ETV Bharat / bharat

सुभाषचंद्र बोस जयंती स्पेशल: रांची के इन परिवारों ने आज भी संजो रखी है नेताजी से जुड़ी चीजें, कार से लेकर कुर्सी तक सुरक्षित - SUBHASH CHANDRA BOSE SPECIAL

नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी कार देख कर आज भी लोग रोमांचित हो जाते हैं. क्या है उनसे जुड़ी कहानी इस रिपोर्ट में जानिए

SUBHASH CHANDRA BOSE SPECIAL
डिजाइन इमेज (ईटीवी भारत)
author img

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jan 23, 2025, 4:06 AM IST

रांची: महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस का है. उनका नारा तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा सुनकर देश के सैकड़ों नौजवानों ने उनका साथ दिया. 23 जनवरी 1897 तो ओडिशा के कटक में जन्मे सुभाष चंद्र बोस का रांची से भी नाता रहा है.

कभी कांग्रेस नेता रहे सुभाष चंद्र बोस 1940 के रामगढ़ अधिवेशन में भाग लेने के लिए ट्रेन से चक्रधरपुर और फिर वहां से खूंटी होते हुए रांची के लालपुर पहुंचे थे. तब वे फनींद्रनाथ आइटक के घर पर रुके थे. फनींद्रनाथ आइटक को ब्यूटीफिकेशन ऑफ रांची के लिए अंग्रेजों ने बांकुरा से रांची बुलाया था. वे एक शानदार बिल्डर थे. नेताजी का इस परिवार पर कितना असर हुआ इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उस समय उन्होंने जिन चीजों का इस्तेमाल किया इस परिवार ने उसे आज तक संजो कर रखा है.

विष्णु आइकट से बात करते संवाददाता उपेंद्र (ईटीवी भारत)

फनींद्रनाथ आइकट परिवार ने आज भी अपने घर में उस कुर्सी तक को संभालकर रखा है जिस पर नेता जी बैठे थे. यही नहीं नेताजी ने जिस चप्पल और कंघी का इस्तेमाल किया था, उसे भी इस परिवार ने सुरक्षित रखा था. हालांकि इन्हें इस परिवार ने पुरुलिया स्थित संग्रहालय को दे दिया.

नेताजी के साथ अपने परिवार के लोगों की पुरानी तस्वीर साझा करते हुए विष्णु आइकट कहते हैं कि जब तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत को पता चला कि नेता जी उनके आवास में रुके हैं तो अंग्रेजों ने उनके दादा से कई सवाल किए थे. इससे नाराज गवर्नर ने उनके दादा फनीन्द्रनाथ आइकट को शोकॉज किया. उसके बाद उनके दादा जी ने ब्रिटानिया हुकूमत का कोई भी काम नहीं किया और अपना बकाया पैसा भी छोड़ दिया.

Subhash chandra bose special
इसी घर में रुके थे सुभाष चंद्र बोस (ईटीवी भारत)

नेताजी को घर का बना खाना ही था पसंद

विष्णु आइकट कहते हैं कि उनकी दादी ने बताया था कि नेताजी को घर का खाना बेहद पसंद था. रामगढ़ जाने से पहले उनकी दादी द्वारा तैयार की गई टिफिन उनके साथ था.

जिस गाड़ी का नेताजी ने किया इस्तेमाल आज भी है वह सुरक्षित

लालपुर में ही आइकट फैमिली के घर से कुछ ही दूरी पर शिवांगी अपार्टमेंट के बेसमेंट में एक विंटेज फिएट कार BRN 70 लगी है. यह डॉ फणीन्द्रनाथ चटर्जी की कार है. डॉ फणीन्द्र नाथ चटर्जी के पुत्र समरेंद्र नाथ चटर्जी बताते हैं कि उस समय में उनके पिताजी ने 4000 रुपए में यह कार खरीदी थी. जब मार्च 1940 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस का रामगढ़ आगमन होना था, तब चक्रधरपुर से इसी कार में बैठकर वह रांची आए और फिर यहां से रामगढ़ के लिए रवाना हुए.

