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इस सीट पर चुनाव जीतने के लिए एक शख्स ने खेली थी खून की होली, महेंद्र सिंह धोनी ने दिलायी अंतरराष्ट्रीय पहचान

2009 में तमाड़ सीट के चुनाव परिणाम के कारण झारखंड में पहली बार मध्यावधि चुनाव हुआ. राजा पीटर 2009 के चुनाव में रमेश सिंह मुंडा के पुत्र विकास कुमार मुंडा को हराकर दूसरी बार विधानसभा में पांव रख चुका था और अर्जुन मुंडा सरकार में मंत्री भी बन चुका था, लेकिन 2014 के चुनाव में विकास मुंडा ने राजा पीटर को भारी अंतर से पटखनी दे दी. समय बदल चुका था. बाद में नक्सली कुंदन पाहन के सरेंडर करने पर राजा पीटर की भी गिरफ्तारी हुई.

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Published : Oct 18, 2019, 7:00 PM IST

रांची: कृषि बहुल इस इलाके में 90 के दशक तक नक्सलियों की जबरदस्त पैठ थी. उस दौर में अलग झारखंड राज्य को लेकर आंदोलन चल रहा था. तब इस विधानसभा क्षेत्र का एक शख्स खून की नदी से होकर सत्ता तक पहुंचने के लिए साजिश रच रहा था. उस शख्स का नाम है गोपाल कृष्ण पातर उर्फ राजा पीटर. अब आप समझ गए होंगे की बात तमाड़ की हो रही है.

देखिए स्पेशल स्टोरी


बदल रहे थे मुख्यमंत्रियों के चेहरे
2005 में राजनीतिक अस्थिरता के कारण मुख्यमंत्रियों के चेहरे बदल रहे थे. 27 फरवरी 2005 को फिर विखंडित जनादेश आया और किसी तरह अर्जुन मुंडा दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन सात महीने में ही सरकार गिर गई और पहली बार मधु कोड़ा के नेतृत्व में निर्दलीय सरकार बनी. यह सरकार सितंबर 2006 से अगस्त 2008 तक चली. राजा पीटर भांप चुका था कि मधु कोड़ा की सरकार का गिरना तय है.


रमेश सिंह मुंडा की हत्या
लिहाजा, उसने कुख्यात नक्सली कुंदन पाहन से मिलकर 9 जुलाई 2008 को बुंडू के बारूहातू गांव स्थित एक स्कूल में कार्यक्रम के दौरान रमेश सिंह मुंडा की हत्या करवा दी. तब किसी को नहीं मालूम था कि इस कांड में राजा पीटर का हाथ है. इस हत्या के एक महीने बाद मधु कोड़ा की सरकार गिर गई और शिबू सोरेन दोबारा सीएम बने. अब 6 महीने के अंदर शिबू सोरेन को विधायक का चुनाव जीतना था और तमाड़ की सीट खाली थी. यहीं पर शिबू सोरेन से चूक हो गई और वह नक्सलियों के बंदूक की आड़ में चुनाव लड़ रहे राजा पीटर से हार गए. लिहाजा, सरकार गिर गई और राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया.

ये भी पढे़ं: निर्वाचन आयोग की टीम पहुंची रांची, विधानसभा चुनाव तैयारियों को लेकर करेगी बैठक
तमाड़ सीट के कारण मध्यावधि चुनाव
इस तमाड़ सीट के चुनाव परिणाम के कारण झारखंड में पहली बार मध्यावधि चुनाव 2009 में हुआ. फिर वही हुआ जिसका सबको अंदेशा था विखंडित जनादेश. तबतक राजा पीटर खुद को स्थापित कर चुका था और 2009 के चुनाव में रमेश सिंह मुंडा के पुत्र विकास कुमार मुंडा को हराकर दूसरी बार विधानसभा में पांव रख चुका था और अर्जुन मुंडा सरकार में मंत्री भी बन चुका था, लेकिन 2014 के चुनाव में विकास मुंडा ने राजा पीटर को भारी अंतर से पटखनी दे दी. समय बदल चुका था. फोर्स लगातार नक्सलियों पर लगाम कसती जा रही थी.


कुंदन पाहन ने किया सरेंडर
लिहाजा, मई 2017 में कुंदन पाहन ने सरेंडर कर दिया. उसके सरेंडर करते ही विकास सिंह मुंडा यह कहते हुए अनशन पर बैठ गए कि उनके पिता की हत्या में कुंदन का हाथ था. मामले की जांच एनआईए को सौंपी गई. ऐसा होते ही रमेश सिंह मुंडा के हत्या की डोर राजा पीटर तक जा पहुंची. आज राजा पीटर जेल में है.

ये भी पढे़ं: रांची टेस्ट से पहले अफ्रीकी कप्तान डु प्लेसिस का प्रेस कॉन्फ्रेंस, बोले- जीत के साथ करना चाहेंगे दौरे का अंत
धोनी ने दिलाई पहचान
तमाड़ की वजह राज्य की खूब बदनामी हुई, लेकिन इसी क्षेत्र में शक्तिपीठ के रूप में चर्चित दिउड़ी मंदिर के प्रति क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी की आस्था ने इस इलाके को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलायी है. जब भी धोनी रांची में होते हैं तो दिउड़ी मंदिर जाते हैं. रांची में अबतक हुए कई क्रिकेट मैच के दौरान भारतीय टीम समेत अन्य देशों के खिलाड़ी भी दिउड़ी जा चुके हैं. इसबीच एकबार फिर चुनाव की बिसात बिछ चुकी है, लेकिन न नक्सली हैं न राजा पीटर. चुनाव फेयर तरीके से होना है. अब देखना है इस बार तमाड़ की सीट क्या गुल खिलाती है.

