चतरा/रांचीः चतरा जिले के कान्हाचट्टी प्रखंड अंतर्गत डोंडागड़ा गांव में कथित तौर पर भूख से अनुसूचित जाति के झिंगुर भुइयां की मौत हो गई है. मृतक की पत्नी रूबी देवी के अनुसार वे भीख मांगकर परिवार का गुजारा कर रहे थे. बीते दस-पंद्रह दिनों से लोगों ने उसे भीख देना छोड़ दिया था, जिसके बाद भूख से झिंगुर की मौत हो गई. पीड़िता के अनुसार उसका और उसके पति का राशन कार्ड तक नहीं है. मामले में स्थानीय मुखिया और डीलर ने अपनी गलती छुपाते हुए घटना पर पर्दा डालने के लिए मृतक के घर एक बोरी अनाज पहुंचा दिया.
झारखंड पर भुखमरी का कलंक कई बार लगा है लेकिन शासन-प्रशासन हमेशा इससे इंकार करता रहा है. पीड़ित परिवारों और सामाजिक संगठनों के आंकड़ों के अनुसार साल 2017 में 6 लोगों की भूख से मौत हुई थी. वहीं 2018 में ये आंकड़ा बढ़कर 11 तक पहुंच गया. इस साल भी अब तक 2 मामले सामने आ चुके हैं लेकिन भूख से मौत का आरोप न सरकार के गले से नीचे उतरता है और न ही प्रशासन ही इसे पचा पाता है. हर बार मौत को किसी बीमारी से जोड़कर जिम्मेदार लोग अपना पल्ला झाड़ लेते हैं.
ये भी पढ़ें-रघुवर राज में भूख से मौत की 21वीं घटना, विफलता छिपाना सरकार की आदत: बंधु तिर्की
कथित भुखमरी से पुराना नाता
- इसी साल 7 जून को लातेहार जिले के महुआडांड़ प्रखंड के लूरगुमी कला गांव में 65 वर्षीय कालीचरण मुंडा की मौत हो गई. ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि गांव के डीलर ने पिछले 3 महीने से किसी भी ग्रामीण को अनाज वितरण नहीं किया है. ऐसे में कालीचरण के घर में 3 दिनों से चूल्हा नहीं जला था. हालांकि, भूख से मौत को पूरी तरह नकारते हुए महुआडांड़ के एसडीएम सुधीर कुमार दास ने दावा किया कि कालीचरण के परिवार को सभी प्रकार की सरकारी सुविधा दी जाती हैं. राशन वितरण के संबंध में उन्होंने कहा गांव में इंटरनेट नहीं है, इस कारण ऑनलाइन राशन वितरण संभव नहीं हो पाया.
- 11 नवंबर 2018 को दुमका जिले के जामा में 45 साल के कलेश्वर सोरेन की मौत हो गई. ग्रामीणों के अनुसार इनके घर में खाने-पीने का दिक्कत थी क्योंकि परिवार का राशन कार्ड रद्द कर दिया गया था. बच्चे बाहर मजदूरी करते थे और जमीन, बैल बिक चुके थे. प्रशासन ने इसे भूख से मौत मानने से इंकार कर दिया था.
- 25 अक्टूबर 2018 को गुमला जिले के बसिया में 75 वर्षीय सीता देवी की मौत हो गई. उनके घर में 4-5 दिनों तक खाना नहीं बना था. सीता को अक्टूबर महीने में राशन नहीं मिला था और उन्हें पेंशन भी नहीं मिलती थी.
- 16 सितंबर 2018 को पूर्वी सिंहभूम के धालभूमगढ़ में चमटू सबर ने दम तोड़ दिया. बताया गया कि उन्हें अन्त्योदय कार्ड दिया जाना था लेकिन ऐसा हो न सका. मौत के पहले 4-5 दिनों तक घर में खाना नहीं था. हालांकि रिपोर्ट में टीबी को मौत की वजह बताई गई.
- 24 जुलाई 2018 को रामगढ़ के मांडू में 39 साल के राजेंद्र बिरहोर नहीं रहे. आदिम जनजाति को मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा पेंशन और राशन कार्ड दोनों सुविधाएं इस परिवार को मुहैया नहीं करवाया गया था.
