रांचीः देश में शादी की वास्तविक उम्र को लेकर हमेशा चर्चा होती रहती है. आज भी इस पर मंथन हो रहा है. बहुत से लोग इसे प्रजनन दर और लिंगानुपात से भी जोड़कर देखते हैं. भारत में पिछले दो वर्षों में जन्मदर में कमी आई है. इलाज की बेहतर सुविधा से मृत्यु दर भी घटी है. लेकिन लिंगानुपात का घटना चिंता का विषय है.
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शिशु मृत्यु दर
झारखंड में शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है. एक हजार बच्चों के जन्म के एक साल के भीतर औसतन 29 शिशुओं की मौत हो जाती है. हालाकि सैंपल रजिस्ट्रेशन सैंपल की और से मई 2020 में जारी रिपोर्ट के अनुसार शिशु मृत्यु दर 29 से बढ़कर 30 हो गई है. ग्रामीण क्षेत्रों में यह दर 31 है और शहरी क्षेत्रों में 26 हो गई है.
मातृ मृत्यु दर
इस मामले में झारखंड में काफी सुधार हुआ है. साल 2014-16 में राष्ट्रीय स्तर पर मातृ मृत्यु दर 130 प्रति लाख जीवित जन्म थी. साल 2015-17 में घटकर 122 प्रति लाख जीवित जन्म हो गई . साल 2020 में 11 राज्यों में झारखंड भी ऐसा राज्य बनकर उभरा जहां 100 प्रति लाख जीवित जन्म हो गई है.
प्रजनन दर
प्रजनन दर के लिहाज से झारखंड भी वैसे राज्यों में शुमार है जो जनसंख्या विस्फोट को रोकने में नाकाम साबित हो रहा है. पूरे देश में प्रजनन दर के मामले में बिहार सबसे आगे है. भारत के प्रजनन दर का औसत 2.18 है जबकि बिहार का सबसे ज्यादा 3.4 है. बिहार के बाद मेघालय 3.04, यूपी 2.74, नागालैंड 2.74, मणिपुर 2.61 और झारखंड का प्रजनन दर 2.55 है. यानी झारखंड की महिलाओं (15-49 साल) का प्रजनन दर भारत में छठे नंबर पर है.
झारखंड का लिंगानुपात
2011 का जनगणना के मुताबिक देश का लिंगानुपात 940 था. 2017 के एसआरएस सर्वे के मुताबिक देश में सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ में लिंगानुपात 961 था और हरियाणा में सबसे कम 833 था. लेकिन झारखंड का लिंगानुपात 941 था.