ETV Bharat / city

International Tiger Day: पलामू टाइगर रिजर्व में 1974 में थे 50 बाघ, अब बचे हैं सिर्फ इतने

पलामू टाइगर रिजर्व झारखंड का इकलौता टाइगर रिजर्व है. 1974 में यहां बाघों को संरक्षित करने का काम शुरू हुआ था. इसका एरिया छत्तीसगढ़ तक फैला हुआ है.

कॉनसेप्ट इमेज
author img

By

Published : Jul 28, 2019, 12:54 PM IST

Updated : Jul 29, 2019, 11:29 AM IST

पलामू: 29 जुलाई को इंटरनेशनल टाइगर डे है, झारखंड के भी कुछ इलाके ऐसे हैं जहां टाइगर अभी भी जिंदा है. पूरे विश्व में बाघों की संख्या लगातार कम होती जा रही है. पलामू टाइगर रिजर्व जो पलामू, गढ़वा, लातेहार और छत्तीसगढ़ सीमा से सटा हुआ है बाघ के लिए मशहूर रहा है. 1026 वर्ग किलोमीटर में फैले इस टाइगर रिजर्व का कोर एरिया 226 वर्ग किलोमीटर में है.

देखें स्पेशल स्टोरी

1974 में पूरे देश मे बाघों को संरक्षित करने के लिए एक साथ नौ इलाकों में टाइगर प्रोजेक्ट की योजना शुरू की गई थी. पलामू टाइगर रिजर्व उन नौ इलाकों में से एक है जहां बाघों को संरक्षित करने का काम शुरू हुआ था. 1974 में पलामू टाइगर प्रोजेक्ट के इलाके में 50 बाघ बताए गए थे. देश में पहली बार 1932 बाघों की गिनती पलामू से ही शुरू हुई थी.

पलामू टाइगर रिजर्व में कितने बाघ?
1974 में पलामू टाइगर प्रोजेक्ट शुरू हुआ था तो बताया गया था की 50 बाघ हैं. 2005 में जब बाघों की गिनती हुई तो बाघों की संख्या घट कर 38 हो गई. 2007 में जब फिर से गिनती हुई तो बताया कि पलामू टाइगर प्रोजेक्ट में 17 बाघ है. 2009 में वैज्ञानिक तरीके से बाघों की गिनती शुरू हुई तो बताया गया कि सिर्फ छह बाघ बचे हुए हैं. उसके बाद से कोई भी नया बाघ रिजर्व एरिया में नहीं मिला. 2018 में उस वक्त विवाद खड़ा हो गया जब बताया कि की पलामू टाइगर रिजर्व में एक भी बाघ नहीं बचे हैं. पलामू टाइगर प्रोजेक्ट के अधिकारी मामले में कुछ भी कैमरे के सामने नहीं बोलते. वे बताते है कि पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में तीन बाघ है, जिसमें से दो बाघ है जबकि एक बाघिन हैं. अधिकारियों का बाघ का बाघिन के मिलाप का इंतजार है ताकि मिलाप के बाद प्रजजन हो सके.

ये भी पढ़ें- कोडरमा घाटी में LPG लदा टैंकर पलटा, गैस रिसाव जारी, घाटी को किया गया बंद

पलामू टाइगर रिजर्व कुछ जानकारियां
पलामू टाइगर रिजर्व का इलाका पूरी तरह से नक्सल प्रभावित है, टाइगर प्रोजेक्ट के कोर एरिया में नौ परिवार रहते हैं जबकि बफर एरिया में 78 परिवार हैं. जबकि 136 गांव है. पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में बेतला नेशनल पार्क है जहां पर्यटक घूमने आते हैं. टाइगर रिजर्व कोयल के इलाके में कोयल और औरंगा नदी है. मंडल डैम भी इसी इलाके में है.
पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में पौधों की 970 प्रजातियां हैं,131 प्रकार के जड़ी- बूटी है. 47 प्रकार के स्तनधारी जातियां 174 प्रकार के पक्षी हैं, स्तनधारी में बाघ, हाथी, तेंदुआ, सांभर, हिरण,लंगूर आदि प्रमुख हैं.

