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झारखंड में भाजपा के पास केवल मोदी का एजेंडा, जेएमएम के भरोसे है कांग्रेस, जेवीएम और आरजेडी

झारखंड में लोकसभा चुनाव के दौरान कौन-कौन से मुद्दे उठेंगे. भाजपा किन मुद्दों को लेकर जनता से वोट मांगेगी, क्या कांग्रेस अपने घोषणा पत्र पर ही टिकी रहेगी या स्थानीय मुद्दों को भी आधार बनाएगी. महागठबंधन में शामिल जेएमएम, जेवीएम और आरजेडी का क्या रुख होगा. इन गंभीर मसलों पर ईटीवी भारत ने झारखंड के राजनीतिक विश्लेषक बैद्यनाथ मिश्रा से बात की.

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Published : Apr 3, 2019, 10:57 PM IST

Updated : Apr 4, 2019, 10:23 AM IST

रांची: दिल्ली की गद्दी तक पहुंचने के लिए झारखंड की 14 सीटें काफी मायने रखती हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां की 14 सीटों में से 12 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने न सिर्फ 81 में से 37 विधानसभा सीटें जीती बल्कि जेवीएम के 6 विधायकों को अपने पाले में मिलाकर राज्य को स्थाई सरकार देने में सफलता भी हासिल की. नतीजतन, राज्य गठन के बाद पहली बार झारखंड में भाजपा की स्थाई सरकार बनी. यही नहीं भाजपा ने पहली बार झारखंड को रघुवर दास के रूप में गैर आदिवासी मुख्यमंत्री भी दिया.

राजनीतिक विश्लेषक बैजनाथ मिश्रा

रघुवर दास जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तो जेएमएम यह कहते हुए हमला बोलता रहा कि बीजेपी ने छत्तीसगढ़ी को मुख्यमंत्री बना दिया, यानी आदिवासियों के प्रदेश में बाहरी को सत्ता सौंप दी. दरअसल, झारखंड की राजनीति की बुनियाद आदिवासी मूलवासी बनाम बाहरी पर आधारित रही है, लेकिन बहुमत के कारण इस मसले को तूल देने में जेएमएम कामयाब नहीं हो सका. अब दिल्ली की गद्दी की बारी है. लिहाजा सवाल यह है कि झारखंड में लोकसभा चुनाव के दौरान कौन-कौन से मुद्दे उठेंगे. भाजपा किन मुद्दों को लेकर जनता से वोट मांगेगी, क्या कांग्रेस अपने घोषणा पत्र पर ही टिकी रहेगी या स्थानीय मुद्दों को भी आधार बनाएगी. महागठबंधन में शामिल जेएमएम, जेवीएम और आरजेडी का क्या रुख होगा. इन गंभीर मसलों पर ईटीवी भारत ने झारखंड के राजनीतिक विश्लेषक बैजनाथ मिश्रा से बात की.

ये भी पढ़ें- Loksabha Election 2019: क्या 'लक्ष्मण रेखा' पार कर पाएंगी 'गीता'

भाजपा के पास करिश्माई चेहरा नहीं
भाजपा के बाबत बैद्यनाथ मिश्र ने स्पष्ट कहा कि पार्टी चाहे जो भी घोषणा पत्र जारी करे, झारखंड में सिर्फ मोदी का चेहरा ही केंद्र में होगा. खुद नरेंद्र मोदी झारखंड में एजेंडा सेट करेंगे और उन्हीं के एजेंडे के इर्द-गिर्द विपक्ष घूमता रहेगा. उन्होंने कहा कि मोदी के चुनाव प्रचार से साफ हो गया है कि झारखंड में भी राष्ट्रवाद का मुद्दा ही हावी रहेगा. उन्होंने कहा कि झारखंड में भाजपा के पास कोई भी करिश्माई चेहरा नहीं है लिहाजा पार्टी ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतती है तो मोदी की जीत कही जाएगी और हारती है तब भी मोदी की हार कही जाएगी लेकिन यह अलग बात है कि हार का ठीकरा लीडर पर नहीं फोड़ा जाता.