- 10 जुलाई 2018 को जामताड़ा में 70 वर्षीय लालजी महतो की मौत को भी कथित तौर पर भुखमरी से जोड़ा गया क्योंकि मृत्यु के पहले तीन महीनों तक उन्हें पेंशन नहीं मिली थी.
- जून 2018 का महीना बेहद निराशाजनक रहा. इस महीने कथित भूख से मौत की 3 खबरें मिली. रामगढ़ के मांडू में 50 वर्षीय चिंतामन मल्हार, चतरा के इटखोरी में 45 वर्षीय मीना मूसहर और गिरिडीह के डुमरी में 60 साल की सावित्री देवी की मौत हुई. परिस्थितिवश इन सभी मौतों को भुखमरी से जोड़ कर देखा गया लेकिन प्रशासन ने इससे इंकार कर दिया. मीना मुसहर बिहार के गया जिले के बाराचट्टी की मूल निवासी थीं. मीना चतरा के इटखोरी ब्लॉक प्रेमनगर मोहल्ले के आसपास रहती थीं और बेटे साथ कचरा बीनने का काम करती थीं. बेटे गौतम के अनुसार वो चार दिन से भूखी थी.
- अप्रैल 2018 में धनबाद की सारथी महताइन की मौत की खबर मिली. परिजनों ने बताया कि उन्हें कई महीनों से राशन और पेंशन नहीं मिली थी क्योंकि वे आधार बायोमेट्रिक सत्यापन के लिए राशन दुकान और बैंक नहीं जा पाई.
- साल 2018 के शुरुआती महीने में ही कथित भूख से मौत की दो घटनाएं हुई. 13 जनवरी को गिरिडीह में 40 वर्षीय बुधनी सोरेन की मौत हुई और पता चला कि उन्हें न तो राशन कार्ड मिला था और न ही विधवा पेंशन ही मिलती थी. वहीं 23 जनवरी को पाकुड़ में 30 साल के लुखी मुर्मू की मौत हो गई. उसे अक्टूबर 2017 से राशन नहीं मिला था.
- 25 दिसंबर 2017 को गढ़वा में 67 वर्षीय एतवारिया देवी की मौत हो गई. इस मामले में पता चला कि परिवार को अक्टूबर-दिसंबर 2017 के दौरान राशन नहीं मिला था. नवंबर में उन्हें पेंशन भी नहीं मिली थी. मौत से पहले जब उन्होंने आधार-आधारित बायोमेट्रिक सत्यापन द्वारा पेंशन निकालने की कोशिश की, तो बोला गया कि लिंक फेल हो गया है.
- 1 दिसंबर 2017 को गढ़वा में 64 वर्षीय प्रेमनी कुंवर की मौत के मामले में लोगों ने बताया कि सितंबर 2017 के बाद प्रेमनी की पेंशन किसी और के खाते में जाने लगी थी. नवंबर में आधार-आधारित बायोमेट्रिक सत्यापन हो सका लेकिन राशन डीलर ने फिर भी उन्हें उस माह का राशन नहीं दिया.
- साल 2017 के अक्टूबर महीने में धनबाद, देवघर और गढ़वा में 3 लोगों की मौत की वजह कथित तौर पर भूख बताई गई. 21 अक्टूबर को झरिया में बैजनाथ रविदास ने दम तोड़ा तो ठीक इसके दो दिन बाद 23 अक्टूबर को मोहनपुर में रूपलाल मरांडी की मौत हो गई. इसी तरह गढ़वा में ललिता कुंवर की जान भी चली गई. इन सभी मौतों में एक कॉमन वजह सामने आई राशन का नहीं मिलना. हालांकि तब इस मामले की लीपापोती कर दी गई.
- 28 सिंतबर 2017 को सिमडेगा को 11 साल की बच्ची संतोषी कुमारी की मौत का मामला भी सुर्खियों में रहा था. संतोषी के परिवार को पांच महीनों से राशन नहीं मिला था क्योंकि आधार कार्ड से राशन कार्ड नहीं जुड़ा होने के कारण उसे रद्द कर दिया गया था.