समरेंद्र नाथ चटर्जी से बात करते संवाददाता उपेंद्र (ईटीवी भारत)

वयोवृद्ध हो चुके समरेंद्र नाथ चटर्जी ने कहा कि उस समय रांची में कई कारें थीं, लेकिन "वंदे मातरम" बोलने भर से अंग्रेजों का जुल्म शुरू हो जाता था, उस समय नेताजी जैसे फ्रीडम फाइटर के लिए कार कौन उपलब्ध करवा कर अंग्रेजों के कोपभाजन का शिकार बनता. ऐसे में उनके पिता ने बुलंद हौसलों के साथ आगे आकर नेताजी के लिए अपनी कार पेश की. वे खुद कार चला कर चक्रधरपुर गए और नेताजी को लेकर रांची लेकर आए. यहां से उन्हें कांग्रेस के अधिवेशन के लिए रामगढ़ ले गए.

Subhash chandra bose special
इसी कार पर बैठे थे नेताजी (ईटीवी भारत)

समरेंद्र नाथ चटर्जी ने कहा कि मेरे लिए खुशी की बात यह है कि हमारी नई पीढ़ी मेरा बेटा, हमसे ज्यादा इस कार की देखभाल करता है. आज भी यह कार चालू हालत में है. 15-20 दिन पर अहले सुबह इसे शहर में घुमाते हैं क्योंकि दिन के समय जब यह कार रांची की सड़कों पर निकलती है तो इसे देखने और फोटो खिंचाने के लिए भीड़ लग जाती है.

नेता जी ने किया था समानांतर अधिवेशन

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेसी नेताओं से मतभेद के बाद रामगढ़ में समानांतर अधिवेशन किया था. पूरे नगर में एक विशाल शोभा यात्रा निकली थी. सुभाष चंद्र बोस रांची से रामगढ़ आए थे.

स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में रामगढ़ अधिवेशन का महत्व

वर्ष 1940 में 18 मार्च से 20 मार्च तक रामगढ़ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस(INC) का महत्वपूर्ण अधिवेशन हुआ था. मौलाना अबुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में हुए रामगढ़ अधिवेशन में महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ. श्रीकृष्ण सिंह, डॉ. राजेंद्र प्रसाद के साथ-साथ उस समय के कई बड़े स्वतंत्रता सेनानी इस अधिवेशन में शामिल हुए थे. इस तीन दिवसीय कांग्रेस अधिवेशन में ही 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन की नींव पड़ी थी. कहा जाता है कि रामगढ़ की धरती से ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अलग राह भी पकड़ ली और उन्होंने समानांतर अधिवेशन भी किया था.

ये भी पढ़ें:

कुशल मजदूर नेता थे सुभाष चंद्र बोस, जमशेदपुर से रहा है गहरा नाता

नेताजी का झारखंड से नाताः आखिरी बार गोमो रेलवे स्टेशन पर देखे गए थे सुभाष चंद्र बोस

रांची: महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस का है. उनका नारा तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा सुनकर देश के सैकड़ों नौजवानों ने उनका साथ दिया. 23 जनवरी 1897 तो ओडिशा के कटक में जन्मे सुभाष चंद्र बोस का रांची से भी नाता रहा है.

कभी कांग्रेस नेता रहे सुभाष चंद्र बोस 1940 के रामगढ़ अधिवेशन में भाग लेने के लिए ट्रेन से चक्रधरपुर और फिर वहां से खूंटी होते हुए रांची के लालपुर पहुंचे थे. तब वे फनींद्रनाथ आइटक के घर पर रुके थे. फनींद्रनाथ आइटक को ब्यूटीफिकेशन ऑफ रांची के लिए अंग्रेजों ने बांकुरा से रांची बुलाया था. वे एक शानदार बिल्डर थे. नेताजी का इस परिवार पर कितना असर हुआ इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उस समय उन्होंने जिन चीजों का इस्तेमाल किया इस परिवार ने उसे आज तक संजो कर रखा है.

विष्णु आइकट से बात करते संवाददाता उपेंद्र (ईटीवी भारत)

फनींद्रनाथ आइकट परिवार ने आज भी अपने घर में उस कुर्सी तक को संभालकर रखा है जिस पर नेता जी बैठे थे. यही नहीं नेताजी ने जिस चप्पल और कंघी का इस्तेमाल किया था, उसे भी इस परिवार ने सुरक्षित रखा था. हालांकि इन्हें इस परिवार ने पुरुलिया स्थित संग्रहालय को दे दिया.

नेताजी के साथ अपने परिवार के लोगों की पुरानी तस्वीर साझा करते हुए विष्णु आइकट कहते हैं कि जब तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत को पता चला कि नेता जी उनके आवास में रुके हैं तो अंग्रेजों ने उनके दादा से कई सवाल किए थे. इससे नाराज गवर्नर ने उनके दादा फनीन्द्रनाथ आइकट को शोकॉज किया. उसके बाद उनके दादा जी ने ब्रिटानिया हुकूमत का कोई भी काम नहीं किया और अपना बकाया पैसा भी छोड़ दिया.