शून्य से शिखर पर नजर
अब सवाल है कि कांग्रेस किन मुद्दों को झारखंड में उठाएगी. हालांकि कांग्रेस अपना पत्ता खोल चुकी है. हर गरीब परिवार को प्रतिमाह 6 हजार रुपए देने की उसकी घोषणा लोगों की जुबान पर है. कांग्रेस ने मनरेगा के तहत साल में 100 दिन के बजाय डेढ़ सौ दिन काम देने की भी घोषणा कर रखी है, लेकिन दूसरी तरफ देशद्रोह के मामले हटाने के मसले पर कांग्रेस घिरी हुई है जिससे झारखंड में भी कांग्रेस का निकलना आसान नहीं होगा. बकौल बैद्यनाथ मिश्रा, पिछले चुनाव में कांग्रेस झारखंड में शून्य पर आउट हुई थी. इसलिए उसने अपनी नैया पार कराने के लिए जेएमएम के साथ राजद और जेवीएम को भी साथ लिया है. झारखंड में कांग्रेस के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो वोटरों को लुभा सके.

ये भी पढ़ें- क्या कांग्रेस के पास नहीं हैं उम्मीदवार! 7 लोकसभा सीटों में सिर्फ 3 पर प्रत्याशियों का ऐलान

जल, जंगल, जमीन की बात
रही बात झारखंड मुक्ति मोर्चा की तो इस बार बिहार पश्चिम बंगाल और ओडिशा में प्रत्याशी देकर जेएमएम ने अपने कद को बड़ा दिखाने की कोशिश की है, लेकिन झारखंड में जेएमएम की राजनीति जल, जंगल और जमीन पर ही केंद्रित रही है. बेशक समय के साथ झामुमो ने अपना नजरिया बदला है लेकिन जिस तरीके का वोट बैंक उसके पास है वह इन मुद्दों से नहीं भटक सकता. जेएमएम के एजेंडे पर पार्टी के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने बताया कि उनकी पार्टी झारखंड के लिए अलग से मेनिफेस्टो जारी करेगी जिसमें स्थानीयता, पलायन, बेरोजगारी, अंधविश्वास, शिक्षा, भूमि अधिग्रहण कानून का मसला टॉप पर रहेगा.

गठबंधन करेगा बेड़ा पार
अब सवाल है कि महागठबंधन में शामिल झारखंड विकास मोर्चा और राष्ट्रीय जनता दल अपनी जीत के लिए किस तरीके का एजेंडा सेट करेगा. इस पर वरिष्ठ पत्रकार बैद्यनाथ मिश्रा ने स्पष्ट तौर पर कहा कि इन दोनों पार्टियों के पास अपना कोई एजेंडा नहीं है. राजद ने महागठबंधन से एक सीट मिलने के बावजूद चतरा में अपना प्रत्याशी उतार कर यह साफ कर दिया है. राजद इन दोनों सीटों पर अपने एम-वाई समीकरण को ही भुनाने की कोशिश करेगा.

वहीं, दूसरी ओर जेवीएम के दोनों बड़े लीडर यानी बाबूलाल मरांडी और प्रदीप यादव के साख इस चुनाव में लगी हुई है. 2009 और 2014 के चुनाव तक बाबूलाल मरांडी, जेएमएम के खिलाफ आग उगलते आए हैं. उनकी राजनीति जेएमएम के खिलाफ ही होती रही है. लिहाजा महागठबंधन में जेवीएम के पास भी अपना एजेंडा नहीं होगा क्योंकि जेवीएम ने कांग्रेस का हाथ पकड़कर इस महागठबंधन में खुद को जुड़ा है. ऐसे में बाबूलाल मरांडी कोई एजेंडा सेट करने की कोशिश करेंगे ऐसा नहीं लगता.

बहरहाल, राजनीति के जानकारों की माने तो पार्टियों के घोषणापत्र के मुद्दे सिर्फ कागजों पर रहते हैं. जैसे-जैसे चुनाव का पारा चढ़ता है वैसे वैसे मुद्दे बनाए जाते हैं और उठाए जाते हैं, लेकिन यह साफ है कि झारखंड में मोदी बनाम महागठबंधन की लड़ाई होनी है. रही बात सीटों के नफा नुकसान की तो इसके अनुमान तक पहुंचने के लिए काफी समय है.

रांची: दिल्ली की गद्दी तक पहुंचने के लिए झारखंड की 14 सीटें काफी मायने रखती हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां की 14 सीटों में से 12 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने न सिर्फ 81 में से 37 विधानसभा सीटें जीती बल्कि जेवीएम के 6 विधायकों को अपने पाले में मिलाकर राज्य को स्थाई सरकार देने में सफलता भी हासिल की. नतीजतन, राज्य गठन के बाद पहली बार झारखंड में भाजपा की स्थाई सरकार बनी. यही नहीं भाजपा ने पहली बार झारखंड को रघुवर दास के रूप में गैर आदिवासी मुख्यमंत्री भी दिया.

