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संथाल पर 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति का पड़ेगा प्रभाव, 05 सीटों पर कांग्रेस का है कब्जा

हेमंत सोरेन सरकार ने 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति (Sthaniya niti based on 1932 Khatian) का प्रस्ताव पारित कर दिया है. सरकार के इस फैसले पर संथाल परगना में महागठबंधन को फायदा हो सकता है. संथाल में फिलहाल कांग्रेस का 05 सीटों पर कब्जा है. झामुमो के साथ मिलकर लड़ने से कांग्रेस का पलड़ा भारी रह सकता है.

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Published : Sep 21, 2022, 9:12 PM IST

दुमका: 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति (Sthaniya niti based on 1932 Khatian) के मुद्दे पर संथाल में कांग्रेस को फायदा हो सकता है. झारखंड में संथालपरगना प्रमंडल के 18 में 05 सीटों पर महागठबंधन में शामिल घटक दल कांग्रेस का कब्जा है. वर्ष 2019 में सम्पन्न विधानसभा के चुनाव में संथाल क्षेत्र में भाजपा के विजय रथ को रोकने के लिए झामुमो, कांग्रेस और राजद ने महागठबंधन बनाया था. इस वजह से लंबे अर्से के बाद कांग्रेस ने चार सीटों पर जीत हासिल की. जबकि झाविमो के टिकट पर चुनाव जीतने वाले प्रदीप यादव कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. इस तरह इस प्रमंडल के पांच सीटों पर कांग्रेस का कब्जा हो गया. इसमें पाकुड़, महगामा, जरमुंडी, जामताड़ा और पौड़ैयाहाट विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं.

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महागठबंधन में झामुमो का साथ मिलने से कांग्रेस को मिली मजबूती: 2019 के विधानसभा चुनाव में झामुमो, कांग्रेस और राजद के मिलकर चुनाव लड़ने और आदिवासी और अल्पसंख्यक मतदाताओं के गोलबंदी की वजह से कांग्रेस ने पिछले चुनाव के मुकाबले चार सीटों पर जीत हासिल की. जबकि 2014 के आम चुनाव की बात करें तो उस वक्त कांग्रेस के पास इस क्षेत्र की तीन सीटें जीती थीं पाकुड़, जरमुंडी और जामताड़ा. 2019 में कांग्रेस महगामा सीट भाजपा से झपटने में सफल हुई. दरअसल महागठबंधन के बल पर कांग्रेस अपने जनाधार को बढ़ाने में सफल रही थी.

क्या है सीटों का समीकरण , 1932 का दांव कितना रहेगा प्रभावी: कांग्रेस के पास वर्तमान में संथाल की पांच सीटों महागामा, पोड़ैयाहाट, जरमुंडी, पाकुड़ और जामताड़ा पर व्यक्तिगत छवि, स्थानीय मुद्दे के साथ-साथ हिंदू-मुस्लिम समीकरण भी काफी हावी रहता है. सबसे पहले हम बात करें गोड्डा जिले के पोड़ैयाहाट विधानसभा क्षेत्र की तो यहां के विधायक प्रदीप यादव हैं. प्रदीप यादव जिन्होंने भाजपा से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी. वे लगातार पांच बार से विधायक बन रहे हैं. हालांकि इस बीच उन्होंने भाजपा छोड़ा और झाविमो में आ गए, लेकिन उनकी जीत का सिलसिला जारी रहा .

प्रदीप यादव 2019 में सम्पन्न चुनाव के कुछ महीने बाद ही झाविमो को तिलांजलि देकर कांग्रेस में शामिल हो गये. दो साल पूर्व कांग्रेस में शामिल हुए प्रदीप यादव पोड़ैयाहाट से 2000 से 2019 तक भाजपा, झाविमो के टिकट पर लगातार पांच चुनाव जीतते रहे हैं. उन्हें अन्य वर्गों के साथ आदिवासी मतदाताओं का भी समर्थन मिलता रहा है. पोड़ैयाहाट आदिवासी और मूलवासी मतदाता बहुल क्षेत्र है. ऐसे में 1932 का दाव यहां पर सफल साबित हो सकता है. प्रदीप यादव जो यहां से लगातार पांच बार विधायक चुने गए हैं और वर्तमान में कांग्रेस में शामिल हैं, आगामी चुनाव में वे महागठबंधन प्रत्याशी होते हैं तो उनकी दावेदारी काफी मजबूत मानी जाएगी.

