रांची: झारखंड विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष अरविंद प्रसाद के इस्तीफे की एक बड़ी वजह तत्कालीन सरकार की ब्यूरोक्रेसी में पहुंच और मुख्यमंत्री का पड़ोसी होना भी माना जा रहा है. प्रसाद पूर्ववर्ती रघुवर दास सरकार में अच्छी रसूख रखने वाले एक वरिष्ठ ब्यूरोक्रेट के रिश्तेदार बताए जाते हैं. एक तरफ जहां प्रसाद को नियामक आयोग का अध्यक्ष बनाने के बाद तत्कालीन सरकार पर सवाल उठे.
दूसरी तरफ उन्हें वह बंगला अलॉट किया गया, जिसमें मुख्यमंत्री के पूर्व प्रधान सचिव रहते थे. प्रसाद के पहले वह बंगला 1990 बैच के बिहार कैडर के आईएएस संजय कुमार को आवंटित था. कुमार को तत्कालीन सीएम रघुवर दास के प्रधान सचिव के रूप में वह बंगला मिला था.
ब्यूरोक्रेसी में बंगले की है चर्चा
प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी में इस बात को लेकर चर्चा जोरों पर है कि आयोग के अध्यक्ष अरविंद प्रसाद को पूर्ववर्ती सरकार में कांके रोड स्थित इस बंगले को अलॉट करने में नियमों में ढील दी गयी थी. कांके रोड स्थित मुख्यमंत्री निवास के मुख्य द्वार के ठीक सामने बना यह बंगला राज्य की ब्यूरोक्रेसी में हमेशा चर्चा का विषय बना रहता है. इस बंगले के बारे में ऐसी बातें कही जाती हैं कि एक तरफ जहां इसका इंटीरियर नजरों में गड़ने वाला है, वहीं दूसरी तरफ इसका लोकेशन सुलभ है.
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बिहार कैडर के आईएएस अरविंद प्रसाद
अरविंद प्रसाद बिहार कैडर के आईएएस अधिकारी रहे हैं. 2012 में उन्होंने वीआरएस ले लिए था. वहीं जुलाई, 2017 में झारखंड विद्युत नियामक आयोग जॉइन करने से पहले वह फिक्की में डीजी के पद पर रहे हैं. साथ ही वह दिल्ली तकनीकी विश्वविद्यालय के बोर्ड के सदस्य भी रहे हैं.
नियुक्ति को लेकर भी उठे थे सवाल
प्रसाद को विद्युत नियामक आयोग का अध्यक्ष बनाने को लेकर झारखंड सरकार में उंगलियां भी उठी थी. दरअसल आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति तीन सदस्यीय कमेटी करती है, लेकिन पूर्व सरकार के समय 2 सदस्य की कमेटी ने इनका चयन किया था. इतना ही नहीं प्रसाद का नाम 2018 में बिजली बिल निर्धारण के विवादों में आए थे. उस वक्त बिजली वितरण निगम ने 6 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली का दर निर्धारण का प्रस्ताव किया था, लेकिन प्रसाद ने 6.25 रुपये पैसे प्रति यूनिट कर दिया था.
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पूर्व सीएम ने भी उठाये हैं सवाल
बता दें कि बीजेपी विधायक दल के नेता और राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने भी आवास आवंटन को लेकर सवाल खड़े किए हैं. पिछले दिनों मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को उन्होंने इस बाबत एक पत्र भी लिखा है. पत्र में उन्होंने साफ तौर पर लिखा है कि जनप्रतिनिधियों के साथ आवास आवंटन में अधिकारी कथित तौर पर भेदभाव कर रहे हैं.