रांचीः लोहरदगा में 2013 में पदस्थापित जिला खनन पदाधिकारी की याचिका पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. अदालत ने इस मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद झारखंड सरकार के खनन विभाग की ओर से दिए गए विभागीय कार्रवाई के आदेश को रद्द कर दिया है. अदालत ने माना कि विभागीय कार्रवाई में दिया गया आदेश नैसर्गिक न्याय के खिलाफ है. अदालत के फैसले से खनन पदाधिकारी को बड़ी राहत मिली है.
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झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस दीपक रौशन की अदालत में इस मामले पर सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि वर्ष 2013 में विभागीय कार्रवाई शुरू की गई और वर्ष 2014 में दोषी करार देते हुए प्रार्थी के वेतन की बढ़ोतरी पर रोक लगाने की सजा दी गई. विभागीय कार्रवाई के दौरान तीन बार जांच पदाधिकारी बदले गए. इसके अलावे प्रार्थी का पक्ष भी नहीं सुना गया. यह न्याय के खिलाफ और असंवैधानिक है. विभागीय आदेश को रद्द कर दिया जाए. वहीं सरकार के अधिवक्ता ने बताया कि विभागीय कार्रवाई नियमानुसार की गई है. अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के उपरांत अपना फैसला सुनाया.
विभागीय आदेश को दी गई थी चुनौती
बता दें कि 2013 में याचिकाकर्ता टशन विद्यार्थी पर विभागीय कार्रवाई की गई थी. विभागीय कार्रवाई में वेतन बढ़ोतरी पर रोक लगा दी गई. इस कार्रवाई के खिलाफ टशन विद्यार्थी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की. इस याचिका पर सुनवाई हुई, जिसमें विभागीय आदेश को निरस्त कर दिया गया है.