ये भी पढ़ें: 1932 का तीर...दुविधा में हाथ और लालटेन!

जरमुंडी विधानसभा: दुमका जिले के जरमुंडी विधानसभा से वर्तमान समय में झारखंड सरकार के कृषि मंत्री बादल पत्रलेख विधायक हैं. उन्होंने 2014 और 2019 दोनों में जीत का परचम लहराया था. हालांकि उनके जीत का अंतर 4000 से कम का था. जरमुंडी सीट पर स्थानीय मुद्दे और जातिगत समीकरण हावी होता आया है. अगर हम साल 2000 की बात करें तो यहां से भाजपा के टिकट पर देवेंद्र कुंवर विधायक बने जो खेतौरी समाज के हैं. इनकी संख्या लगभग 15 हजार है. 2005 में यहां की जनता ने तो राजनीति में भाग्य आजमाने आए निर्दलीय उम्मीदवार हरिनारायण राय को अपना विधायक चुन लिया. हालांकि इस जीत में उनकी जातिगत वोट घटवाल समुदाय, जिनकी संख्या यहां लगभग 18 हजार है उनका काफी योगदान था.

2009 में हरिनारायण राय लगातार दूसरी बार निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर विजयी हुए. 2014 में हरिनारायण राय ने झामुमो का दामन थामा, लेकिन इस बार कांग्रेस के प्रत्याशी बादल पत्रलेख ने उन्हें लगभग ढाई हजार मतों से शिकस्त दी. फिर से 2019 के चुनाव में बादल पत्रलेख विजयी हुए और उन्होंने भाजपा प्रत्याशी देवेंद्र कुंवर को लगभग चार हजार मतों से हराया. इस तरह से हम देखते हैं कि जरमुंडी विधानसभा में स्थानीय मुद्दे , जातिगत समीकरण और व्यक्तिगत छवि काफी हावी रहते हैं, लेकिन आने वाले चुनाव में यहां भी आदिवासी - मूलवासी मतलब 1932 का फैक्टर प्रभावी रहेगा, क्योंकि इसमें लगभग 75 % लोग कवर होंगे, जिससे महागठबंधन की स्थिति मजबूत रहने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

पाकुड़ विधानसभा: पाकुड़ विधानसभा से वर्तमान समय में राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम विधायक हैं. 2014 में भी उन्होंने जीत दर्ज की थी. यह क्षेत्र मुस्लिम बहुल माना जाता है. यहां की कुल मतदाता 03 लाख 20 हजार के करीब है. उसमें आधे से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं, जबकि हिंदुओं की संख्या लगभग एक लाख, 30 हजार आदिवासी और बाकी अन्य जातियों के मतदाता हैं.

1932 के खतियान का मामला हो या फिर कोई अन्य समीकरण यहां हमेशा हिंदू-मुस्लिम समीकरण ही प्रभावी रहता. हालांकि सन 2000 में यहां से भाजपा ने परचम लहराया था, पर यह तब संभव हुआ था जब मुस्लिम और आदिवासी वोटों में बिखराव हुआ था. 2005 में कांग्रेस से आलमगीर आलम, 2009 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के अकील अख्तर और 2014 में आलमगीर आलम जीते. 2019 के चुनाव में तो महागठबंधन की ताकत नजर आई थी और साझा उम्मीदवार के तौर पर कांग्रेस के टिकट से आलमगीर आलम ने लगभग 1 लाख 28 हज़ार मत लाकर लगभग 65 हज़ार मतों से भाजपा को हराया. ऐसे में पाकुड़ विधानसभा में यह साफ है कि यहाँ 1932 से ज्यादा जातिगत समीकरण हावी रहेंगे.

