ETV Bharat / city

पॉक्सो और जेजे एक्ट को लेकर पुलिस गंभीर, वैज्ञानिक अनुसंधान के गुर पुलिस सीख रही - jharkhand Police

मासूम बच्चों के यौन उत्पीड़न और दुष्कर्म के दोषियों को सजा दिलाने के लिए पॉक्सो एक्ट के तहत जांच और कार्रवाई के लिए कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस दौरान बालमित्र थाना के पुलिसकर्मियों को पोक्सो एक्ट से जुड़े कानून की बारीकियों को समझाया गया.

कार्यशाला का आयोजन
author img

By

Published : Aug 17, 2019, 5:30 PM IST

रांची: मानव तस्करी के लिए बदनाम झारखंड में अक्सर मासूम बच्चों के यौन उत्पीड़न और दुष्कर्म के मामले लगातार सामने आते रहे हैं. ऐसे में मासूम बच्चों के यौन उत्पीड़न और दुष्कर्म के दोषियों को सजा दिलाने के लिए पॉक्सो एक्ट के तहत कैसे कार्रवाई करनी है इसे लेकर रांची में एक महत्वपूर्ण कार्यशाला का आयोजन किया गया.

कार्यशाला का आयोजन

पॉक्सो एक्ट से जुड़े कानून की बारीकियों को समझाया गया
इस कार्यशाला में बालमित्र थाना के पुलिसकर्मियों को पोक्सो एक्ट से जुड़े कानून की बारीकियों को समझाया गया, ताकि वे बेहतर अनुसंधान कर आरोपियों को सजा दिला सकें. स्वयं सेवी संस्था चाइल्ड इन नीड इंस्टिट्यूट(CINI) और जिला बाल संरक्षण इकाई, रांची के संयुक्त तत्वाधान में रांची जिले के पुलिस थानों में पदस्थापित बाल कल्याण पुलिस पदाधिकारियों बच्चों के लिए बेहतर काम करने के लिए जेजे और पॉक्सो एक्ट की बारीकियां सिखाई गई.

ये भी पढ़ें- पुलिस ने चेकिंग के लिए रोका तो कार सवार ने 2 जवानों को रौंद डाला, 1 की मौत, एक घायल

चौंकाने वाले आंकड़े
मासूम बच्चों के यौन उत्पीड़न और दुष्कर्म के पिछले सालों के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. झारखंड में पिछले एक साल में अलग-अलग जिलों से 37 ऐसे मामले आए हैं, जिनमें बच्चों का यौन उत्पीड़न किया गया है. एक अप्रैल 2018 से लेकर 31 मार्च 2019 के आंकड़े की माने तो झारखंड में फीमेल ट्रैफिकिंग के 176 मामले सामने आए हैं, जबकि मेल ट्रैफिकिंग के 33 मामले आए हैं.

पोक्सो एक्ट के तहत मामले
वहीं, इस दौरान पॉक्सो एक्ट के तहत फीमेल के 37 और मेल के 10 मामले थानों में दर्ज किए गए हैं. यह मात्र वही मामले हैं जो थानों में दर्ज हुए हैं. ऐसे कई मामले भी जानकारी में आए हैं जिन्हें थाने तक पहुंचने से रोक दिया गया. अगर उन मामलों को भी जोड़ दिया जाए तो यह संख्या 100 से भी अधिक होगी.

पुलिस की सहायता जरुरी
स्वयं सेवी संस्था चाइल्ड इन नीड इंस्टिट्यूट (CINI) की निपा बसु के अनुसार पुलिस की सहायता से ही बच्चों के अंदर हिम्मत लाई जा सकती है, ताकि वे अपने ऊपर होने वाले घटनाओं का जिक्र कर सकें.

बच्चों से बेहतर संवाद कायम करें
आमतौर पर बच्चों के साथ उनके करीबी यौन उत्पीड़न करते हैं. ऐसे मामले थानों तक बहुत कम ही पहुंच पाते हैं. यही वजह है की रांची एसएसपी अनीश गुप्ता ने बच्चों के लैंगिक शोषण से बचाव के लिए बच्चों से बेहतर संवाद स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने कहा कि अगर बच्चों के साथ होने वाले अपराध को रोकना है तो सभी को बच्चों से बात करनी होगी. बच्चों को जागरूक करना होगा ताकि बच्चे अपने साथ होने वाले व्यवहार के बारे में अभिभावकों को ठीक से बता सकें. बालमित्र थाने से आए पुलिसकर्मियों को एसएसपी ने पॉक्सो एक्ट की महत्वपूर्ण बातों को भी स्पष्ट किया.

