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पुलिस या सेना में नौकरी करना चाहता था पुनई, नाकाम रहने के बाद थामा हथियार और बन गया उग्रवादी

पुलिस मुठभेड़ में मारा गया पीएलएफआई कमांडर पुनई उरांव पहले आर्मी में बहाल होना चाहता था. वो देश की सेवा करना चाहता था, लेकिन नौकरी पाने में सफल नहीं होने के बाद वो पीएलएफआई से जुड़ गया और सेवा की जगह देश को नुकसान पहुंचाने लगा.

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पीएलएफआई कमांडर पुनई उरांव
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Published : Dec 23, 2020, 8:44 PM IST

रांची: पुलिस के साथ हुए एनकाउंटर में मारे गए दो लाख के इनामी पीएलएफआई कमांडर पुनई उरांव की कहानी पूरी फिल्मी है. एक समय था जब पुनई आर्मी या पुलिस में बहाल होना चाहता था. सेना बहाली और झारखंड पुलिस की बहाली के लिए होने वाली दौड़ में भी वह शामिल हुआ था, लेकिन नौकरी पाने में नाकाम रहने के बाद उसने हथियार थाम लिया और वर्ष 2010 में पीएलएफआई के दस्ते से जुड़ गया.

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पीएलएफआई सुप्रीमो का बना करीबी

पीएलएफआई संगठन में जुड़ने के बाद कम समय में ही पुनई पीएलएफआई सुप्रीमो दिनेश गोप का करीबी बन गया. उसे सुप्रीमो दिनेश गोप की ओर से एके-47 हथियार भी दिया गया था. पुनई के परिजनों के अनुसार वह पढ़ाई में भी बेहतर था. उसने मैट्रिक परीक्षा फर्स्ट डिविजन से पास की थी. इसके बाद इंटर की परीक्षा भी फर्स्ट डिविजन से पास की थी. उसे पुलिस की नौकरी पाने की चाहत थी, लेकिन इसमें नाकाम रहना जिंदगी का यूटर्न बना और अपराध व उग्रवाद के क्षेत्र में जुड़ गया.

चाचा पहुंचे मुठभेड़ स्थल पर बताई कहानी

पुनई के चाचा एनकाउंटर में अपने भतीजे के मारे जाने की सूचना पर मुठभेड़ स्थल पर पहुंचे थे. शव को देखकर बुनाई की पहचान उसके चाचा ने ही की. चाचा ने ही उसके बारे में बताया कि वह एक मेधावी छात्र था, लेकिन गलत संगत में आने के बाद वह उग्रवादी संगठन से जुड़ गया.

ये भी पढ़ें: BSE में लिस्टेड कंपनी पर 6 करोड़ के शेयर फर्जीवाड़ा कर बेचने का आरोप, डीजीपी से की गई शिकायत

पुनई पर चली थी गोली

पुनई पर वर्ष 2010 में बेड़ो में गोली चली थी. इस दौरान साथ मौजूद युवक की गोली लगने से मौत हो गई थी. वर्चस्व की लड़ाई की वजह से पुनई पर गोलीबारी की गई थी. इसके बाद से उसे गांव छोड़ दिया था. गांव छोड़ने के बाद वह लगातार बाहर रह रहा था. कभी वह गांव नहीं लौटा. वह परिवार वालों से भी नहीं मिलता था.

परिवार में कई लोग सरकारी नौकरी में हैं

पुनई के परिवार में कई लोग सरकारी नौकरी में हैं. मामा पुलिस में दारोगा है, जबकि एक चाचा बोकारो स्टील प्लांट में इंजीनियर है. पुनई के घरवाले भी चाहते थे कि सरेंडर कर मुख्यधारा में लौट जाए, लेकिन वह घरवालों से भी संपर्क नहीं कर रहा था जब संपर्क हुआ तो उसने कहा था कि वह अकूत संपत्ति अर्जित करने के बाद ही सरेंडर करेगा. घरवालों के समझाने पर ही वह नहीं मानता था. कभी-कभी वह फोन से अपनी मां से बातचीत करता था.

बोकारो में हुई थी स्कूलिंग

पुनई के चाचा के अनुसार पुनई की स्कूलिंग बोकारो से हुई थी. वहीं से 12वीं तक की पढ़ाई की थी. इंटर की पढ़ाई के बाद कॉलेज में पढ़ाई के लिए रांची में रहने के लिए घरवालों ने भेजा था. उसी दौरान वह पुलिस की नौकरी का प्रयास कर रहा था. पुनई फुटबॉल का भी अच्छा खिलाड़ी था. वह इटकी, नगड़ी, बेड़ो सहित अन्य इलाकों में ग्रामीण स्तर का फुटबॉल खेलता था. कई मैचों में बेहतर प्रदर्शन कर मशहूर भी हुआ था, लेकिन बेरोजगारी और गलत संगति में पड़कर वह पीलएफआई का सदस्य बन गया.