हालांकि कथित भूख से मौत के इन आंकड़ों को शासन-प्रशासन नहीं मानता है. अधिकारियों के अनुसार राज्य में कई जनकल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिससे दूरदराज तक के लोग लाभांवित हो रहे हैं. ऐसे में भूख से मौत का सवाल ही नहीं उठता.
ये भी पढ़ें-चतरा में भूख से मौत मामले पर कांग्रेस ने BJP पर कसा तंज, झारखंड के अव्वल रहने पर दी बधाई
क्या कर रही है राज्य सरकार
झारखंड में कथित तौर पर भूख से होने वाली मौत पर विराम लगाने के लिए सरकार ने फरवरी 2018 में 7 सदस्य कमिटी बनाई थी. इस कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में 14 अलग-अलग बिंदुओं में सलाह दी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा संचालित मालन्यूट्रिशन ट्रीटमेंट सेंटर पूरी तरह से ऑपरेशनल रहें. इसके अलावे हर गांव में 'बॉडी मास इंडेक्स' के आधार पर भूख से प्रभावित होने वाले लोगों की एक लिस्ट बनाई जाए. कमिटी ने अपने रिकमेंडेशन में ग्राम पंचायत से लेकर मुखिया तक की मदद इस काम में लेने को कहा है.
बुजुर्गों, दिव्यांगों और विधवाओं के लिए राज्य में राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के तहत इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धापेंशन योजना, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विकलांग पेंशन योजना, और राज्य सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना चलाई जा रही हैं. इसी तरह ग्रामीणों को रोजगार के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों का रोजगार दिया जा रहा है. गरीबों को प्रधान मंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत आवास भी दिए जा रहे हैं. राशन के लिए पीडीएस की व्यवस्था की गई है और दूरदराज के आदिवासियों तक पीटीजी डाकिया योजना के तहत राशन पहुंचाया जा रहा है.
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कैसे मिटेगा भूख से मौत का कलंक, लंबी होती जा रही कथित भुखमरी की लिस्ट
21वीं सदी में भूख से मौत की बात भले ही अटपटी लगे, लेकिन झारखंड में इस हकीकत से मुंह भी मोड़ा नहीं जा सकता है. भूख से मौत की घटना के लिए बदनाम झारखंड में एक बार फिर ऐसा मामला सामने आया है. चतरा जिले में कथित तौर पर भूख से अनुसूचित जाति के झिंगुर भुइयां की मौत हो गई है.
चतरा/रांचीः चतरा जिले के कान्हाचट्टी प्रखंड अंतर्गत डोंडागड़ा गांव में कथित तौर पर भूख से अनुसूचित जाति के झिंगुर भुइयां की मौत हो गई है. मृतक की पत्नी रूबी देवी के अनुसार वे भीख मांगकर परिवार का गुजारा कर रहे थे. बीते दस-पंद्रह दिनों से लोगों ने उसे भीख देना छोड़ दिया था, जिसके बाद भूख से झिंगुर की मौत हो गई. पीड़िता के अनुसार उसका और उसके पति का राशन कार्ड तक नहीं है. मामले में स्थानीय मुखिया और डीलर ने अपनी गलती छुपाते हुए घटना पर पर्दा डालने के लिए मृतक के घर एक बोरी अनाज पहुंचा दिया.
झारखंड पर भुखमरी का कलंक कई बार लगा है लेकिन शासन-प्रशासन हमेशा इससे इंकार करता रहा है. पीड़ित परिवारों और सामाजिक संगठनों के आंकड़ों के अनुसार साल 2017 में 6 लोगों की भूख से मौत हुई थी. वहीं 2018 में ये आंकड़ा बढ़कर 11 तक पहुंच गया. इस साल भी अब तक 2 मामले सामने आ चुके हैं लेकिन भूख से मौत का आरोप न सरकार के गले से नीचे उतरता है और न ही प्रशासन ही इसे पचा पाता है. हर बार मौत को किसी बीमारी से जोड़कर जिम्मेदार लोग अपना पल्ला झाड़ लेते हैं.
