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घास-फूस की छत, बेढब ईंट पर प्लास्टिक की छत, आड़ी-टेड़ी दीवार से टिकी सीधी-सादी जिंदगी, छत से टपकते पानी ने यहां जिंदगी की हालत पतली कर दी है. आसमान का पानी बारिश बनकर इस बिरहोर परिवार पर ऐसा कहर बनकर टूटा है कि इनकी पूरी जिंदगी कीचड़ से सराबोर हो गई है. चतरा के सिमरिया अनुमंडल के जंगलों के किनारे झोपड़ी में बसर करने वाला ये बिरहोर परिवार इस मुश्किल घड़ी में सरकार और अफसरों से ही मदद की आस में है.

कोरोना संकट और लॉकडाउन ने इनकी जिंदगी में भी संकट ला दिया. खाने को खाना नहीं, पीने को साफ पानी नहीं, रहने को पक्का मकान नहीं. रोजमर्रा की जिंदगी यहां किसी नर्क से कम नहीं. लेकिन समय रहते इनपर भी अफसरों का ध्यान जाता तो आज ये बिरहोर परिवार इस बारिश में यूं टपकती छत के नीचे ना रहता. झारखंड से विलुप्त होती आदिम जनजाति बिरहोर के संरक्षण की भरसक कोशिश हो रही है. जबड़ा में इनके लिये बिरसा आवास बनाया तो जा रहा है जो कई वर्षों से अधूरा है. कुल मिलाकर देखें तो जल, जमीन और संस्कृति के रक्षक बिरहोर आज सरकार की अनदेखी और अफसरशाही की कोताही का दंश झेल रहे हैं.

काश इनपर भी वक्त रहते ध्यान दिया जाता तो इनको मदद की आस ना होती. वो बिरहोर जिनके कल्याण के लिए फाइलों में ना जाने कितने करोड़ खर्च किए जाते हैं. लेकिन धरातल पर रिसता हुआ पानी ये बताने के लिए काफी है कि अफसरशाही की तरफ से इनको कितनी मदद मिली होगी, अभी कितनी मिली है और आगे कितनी मदद मिल पाएगी.

Last Updated : Jul 15, 2020, 11:29 AM IST
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