राजनीतिक विश्लेषक बैजनाथ मिश्रा

रघुवर दास जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तो जेएमएम यह कहते हुए हमला बोलता रहा कि बीजेपी ने छत्तीसगढ़ी को मुख्यमंत्री बना दिया, यानी आदिवासियों के प्रदेश में बाहरी को सत्ता सौंप दी. दरअसल, झारखंड की राजनीति की बुनियाद आदिवासी मूलवासी बनाम बाहरी पर आधारित रही है, लेकिन बहुमत के कारण इस मसले को तूल देने में जेएमएम कामयाब नहीं हो सका. अब दिल्ली की गद्दी की बारी है. लिहाजा सवाल यह है कि झारखंड में लोकसभा चुनाव के दौरान कौन-कौन से मुद्दे उठेंगे. भाजपा किन मुद्दों को लेकर जनता से वोट मांगेगी, क्या कांग्रेस अपने घोषणा पत्र पर ही टिकी रहेगी या स्थानीय मुद्दों को भी आधार बनाएगी. महागठबंधन में शामिल जेएमएम, जेवीएम और आरजेडी का क्या रुख होगा. इन गंभीर मसलों पर ईटीवी भारत ने झारखंड के राजनीतिक विश्लेषक बैजनाथ मिश्रा से बात की.

ये भी पढ़ें- Loksabha Election 2019: क्या 'लक्ष्मण रेखा' पार कर पाएंगी 'गीता'

भाजपा के पास करिश्माई चेहरा नहीं
भाजपा के बाबत बैद्यनाथ मिश्र ने स्पष्ट कहा कि पार्टी चाहे जो भी घोषणा पत्र जारी करे, झारखंड में सिर्फ मोदी का चेहरा ही केंद्र में होगा. खुद नरेंद्र मोदी झारखंड में एजेंडा सेट करेंगे और उन्हीं के एजेंडे के इर्द-गिर्द विपक्ष घूमता रहेगा. उन्होंने कहा कि मोदी के चुनाव प्रचार से साफ हो गया है कि झारखंड में भी राष्ट्रवाद का मुद्दा ही हावी रहेगा. उन्होंने कहा कि झारखंड में भाजपा के पास कोई भी करिश्माई चेहरा नहीं है लिहाजा पार्टी ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतती है तो मोदी की जीत कही जाएगी और हारती है तब भी मोदी की हार कही जाएगी लेकिन यह अलग बात है कि हार का ठीकरा लीडर पर नहीं फोड़ा जाता.

शून्य से शिखर पर नजर
अब सवाल है कि कांग्रेस किन मुद्दों को झारखंड में उठाएगी. हालांकि कांग्रेस अपना पत्ता खोल चुकी है. हर गरीब परिवार को प्रतिमाह 6 हजार रुपए देने की उसकी घोषणा लोगों की जुबान पर है. कांग्रेस ने मनरेगा के तहत साल में 100 दिन के बजाय डेढ़ सौ दिन काम देने की भी घोषणा कर रखी है, लेकिन दूसरी तरफ देशद्रोह के मामले हटाने के मसले पर कांग्रेस घिरी हुई है जिससे झारखंड में भी कांग्रेस का निकलना आसान नहीं होगा. बकौल बैद्यनाथ मिश्रा, पिछले चुनाव में कांग्रेस झारखंड में शून्य पर आउट हुई थी. इसलिए उसने अपनी नैया पार कराने के लिए जेएमएम के साथ राजद और जेवीएम को भी साथ लिया है. झारखंड में कांग्रेस के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो वोटरों को लुभा सके.

ये भी पढ़ें- क्या कांग्रेस के पास नहीं हैं उम्मीदवार! 7 लोकसभा सीटों में सिर्फ 3 पर प्रत्याशियों का ऐलान

जल, जंगल, जमीन की बात
रही बात झारखंड मुक्ति मोर्चा की तो इस बार बिहार पश्चिम बंगाल और ओडिशा में प्रत्याशी देकर जेएमएम ने अपने कद को बड़ा दिखाने की कोशिश की है, लेकिन झारखंड में जेएमएम की राजनीति जल, जंगल और जमीन पर ही केंद्रित रही है. बेशक समय के साथ झामुमो ने अपना नजरिया बदला है लेकिन जिस तरीके का वोट बैंक उसके पास है वह इन मुद्दों से नहीं भटक सकता. जेएमएम के एजेंडे पर पार्टी के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने बताया कि उनकी पार्टी झारखंड के लिए अलग से मेनिफेस्टो जारी करेगी जिसमें स्थानीयता, पलायन, बेरोजगारी, अंधविश्वास, शिक्षा, भूमि अधिग्रहण कानून का मसला टॉप पर रहेगा.