जामताड़ा विधानसभा: जामताड़ा विधानसभा के वर्तमान समय में कांग्रेस के इरफान अंसारी विधायक हैं. उन्होंने लगातार दूसरी बार चुनाव जीता है. हालांकि यह सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती है. एकीकृत बिहार के समय इरफान अंसारी के पिता फुरकान अंसारी कई बार चुने गए. 2005 में भाजपा के विष्णु भैया ने जीत दर्ज की थी. हालांकि बाद में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा का दामन थामा और 2009 में झामुमो की टिकट पर विधायक बने. झारखंड का जामताड़ा क्षेत्र भी मुस्लिम बहुल माना जाता है, ऐसे में यहां भी 1932 के खतियान लागू होने से ज्यादा असरदार हिंदू-मुस्लिम समीकरण है और आगे भी रहेगा. भाजपा को तब ही फायदा मिल सकता है जब मुस्लिम वोटों का बिखराव हो.



महागामा विधानसभा: गोड्डा जिले के महागामा विधानसभा के चुनाव में सामयिक मुद्दे, व्यक्तिगत छवि और जातिगत समीकरण हावी रहते हैं. 2000 और 2005 के चुनाव में भाजपा के अशोक कुमार ने जीत दर्ज की थी. 2009 में कांग्रेस के राजेश रंजन विजयी हुए. 2014 में फिर से एक बार भाजपा अशोक कुमार विधानसभा में पहुंचे. 2019 में कांग्रेस के टिकट पर दीपिका पांडे सिंह ने अपना खाता खोला. यह साफ है कि यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच में कांटे की टक्कर रही है. खतियान आधारित स्थानीयता के लागू होने से निश्चित रूप से महागठबंधन के प्रत्याशी को लाभ मिलेगा क्योंकि महागामा विधानसभा क्षेत्र में लगभग 85% आबादी 1932 को कवर कर रही है.

क्या कहते हैं मंत्री आलमगीर आलम: 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता धरातल पर उतरने के बाद संथाल के पांच सीट जिस पर अभी कांग्रेस का कब्जा है. वहां आगे क्या स्थिति रहेगी, इस संबंध में हमने झारखंड सरकार के खाद्य-आपूर्ति मंत्री आलमगीर आलम से बात की. उन्होंने कहा कि सभी राज्यों का अपना डोमिसाइल होता है हम लोगों ने भी एक तय किया है. सरकार का उद्देश्य राज्य और राज्य का नागरिकों का समग्र विकास करना है. अभी से वे 1932 के खतियान के बाद के नफा-नुकसान का आकलन नहीं कर रहे हैं.


क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक: इस पूरे मामले पर वरिष्ठ पत्रकार सह राजनीतिक विश्लेषक शिव शंकर चौधरी का कहना है कि 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति के धरातल पर उतरने के बाद स्थिति काफी बदल जाएगी. यहां की बड़ी आबादी इसके कवरेज क्षेत्र में है जिसका लाभ महागठबंधन को मिलेगा. इसके साथ ही इसके सभी घटक दल तालमेल का चुनाव लड़ती है तो भाजपा को उन्हें हराने में काफी मेहनत और समीकरण लगानी होगी. खासकर जामताड़ा और पाकुड़ तो महागठबंधन का अभेद किला साबित हो सकता है. वोटों का बिखराव दूसरे दलों के लिए संजीवनी का काम करेगी.


भाजपा के मुद्दे पर होगी नजर: संथाल में कांग्रेस के पास जो 5 सीटें हैं उसपर आने वाले चुनाव में भी वह मजबूती से अपनी दावेदारी पेश करेगी, लेकिन जहां तक भाजपा का सवाल है सभी चुनाव में उनके पास नए और प्रभावशाली मुद्दे होते हैं. आगामी चुनाव में भाजपा किस मुद्दे को उभारेगा यह भी देखना दिलचस्प होगा.

