रांची: देश की 15वीं राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू (DROUPADI MURMU) ने सोमवार को संसद के केंद्रीय कक्ष में शपथ ले ली हैं. इसके साथ ही वे देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बन गई है. इससे पहले वे झारखंड की राज्यपाल के रूप में अपना कार्यकाल पूरा किया था. गवर्नर रहने के दौरान उन्होंने राजभवन में कई ऐसे काम किए थे जो वहां काम करने वाले कर्मचारियों के मन में अच्छी स्मृति के रूप में अब भी मौजूद है. राजभवन के कर्मचारी उनकी कई ऐसी यादों को अब अपने में संजोए हुए हैं.
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राजनाथ सिंह ने नहीं खाई थी फिश: राजभवन के एक पदाधिकारी ने बताया कि कुछ वर्ष पहले देश के तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह रांची आए थे. वह राजभवन में ठहरे थे. राजभवन कर्मियों को पता चला कि राजनाथ सिंह को फिश पसंद है तो इसकी व्यवस्था को लेकर ऊहापोह की स्थिति बन गई, लेकिन जैसे ही द्रौपदी मुर्मू को पता चला तो उन्होंने उनके पसंद की डिश तैयार कराने को कहा. डाइनिंग टेबल पर जैसे ही राजनाथ सिंह को फिश परोसा गया तो उन्होंने द्रौपदी मुर्मू जी को भी टेस्ट करने को कहा. लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि द्रौपदी मुर्मू सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं तो उन्होंने फिश खाने से इनकार कर दिया. उन्होंने भी वही भोजन किया जो द्रौपदी मुर्मू ग्रहण कर रही थीं.
छह वर्षों तक बतौर कुक उनके लिए भोजन तैयार करने वाले प्रदीप ने बताया कि द्रौपदी मुर्मू को बिना प्याज-लहसुन का शुद्ध शाकाहारी भोजन पसंद है. उन्होंने ओड़िशा के कुछ डिश बताए, जो उन्हें बेहद पसंद है. उन्हें पिट्ठा भी खूब अच्छा लगता है. प्रदीप ने बताया कि द्रौपदी मुर्मू कभी नाराज नहीं होती थीं. कर्मचारियों से उनका दुख-सुख भी बांटती थीं.
राजभवन के एक पदाधिकारी ने बताया कि जब उन्हें पता चला कि द्रौपदी मुर्मू विशुद्ध शाकाहारी हैं तो उनके आने से पहले किचन की विशेष रूप से साफ-सफाई करवायी गयी. पदाधिकारियों को लगा कि कहीं राज्यपाल के रूम अटेंडेंट मो. जसीम अंसारी को बदलना ना पड़ जाए क्योंकि उन्हें पता चला था कि वो नियमित रूप से पूजा-पाठ भी करती हैं. लेकिन ऐसी नौबत नहीं आई. उन्होंने राजभवन में सेवारत किसी भी कर्मचारी को नहीं बदला. उनके रूम अटेंडेट मो. जसीम अंसारी ने बताया कि वह नियमित रूप से द्रौपदी मुर्मू के बेडरूम की व्यवस्था सुनिश्चित करते थे. उन्हें कभी अहसास नहीं हुआ कि वह किसी राज्यपाल की सेवा में तैनात हैं. वह हमेशा बेटे की तरह प्यार और सम्मान देती थीं.
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शौर्य, शांति और बलिदान को दिया सम्मान: शौर्य के प्रतीक के रूप में उन्होंने रक्षा मंत्रालय से संपर्क कर पाकिस्तान के खिलाफ 1971 की जंग में इस्तेमाल T-55 टैंक को पुणे से मंगवाकर स्थापित करवाया. यह टैंक सेना के गौरव का प्रतीक है. इस टैंक ने पाकिस्तान के छक्के छुड़ाए थे. इस वजह से इसे BATTLE HONOUR OF CHHAMB और THEATRE HONOUR OF JAMMU AND KASHMIR से सम्मानित किया गया था. यह टैंक उन बहादुर पराक्रमी सैनिकों की याद दिलाती है. जिन्होंने विकट हालात में देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था.
शांति का प्रतीक है बापू का चरखा: राजभवन में मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही अशोक गार्डन में एक विशाल चरखा देखने को मिलता है. शांति के इस प्रतीक को द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपिता बापू की 150वीं जयंती के मौके पर 3 अगस्त 2020 को स्थापित करवाया था. यह चरखा स्टील से बना हुआ है. गुलाब गार्डन के एक छोर में स्थापित यह चरखा राजभवन की खूबसूरती में चार चांद लगा रहा है. उनकी यह सोच बताती है कि वह गांधी जी की विचारधारा से किस कदर प्रभावित हैं.
स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान: राजभवन के मुख्य भवन के ठीक सामने एक मूर्ति पार्क है. यहां अंग्रेजों के जमाने से ही एक छोटी सी बच्ची की मूर्ति लगी हुई है. जब द्रौपदी मुर्मू को पता चला कि इसका मूर्ति पार्क नाम है तो उन्होंने उसके चारों ओर चबूतरा बनवाकर झारखंड के वीर बलिदानियों की आदमकद प्रतिमा लगवाने का फैसला लिया. उनके राजभवन से विदाई के समय तक सिर्फ तिलका मांझी की मूर्ति बन पाई थी, जिसका उन्होंने उद्घाटन किया था. यह वही तिलका मांझी है जिन्होंने 1784 में भागलपुर के कलेक्टर क्लीवलैंड को मार गिराया था. बाद में अग्रेजों ने उन्हें फांसी दे दी थी. बहुत जल्द अन्य विभूतियों की मूर्तियां भी स्थापित कर दी जाएंगी.
प्रकृति पूजा का गवाह बना राजभवनः द्रौपदी मुर्मू विशुद्ध शाकाहारी हैं. लहसून-प्याज तक नहीं खाती हैं. अहले सुबह उठना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है. उन्होंने राजभवन में कुछ वर्ष पहले एक पीपल का पौधा लगाया था जो अब काफी बड़ा हो गया है. राजभवन के गार्डनर नीलेश ने ईटीवी भारत को बताया कि हर सुबह मैडम इस जगह आती थीं और जल अर्पित करती थीं. इसके बाद केले के पेड़ में भी जल डालती थीं. नीलेश महाराष्ट्र के पुणे के रहने वाले हैं. उन्होंने कहा कि मैडम जी ने ही उन्हें ऑर्गेनिक को बढ़ावा देने के लिए यहां नियुक्त किया था. उन्होंने बताया कि इस कैंपस में मौजूद गौशाला में हर दिन गायों को रोटी और गुड़ खिलाया करती थीं. देश की राष्ट्रपति चुने जाने पर झारखंड के राजभवन में काम करने वाले सभी कर्मी गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं.