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झारखंड में बैंक दीदी ने बदल डाली बैंकिंग की परिभाषा, हर माह कर रहीं 120 करोड़ का डिजिटल ट्रांजेक्शन

झारखंड की महिलाओं ने हौसले की मिसाल कायम की है, झारखंड में बैंक दीदी ने बैंकिंग की पूरी परिभाषा ही बदल डाली है. बैंकिंग कॉरेस्पांडेंट सखी के रूप में कार्यरत बैंक वाली दीदी हर महीने 120 करोड़ का डिजिटल ट्रांजेक्शन कर रही हैं.

बैंक वाली दीदी
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Published : Dec 4, 2021, 5:15 PM IST

रांचीः झारखंड के गांवों की तकरीबन साढ़े चार हजार महिलाओं ने बैंकिंग की परिभाषा बदल डाली है. बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट सखी के रूप में कार्यरत ये महिलाएं हर महीने 120 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का ट्रांजेक्शन कर रही हैं.

ये भी पढ़ें-संक्रमण काल में ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनीं बैंक वाली दीदियां, घर-घर पहुंचा रहीं बैंकिंग सुविधाएं

झारखंड में बैंक दीदी दूर-दराज के गांवों में भी बैंकिंग की सेवाएं लोगों के दरवाजों तक पहुंच रही हैं। अब बुजुर्गों को पेंशन के लिए घर से 10-20 किलोमीटर दूर बैंक पहुंचकर लंबी लाइन में खड़ा नहीं होना पड़ता। दिन भर खेत में काम कर दो पैसे बचाने वाले किसान हों या सरकारी छात्रवृत्ति का लाभ पाने वाले छात्र, सबको बैंक वाली दीदी से बैंकिंग की सहूलियत घर बैठे मिल रही हैं. गांवों के लोग इन्हें बैंक वाली दीदियों के रूप में जानते हैं.

बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट सखी (बी.सी. सखी) या बैंक वाली दीदी के रूप में काम कर रही ये महिलाएं सखी मंडल के नाम से चल रही उन स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी है, जिनका गठन केंद्र की राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन परियोजना के तहत किया गया है. झारखंड में यह परियोजना झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) के जरिए चलायी जा रही है. सोसाइटी की सीईओ आईएएस नैन्सी सहाय बताती हैं कि पूरे झारखंड में 4619 महिलाएं बैंकिंग कॉरेस्पॉन्डेंट (बी.सी.सखी) यानी बैंक वाली दीदी के रूप में काम कर रही हैं. सरकार का लक्ष्य है कि राज्य की प्रत्येक पंचायत में एक बी.सी. सखी की तैनाती हो.अभी हर महीने बी.सी. सखी लगभग पौने तीन लाख ट्रांजेक्शन करती हैं.

ये भी पढ़ें-रांची में मंत्री और सचिव ने की पलाश मार्ट ऐप की शुरुआत, घर बैठे मिलेगा सामान

कोविड की पहली और दूसरी लहर के दौरान राज्य में बैंक वाली दीदी की लोकप्रियता खूब बढ़ी, क्योंकि यह लॉकडाउन का वक्त था और बैंकों की शाखाओं में भी कोविड प्रोटोकॉल के तहत सीमित तरीके से कामकाज चल रहा था. उस वक्त ग्रामीण इलाकों में पेंशन एवं छात्रवृत्ति का भुगतान, बैंक खातों में जमा-निकासी, बैंक खातों में आधार अपडेशन जैसे रोजमर्रा की बैंकिंग से जुड़ी तमाम जिम्मेदारियां इन्हीं बैंक वाली दीदी ने निभाई.

बैंक वाली दीदी अपने आप में चलती-फिरती बैंक की तरह हैं जो डिजिटल ट्रांजेक्शन के माध्यम से लोगों के पैसे का भुगतान करती हैं. सिमडेगा के बानो प्रखंड अंतर्गत रायकेरा पंचायत की स्नेहलता जोजो भी बी.सी. सखी है जिसकी उम्र करीब 30 वर्ष है पांवों में हवाई चप्पल, एक हाथ में प्लास्टिक का थैला, कंधे पर लैपटॉप बैग टांग कर स्नेहलता रोज 8 से 10 किलोमीटर अपनी ग्राम पंचायत में पैदल घूमती हैं और लोगों के घरों तक पेंशन, छात्रवृत्ति सहित बैंकिंग की वो सुविधाएं डिजिटल ट्रांजेक्शन के तहत पहुंचाती हैं, जिनके लिए ग्रामीणों को अपना कामकाज छोड़कर बैंकों के आगे खड़ा होना पड़ता था.

ये भी पढ़ें-बैंक वाली दीदी: मेचुआ गांव की एक महिला सशक्त बनकर चला रही है बैंक, रात को भी मिलता है पैसा

नीति आयोग के सूचकांकों के अनुसार झारखंड का पाकुड़ देश के सर्वाधिक पिछड़े जिलों में से एक है. इसी जिले के लिट्टीपाड़ा प्रखंड की रहने वाली शाइस्ता परवीन भी बैंकिंग कॉरेस्पॉन्डेंट हैं, वह हर महीने एक करोड़ से ज्यादा का ट्रांजेक्शन करती हैं. इसी तरह गुमला की निशा देवी का हर महीने का ट्रांजेक्शन 1.08 करोड़ है. बैंकिंग सुविधाएं पहुंचाने के एवज में हर ट्रांजेक्शन पर इन दीदियों को एक निश्चित प्रतिशत में कमीशन मिलता है. रांची जिले के ओरमांझी प्रखंड के सिकिड गांव की रहने वाली अनिता कुमारी 2019 में जब सखी मंडल से जुड़ीं तो, उन्हें बैंकिंग कॉरेस्पॉन्डेंट के कामकाज के बारे में जानकारी मिली. उन्होंने सखी मंडल से 50 हजार का कर्ज लेकर लैपटॉप और ई-पॉश मशीन खरीदा जिससे वे लोगों को डिजिटल ट्रांजेक्शन के तहत भुगतान करती हैं.

अब वह बैंकिंग कॉरेस्पॉन्डेंट के रूप में लोगों के घरों तक बैंकिंग सुविधाएं पहुंचकर खुद हर महीने आठ से दस हजार तक कमा लेती हैं. अनिता गांव के 300 लोगों का बीमा भी कर चुकी हैं. उग्रवाद प्रभावित खूंटी जिले के कर्रा प्रखंड की सोनिया कंसारी बताती हैं कि वह पैसा जमा-निकासी, आधार को बैंक खातों से लिंक करना, बीमा पॉलिसी भरना, पेंशन का भुगतान सहित जैसी जिम्मेदारियां आसानी से निभा लेती हैं. वह कहती हैं कि मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने उन ग्रामीणों को भी बैंकिंग सेवाओं से जोड़ा है, जो लिखा-पढ़ी की जटिलताओं के कारण बैंक जाना पसंद नहीं करते थे.

-आईएएनएस

रांचीः झारखंड के गांवों की तकरीबन साढ़े चार हजार महिलाओं ने बैंकिंग की परिभाषा बदल डाली है. बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट सखी के रूप में कार्यरत ये महिलाएं हर महीने 120 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का ट्रांजेक्शन कर रही हैं.

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झारखंड में बैंक दीदी दूर-दराज के गांवों में भी बैंकिंग की सेवाएं लोगों के दरवाजों तक पहुंच रही हैं। अब बुजुर्गों को पेंशन के लिए घर से 10-20 किलोमीटर दूर बैंक पहुंचकर लंबी लाइन में खड़ा नहीं होना पड़ता। दिन भर खेत में काम कर दो पैसे बचाने वाले किसान हों या सरकारी छात्रवृत्ति का लाभ पाने वाले छात्र, सबको बैंक वाली दीदी से बैंकिंग की सहूलियत घर बैठे मिल रही हैं. गांवों के लोग इन्हें बैंक वाली दीदियों के रूप में जानते हैं.

बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट सखी (बी.सी. सखी) या बैंक वाली दीदी के रूप में काम कर रही ये महिलाएं सखी मंडल के नाम से चल रही उन स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी है, जिनका गठन केंद्र की राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन परियोजना के तहत किया गया है. झारखंड में यह परियोजना झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) के जरिए चलायी जा रही है. सोसाइटी की सीईओ आईएएस नैन्सी सहाय बताती हैं कि पूरे झारखंड में 4619 महिलाएं बैंकिंग कॉरेस्पॉन्डेंट (बी.सी.सखी) यानी बैंक वाली दीदी के रूप में काम कर रही हैं. सरकार का लक्ष्य है कि राज्य की प्रत्येक पंचायत में एक बी.सी. सखी की तैनाती हो.अभी हर महीने बी.सी. सखी लगभग पौने तीन लाख ट्रांजेक्शन करती हैं.

ये भी पढ़ें-रांची में मंत्री और सचिव ने की पलाश मार्ट ऐप की शुरुआत, घर बैठे मिलेगा सामान

कोविड की पहली और दूसरी लहर के दौरान राज्य में बैंक वाली दीदी की लोकप्रियता खूब बढ़ी, क्योंकि यह लॉकडाउन का वक्त था और बैंकों की शाखाओं में भी कोविड प्रोटोकॉल के तहत सीमित तरीके से कामकाज चल रहा था. उस वक्त ग्रामीण इलाकों में पेंशन एवं छात्रवृत्ति का भुगतान, बैंक खातों में जमा-निकासी, बैंक खातों में आधार अपडेशन जैसे रोजमर्रा की बैंकिंग से जुड़ी तमाम जिम्मेदारियां इन्हीं बैंक वाली दीदी ने निभाई.

बैंक वाली दीदी अपने आप में चलती-फिरती बैंक की तरह हैं जो डिजिटल ट्रांजेक्शन के माध्यम से लोगों के पैसे का भुगतान करती हैं. सिमडेगा के बानो प्रखंड अंतर्गत रायकेरा पंचायत की स्नेहलता जोजो भी बी.सी. सखी है जिसकी उम्र करीब 30 वर्ष है पांवों में हवाई चप्पल, एक हाथ में प्लास्टिक का थैला, कंधे पर लैपटॉप बैग टांग कर स्नेहलता रोज 8 से 10 किलोमीटर अपनी ग्राम पंचायत में पैदल घूमती हैं और लोगों के घरों तक पेंशन, छात्रवृत्ति सहित बैंकिंग की वो सुविधाएं डिजिटल ट्रांजेक्शन के तहत पहुंचाती हैं, जिनके लिए ग्रामीणों को अपना कामकाज छोड़कर बैंकों के आगे खड़ा होना पड़ता था.

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नीति आयोग के सूचकांकों के अनुसार झारखंड का पाकुड़ देश के सर्वाधिक पिछड़े जिलों में से एक है. इसी जिले के लिट्टीपाड़ा प्रखंड की रहने वाली शाइस्ता परवीन भी बैंकिंग कॉरेस्पॉन्डेंट हैं, वह हर महीने एक करोड़ से ज्यादा का ट्रांजेक्शन करती हैं. इसी तरह गुमला की निशा देवी का हर महीने का ट्रांजेक्शन 1.08 करोड़ है. बैंकिंग सुविधाएं पहुंचाने के एवज में हर ट्रांजेक्शन पर इन दीदियों को एक निश्चित प्रतिशत में कमीशन मिलता है. रांची जिले के ओरमांझी प्रखंड के सिकिड गांव की रहने वाली अनिता कुमारी 2019 में जब सखी मंडल से जुड़ीं तो, उन्हें बैंकिंग कॉरेस्पॉन्डेंट के कामकाज के बारे में जानकारी मिली. उन्होंने सखी मंडल से 50 हजार का कर्ज लेकर लैपटॉप और ई-पॉश मशीन खरीदा जिससे वे लोगों को डिजिटल ट्रांजेक्शन के तहत भुगतान करती हैं.

अब वह बैंकिंग कॉरेस्पॉन्डेंट के रूप में लोगों के घरों तक बैंकिंग सुविधाएं पहुंचकर खुद हर महीने आठ से दस हजार तक कमा लेती हैं. अनिता गांव के 300 लोगों का बीमा भी कर चुकी हैं. उग्रवाद प्रभावित खूंटी जिले के कर्रा प्रखंड की सोनिया कंसारी बताती हैं कि वह पैसा जमा-निकासी, आधार को बैंक खातों से लिंक करना, बीमा पॉलिसी भरना, पेंशन का भुगतान सहित जैसी जिम्मेदारियां आसानी से निभा लेती हैं. वह कहती हैं कि मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने उन ग्रामीणों को भी बैंकिंग सेवाओं से जोड़ा है, जो लिखा-पढ़ी की जटिलताओं के कारण बैंक जाना पसंद नहीं करते थे.

-आईएएनएस

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