रांची: कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई कब तक चलेगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं है. पहले की तरह जिंदगी की गाड़ी कब दौड़गी, इसका भी जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है. ऐसी स्थिति में लोग करें तो क्या करें. खासकर वैसे लोग जो रोज कमाते और खाते थे. इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने ईटीवी भारत की टीम पहुंची सदर थाना क्षेत्र के कोकर मोहल्ले की गलियों में.
बदला जीने का तरीका
हमारी मुलाकात हुई राजेश कच्छप नाम के एक नौजवान से. लॉकडाउन से पहले भाड़े की इंडिका कार चलाते थे और हर महीने 8000 से 9000 तक कमा लेते थे. इससे इनके परिवार का गुजारा चल जाया करता था, लेकिन अब गाड़ियों के पहिए पर ब्रेक लग चुका है. लॉकडाउन पार्ट वन के खत्म होने की राह ताकते-ताकते जब यह पता चला कि अभी यह सिलसिला लंबा चलेगा तो इन्होंने जीने का तरीका बदल लिया. अब राजेश कोकर मोहल्ले की गलियों में सब्जियों की दुकान सजाते हैं और इस काम में मदद करती हैं उनकी पत्नी सुमंती.
सुमंती की भी अपनी कहानी है. 9 जून के पहले उनके पति राजेश गाड़ी चलाते थे तो सुमंती आस-पड़ोस के घरों में झाड़ू पोछा और बर्तन धोने का काम करती थी, लेकिन अब कोई घर आने नहीं दे रहा है. लोगों को डर है कि अगर मेड से काम लिया जाएगा तो सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन होगा और उन पर कानूनी कार्रवाई हो जाएगी.
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ऑटो चालकों का सहारा बनी सब्जी
हमारी पड़ताल के दौरान सब्जी बेचती एक और महिला मिली, जिनके पति ऑटो चलाया करते थे. ऑटो की रफ्तार पर ब्रेक लगा तो परिवार को पालने की समस्या खड़ी हो गई. अब राजकुमार पासवान थोक मंडी से हरी सब्जियां लेकर आते हैं और उसे उनकी पत्नी बेचती हैं. बातचीत के क्रम में उनकी पत्नी ने कहा कि वे लोग हजारीबाग के बड़कागांव के रहने वाले हैं. बच्चों को अच्छी तालीम देने के लिए राजधानी रांची आए थे, लेकिन लॉकडाउन ने उनकी जिंदगी को मुसीबत के भंवर में डाल दिया.
मुसीबत के दौर में ऐसे लोगों पर आधारित खबर दिखाने के पीछे हमारा मकसद यह है कि कई लोग ऐसे हैं, जो आने वाली चुनौती को लेकर डिप्रेशन में हैं. वैसे लोगों को राजेश कच्छप और उनकी पत्नी से प्रेरणा लेनी चाहिए.