रांची: कृषि बहुल इस इलाके में 90 के दशक तक नक्सलियों की जबरदस्त पैठ थी. उस दौर में अलग झारखंड राज्य को लेकर आंदोलन चल रहा था. तब इस विधानसभा क्षेत्र का एक शख्स खून की नदी से होकर सत्ता तक पहुंचने के लिए साजिश रच रहा था. उस शख्स का नाम है गोपाल कृष्ण पातर उर्फ राजा पीटर. अब आप समझ गए होंगे की बात तमाड़ की हो रही है.

देखिए स्पेशल स्टोरी


बदल रहे थे मुख्यमंत्रियों के चेहरे
2005 में राजनीतिक अस्थिरता के कारण मुख्यमंत्रियों के चेहरे बदल रहे थे. 27 फरवरी 2005 को फिर विखंडित जनादेश आया और किसी तरह अर्जुन मुंडा दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन सात महीने में ही सरकार गिर गई और पहली बार मधु कोड़ा के नेतृत्व में निर्दलीय सरकार बनी. यह सरकार सितंबर 2006 से अगस्त 2008 तक चली. राजा पीटर भांप चुका था कि मधु कोड़ा की सरकार का गिरना तय है.


रमेश सिंह मुंडा की हत्या
लिहाजा, उसने कुख्यात नक्सली कुंदन पाहन से मिलकर 9 जुलाई 2008 को बुंडू के बारूहातू गांव स्थित एक स्कूल में कार्यक्रम के दौरान रमेश सिंह मुंडा की हत्या करवा दी. तब किसी को नहीं मालूम था कि इस कांड में राजा पीटर का हाथ है. इस हत्या के एक महीने बाद मधु कोड़ा की सरकार गिर गई और शिबू सोरेन दोबारा सीएम बने. अब 6 महीने के अंदर शिबू सोरेन को विधायक का चुनाव जीतना था और तमाड़ की सीट खाली थी. यहीं पर शिबू सोरेन से चूक हो गई और वह नक्सलियों के बंदूक की आड़ में चुनाव लड़ रहे राजा पीटर से हार गए. लिहाजा, सरकार गिर गई और राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया.

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तमाड़ सीट के कारण मध्यावधि चुनाव
इस तमाड़ सीट के चुनाव परिणाम के कारण झारखंड में पहली बार मध्यावधि चुनाव 2009 में हुआ. फिर वही हुआ जिसका सबको अंदेशा था विखंडित जनादेश. तबतक राजा पीटर खुद को स्थापित कर चुका था और 2009 के चुनाव में रमेश सिंह मुंडा के पुत्र विकास कुमार मुंडा को हराकर दूसरी बार विधानसभा में पांव रख चुका था और अर्जुन मुंडा सरकार में मंत्री भी बन चुका था, लेकिन 2014 के चुनाव में विकास मुंडा ने राजा पीटर को भारी अंतर से पटखनी दे दी. समय बदल चुका था. फोर्स लगातार नक्सलियों पर लगाम कसती जा रही थी.


कुंदन पाहन ने किया सरेंडर
लिहाजा, मई 2017 में कुंदन पाहन ने सरेंडर कर दिया. उसके सरेंडर करते ही विकास सिंह मुंडा यह कहते हुए अनशन पर बैठ गए कि उनके पिता की हत्या में कुंदन का हाथ था. मामले की जांच एनआईए को सौंपी गई. ऐसा होते ही रमेश सिंह मुंडा के हत्या की डोर राजा पीटर तक जा पहुंची. आज राजा पीटर जेल में है.

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तमाड़ की वजह राज्य की खूब बदनामी हुई, लेकिन इसी क्षेत्र में शक्तिपीठ के रूप में चर्चित दिउड़ी मंदिर के प्रति क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी की आस्था ने इस इलाके को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलायी है. जब भी धोनी रांची में होते हैं तो दिउड़ी मंदिर जाते हैं. रांची में अबतक हुए कई क्रिकेट मैच के दौरान भारतीय टीम समेत अन्य देशों के खिलाड़ी भी दिउड़ी जा चुके हैं. इसबीच एकबार फिर चुनाव की बिसात बिछ चुकी है, लेकिन न नक्सली हैं न राजा पीटर. चुनाव फेयर तरीके से होना है. अब देखना है इस बार तमाड़ की सीट क्या गुल खिलाती है.

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रांची: झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र सोमवार से शुरू हो गया है. यह सत्र 26 जुलाई तक चलेगा. आज ही अनुपूरक बजट पेश किया जाएगा. हालांकि 5 दिवसीय इस सत्र के हंगामेदार रहने के पूरे आसार हैं.

मॉब लिंचिंग, बिजली, भ्रष्टाचार समेत कई मुद्दों पर विपक्ष सरकार को घेरने के लिए तैयार है. चौथी विधानसभा का यह अंतिम सत्र है. इसके बाद सभी विधायकों को चुनावी समर में जाना होगा. दिसम्बर 2014 में गठित इस विधानसभा का कार्यकाल दिसम्बर 2019 में समाप्त हो जाएगा. चौथी विधानसभा का कार्यकाल कई मायनों में यादगार रहेगा.

हंगामे के कारण कई सत्रों में काम नहीं हुए. विधानसभा की बैठकें सिमटती चली गईं. सत्र छोटे होते चले गये. लगातार कई बैठकों में प्रश्नकाल नहीं हो पाए. लिहाजा जनता के सवाल धरे के धरे रह गए. हालांकि पांच साल के अंदर विधायकों का वेतन-भत्ता दो बार जरूर बढ़ा.




Conclusion:
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