बोकारोः झारखंड राज्य बनने के 22 साल बीतने के बाद भी बोकारो के चास प्रखंड के करहरिया पंचायत के आदिवासी गांव जिलिंगटांड़ में सड़क नहीं बन पायी है. मनरेगा से मिट्टी और मोरम की सड़क बनी लेकिन पक्के रोड के लिए ग्रामीण अब भी तरस रहे हैं. गांव में आने जाने के लिए पगडंडी का ही सहारा है लेकिन बरसात में वहां भी चलना दूभर है.
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25 घर और करीब 100 की आबादी वाले जिलिंगटांड़ गांव में सड़क नहीं है, इसका खामियाजा यहां के लोगों को भुगतना पड़ रहा है. क्योंकि शादी के उम्र के लायक इस गांव के लड़के-लड़कियों का रिश्ता कहीं नहीं हो रहा है. ये सड़क के साइड इफेक्ट्स हैं जो इन युवाओं पर पड़ रहा है. दूसरे गांव या शहर से आने वाले रिश्तेदार बस यही कहते हैं कि यहां सड़क नहीं है, गांव-देहात है, रोड बन जाता तो सुविधा होता. हर रिश्ता और हर बात सड़क पर आकर रूक जाती है और खत्म हो जाती है.
घर के परिजन और बड़े-बुजुर्ग बेटियों की बढ़ती उम्र से परेशान हैं लेकिन क्या कर सकते हैं. क्योंकि सड़क का निर्माण उनके हाथ में नहीं है. सबसे दुख की बात है कि रिश्ता लेकर यहां आने वाले लोगों को एक किलोमीटर पहले ही अपनी गाड़ी रोककर पैदल गांव तक आना पड़ता है. जिससे वो यहां आकर गांव के लोगों को खरी-खोटी भी सुनाकर जाते हैं और सड़क ना होने पर कटाक्ष करते हैं.
ऐसा नहीं है कि गांव के लोगों ने इसे बनवाने की कोशिश नहीं की. श्रमदान और मशीन की मदद से मिट्टी खोदकर सड़क को चलने लायक बनाया. लेकिन बरसात में वो भी ढह गया. प्रशासन और जनता के नुमाइंदों से कई बार सड़क बनवाने की मांग की. विधायक बनने के बाद बिरंची नारायण ने आश्वासन दिया था, गांव वालों ने लिखित में अर्जी भी दी. फिलहाल योजना स्वीकृत तो हो गई है और इसकी जिम्मेदारी ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल को दी गयी है.
इस सड़क के लिए टेंडर की प्रक्रिया अभी तक पेंडिंग है और जब तक निविदा आमंत्रित नहीं होती निर्माण कार्य शुरू नहीं होगा. जिलिंगटांड़ गांव जैनामोड़ से और बालीडीह से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इसी गांव से एक किलोमीटर दूर पक्की सड़क खत्म हो जाती है. जिससे लोगों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. गांव में कोई बीमार हो जाए तो उसके लिए यहां तक ना तो एंबुलेंस आती है और ना ही दूसरी गाड़ियां. मरीज को खटिया से एक किलोमीटर दूर ढोकर ले जाना पड़ता है.
अब सड़क ही इस गांव का एकमात्र सहारा है. सड़क से ही लोगों की समस्या का निदान होगा. इसके लिए ग्रामीण जल्द से जल्द गांव में सड़क बनाने की मांग कर रहे हैं. जिससे उनकी निजी जिंदगी से लेकर सामाजिक जिंदगी भी रफ्तार पकड़ सके. गांव में बारात आए, घर-घर में शहनाई बजे.