पसंद की जगह पर दर्ज करें बयान
कार्यशाला के दौरान बताया गया कि पॉक्सो एक्ट की जांच उप निरीक्षक स्तर या इससे ऊपर के अधिकारी कर सकते हैं. बच्चों के बयान लेने उन्हें थाने नहीं बुलाया जाए. बल्कि बच्चों की पसंद की जगह पर सादा कपड़ों में जाकर पुलिस अधिकारी बयान दर्ज करें. एक खास बात यह भी बताई गई कि पीड़ित बच्चों की भाषा में ही धारा 164 के तहत बयान कराए जाएं. बयान की भाषा में बदलाव नहीं करें.

ये भी पढ़ें- टाटा मोटर्स के कर्मचारी ने की आत्महत्या, फांसी लगाकर दी जान

अपनी समझ और रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करें
पॉक्सो एक्ट के मामलों की जांच में सबसे बड़ी बाधा उम्र के निर्धारण को लेकर होती है. कई मामलों में पीड़ित नाबालिग की उम्र का निर्धारण करने में कागजी दस्तावेज नहीं उपलब्ध हो पाते हैं. ऐसे में मेडिकल बोर्ड से परीक्षण कराया जाता है. जिसमें उम्र 17 या 18 वर्ष बताई जाती है. ऐसे में कार्यवाही में पेंच फंसती है. 18 से कम हुआ तो पॉक्सो के दायरे में आएगा और ज्यादा हुआ तो आईपीसी के तहत केस बनेगा. इस सवाल पर अधिकारियों ने कहा कि मेडिकल साइंस में एक साल कम ज्यादा ही बता सकते हैं. अधिकारी अपनी समझ और रिपोर्ट के आधार पर काम करें.

रांची: मानव तस्करी के लिए बदनाम झारखंड में अक्सर मासूम बच्चों के यौन उत्पीड़न और दुष्कर्म के मामले लगातार सामने आते रहे हैं. ऐसे में मासूम बच्चों के यौन उत्पीड़न और दुष्कर्म के दोषियों को सजा दिलाने के लिए पॉक्सो एक्ट के तहत कैसे कार्रवाई करनी है इसे लेकर रांची में एक महत्वपूर्ण कार्यशाला का आयोजन किया गया.

कार्यशाला का आयोजन

पॉक्सो एक्ट से जुड़े कानून की बारीकियों को समझाया गया
इस कार्यशाला में बालमित्र थाना के पुलिसकर्मियों को पोक्सो एक्ट से जुड़े कानून की बारीकियों को समझाया गया, ताकि वे बेहतर अनुसंधान कर आरोपियों को सजा दिला सकें. स्वयं सेवी संस्था चाइल्ड इन नीड इंस्टिट्यूट(CINI) और जिला बाल संरक्षण इकाई, रांची के संयुक्त तत्वाधान में रांची जिले के पुलिस थानों में पदस्थापित बाल कल्याण पुलिस पदाधिकारियों बच्चों के लिए बेहतर काम करने के लिए जेजे और पॉक्सो एक्ट की बारीकियां सिखाई गई.

ये भी पढ़ें- पुलिस ने चेकिंग के लिए रोका तो कार सवार ने 2 जवानों को रौंद डाला, 1 की मौत, एक घायल

चौंकाने वाले आंकड़े
मासूम बच्चों के यौन उत्पीड़न और दुष्कर्म के पिछले सालों के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. झारखंड में पिछले एक साल में अलग-अलग जिलों से 37 ऐसे मामले आए हैं, जिनमें बच्चों का यौन उत्पीड़न किया गया है. एक अप्रैल 2018 से लेकर 31 मार्च 2019 के आंकड़े की माने तो झारखंड में फीमेल ट्रैफिकिंग के 176 मामले सामने आए हैं, जबकि मेल ट्रैफिकिंग के 33 मामले आए हैं.

पोक्सो एक्ट के तहत मामले
वहीं, इस दौरान पॉक्सो एक्ट के तहत फीमेल के 37 और मेल के 10 मामले थानों में दर्ज किए गए हैं. यह मात्र वही मामले हैं जो थानों में दर्ज हुए हैं. ऐसे कई मामले भी जानकारी में आए हैं जिन्हें थाने तक पहुंचने से रोक दिया गया. अगर उन मामलों को भी जोड़ दिया जाए तो यह संख्या 100 से भी अधिक होगी.