कथित भुखमरी से पुराना नाता
इसी साल 7 जून को लातेहार जिले के महुआडांड़ प्रखंड के लूरगुमी कला गांव में 65 वर्षीय कालीचरण मुंडा की मौत हो गई. ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि गांव के डीलर ने पिछले 3 महीने से किसी भी ग्रामीण को अनाज वितरण नहीं किया है. ऐसे में कालीचरण के घर में 3 दिनों से चूल्हा नहीं जला था. हालांकि, भूख से मौत को पूरी तरह नकारते हुए महुआडांड़ के एसडीएम सुधीर कुमार दास ने दावा किया कि कालीचरण के परिवार को सभी प्रकार की सरकारी सुविधा दी जाती हैं. राशन वितरण के संबंध में उन्होंने कहा गांव में इंटरनेट नहीं है, इस कारण ऑनलाइन राशन वितरण संभव नहीं हो पाया.
11 नवंबर 2018 को दुमका जिले के जामा में 45 साल के कलेश्वर सोरेन की मौत हो गई. ग्रामीणों के अनुसार इनके घर में खाने-पीने का दिक्कत थी क्योंकि परिवार का राशन कार्ड रद्द कर दिया गया था. बच्चे बाहर मजदूरी करते थे और जमीन, बैल बिक चुके थे. प्रशासन ने इसे भूख से मौत मानने से इंकार कर दिया था.
25 अक्टूबर 2018 को गुमला जिले के बसिया में 75 वर्षीय सीता देवी की मौत हो गई. उनके घर में 4-5 दिनों तक खाना नहीं बना था. सीता को अक्टूबर महीने में राशन नहीं मिला था और उन्हें पेंशन भी नहीं मिलती थी.
16 सितंबर 2018 को पूर्वी सिंहभूम के धालभूमगढ़ में चमटू सबर ने दम तोड़ दिया. बताया गया कि उन्हें अन्त्योदय कार्ड दिया जाना था लेकिन ऐसा हो न सका. मौत के पहले 4-5 दिनों तक घर में खाना नहीं था. हालांकि रिपोर्ट में टीबी को मौत की वजह बताई गई.
24 जुलाई 2018 को रामगढ़ के मांडू में 39 साल के राजेंद्र बिरहोर नहीं रहे. आदिम जनजाति को मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा पेंशन और राशन कार्ड दोनों सुविधाएं इस परिवार को मुहैया नहीं करवाया गया था.
10 जुलाई 2018 को जामताड़ा में 70 वर्षीय लालजी महतो की मौत को भी कथित तौर पर भुखमरी से जोड़ा गया क्योंकि मृत्यु के पहले तीन महीनों तक उन्हें पेंशन नहीं मिली थी.
जून 2018 का महीना बेहद निराशाजनक रहा. इस महीने कथित भूख से मौत की 3 खबरें मिली. रामगढ़ के मांडू में 50 वर्षीय चिंतामन मल्हार, चतरा के इटखोरी में 45 वर्षीय मीना मूसहर और गिरिडीह के डुमरी में 60 साल की सावित्री देवी की मौत हुई. परिस्थितिवश इन सभी मौतों को भुखमरी से जोड़ कर देखा गया लेकिन प्रशासन ने इससे इंकार कर दिया. मीना मुसहर बिहार के गया जिले के बाराचट्टी की मूल निवासी थीं. मीना चतरा के इटखोरी ब्लॉक प्रेमनगर मोहल्ले के आसपास रहती थीं और बेटे साथ कचरा बीनने का काम करती थीं. बेटे गौतम के अनुसार वो चार दिन से भूखी थी.
अप्रैल 2018 में धनबाद की सारथी महताइन की मौत की खबर मिली. परिजनों ने बताया कि उन्हें कई महीनों से राशन और पेंशन नहीं मिली थी क्योंकि वे आधार बायोमेट्रिक सत्यापन के लिए राशन दुकान और बैंक नहीं जा पाई.
