रामगढ़: नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती रामगढ़ में भी धूमधाम से मनाई जा रही है. लोग उनकी शहादत को याद कर नमन कर रहे हैं. इतिहास के पन्नों में रामगढ़ और नेताजी का खास जुड़ाव रहा है. नेताजी सुभाषचंद्र बोस रामगढ़ की धरती पर आ भी चुके हैं.
दरअसल, आजादी की लड़ाई के दौरान 1940 में मौलाना अबुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में तीन दिवसीय 53वां कांग्रेस अधिवेशन यहीं हुआ था . इसी अधिवेशन में नरम दल और गरम दल की भी स्थापना हुई थी. गरम दल का नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस कर रहे थे, जबकि नरम दल में मोहनदास करमचंद गांधी (महात्मा गांधी), पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ. श्रीकृष्ण सिंह, डॉ. राजेंद्र प्रसाद समेत कई अन्य प्रमुख नेता शामिल थे, जिन्होंने अधिवेशन में हिस्सा लिया था. इसलिए रामगढ़ जिले के लिए सुभाष चंद्र बोस का विशेष महत्व है.
भारत की आजादी का भी रामगढ़ जिले से संबंध है. कांग्रेस का 53वां अधिवेशन 18 से 20 मार्च 1940 तक हरहरी नदी के तट पर हुआ था. अधिवेशन के दौरान नेताओं के ठहरने के लिए टेंट आदि लगाए गए थे. इसी दौरान नरम और गरम दल की स्थापना हुई थी. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भी कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ रामगढ़ में समानांतर अधिवेशन किया था और पूरे शहर में विशाल जुलूस निकाला था. इसमें महंत धनराज पुरी, कैप्टन शाहनवाज खान, कैप्टन लक्ष्मी बाई सहगल, शीलभद्र जैसी नामचीन हस्तियां शामिल हुई थीं.
सुभाष चंद्र बोस रांची से टिफिन गाड़ी में सवार होकर रामगढ़ आए थे. नेताजी के साथ उनके करीबी सलाहकार डॉ. यदुवंश मुखर्जी और कई अन्य नेता भी थे. रामगढ़ से ही अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध का ऐलान किया गया था. 1940 में रामगढ़ में कांग्रेस के 53वें अधिवेशन में ही नेताजी ने महात्मा गांधी से अलग होकर देश की आजादी का बिगुल फूंका था.
इस घोषणा के बाद इलाके के लोग नेताजी से जुड़ने लगे थे. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने शहर के नए बस स्टैंड के पास एमईसी के फर्नीचर यार्ड के पास फॉरवर्ड ब्लॉक, कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी, एमएन रॉयवाड़ी और वामपंथी समूहों के साथ मिलकर रणनीति तैयार की थी. रामगढ़ अपने इतिहास में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के कई पलों की यादें समेटे हुए है.
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