रांची: कोरोना की वजह से आ रहे संकट में लोगों का एकमात्र सहारा स्वास्थ्य व्यवस्था है, लेकिन राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्था की बदतर हालत से लोगों की हिम्मत टूटती नजर आ रही है. कोरोना से बीमार हुए लोग उम्मीद लेकर सरकारी अस्पताल में जाते हैं ताकि इस संकट में डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मचारी उनका सहारा बने और वह इस बीमारी से ठीक हो पाए, लेकिन राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स से शुक्रवार को वायरल हुई तस्वीर झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल ही नहीं खोलती बल्कि धरती के भगवान कहे जाने वाले स्वास्थ्य कर्मचारियों को शर्मसार भी करती है.
रिम्स की कोविड-19 वार्ड से जो तस्वीर जारी हुई है. वह सरकार के दावे की पोल खोलती है. शुक्रवार को रिम्स के कोविड वार्ड से तीन तस्वीर जारी हुई, जो सिर्फ स्वास्थ्य व्यवस्था को ही नहीं बल्कि मानवता को भी शर्मसार कर रही है.
तस्वीर नंबर 1 में एक शख्स बिना कपड़े के पूरी नग्न अवस्था में अपने इलाज के इंतेजार में फर्श पर बैठा है.
दूसरी तस्वीर में एक कोरोना का मरीज बेड के नीचे पड़ा हुआ है और इलाज के लिए तड़प रहा है, लेकिन उसकी सुध लेने वाला कोई भी नहीं है.
तीसरी तस्वीर में एक महिला बेड पर बैठकर दवा लेने का प्रयास कर रही है, लेकिन उसे दवा देने वाला कोई भी कर्मचारी उसके आसपास नहीं है.
हालांकि, तस्वीर वायरल होने के बाद प्रबंधन ने उस फ्लोर के इंचार्ज को शो कॉज जारी किया है, लेकिन अब यह देखने वाली बात होगी कि मामला सिर्फ शो कॉज तक ही रहता है या फिर कार्रवाई के माध्यम से आने वाले समय में एक संदेश दिया जाता है कि आगे से लाचार बेबस और दर्द से जूझ रहे मरीजों के अधिकार के साथ कोई भी स्वास्थ्य कर्मचारी किसी तरह का कोई खिलवाड़ न कर सके. लाचार मरीजों का उचित इलाज हो सके.
बता दें कि एक मरीज जो 12 तारीख को निजी जांच घर में कोरोना का पॉजिटिव पाया गया और उसके बाद 13 जुलाई को उस मरीज को रिम्स के कोविड वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया. मरीज की हालत नाजुक थी उसके बावजूद भी प्रबंधन के किसी भी लोगों के द्वारा न तो उसकी सुध ली गई और न ही उसका बेहतर उपचार किया गया. कोविड वार्ड में भर्ती कई मरीज रिम्स प्रबंधन की शिकायत करते हुए कहते हैं कि अंदर की व्यवस्था इतनी खराब है कि मरीज कोरोना से पहले यहां की खराब व्यवस्था से ही बीमार हो जाएंगे.
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मरीज का आरोप है कि मानसिक पीड़ा के साथ लोग रिम्स के कोविड वार्ड में इलाज कराने जाते हैं, लेकिन वहां पर मौजूद कर्मचारियों के द्वारा न तो किसी भी मरीज को दवा दी जाती है और न तो सही समय पर खाना दिया जाता है. हद तो तब हो जाती है जब मरीज को घंटों-घंटो तक पानी भी मुहैया नहीं कराया जाता.