रांची: हथियारों के बल पर सत्ता परिवर्तन की चाहत रखने वाले भाकपा माओवादियों का क्रूर चेहरा समय-समय पर सामने आते रहता है. पुलिसिया अभियान की वजह से कमजोर हुए माओवादियों ने अब ग्रामीण इलाकों में रहने वाले युवाओं को जबरदस्ती अपने संगठन में शामिल करना शुरू कर दिया है.
बारूद के घेरे में बनाया है बंधक
झारखंड पुलिस को जानकारी मिली कि नक्सल प्रभावित इलाकों में रहने वाले युवाओं को संगठन में जबरदस्ती शामिल किया जा रहा है, जो युवक एक बार नक्सल ट्रेनिंग सेंटर पहुंच गया फिर उसका वहां से भाग जाना बेहद मुश्किल है. ट्रेनिंग सेंटर से लेकर पांच किलोमीटर के दायरे में जमीन के नीचे बारूद बिछाकर रखा गया है. हाल के दिनों में गिरफ्तार और सरेंडर करने वाले कुछ नक्सलियों ने पूछताछ के दौरान यह जानकारी दी कि बूढ़ा पहाड़ और सारंडा जैसे ट्रेनिंग कैंप के चारों तरफ लैंडमाइंस बिछाकर रखा गया है. लैंडमाइंस कहां-कहां लगा हुआ है यह वहां के सिर्फ बड़े कमांडरों को ही मालूम है. ऐसे में अगर कोई कैडर कैंप छोड़कर भागना भी चाहेगा, तो वह लैंड माइंस का शिकार होकर मौत के आगोश में समा जाएगा.
कैडरों की कमी बनी वजह
झारखंड में लगातार चल रहे पुलिस के अभियान की वजह से नक्सलियों की ताकत बेहद कम हुई है. नक्सलियों के पास निचले स्तर के कैडरों का घोर अभाव है. वहीं, कई बड़े कमांडरों के सरेंडर करने की वजह से संगठन की स्थिति और खराब हुई है. यही वजह है कि अब संगठन के बड़े कमांडो ने यह तय किया है कि बड़े पैमाने पर भर्ती अभियान चलाया जाए.
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लालच देकर बुलाते हैं नक्सली संगठन
दरअसल, ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है. खासकर ऐसे इलाके जो घोर नक्सल प्रभावित हैं. वहां विकास अभी भी कोसों दूर है. छोटी-मोटी मदद कर नक्सली संगठन ग्रामीणों के दिल में अपनी जगह बनाते हैं और फिर उनके बच्चों को सरकार और पुलिस के खिलाफ भड़काकर उन्हें अपने साथ ले जाते हैं. इस दौरान कैडरों को यह भरोसा दिलाया जाता है कि उन्हें एक अच्छी तनख्वाह भी दी जाएगी लेकिन ट्रेनिंग कैंप पहुंचने के बाद हकीकत से जब कैडरों का सामना होता है तब वह वहां से फरार होने की कोशिश करते हैं लेकिन भाग नहीं पाते हैं क्योंकि चारों तरफ बारूद का पहरा होता है.
पैसे मांगने पर करते हैं पिटाई
ट्रेनिंग कैंप में पहुंचने वाले युवाओं से हथियार ढोने का काम करवाया जाता है, उन्हें सिर्फ इस दौरान सुबह और रात का खाना दिया जाता है. जब कैडर यह पूछते हैं कि उन्हें पैसे कब मिलेंगे तब उनकी बेरहमी से पिटाई भी की जाती है.
माओवादियों की है दोहरी नीति
झारखंड पुलिस के प्रवक्ता सह आईजी अभियान साकेत कुमार सिंह के अनुसार माओवादी दोहरी जिंदगी जीते हैं. एक तरफ तो वे अपने आप को गरीबों का मसीहा बताते हैं लेकिन हकीकत कुछ और ही है. बड़े नक्सली कमांडरों के पास बहुत ज्यादा पैसा है. लेवी की वसूली से आने वाले पैसे से वे बड़े शहरों में घर बनाते हैं अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देते हैं, लेकिन निचले कैडरों का सिर्फ और सिर्फ शोषण ही होता है.
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बूढ़ा पहाड़ पर चल रही है ट्रेनिंग
झारखंड पुलिस को जो जानकारियां हासिल हुईं हैं, उसके अनुसार माओवादी गिरिडीह, हजारीबाग, चतरा, लातेहार, पलामू, गुमला, खूंटी, सरायकेला और पश्चिम सिंहभूम में अपने संगठन का विस्तार कर रहे हैं. माओवादियों का टारगेट है कि साल 2021 के अंत तक कम से कम 2,000 युवाओं को अपने संगठन में भर्ती किया जाए. मिली जानकारी के अनुसार नक्सलियों के लिए सबसे सुरक्षित स्थान माने जाने वाले बूढ़ा पहाड़ पर अभी 500 से अधिक कैडरों को ट्रेनिंग दी जा रही है.
परिवार के संपर्क में पुलिस चला रही अभियान
बड़े पैमाने पर युवाओं के नक्सली संगठन में फंसे होने की सूचना पर झारखंड पुलिस बूढ़ा पहाड़ से लेकर सारंडा और सरायकेला के नक्सल प्रभावित इलाकों में बड़ा अभियान चला रही है. पुलिस के अनुसार ऐसे युवा जो संगठन में जाकर फंस गए हैं. उनके परिवार वालों से भी पुलिस लगातार संपर्क कर रही है और यह कोशिश कर रही है कि परिवार वाले उनसे संपर्क कर उन्हें वहां से निकालें और मुख्यधारा में जोड़े.
बूढ़ा पहाड़ पर बनाया है सुरक्षा घेरा
झारखंड पुलिस बूढ़ा पहाड़ पर कब्जे के लिए पिछले 5 सालों से प्रयासरत है. बूढ़ा पहाड़ नक्सलियों का सबसे बड़ा ट्रेनिंग सेंटर है. पुलिस ने लगातार यहां अपने जवानों का नुकसान भी झेला है लेकिन माओवादियों के टेक्निकल हेड विश्वनाथ के आगे बूढ़ा पहाड़ पर कब्जा आज भी झारखंड पुलिस के लिए सपना बना हुआ है. छत्तीसगढ़ का रहने वाला विश्वनाथ लैंडमाइंस बनाने में माहिर है, उसमें बूढ़ा पहाड़ के चारों तरफ एक ऐसा सुरक्षा घेरा बना दिया है, जिसे भेद पाना पुलिस के लिए बेहद मुश्किल है.