गठबंधन करेगा बेड़ा पार
अब सवाल है कि महागठबंधन में शामिल झारखंड विकास मोर्चा और राष्ट्रीय जनता दल अपनी जीत के लिए किस तरीके का एजेंडा सेट करेगा. इस पर वरिष्ठ पत्रकार बैद्यनाथ मिश्रा ने स्पष्ट तौर पर कहा कि इन दोनों पार्टियों के पास अपना कोई एजेंडा नहीं है. राजद ने महागठबंधन से एक सीट मिलने के बावजूद चतरा में अपना प्रत्याशी उतार कर यह साफ कर दिया है. राजद इन दोनों सीटों पर अपने एम-वाई समीकरण को ही भुनाने की कोशिश करेगा.

वहीं, दूसरी ओर जेवीएम के दोनों बड़े लीडर यानी बाबूलाल मरांडी और प्रदीप यादव के साख इस चुनाव में लगी हुई है. 2009 और 2014 के चुनाव तक बाबूलाल मरांडी, जेएमएम के खिलाफ आग उगलते आए हैं. उनकी राजनीति जेएमएम के खिलाफ ही होती रही है. लिहाजा महागठबंधन में जेवीएम के पास भी अपना एजेंडा नहीं होगा क्योंकि जेवीएम ने कांग्रेस का हाथ पकड़कर इस महागठबंधन में खुद को जुड़ा है. ऐसे में बाबूलाल मरांडी कोई एजेंडा सेट करने की कोशिश करेंगे ऐसा नहीं लगता.

बहरहाल, राजनीति के जानकारों की माने तो पार्टियों के घोषणापत्र के मुद्दे सिर्फ कागजों पर रहते हैं. जैसे-जैसे चुनाव का पारा चढ़ता है वैसे वैसे मुद्दे बनाए जाते हैं और उठाए जाते हैं, लेकिन यह साफ है कि झारखंड में मोदी बनाम महागठबंधन की लड़ाई होनी है. रही बात सीटों के नफा नुकसान की तो इसके अनुमान तक पहुंचने के लिए काफी समय है.

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रांची: दिल्ली की गद्दी तक पहुंचने के लिए झारखंड की 14 सीटें काफी मायने रखती हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां की 14 सीटों में से 12 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने न सिर्फ 81 में से 37 विधानसभा सीटें जीती बल्कि जेवीएम के 6 विधायकों को अपने पाले में मिलाकर राज्य को स्थाई सरकार देने में सफलता भी हासिल की. नतीजतन, राज्य गठन के बाद पहली बार झारखंड में भाजपा की स्थाई सरकार बनी. यही नहीं भाजपा ने पहली बार झारखंड को रघुवर दास के रूप में गैर आदिवासी मुख्यमंत्री भी दिया.



रघुवर दास जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तो जेएमएम यह कहते हुए हमला बोलता रहा कि बीजेपी ने छत्तीसगढ़ी को मुख्यमंत्री बना दिया, यानी आदिवासियों के प्रदेश में बाहरी को सत्ता सौंप दी. दरअसल, झारखंड की राजनीति की बुनियाद आदिवासी मूलवासी बनाम बाहरी पर आधारित रही है, लेकिन बहुमत के कारण इस मसले को तूल देने में जेएमएम कामयाब नहीं हो सका. अब दिल्ली की गद्दी की बारी है. लिहाजा सवाल यह है कि झारखंड में लोकसभा चुनाव के दौरान कौन-कौन से मुद्दे उठेंगे. भाजपा किन मुद्दों को लेकर जनता से वोट मांगेगी, क्या कांग्रेस अपने घोषणा पत्र पर ही टिकी रहेगी या स्थानीय मुद्दों को भी आधार बनाएगी. महागठबंधन में शामिल जेएमएम, जेवीएम और आरजेडी का क्या रुख होगा. इन गंभीर मसलों पर ईटीवी भारत ने झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्रा से बात की.



भाजपा के पास करिश्माई चेहरा नहीं

भाजपा के बाबत बैद्यनाथ मिश्र ने स्पष्ट कहा कि पार्टी चाहे जो भी घोषणा पत्र जारी करे, झारखंड में सिर्फ मोदी का चेहरा ही केंद्र में होगा. खुद नरेंद्र मोदी झारखंड में एजेंडा सेट करेंगे और उन्हीं के एजेंडे के इर्द-गिर्द विपक्ष घूमता रहेगा. उन्होंने कहा कि मोदी के चुनाव प्रचार से साफ हो गया है कि झारखंड में भी राष्ट्रवाद का मुद्दा ही हावी रहेगा. उन्होंने कहा कि झारखंड में भाजपा के पास कोई भी करिश्माई चेहरा नहीं है लिहाजा पार्टी ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतती है तो मोदी की जीत कही जाएगी और हारती है तब भी मोदी की हार कही जाएगी लेकिन यह अलग बात है कि हार का ठीकरा लीडर पर नहीं फोड़ा जाता.