संथाल में कांग्रेस के पास जो 5 सीटें हैं उसपर आने वाले चुनाव में भी वह मजबूती से अपनी दावेदारी पेश करेगी, लेकिन जहां तक भाजपा का सवाल है सभी चुनाव में उनके पास नए और प्रभावशाली मुद्दे होते हैं. ऐसे में आगामी चुनाव में क्या होगा ये देखना दिलचस्प होगा.

दुमका: 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति (Sthaniya niti based on 1932 Khatian) के मुद्दे पर संथाल में कांग्रेस को फायदा हो सकता है. झारखंड में संथालपरगना प्रमंडल के 18 में 05 सीटों पर महागठबंधन में शामिल घटक दल कांग्रेस का कब्जा है. वर्ष 2019 में सम्पन्न विधानसभा के चुनाव में संथाल क्षेत्र में भाजपा के विजय रथ को रोकने के लिए झामुमो, कांग्रेस और राजद ने महागठबंधन बनाया था. इस वजह से लंबे अर्से के बाद कांग्रेस ने चार सीटों पर जीत हासिल की. जबकि झाविमो के टिकट पर चुनाव जीतने वाले प्रदीप यादव कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. इस तरह इस प्रमंडल के पांच सीटों पर कांग्रेस का कब्जा हो गया. इसमें पाकुड़, महगामा, जरमुंडी, जामताड़ा और पौड़ैयाहाट विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं.

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महागठबंधन में झामुमो का साथ मिलने से कांग्रेस को मिली मजबूती: 2019 के विधानसभा चुनाव में झामुमो, कांग्रेस और राजद के मिलकर चुनाव लड़ने और आदिवासी और अल्पसंख्यक मतदाताओं के गोलबंदी की वजह से कांग्रेस ने पिछले चुनाव के मुकाबले चार सीटों पर जीत हासिल की. जबकि 2014 के आम चुनाव की बात करें तो उस वक्त कांग्रेस के पास इस क्षेत्र की तीन सीटें जीती थीं पाकुड़, जरमुंडी और जामताड़ा. 2019 में कांग्रेस महगामा सीट भाजपा से झपटने में सफल हुई. दरअसल महागठबंधन के बल पर कांग्रेस अपने जनाधार को बढ़ाने में सफल रही थी.

क्या है सीटों का समीकरण , 1932 का दांव कितना रहेगा प्रभावी: कांग्रेस के पास वर्तमान में संथाल की पांच सीटों महागामा, पोड़ैयाहाट, जरमुंडी, पाकुड़ और जामताड़ा पर व्यक्तिगत छवि, स्थानीय मुद्दे के साथ-साथ हिंदू-मुस्लिम समीकरण भी काफी हावी रहता है. सबसे पहले हम बात करें गोड्डा जिले के पोड़ैयाहाट विधानसभा क्षेत्र की तो यहां के विधायक प्रदीप यादव हैं. प्रदीप यादव जिन्होंने भाजपा से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी. वे लगातार पांच बार से विधायक बन रहे हैं. हालांकि इस बीच उन्होंने भाजपा छोड़ा और झाविमो में आ गए, लेकिन उनकी जीत का सिलसिला जारी रहा .

प्रदीप यादव 2019 में सम्पन्न चुनाव के कुछ महीने बाद ही झाविमो को तिलांजलि देकर कांग्रेस में शामिल हो गये. दो साल पूर्व कांग्रेस में शामिल हुए प्रदीप यादव पोड़ैयाहाट से 2000 से 2019 तक भाजपा, झाविमो के टिकट पर लगातार पांच चुनाव जीतते रहे हैं. उन्हें अन्य वर्गों के साथ आदिवासी मतदाताओं का भी समर्थन मिलता रहा है. पोड़ैयाहाट आदिवासी और मूलवासी मतदाता बहुल क्षेत्र है. ऐसे में 1932 का दाव यहां पर सफल साबित हो सकता है. प्रदीप यादव जो यहां से लगातार पांच बार विधायक चुने गए हैं और वर्तमान में कांग्रेस में शामिल हैं, आगामी चुनाव में वे महागठबंधन प्रत्याशी होते हैं तो उनकी दावेदारी काफी मजबूत मानी जाएगी.