साल 2018 के शुरुआती महीने में ही कथित भूख से मौत की दो घटनाएं हुई. 13 जनवरी को गिरिडीह में 40 वर्षीय बुधनी सोरेन की मौत हुई और पता चला कि उन्हें न तो राशन कार्ड मिला था और न ही विधवा पेंशन ही मिलती थी. वहीं 23 जनवरी को पाकुड़ में 30 साल के लुखी मुर्मू की मौत हो गई. उसे अक्टूबर 2017 से राशन नहीं मिला था.
25 दिसंबर 2017 को गढ़वा में 67 वर्षीय एतवारिया देवी की मौत हो गई. इस मामले में पता चला कि परिवार को अक्टूबर-दिसंबर 2017 के दौरान राशन नहीं मिला था. नवंबर में उन्हें पेंशन भी नहीं मिली थी. मौत से पहले जब उन्होंने आधार-आधारित बायोमेट्रिक सत्यापन द्वारा पेंशन निकालने की कोशिश की, तो बोला गया कि लिंक फेल हो गया है.
1 दिसंबर 2017 को गढ़वा में 64 वर्षीय प्रेमनी कुंवर की मौत के मामले में लोगों ने बताया कि सितंबर 2017 के बाद प्रेमनी की पेंशन किसी और के खाते में जाने लगी थी. नवंबर में आधार-आधारित बायोमेट्रिक सत्यापन हो सका लेकिन राशन डीलर ने फिर भी उन्हें उस माह का राशन नहीं दिया.
साल 2017 के अक्टूबर महीने में धनबाद, देवघर और गढ़वा में 3 लोगों की मौत की वजह कथित तौर पर भूख बताई गई. 21 अक्टूबर को झरिया में बैजनाथ रविदास ने दम तोड़ा तो ठीक इसके दो दिन बाद 23 अक्टूबर को मोहनपुर में रूपलाल मरांडी की मौत हो गई. इसी तरह गढ़वा में ललिता कुंवर की जान भी चली गई. इन सभी मौतों में एक कॉमन वजह सामने आई राशन का नहीं मिलना. हालांकि तब इस मामले की लीपापोती कर दी गई.
28 सिंतबर 2017 को सिमडेगा को 11 साल की बच्ची संतोषी कुमारी की मौत का मामला भी सुर्खियों में रहा था. संतोषी के परिवार को पांच महीनों से राशन नहीं मिला था क्योंकि आधार कार्ड से राशन कार्ड नहीं जुड़ा होने के कारण उसे रद्द कर दिया गया था.
हालांकि कथित भूख से मौत के इन आंकड़ों को शासन-प्रशासन नहीं मानता है. अधिकारियों के अनुसार राज्य में कई जनकल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिससे दूरदराज तक के लोग लाभांवित हो रहे हैं. ऐसे में भूख से मौत का सवाल ही नहीं उठता.
क्या कर रही है राज्य सरकार
राज्य सरकार ने बनाई थी 7 सदस्यीय कमेटी
झारखंड में कथित तौर पर भूख से होने वाली मौत पर विराम लगाने के लिए सरकार ने फरवरी 2018 में 7 सदस्य कमिटी बनाई थी. इस कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में 14 अलग-अलग बिंदुओं में सलाह दी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा संचालित मालन्यूट्रिशन ट्रीटमेंट सेंटर पूरी तरह से ऑपरेशनल रहें. इसके अलावे हर गांव में 'बॉडी मास इंडेक्स' के आधार पर भूख से प्रभावित होने वाले लोगों की एक लिस्ट बनाई जाए. कमिटी ने अपने रिकमेंडेशन में ग्राम पंचायत से लेकर मुखिया तक की मदद इस काम में लेने को कहा है.
बुजुर्गों, दिव्यांगों और विधवाओं के लिए राज्य में राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के तहत इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धापेंशन योजना, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विकलांग पेंशन योजना, और राज्य सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना चलाई जा रही हैं. इसी तरह ग्रामीणों को रोजगार के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों का रोजगार दिया जा रहा है. गरीबों को प्रधान मंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत आवास भी दिए जा रहे हैं. राशन के लिए पीडीएस की व्यवस्था की गई है और दूरदराज के आदिवासियों तक पीटीजी डाकिया योजना के तहत राशन पहुंचाया जा रहा है.
Conclusion: