रांची: म्हारी छोरियां छोरों से कम है के. आमिर खान अभिनीत दंगल फिल्म के डायलॉग को तो आपने सुना ही होगा और वाकई में झारखंड की छोरियां, छोरों से कम नहीं हैं. लेकिन सिस्टम की उदासीनता के कारण यहां की लड़कियां कुछ कर गुजरने का जज्बा रखने के बावजूद आगे नहीं बढ़ पा रही हैं.
उम्मीद की किरण
हालांकि, स्वामी विवेकानंद जी के जन्म दिवस यानी कि युवा दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इन खिलाड़ियों के बीच पहुंचकर एक उम्मीद की किरण जरूर जगा दी है.
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दोनों बहन हैं राष्ट्रीयस्तर की कुश्ती खिलाड़ी
दरअसल, स्वामी विवेकानंद की जयंती के अवसर पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का रांची के बड़ा तालाब स्थित स्वामीजी के आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण का कार्यक्रम था. वह निर्धारित समय पर कार्यक्रम स्थल पहुंचे. उसके बाद अचानक किसी कार्यक्रम के निर्धारित न होने के बावजूद रांची के लेक रोड के आंचल शिशु आश्रम के ठीक पास स्थित राष्ट्रीयस्तर की कुश्ती खिलाड़ी जो कि सगी बहनें हैं उनके घर जा पहुंचे.
अचानक पहुंचे सीएम
अचानक मुख्यमंत्री के पहुंचने पर इन खिलाड़ियों के अलावे पूरे परिवार आश्चर्यचकित थे. इसकी सूचना किसी को भी नहीं थी. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इन खिलाड़ियों की माली हालत देख उन्हें आश्वस्त किया है कि उन्हें राज्य सरकार हर संभव मदद करेगी.
ईटीवी भारत की टीम से बातचीत के दौरान रो पड़ी राष्ट्रीय खिलाड़ी
हमारी टीम ने भी इन खिलाड़ियों के घर पहुंचकर इन से खास बातचीत की. बातचीत के दौरान ऐसी कई बातें उभर कर सामने आई जो वाकई दर्द बयां करता है. आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद इन खिलाड़ियों का हौसला देखने लायक था. हालांकि हमारे संवाददाता के साथ बातचीत के दौरान राष्ट्रीयस्तर की कुश्ती खिलाड़ी बड़ी बहन राखी तिर्की अपने आप को रोने से रोक नहीं पाई और उनके आंसुओं के साथ यह साफ-साफ झलका कि वाकई इस राज्य में खिलाड़ियों को जो सम्मान मिलना चाहिए वह नहीं मिल पा रहा है.
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छोटी बहन भी कुश्ती में ही करियर बनाना चाहती हैं
राखी तिर्की और मधु तिर्की यह दोनों राष्ट्रीयस्तर की कुश्ती खिलाड़ी तो एक उदाहरण हैं. ऐसे कई खिलाड़ी राज्य में हैं जो अभाव के बावजूद राज्य और देश का नाम रोशन कर रहे हैं. लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. इन दोनों सगी बहनों के अलावे छोटी बहन भी कुश्ती में ही करियर बनाना चाहती है. वह भी जूनियर लेवल के कई राज्यस्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता में हिस्सा ले चुकी है .
परिवार की माली हालत दयनीय
परिवार की स्थिति ठीक नहीं है. मां हंड़िया बेचकर बेटियों को पढ़ा रही हैं और कुश्ती भी करवा रही हैं. पिता ठेला चलाते हैं. कुल मिलाकर कहें तो घर की आर्थिक स्थिति बिल्कुल ही सही नहीं है. बात ही बात में राखी कहती हैं कि खेल विभाग का सिस्टम इतना फेल है कि खिलाड़ियों को समय पर छात्रवृत्ति भी नहीं मिल पाती. छात्रवृत्ति पाने के लिए भी लगातार कार्यालयों का चक्कर काटना पड़ता है. जब कभी बाहर किसी प्रतिस्पर्धा में भाग लेने जाना होता है तो उस दौरान भी उधार मांग कर जाना पड़ता है.
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'खिलाड़ियों को उनका हक मिले'
हालांकि, सूबे के नए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और इस सरकार से इन खिलाड़ियों को भी कई उम्मीदें हैं. राखी और मधु को विश्वास है कि इस सरकार में जल्द से जल्द खेल नीति बनेगी और खिलाड़ियों को उनका हक और अधिकार मिलेगा.