रांची: पुलिस के साथ हुए एनकाउंटर में मारे गए दो लाख के इनामी पीएलएफआई कमांडर पुनई उरांव की कहानी पूरी फिल्मी है. एक समय था जब पुनई आर्मी या पुलिस में बहाल होना चाहता था. सेना बहाली और झारखंड पुलिस की बहाली के लिए होने वाली दौड़ में भी वह शामिल हुआ था, लेकिन नौकरी पाने में नाकाम रहने के बाद उसने हथियार थाम लिया और वर्ष 2010 में पीएलएफआई के दस्ते से जुड़ गया.

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पीएलएफआई सुप्रीमो का बना करीबी

पीएलएफआई संगठन में जुड़ने के बाद कम समय में ही पुनई पीएलएफआई सुप्रीमो दिनेश गोप का करीबी बन गया. उसे सुप्रीमो दिनेश गोप की ओर से एके-47 हथियार भी दिया गया था. पुनई के परिजनों के अनुसार वह पढ़ाई में भी बेहतर था. उसने मैट्रिक परीक्षा फर्स्ट डिविजन से पास की थी. इसके बाद इंटर की परीक्षा भी फर्स्ट डिविजन से पास की थी. उसे पुलिस की नौकरी पाने की चाहत थी, लेकिन इसमें नाकाम रहना जिंदगी का यूटर्न बना और अपराध व उग्रवाद के क्षेत्र में जुड़ गया.

चाचा पहुंचे मुठभेड़ स्थल पर बताई कहानी

पुनई के चाचा एनकाउंटर में अपने भतीजे के मारे जाने की सूचना पर मुठभेड़ स्थल पर पहुंचे थे. शव को देखकर बुनाई की पहचान उसके चाचा ने ही की. चाचा ने ही उसके बारे में बताया कि वह एक मेधावी छात्र था, लेकिन गलत संगत में आने के बाद वह उग्रवादी संगठन से जुड़ गया.

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पुनई पर चली थी गोली

पुनई पर वर्ष 2010 में बेड़ो में गोली चली थी. इस दौरान साथ मौजूद युवक की गोली लगने से मौत हो गई थी. वर्चस्व की लड़ाई की वजह से पुनई पर गोलीबारी की गई थी. इसके बाद से उसे गांव छोड़ दिया था. गांव छोड़ने के बाद वह लगातार बाहर रह रहा था. कभी वह गांव नहीं लौटा. वह परिवार वालों से भी नहीं मिलता था.

परिवार में कई लोग सरकारी नौकरी में हैं

पुनई के परिवार में कई लोग सरकारी नौकरी में हैं. मामा पुलिस में दारोगा है, जबकि एक चाचा बोकारो स्टील प्लांट में इंजीनियर है. पुनई के घरवाले भी चाहते थे कि सरेंडर कर मुख्यधारा में लौट जाए, लेकिन वह घरवालों से भी संपर्क नहीं कर रहा था जब संपर्क हुआ तो उसने कहा था कि वह अकूत संपत्ति अर्जित करने के बाद ही सरेंडर करेगा. घरवालों के समझाने पर ही वह नहीं मानता था. कभी-कभी वह फोन से अपनी मां से बातचीत करता था.

बोकारो में हुई थी स्कूलिंग

पुनई के चाचा के अनुसार पुनई की स्कूलिंग बोकारो से हुई थी. वहीं से 12वीं तक की पढ़ाई की थी. इंटर की पढ़ाई के बाद कॉलेज में पढ़ाई के लिए रांची में रहने के लिए घरवालों ने भेजा था. उसी दौरान वह पुलिस की नौकरी का प्रयास कर रहा था. पुनई फुटबॉल का भी अच्छा खिलाड़ी था. वह इटकी, नगड़ी, बेड़ो सहित अन्य इलाकों में ग्रामीण स्तर का फुटबॉल खेलता था. कई मैचों में बेहतर प्रदर्शन कर मशहूर भी हुआ था, लेकिन बेरोजगारी और गलत संगति में पड़कर वह पीलएफआई का सदस्य बन गया.

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