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उपलब्धिः हावर्ड यूनिवर्सिटी की 'पोयट्री एंड पेंट नाइट' कार्यक्रम में शामिल हुईं वंदना टेटे, चार कविताओं का किया पाठ - ranchi news

रांची की रहने वाली आदिवासी कवयित्री वंदना टेटे ने अमेरिका के हावर्ड विश्वविद्यालय में एक वर्चुअल कार्यक्रम में हिस्सा लिया. इस दौरान उन्होंने अपनी रचित चार कविताओं का पाठ किया. यह पहली बार है जब किसी अंतरराष्ट्रीय प्लेटफार्म पर आदिवासी कविताएं पेश की गयीं हैं.

Vandana Tete attended Howard University Poetry and Paint Night program
आदिवासी कवयित्री वंदना टेटे
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Published : May 1, 2021, 10:25 AM IST

रांची: झारखंड को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बार फिर पहचान मिली है. यहां की एक कवयित्री ने अमेरिका में अपना काव्य पाठ पेश किया है. विश्व प्रसिद्ध अमेरिका के हावर्ड विश्वविद्यालय के आमंत्रण पर रांची की साहित्यकार कवयित्री वंदना टेटे ने शुक्रवार की रात 10:30 बजे से 11:30 बजे तक वर्चुअल कार्यक्रम में शामिल होकर आदिवासी काव्य पाठ किया. हावर्ड विश्वविद्यालय के हावर्ड साउथ एशियन एसोसिएशन के इस कार्यक्रम पोएट्री एंड पेंट नाइट में वंदना टेटे ने ‘दुनिया वहीं नहीं है’, ‘पुरखों के लिए’, ‘हम भी जा रहे हैं’ और ‘ए सांगो धिरोम धिरोम’ ये चार कविताएं पढ़ीं.

ये भी पढ़ें-अमेरिका के विश्वविद्यालय में काव्य पाठ करेंगी रांची की वंदना टेटे, हार्वर्ड विश्वविद्यालय कर रहा वर्चुअल आयोजन

सबसे पहले अपनी मातृभाषा खड़िया में उन्होंने सबको संबोधित किया. भारत और झारखंड के आदिवासी संघर्ष के बारे में बताया और कहा कि हम आदिवासियों की कविताएं रचना और बचाव के लिए है. हमारी चिंताएं प्रकृति की चिंताएं हैं. निखिल धर्मराज और सियोना प्रसाद ने कार्यक्रम का संचालन किया.

दरअसल आदिवासी कवयित्री वंदना टेटे को अमेरिका के हावर्ड विश्वविद्यालय में एक वर्चुअल कार्यक्रम में काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया गया था. पहली बार किसी अंतरराष्ट्रीय प्लेटफार्म पर शुक्रवार की रात आदिवासी कविता पेश की गयीं. झारखंड की राजधानी रांची की रहने वाली कवयित्री वंदना टेटे ने यह काव्य पाठ किया. हावर्ड विश्वविद्यालय के अवार्ड साउथ एशियन एसोसिएशन की ओर से आयोजित पोएट्री एंड पेंट नाइट कार्यक्रम में झारखंड की वंदना टेटे के अलावा दक्षिण भारत की दलित कवयित्री मीना कंडा सामी, अल्पसंख्यक अमेरिकन कवयित्री दिलरुबा अहमद जो कि मूल रूप से ढाका बांग्लादेश की रहने वाली हैं, ने भी कविता पाठ किया.

पत्थलगड़ी जैसे मुद्दों पर भी लिख चुकी हैं किताबें

30 साल से अधिक समय से वंदना कविता और साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय हैं. आदिवासियों से जुड़ी कई साहित्य और कविताएं इनकी कलम ने लिखी है. पत्थलगड़ी जैसे मुद्दों पर भी बेबाकी से इन्होंने अपना विचार रखे हैं और कई किताबें भी लिख चुकी हैं. अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन ने इसे प्रकाशित किया है. कई उपलब्धियां वंदना टेटे के नाम हैं और इस कार्यक्रम के साथ और एक उपलब्धि इनके नाम जुड़ गयी है.

