बोकारोः संथाल आदिवासियों के 22 वें अंतरराष्ट्रीय धर्म महासम्मेलन (22nd International Religion Conference) लुगू बुरु घंटाबाड़ी धोरोम गढ़ का सोमवार को आगाज हुआ. इसमें देश-विदेश में रह रहे संथाल आदिवासी शामिल हो रहे हैं.
ये भी पढ़ें- Kartik Purnima 2021: साहिबगंज के गंगा घाट पर उमड़ा आस्था का जनसैलाब, जानिए कार्तिक पूर्णिमा का क्या है महत्व
बता दें कि लुगू बुरू घंटाबाड़ी धोरोम गढ़ संथाल समुदाय की धरोहर है. इसे आदिवासी होड़ दिशोम का सोस्नोक जुग नाम से जानते हैं. यह राज्य के दूसरे सबसे ऊंचे पर्वत लुगू पर्वत/लुगू पहाड़ पर स्थित है, जिसकी ऊंचाई 3500 फीट है. बाबा की गुफा तक पहुंचने के लिए साढ़े 7 किलोमीटर के कठिन रास्ते से होकर भक्तों को गुफा तक पहुंचना पड़ता है, जो काफी दुर्गम है. यहां तक पहुंचने में लोगों को 4 घंटे लगते हैं.
संथाल आदिवासियों की मान्यताः संथाल आदिवासियों की मान्यता है कि आदिकाल से यह गुफा है. यहां लुगू बाबा ने तपस्या कर आदिवासियों के लिए धर्म और सामाजिक नियम कानून तय किए थे. इन्हें मारंग बुरू और महादेव भी माना जाता है. आदिवासियों की मान्यता यह है कि यहां जो भी सच्चा भक्त बाबा से फरियाद लगाता है, उसकी मनोकामना पूर्ण होती है. बाबा एक लोटा पानी और एक पुड़िया सिंदूर और अगरबत्ती से ही खुश हो जाते हैं. यहां कई भक्तों का कहना था कि बाबा से बच्चे के लिए प्रार्थना की थी, हमारी कामना पूरी हुई. इसलिए बच्चे को लेकर कठिन चढ़ाई चढ़ते हुए दर्शन करने पहुंचे हैं.
मत्था टेकने आते हैं श्रद्धालुः पाहन महादेव टुडू ने बताया कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां पर आए लोग लुगू बाबा के समक्ष मत्था टेकते हैं और घर परिवार के साथ लोगों के लिए अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करते हैं. अगर सच्चे मन से भक्त बाबा का दर्शन करने पहुंचते हैं, तभी अंदर गुफा में जाकर दर्शन कर पाते हैं. अंदर ऑक्सीजन की मात्रा काफी कम है, इसलिए हर शख्स यहां पूजा नहीं कर पाता है, वे बाहर से ही पूजा कर लौट जाते हैं.
यहां से इतनी दूर है धार्मिक स्थलः यहां आए भक्तों ने बताया कि लुगू बुरु घंटाबाड़ी पहुंचने के लिए यात्रियों को रांची से 80 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है, जबकि बोकारो से यह लगभग 86 किमी दूर है. प्रति वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन लुगु बुरू घंटाबाड़ी में संथाली श्रद्धालुओं का तांता लगता है. इस दिन यहां पर बड़े मेले का आयोजन किया जाता है. यहां दो दिवसीय कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है. इस कार्यक्रम में लाखों की संख्या में संथाली शामिल होते हैं और कार्यक्रम का लुफ्त उठाते हैं. इस कार्यक्रम में संथाली नृत्य, संथाली गीत की प्रस्तुति देते हैं.