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जरमुंडी विधानसभा: दुमका जिले के जरमुंडी विधानसभा से वर्तमान समय में झारखंड सरकार के कृषि मंत्री बादल पत्रलेख विधायक हैं. उन्होंने 2014 और 2019 दोनों में जीत का परचम लहराया था. हालांकि उनके जीत का अंतर 4000 से कम का था. जरमुंडी सीट पर स्थानीय मुद्दे और जातिगत समीकरण हावी होता आया है. अगर हम साल 2000 की बात करें तो यहां से भाजपा के टिकट पर देवेंद्र कुंवर विधायक बने जो खेतौरी समाज के हैं. इनकी संख्या लगभग 15 हजार है. 2005 में यहां की जनता ने तो राजनीति में भाग्य आजमाने आए निर्दलीय उम्मीदवार हरिनारायण राय को अपना विधायक चुन लिया. हालांकि इस जीत में उनकी जातिगत वोट घटवाल समुदाय, जिनकी संख्या यहां लगभग 18 हजार है उनका काफी योगदान था.

2009 में हरिनारायण राय लगातार दूसरी बार निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर विजयी हुए. 2014 में हरिनारायण राय ने झामुमो का दामन थामा, लेकिन इस बार कांग्रेस के प्रत्याशी बादल पत्रलेख ने उन्हें लगभग ढाई हजार मतों से शिकस्त दी. फिर से 2019 के चुनाव में बादल पत्रलेख विजयी हुए और उन्होंने भाजपा प्रत्याशी देवेंद्र कुंवर को लगभग चार हजार मतों से हराया. इस तरह से हम देखते हैं कि जरमुंडी विधानसभा में स्थानीय मुद्दे , जातिगत समीकरण और व्यक्तिगत छवि काफी हावी रहते हैं, लेकिन आने वाले चुनाव में यहां भी आदिवासी - मूलवासी मतलब 1932 का फैक्टर प्रभावी रहेगा, क्योंकि इसमें लगभग 75 % लोग कवर होंगे, जिससे महागठबंधन की स्थिति मजबूत रहने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

पाकुड़ विधानसभा: पाकुड़ विधानसभा से वर्तमान समय में राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम विधायक हैं. 2014 में भी उन्होंने जीत दर्ज की थी. यह क्षेत्र मुस्लिम बहुल माना जाता है. यहां की कुल मतदाता 03 लाख 20 हजार के करीब है. उसमें आधे से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं, जबकि हिंदुओं की संख्या लगभग एक लाख, 30 हजार आदिवासी और बाकी अन्य जातियों के मतदाता हैं.

1932 के खतियान का मामला हो या फिर कोई अन्य समीकरण यहां हमेशा हिंदू-मुस्लिम समीकरण ही प्रभावी रहता. हालांकि सन 2000 में यहां से भाजपा ने परचम लहराया था, पर यह तब संभव हुआ था जब मुस्लिम और आदिवासी वोटों में बिखराव हुआ था. 2005 में कांग्रेस से आलमगीर आलम, 2009 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के अकील अख्तर और 2014 में आलमगीर आलम जीते. 2019 के चुनाव में तो महागठबंधन की ताकत नजर आई थी और साझा उम्मीदवार के तौर पर कांग्रेस के टिकट से आलमगीर आलम ने लगभग 1 लाख 28 हज़ार मत लाकर लगभग 65 हज़ार मतों से भाजपा को हराया. ऐसे में पाकुड़ विधानसभा में यह साफ है कि यहाँ 1932 से ज्यादा जातिगत समीकरण हावी रहेंगे.

