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ग्लोबल टाइगर डे: 'क्यों जरूरी है टाइगर' विषय को लेकर आयोजित हो रहा है रेडियो खांची में विशेष कार्यक्रम - रांची विश्वविद्यालय का रेडियो खांची

हर साल 29 जुलाई को ग्लोबल टाइगर डे मनाया जाता है. इस दौरान बाघों को संरक्षित करने को लेकर चर्चा की जाती है. 'क्यों जरूरी है टाइगर' विषय वस्तु को लेकर रांची विश्वविद्यालय के 90.4 एफएम रेडियो खांची में दिन भर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं.

special programs being organized on Global Tiger Day in Radio Khanchi
रेडियो खाची
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Published : Jul 29, 2020, 11:15 AM IST

रांची: 'क्यों जरूरी है टाइगर' इसी विषय को लेकर ग्लोबल टाइगर डे के अवसर पर रांची विश्वविद्यालय के 90.4 एफएम रेडियो खांची में दिन भर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. वीसी रमेश कुमार पांडे के अलावा कई विशेषज्ञ अपनी-अपनी राय रख रहे हैं और भारत के राष्ट्रीय पशु के संरक्षण को लेकर भी विशेष रूप से चर्चाएं की जा रही है.

देखें पूरी खबर

बाघ संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से एक उत्सव मनाया जाता है और इस उत्सव का नाम है ग्लोबल टाइगर डे. हर साल 29 जुलाई के दिन विशेष तरीके से मनाया जाता है. हमारे देश के लिए यह दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत का राष्ट्रीय पशु बाघ है. देश की शक्ति- बुद्धि और धीरज का प्रतीक माना जाता है. पूरे देश में पाए जाने वाले बाघ को लेकर विशेषज्ञ अपनी चिंता भी व्यक्त कर रहे हैं. धीरे-धीरे बाघ भी कम हो रहे हैं. 'बाघ क्यों जरूरी है' इस विषय को लेकर लगातार गहन चिंतन- मंथन भी किया जा रहा है. बाघ को वन्य जीवों के लुप्त होती प्रजाति की सूची में भी अब रखा गया है. 'सेव द टाइगर' जैसे राष्ट्रीय अभियान को तेजी लाकर बाघ को इस सूची से हटाने की जरूरत है.

रेडियो खांची में विशेष प्रस्तुति

टाइगर डे के अवसर पर बाघों की लुप्त होती प्रजातियों की ओर ध्यान आकर्षित करने, उनकी रक्षा करने और बाघों के परिस्थितियां महत्व बताने के लिए ही इस दिवस पर कई कार्यक्रम भी रखे जाते हैं. इसी कड़ी में रांची विश्वविद्यालय के 90.4 एफएम रेडियो खांची में आज दिनभर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. वीसी रमेश कुमार पांडे, प्रोवीसी कामिनी कुमार, रेडियो के निदेशक आनंद ठाकुर के अलावा कई विशेषज्ञों को भी स्टूडियो में आमंत्रित कर, 'आखिर बाघ क्यों जरूरी है' इस विषय वस्तु को लेकर चर्चाएं हो रही है.

ये भी देखें- पूरी तरह विलुप्त हो गया पलामू टाइगर रिजर्व से बाघ, पहली बार देश में यहीं से शुरू हुई थी गिनती

बता दें कि किसी भी खास दिन और व्यक्ति विशेष को सम्मानित करने के लिए भी रांची विश्वविद्यालय का रेडियो खांची अब बेहतर काम कर रहा है. इसी कड़ी में ग्लोबल टाइगर डे के अवसर पर भी इस विशेष कार्यक्रम का आयोजन आरयू के रेडियो में हो रहा है और कार्यक्रम को सुनने वाले श्रोताओं की संख्या भी हजारों में है.

रांची: 'क्यों जरूरी है टाइगर' इसी विषय को लेकर ग्लोबल टाइगर डे के अवसर पर रांची विश्वविद्यालय के 90.4 एफएम रेडियो खांची में दिन भर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. वीसी रमेश कुमार पांडे के अलावा कई विशेषज्ञ अपनी-अपनी राय रख रहे हैं और भारत के राष्ट्रीय पशु के संरक्षण को लेकर भी विशेष रूप से चर्चाएं की जा रही है.

देखें पूरी खबर

बाघ संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से एक उत्सव मनाया जाता है और इस उत्सव का नाम है ग्लोबल टाइगर डे. हर साल 29 जुलाई के दिन विशेष तरीके से मनाया जाता है. हमारे देश के लिए यह दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत का राष्ट्रीय पशु बाघ है. देश की शक्ति- बुद्धि और धीरज का प्रतीक माना जाता है. पूरे देश में पाए जाने वाले बाघ को लेकर विशेषज्ञ अपनी चिंता भी व्यक्त कर रहे हैं. धीरे-धीरे बाघ भी कम हो रहे हैं. 'बाघ क्यों जरूरी है' इस विषय को लेकर लगातार गहन चिंतन- मंथन भी किया जा रहा है. बाघ को वन्य जीवों के लुप्त होती प्रजाति की सूची में भी अब रखा गया है. 'सेव द टाइगर' जैसे राष्ट्रीय अभियान को तेजी लाकर बाघ को इस सूची से हटाने की जरूरत है.

रेडियो खांची में विशेष प्रस्तुति

टाइगर डे के अवसर पर बाघों की लुप्त होती प्रजातियों की ओर ध्यान आकर्षित करने, उनकी रक्षा करने और बाघों के परिस्थितियां महत्व बताने के लिए ही इस दिवस पर कई कार्यक्रम भी रखे जाते हैं. इसी कड़ी में रांची विश्वविद्यालय के 90.4 एफएम रेडियो खांची में आज दिनभर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. वीसी रमेश कुमार पांडे, प्रोवीसी कामिनी कुमार, रेडियो के निदेशक आनंद ठाकुर के अलावा कई विशेषज्ञों को भी स्टूडियो में आमंत्रित कर, 'आखिर बाघ क्यों जरूरी है' इस विषय वस्तु को लेकर चर्चाएं हो रही है.

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बता दें कि किसी भी खास दिन और व्यक्ति विशेष को सम्मानित करने के लिए भी रांची विश्वविद्यालय का रेडियो खांची अब बेहतर काम कर रहा है. इसी कड़ी में ग्लोबल टाइगर डे के अवसर पर भी इस विशेष कार्यक्रम का आयोजन आरयू के रेडियो में हो रहा है और कार्यक्रम को सुनने वाले श्रोताओं की संख्या भी हजारों में है.

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