पुलिस की सहायता जरुरी
स्वयं सेवी संस्था चाइल्ड इन नीड इंस्टिट्यूट (CINI) की निपा बसु के अनुसार पुलिस की सहायता से ही बच्चों के अंदर हिम्मत लाई जा सकती है, ताकि वे अपने ऊपर होने वाले घटनाओं का जिक्र कर सकें.

बच्चों से बेहतर संवाद कायम करें
आमतौर पर बच्चों के साथ उनके करीबी यौन उत्पीड़न करते हैं. ऐसे मामले थानों तक बहुत कम ही पहुंच पाते हैं. यही वजह है की रांची एसएसपी अनीश गुप्ता ने बच्चों के लैंगिक शोषण से बचाव के लिए बच्चों से बेहतर संवाद स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने कहा कि अगर बच्चों के साथ होने वाले अपराध को रोकना है तो सभी को बच्चों से बात करनी होगी. बच्चों को जागरूक करना होगा ताकि बच्चे अपने साथ होने वाले व्यवहार के बारे में अभिभावकों को ठीक से बता सकें. बालमित्र थाने से आए पुलिसकर्मियों को एसएसपी ने पॉक्सो एक्ट की महत्वपूर्ण बातों को भी स्पष्ट किया.

पसंद की जगह पर दर्ज करें बयान
कार्यशाला के दौरान बताया गया कि पॉक्सो एक्ट की जांच उप निरीक्षक स्तर या इससे ऊपर के अधिकारी कर सकते हैं. बच्चों के बयान लेने उन्हें थाने नहीं बुलाया जाए. बल्कि बच्चों की पसंद की जगह पर सादा कपड़ों में जाकर पुलिस अधिकारी बयान दर्ज करें. एक खास बात यह भी बताई गई कि पीड़ित बच्चों की भाषा में ही धारा 164 के तहत बयान कराए जाएं. बयान की भाषा में बदलाव नहीं करें.

ये भी पढ़ें- टाटा मोटर्स के कर्मचारी ने की आत्महत्या, फांसी लगाकर दी जान

अपनी समझ और रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करें
पॉक्सो एक्ट के मामलों की जांच में सबसे बड़ी बाधा उम्र के निर्धारण को लेकर होती है. कई मामलों में पीड़ित नाबालिग की उम्र का निर्धारण करने में कागजी दस्तावेज नहीं उपलब्ध हो पाते हैं. ऐसे में मेडिकल बोर्ड से परीक्षण कराया जाता है. जिसमें उम्र 17 या 18 वर्ष बताई जाती है. ऐसे में कार्यवाही में पेंच फंसती है. 18 से कम हुआ तो पॉक्सो के दायरे में आएगा और ज्यादा हुआ तो आईपीसी के तहत केस बनेगा. इस सवाल पर अधिकारियों ने कहा कि मेडिकल साइंस में एक साल कम ज्यादा ही बता सकते हैं. अधिकारी अपनी समझ और रिपोर्ट के आधार पर काम करें.

Intro:मानव तस्करी के लिए बदनाम झारखंड में अक्सर मासूम बच्चों के यौन उत्पीड़न और रेप के मामले लगातार सामने आते रहे हैं। ऐसे में मासूम बच्चों के यौन उत्पीड़न और रेप के दोषियों को सजा दिलाने के लिए पॉक्सो एक्ट के तहत कैसे कार्रवाई करनी है इसे लेकर रांची में एक महत्वपूर्ण कार्यशाला का आयोजन किया गया इस कार्यशाला में बालमित्र थानों के पुलिस कर्मियों को पोक्सो एक्ट और जैसे एक से जुड़े कानून की बारीकियों को समझाया गया ताकि वे बेहतर अनुसंधान कर आरोपियों को सजा दिला सके।स्वयं सेवी संस्था चाइल्ड इन नीड इंस्टिट्यूट(CINI) एवम जिला बाल संरक्षण इकाई, रांची के संयुक्त तत्वाधान में रांची जिले के पुलिस थानों में पदस्थापित बाल कल्याण पुलिस पदाधिकारियों बच्चों के लिए बेहतर काम करने के लिए जेजे और पोक्सो एक्ट की बारीकियां सिखाई गई।