शून्य से शिखर पर नजर

अब सवाल है कि कांग्रेस किन मुद्दों को झारखंड में उठाएगी. हालांकि कांग्रेस अपना पत्ता खोल चुकी है. हर गरीब परिवार को प्रतिमाह 6 हजार रुपए देने की उसकी घोषणा लोगों की जुबान पर है. कांग्रेस ने मनरेगा के तहत साल में 100 दिन के बजाय डेढ़ सौ दिन काम देने की भी घोषणा कर रखी है, लेकिन दूसरी तरफ देशद्रोह के मामले हटाने के मसले पर कांग्रेस घिरी हुई है जिससे झारखंड में भी कांग्रेस का निकलना आसान नहीं होगा. बकौल बैद्यनाथ मिश्रा, पिछले चुनाव में कांग्रेस झारखंड में शून्य पर आउट हुई थी. इसलिए उसने अपनी नैया पार कराने के लिए जेएमएम के साथ राजद और जेवीएम को भी साथ लिया है. झारखंड में कांग्रेस के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो वोटरों को लुभा सके.



जल, जंगल, जमीन की बात

रही बात झारखंड मुक्ति मोर्चा की तो इस बार बिहार पश्चिम बंगाल और ओडिशा में प्रत्याशी देकर जेएमएम ने अपने कद को बड़ा दिखाने की कोशिश की है, लेकिन झारखंड में जेएमएम की राजनीति जल, जंगल और जमीन पर ही केंद्रित रही है. बेशक समय के साथ झामुमो ने अपना नजरिया बदला है लेकिन जिस तरीके का वोट बैंक उसके पास है वह इन मुद्दों से नहीं भटक सकता. जेएमएम के एजेंडे पर पार्टी के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने बताया कि उनकी पार्टी झारखंड के लिए अलग से मेनिफेस्टो जारी करेगी जिसमें स्थानीयता, पलायन, बेरोजगारी, अंधविश्वास, शिक्षा, भूमि अधिग्रहण कानून का मसला टॉप पर रहेगा.



गठबंधन करेगा बेड़ा पार

अब सवाल है कि महागठबंधन में शामिल झारखंड विकास मोर्चा और राष्ट्रीय जनता दल अपनी जीत के लिए किस तरीके का एजेंडा सेट करेगा. इस पर वरिष्ठ पत्रकार बैद्यनाथ मिश्रा ने स्पष्ट तौर पर कहा कि इन दोनों पार्टियों के पास अपना कोई एजेंडा नहीं है. राजद ने महागठबंधन से एक सीट मिलने के बावजूद चतरा में अपना प्रत्याशी उतार कर यह साफ कर दिया है. राजद इन दोनों सीटों पर अपने एम-वाई समीकरण को ही भुनाने की कोशिश करेगा.



वहीं, दूसरी ओर जेवीएम के दोनों बड़े लीडर यानी बाबूलाल मरांडी और प्रदीप यादव के साख इस चुनाव में लगी हुई है. 2009 और 2014 के चुनाव तक बाबूलाल मरांडी, जेएमएम के खिलाफ आग उगलते आए हैं. उनकी राजनीति जेएमएम के खिलाफ ही होती रही है. लिहाजा महागठबंधन में जेवीएम के पास भी अपना एजेंडा नहीं होगा क्योंकि जेवीएम ने कांग्रेस का हाथ पकड़कर इस महागठबंधन में खुद को जुड़ा है. ऐसे में बाबूलाल मरांडी कोई एजेंडा सेट करने की कोशिश करेंगे ऐसा नहीं लगता.

बहरहाल, राजनीति के जानकारों की माने तो पार्टियों के घोषणापत्र के मुद्दे सिर्फ कागजों पर रहते हैं. जैसे-जैसे चुनाव का पारा चढ़ता है वैसे वैसे मुद्दे बनाए जाते हैं और उठाए जाते हैं, लेकिन यह साफ है कि झारखंड में मोदी बनाम महागठबंधन की लड़ाई होनी है. रही बात सीटों के नफा नुकसान की तो इसके अनुमान तक पहुंचने के लिए काफी समय है.


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Last Updated : Apr 4, 2019, 10:23 AM IST
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