Subhash chandra bose special
इसी घर में रुके थे सुभाष चंद्र बोस (ईटीवी भारत)

नेताजी को घर का बना खाना ही था पसंद

विष्णु आइकट कहते हैं कि उनकी दादी ने बताया था कि नेताजी को घर का खाना बेहद पसंद था. रामगढ़ जाने से पहले उनकी दादी द्वारा तैयार की गई टिफिन उनके साथ था.

जिस गाड़ी का नेताजी ने किया इस्तेमाल आज भी है वह सुरक्षित

लालपुर में ही आइकट फैमिली के घर से कुछ ही दूरी पर शिवांगी अपार्टमेंट के बेसमेंट में एक विंटेज फिएट कार BRN 70 लगी है. यह डॉ फणीन्द्रनाथ चटर्जी की कार है. डॉ फणीन्द्र नाथ चटर्जी के पुत्र समरेंद्र नाथ चटर्जी बताते हैं कि उस समय में उनके पिताजी ने 4000 रुपए में यह कार खरीदी थी. जब मार्च 1940 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस का रामगढ़ आगमन होना था, तब चक्रधरपुर से इसी कार में बैठकर वह रांची आए और फिर यहां से रामगढ़ के लिए रवाना हुए.

समरेंद्र नाथ चटर्जी से बात करते संवाददाता उपेंद्र (ईटीवी भारत)

वयोवृद्ध हो चुके समरेंद्र नाथ चटर्जी ने कहा कि उस समय रांची में कई कारें थीं, लेकिन "वंदे मातरम" बोलने भर से अंग्रेजों का जुल्म शुरू हो जाता था, उस समय नेताजी जैसे फ्रीडम फाइटर के लिए कार कौन उपलब्ध करवा कर अंग्रेजों के कोपभाजन का शिकार बनता. ऐसे में उनके पिता ने बुलंद हौसलों के साथ आगे आकर नेताजी के लिए अपनी कार पेश की. वे खुद कार चला कर चक्रधरपुर गए और नेताजी को लेकर रांची लेकर आए. यहां से उन्हें कांग्रेस के अधिवेशन के लिए रामगढ़ ले गए.

Subhash chandra bose special
इसी कार पर बैठे थे नेताजी (ईटीवी भारत)

समरेंद्र नाथ चटर्जी ने कहा कि मेरे लिए खुशी की बात यह है कि हमारी नई पीढ़ी मेरा बेटा, हमसे ज्यादा इस कार की देखभाल करता है. आज भी यह कार चालू हालत में है. 15-20 दिन पर अहले सुबह इसे शहर में घुमाते हैं क्योंकि दिन के समय जब यह कार रांची की सड़कों पर निकलती है तो इसे देखने और फोटो खिंचाने के लिए भीड़ लग जाती है.

नेता जी ने किया था समानांतर अधिवेशन

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेसी नेताओं से मतभेद के बाद रामगढ़ में समानांतर अधिवेशन किया था. पूरे नगर में एक विशाल शोभा यात्रा निकली थी. सुभाष चंद्र बोस रांची से रामगढ़ आए थे.

स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में रामगढ़ अधिवेशन का महत्व

वर्ष 1940 में 18 मार्च से 20 मार्च तक रामगढ़ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस(INC) का महत्वपूर्ण अधिवेशन हुआ था. मौलाना अबुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में हुए रामगढ़ अधिवेशन में महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ. श्रीकृष्ण सिंह, डॉ. राजेंद्र प्रसाद के साथ-साथ उस समय के कई बड़े स्वतंत्रता सेनानी इस अधिवेशन में शामिल हुए थे. इस तीन दिवसीय कांग्रेस अधिवेशन में ही 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन की नींव पड़ी थी. कहा जाता है कि रामगढ़ की धरती से ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अलग राह भी पकड़ ली और उन्होंने समानांतर अधिवेशन भी किया था.

ये भी पढ़ें:

कुशल मजदूर नेता थे सुभाष चंद्र बोस, जमशेदपुर से रहा है गहरा नाता

नेताजी का झारखंड से नाताः आखिरी बार गोमो रेलवे स्टेशन पर देखे गए थे सुभाष चंद्र बोस

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.