चौकाने वाले आंकड़े

मासूम बच्चों के यौन उत्पीड़न और रेप के पिछले सालों के आंकड़े चौंकाने वाले हैं । झारखंड में पिछले एक साल में अलग-अलग जिलों से 37 ऐसे मामले आए हैं ,जिनमें बच्चों का यौन उत्पीड़न किया गया है। एक अप्रैल 2018 से लेकर 31 मार्च 2019 के आंकड़े की मानें तो झारखंड में फीमेल ट्रैफिकिंग के 176 मामले सामने आए हैं , जबकि मेल ट्रैफिकिंग के 33 मामले आए हैं। वही इस दौरान पोक्सो एक्ट के तहत फीमेल के 37 और मेल के 10 मामले थानों में दर्ज किए गए हैं।यह मात्र वही मामले हैं जो थानों में दर्ज हुए हैं ऐसे कई मामले भी जानकारी में आए हैं जिन्हें थाने तक पहुंचने से रोक दिया गया। अगर उन मामलों को भी जोड़ दिया जाए तो यह संख्या 100 से भी अधिक होगी।
स्वयं सेवी संस्था चाइल्ड इन नीड इंस्टिट्यूट(CINI) की निपा बसु के अनुसार पुलिस के सहायता से ही बच्चों के अंदर हिम्मत लाई जा सकती है ताकि वे अपने ऊपर होने वाले घटनाओं का जिक्र कर सकें।

बाइट - निपा घोष , सदस्य ,सिनी

बच्चो से बेहतर संवाद कायम करे
आमतौर पर बच्चों के साथ उनके करीबी यौन उत्पीड़न करते हैं ऐसे मामले थानों तक बहुत कम ही पहुंच पाते हैं।यही वजह है की रांची एसएसपी अनीस गुप्ता ने बच्चों के लैंगिक शोषण से बचाव के लिए बच्चों से बेहतर संवाद स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि अगर बच्चों के साथ होने वाले अपराध को रोकना है तो सभी को बच्चों से बात करना होगी। बच्चों को जागरूक करना होता ताकि बच्चे अपने साथ होने वाले व्यवहार के बारे में अभिभावकों को ठीक से बता सकें। बालमित्र थाने से आए पुलिसकर्मियों को एसएसपी ने पॉक्सो एक्ट की महत्वपूर्ण बातों को भी स्पष्ट किया।ताकि उन्हें केस के अनुसंधान में सहायता मिल सके। रांची के सीनियर एसपी अनीश गुप्ता के अनुसार किसी भी तरह के मामले सबसे पहले थानों में पहुंचते हैं उसके बाद वे वरीय अधिकारियों के पास जाते हैं ऐसे में अगर बालमित्र में पदस्थापित पुलिसकर्मी जेजे और पोक्सो एक्ट के बारे क्यों को जानेंगे तो बेहतर अनुसंधान कर रिजल्ट दे पाएंगे।

बाइट - अनीश गुप्ता ,एसएसपी रांची



पसंद की जगह पर दर्ज करें बयान

कार्यशाला के दौरान बताया गया कि पॉक्सो एक्ट की जांच उप निरीक्षक स्तर या इससे ऊपर के अधिकारी कर सकते हैं। बच्चों के बयान लेने उन्हें थाने नहीं बुलाया जाए। बल्कि बच्चों की पसंद की जगह पर सादा कपड़ों में जाकर पुलिस अधिकारी बयान दर्ज करें। एक खास बात यह भी बताई गई कि पीडि़त बच्चों की भाषा में ही धारा 164 के तहत बयान कराए जाएं। बयान की भाषा में बदलाव नहीं करें।

आयु निर्धारण में पेंच , अपनी समझ और रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करें

पॉक्सो एक्ट के मामलों की जांच में सबसे बड़ी बाधा उम्र के निर्धारण को लेकर होती है।कई मामलों  में पीडि़त नाबालिग की उम्र का निर्धारण करने कागजी दस्तावेज नहीं उपलब्ध हो पाते हैं। एेसे में मेडिकल बोर्ड से परीक्षण कराया जाता है। जिसमें उम्र 17 या 18 वर्ष बताई जाती है। एेसे में कार्रवाही में पेंच फंसती है। 18 से कम हुआ तो पॉक्सो के दायरे में आएगा और ज्यादा हुआ तो आइपीसी के तहत केस बनेगा। इस सवाल पर अधिकारियों ने कहा कि मेडिकल साइंस में एक साल कम ज्यादा ही बता सकते हैं। एेसे में अधिकारी अपनी समझ और रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाही करें।Body:1Conclusion:2
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.