जल, जंगल, जमीन आंदोलन पर लिख चुकी हैं वंदना टेटे

जल, जंगल, जमीन और इसे लेकर आंदोलन से जुड़े कई साहित्य संग्रह भी इन्होंने किया है. आदिवासियों के रहन-सहन, उनके उत्थान और उनकी ओर से किए जा रहे राज्य और देश के लिए बेहतरीन कामों को भी वंदना टेटे ने अपने कलम के माध्यम से बेहतर तरीके से लोगों को बताया है. आदिवासी साहित्य का एक नाम वंदना टेटे है और आज उनकी खूबियों को अमेरिका के हावर्ड विश्वविद्यालय ने भी जाना है.

रांची: झारखंड को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बार फिर पहचान मिली है. यहां की एक कवयित्री ने अमेरिका में अपना काव्य पाठ पेश किया है. विश्व प्रसिद्ध अमेरिका के हावर्ड विश्वविद्यालय के आमंत्रण पर रांची की साहित्यकार कवयित्री वंदना टेटे ने शुक्रवार की रात 10:30 बजे से 11:30 बजे तक वर्चुअल कार्यक्रम में शामिल होकर आदिवासी काव्य पाठ किया. हावर्ड विश्वविद्यालय के हावर्ड साउथ एशियन एसोसिएशन के इस कार्यक्रम पोएट्री एंड पेंट नाइट में वंदना टेटे ने ‘दुनिया वहीं नहीं है’, ‘पुरखों के लिए’, ‘हम भी जा रहे हैं’ और ‘ए सांगो धिरोम धिरोम’ ये चार कविताएं पढ़ीं.

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सबसे पहले अपनी मातृभाषा खड़िया में उन्होंने सबको संबोधित किया. भारत और झारखंड के आदिवासी संघर्ष के बारे में बताया और कहा कि हम आदिवासियों की कविताएं रचना और बचाव के लिए है. हमारी चिंताएं प्रकृति की चिंताएं हैं. निखिल धर्मराज और सियोना प्रसाद ने कार्यक्रम का संचालन किया.

दरअसल आदिवासी कवयित्री वंदना टेटे को अमेरिका के हावर्ड विश्वविद्यालय में एक वर्चुअल कार्यक्रम में काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया गया था. पहली बार किसी अंतरराष्ट्रीय प्लेटफार्म पर शुक्रवार की रात आदिवासी कविता पेश की गयीं. झारखंड की राजधानी रांची की रहने वाली कवयित्री वंदना टेटे ने यह काव्य पाठ किया. हावर्ड विश्वविद्यालय के अवार्ड साउथ एशियन एसोसिएशन की ओर से आयोजित पोएट्री एंड पेंट नाइट कार्यक्रम में झारखंड की वंदना टेटे के अलावा दक्षिण भारत की दलित कवयित्री मीना कंडा सामी, अल्पसंख्यक अमेरिकन कवयित्री दिलरुबा अहमद जो कि मूल रूप से ढाका बांग्लादेश की रहने वाली हैं, ने भी कविता पाठ किया.

पत्थलगड़ी जैसे मुद्दों पर भी लिख चुकी हैं किताबें

30 साल से अधिक समय से वंदना कविता और साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय हैं. आदिवासियों से जुड़ी कई साहित्य और कविताएं इनकी कलम ने लिखी है. पत्थलगड़ी जैसे मुद्दों पर भी बेबाकी से इन्होंने अपना विचार रखे हैं और कई किताबें भी लिख चुकी हैं. अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन ने इसे प्रकाशित किया है. कई उपलब्धियां वंदना टेटे के नाम हैं और इस कार्यक्रम के साथ और एक उपलब्धि इनके नाम जुड़ गयी है.

जल, जंगल, जमीन आंदोलन पर लिख चुकी हैं वंदना टेटे

जल, जंगल, जमीन और इसे लेकर आंदोलन से जुड़े कई साहित्य संग्रह भी इन्होंने किया है. आदिवासियों के रहन-सहन, उनके उत्थान और उनकी ओर से किए जा रहे राज्य और देश के लिए बेहतरीन कामों को भी वंदना टेटे ने अपने कलम के माध्यम से बेहतर तरीके से लोगों को बताया है. आदिवासी साहित्य का एक नाम वंदना टेटे है और आज उनकी खूबियों को अमेरिका के हावर्ड विश्वविद्यालय ने भी जाना है.

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