धनबाद: 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती है, देशवासी इसे पराक्रम दिवस के रूप में मनाते हैं. धनबाद के गोमो से उनकी यादें जुड़ी हैं. गोमो से उनका गहरा रिश्ता रहा है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस को आखिरी बार गोमो में देखा गया था. इसके बाद वे कहां गए? यह कोई नहीं जानता.
नेताजी सुभाष चंद्र बोस 18 जनवरी की रात को गोमो स्टेशन से पठान के भेष में पेशावर मेल से रवाना हुए थे. वही पेशावर मेल जिसे बाद में कालका मेल और अब नेताजी एक्सप्रेस के नाम से जाना जाता है. नेताजी इसी ट्रेन से अपने गंतव्य के लिए रवाना हुए थे. उनकी यात्रा को निष्क्रमण यात्रा के रूप में याद किया जाता है.
ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर नजरबंद कर दिया था, तो नेताजी ने भेष बदलकर भागने की योजना बनाई थी, इस रणनीति में उनके मित्र सत्यव्रत बनर्जी उनके साथ थे. सत्यव्रत बनर्जी ने इसे महाभिनिष्क्रमण यात्रा का नाम दिया था.
स्वास्थ्य बिगड़ने के बाद नेताजी को किया गया था रिहा
2 जुलाई 1940 को हॉलवेल आंदोलन के दौरान नेताजी को भारतीय रक्षा अधिनियम की धारा 129 के तहत कोलकाता में गिरफ्तार कर लिया गया. उन्होंने प्रेसीडेंसी जेल में भूख हड़ताल कर दी. जिससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया. उनके बिगड़ते स्वास्थ्य को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 5 दिसंबर 1940 को इस शर्त पर रिहा कर दिया कि स्वास्थ्य में सुधार होते ही उन्हें दोबारा गिरफ्तार किया जा सकता है. यहां से रिहा होने के बाद वे एल्गिन रोड स्थित अपने आवास पर चले गए.
नेताजी के मामले की सुनवाई 27 जनवरी 1941 को होनी थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार तब हैरान रह गई, जब उन्हें 26 जनवरी को पता चला कि नेताजी कोलकाता में हैं ही नहीं. उन्हें खोजने के लिए सैनिकों को अलर्ट संदेश भेजा गया, लेकिन तब तक नेताजी अपने करीबी सहयोगियों की मदद से महाभिनिष्क्रमण की तैयारी शुरू कर चुके थे.
योजना के अनुसार, नेताजी अपना भेष बदलकर एक कार में सवार हुए और 16-17 जनवरी की रात करीब 1 बजे कलकत्ता से अपनी यात्रा पर निकल पड़े. इस योजना के अनुसार नेताजी अपनी बेबी ऑस्टिन कार से गोमो पहुंचे. वे यहां एक पठान के भेष में पहुंचे थे. 18 जनवरी 1941 को एक पुराना कंबल ओढ़कर नेताजी धनबाद के गोमो स्टेशन से हावड़ा-पेशावर मेल (अब नेताजी मेल) में सवार हुए और इसके बाद गुमनामी में खो गए.
नेताजी के नाम पर रखा गया गोमो स्टेशन का नाम
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की याद में 17 जनवरी 2000 को तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने गोमो स्टेशन का नाम बदलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन गोमो रख दिया. स्टेशन परिसर के प्लेटफार्म नंबर एक और दो के बीच नेताजी की कांस्य प्रतिमा स्थापित की गई है, जहां रेल यात्री नेताजी की प्रतिमा को देख गोमो की धरती को नमन करते हैं.
चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष धीरज कुमार ने बताया कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस गोमो स्टेशन से ही कालका मेल ट्रेन से पेशावर के लिए रवाना हुए थे. 18 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक्सप्रेस ट्रेन को सजाया जाता है. हम उनकी यादों को ताजा कर रहे हैं. नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन के पूर्व चीफ यार्ड मास्टर पीसी मंडल ने बताया कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस लोको बाजार में रुके थे और फिर वहां से वे पठान के भेष में स्टेशन पहुंचे थे.
अब्दुल्ला कॉलोनी हाता में रुके थे नेताजी
नेताजी गोमो के लोको बाजार स्थित अब्दुल्ला कॉलोनी हाता स्थित एक मकान में कुछ देर रुके थे. मकान में रहने वाले एडवोकेट एसएन फकरुल्ला ने बताया कि मेरे दादा एडवोकेट शेख अब्दुल्ला स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ नेताजी के अच्छे मित्र भी थे. उन्होंने आजादी की लड़ाई साथ-साथ लड़ी थी. उनके नाम पर ही इस कॉलोनी का नाम रखा गया है.
नेताजी 18 जनवरी 1941 को शाम करीब पांच-छह बजे यहां पहुंचे थे. नेताजी ने दादा से कहा कि मुझे ट्रेन पर चढ़ा दीजिए. अंग्रेज मेरे पीछे पड़े हैं. उन्होंने बताया कि मेरे दादा के दर्जी जिसका नाम अमीन था, उसे गोमो स्टेशन पर नेताजी को ट्रेन पर चढ़ाने के लिए कहा गया था. उनका टिकट पेशावर तक का था, नेताजी गोमो से पेशावर के लिए निकले थे.
यह भी पढ़ें:
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंतीः राज्यपाल और सीएम हेमंत सोरेन ने श्रद्धा सुमन अर्पित कर किया याद
कुशल मजदूर नेता थे सुभाष चंद्र बोस, जमशेदपुर से रहा है गहरा नाता