जामताड़ा विधानसभा: जामताड़ा विधानसभा के वर्तमान समय में कांग्रेस के इरफान अंसारी विधायक हैं. उन्होंने लगातार दूसरी बार चुनाव जीता है. हालांकि यह सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती है. एकीकृत बिहार के समय इरफान अंसारी के पिता फुरकान अंसारी कई बार चुने गए. 2005 में भाजपा के विष्णु भैया ने जीत दर्ज की थी. हालांकि बाद में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा का दामन थामा और 2009 में झामुमो की टिकट पर विधायक बने. झारखंड का जामताड़ा क्षेत्र भी मुस्लिम बहुल माना जाता है, ऐसे में यहां भी 1932 के खतियान लागू होने से ज्यादा असरदार हिंदू-मुस्लिम समीकरण है और आगे भी रहेगा. भाजपा को तब ही फायदा मिल सकता है जब मुस्लिम वोटों का बिखराव हो.



महागामा विधानसभा: गोड्डा जिले के महागामा विधानसभा के चुनाव में सामयिक मुद्दे, व्यक्तिगत छवि और जातिगत समीकरण हावी रहते हैं. 2000 और 2005 के चुनाव में भाजपा के अशोक कुमार ने जीत दर्ज की थी. 2009 में कांग्रेस के राजेश रंजन विजयी हुए. 2014 में फिर से एक बार भाजपा अशोक कुमार विधानसभा में पहुंचे. 2019 में कांग्रेस के टिकट पर दीपिका पांडे सिंह ने अपना खाता खोला. यह साफ है कि यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच में कांटे की टक्कर रही है. खतियान आधारित स्थानीयता के लागू होने से निश्चित रूप से महागठबंधन के प्रत्याशी को लाभ मिलेगा क्योंकि महागामा विधानसभा क्षेत्र में लगभग 85% आबादी 1932 को कवर कर रही है.

क्या कहते हैं मंत्री आलमगीर आलम: 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता धरातल पर उतरने के बाद संथाल के पांच सीट जिस पर अभी कांग्रेस का कब्जा है. वहां आगे क्या स्थिति रहेगी, इस संबंध में हमने झारखंड सरकार के खाद्य-आपूर्ति मंत्री आलमगीर आलम से बात की. उन्होंने कहा कि सभी राज्यों का अपना डोमिसाइल होता है हम लोगों ने भी एक तय किया है. सरकार का उद्देश्य राज्य और राज्य का नागरिकों का समग्र विकास करना है. अभी से वे 1932 के खतियान के बाद के नफा-नुकसान का आकलन नहीं कर रहे हैं.


क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक: इस पूरे मामले पर वरिष्ठ पत्रकार सह राजनीतिक विश्लेषक शिव शंकर चौधरी का कहना है कि 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति के धरातल पर उतरने के बाद स्थिति काफी बदल जाएगी. यहां की बड़ी आबादी इसके कवरेज क्षेत्र में है जिसका लाभ महागठबंधन को मिलेगा. इसके साथ ही इसके सभी घटक दल तालमेल का चुनाव लड़ती है तो भाजपा को उन्हें हराने में काफी मेहनत और समीकरण लगानी होगी. खासकर जामताड़ा और पाकुड़ तो महागठबंधन का अभेद किला साबित हो सकता है. वोटों का बिखराव दूसरे दलों के लिए संजीवनी का काम करेगी.


भाजपा के मुद्दे पर होगी नजर: संथाल में कांग्रेस के पास जो 5 सीटें हैं उसपर आने वाले चुनाव में भी वह मजबूती से अपनी दावेदारी पेश करेगी, लेकिन जहां तक भाजपा का सवाल है सभी चुनाव में उनके पास नए और प्रभावशाली मुद्दे होते हैं. आगामी चुनाव में भाजपा किस मुद्दे को उभारेगा यह भी देखना दिलचस्प होगा.

संथाल में कांग्रेस के पास जो 5 सीटें हैं उसपर आने वाले चुनाव में भी वह मजबूती से अपनी दावेदारी पेश करेगी, लेकिन जहां तक भाजपा का सवाल है सभी चुनाव में उनके पास नए और प्रभावशाली मुद्दे होते हैं. ऐसे में आगामी चुनाव में क्या होगा ये देखना दिलचस्प होगा.

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