पलामू टाइगर रिजर्व पर संकट
पलामू टाइगर रिजर्व इलाका नक्सल प्रभावित होने के कारण यहां बड़े-बड़े नक्सल अभियान होते रहते हैं. जिससे गोलीबारी में जंगली जानवरों को नुकसान पहुंचता है. इसके अलावा जंगली इलाकों में लोगों की बढ़ती भीड़ और हस्तक्षेप के कारण ग्रास एरिया कम होते जा रहे हैं. इससे जंगली जानवरों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. बाघों को शिकार के लिए जानवर नहीं मिल रहे हैं.

ये भी पढ़ें- घाटशिला मामले की जांच शुरू, डॉक्टर ने दी थी महिला को पुरुष गर्भ निरोधक इस्तेमाल करने की सलाह​​​​​​​

लोगों को गर्व हो की उनके इलाके में बाघ है
पलामू टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर वाईके दास बताते है कि इस बार का इंटरनेशनल टाइगर डे पर लोगों से कहा जाएगा कि उन्हें गर्व होना चाहिए की उनके इलाके में बाघ हैं. वाईके दास बताते है कि हमे बाघ से नफरत नहीं करनी चाहिए बल्की गर्व करना चाहिए. उन्होंने कहा कि लोगों से अपील है की वे बाघों को संरक्षित करने में मदद करें. उन्होंने कहा कि टाइगर प्रोजेक्ट के इलाके में लोग बाघ या जानवरों के कारण वैमनस्य पाल लेते हैं लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए.

पलामू: 29 जुलाई को इंटरनेशनल टाइगर डे है, झारखंड के भी कुछ इलाके ऐसे हैं जहां टाइगर अभी भी जिंदा है. पूरे विश्व में बाघों की संख्या लगातार कम होती जा रही है. पलामू टाइगर रिजर्व जो पलामू, गढ़वा, लातेहार और छत्तीसगढ़ सीमा से सटा हुआ है बाघ के लिए मशहूर रहा है. 1026 वर्ग किलोमीटर में फैले इस टाइगर रिजर्व का कोर एरिया 226 वर्ग किलोमीटर में है.

देखें स्पेशल स्टोरी

1974 में पूरे देश मे बाघों को संरक्षित करने के लिए एक साथ नौ इलाकों में टाइगर प्रोजेक्ट की योजना शुरू की गई थी. पलामू टाइगर रिजर्व उन नौ इलाकों में से एक है जहां बाघों को संरक्षित करने का काम शुरू हुआ था. 1974 में पलामू टाइगर प्रोजेक्ट के इलाके में 50 बाघ बताए गए थे. देश में पहली बार 1932 बाघों की गिनती पलामू से ही शुरू हुई थी.

पलामू टाइगर रिजर्व में कितने बाघ?
1974 में पलामू टाइगर प्रोजेक्ट शुरू हुआ था तो बताया गया था की 50 बाघ हैं. 2005 में जब बाघों की गिनती हुई तो बाघों की संख्या घट कर 38 हो गई. 2007 में जब फिर से गिनती हुई तो बताया कि पलामू टाइगर प्रोजेक्ट में 17 बाघ है. 2009 में वैज्ञानिक तरीके से बाघों की गिनती शुरू हुई तो बताया गया कि सिर्फ छह बाघ बचे हुए हैं. उसके बाद से कोई भी नया बाघ रिजर्व एरिया में नहीं मिला. 2018 में उस वक्त विवाद खड़ा हो गया जब बताया कि की पलामू टाइगर रिजर्व में एक भी बाघ नहीं बचे हैं. पलामू टाइगर प्रोजेक्ट के अधिकारी मामले में कुछ भी कैमरे के सामने नहीं बोलते. वे बताते है कि पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में तीन बाघ है, जिसमें से दो बाघ है जबकि एक बाघिन हैं. अधिकारियों का बाघ का बाघिन के मिलाप का इंतजार है ताकि मिलाप के बाद प्रजजन हो सके.

ये भी पढ़ें- कोडरमा घाटी में LPG लदा टैंकर पलटा, गैस रिसाव जारी, घाटी को किया गया बंद

पलामू टाइगर रिजर्व कुछ जानकारियां
पलामू टाइगर रिजर्व का इलाका पूरी तरह से नक्सल प्रभावित है, टाइगर प्रोजेक्ट के कोर एरिया में नौ परिवार रहते हैं जबकि बफर एरिया में 78 परिवार हैं. जबकि 136 गांव है. पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में बेतला नेशनल पार्क है जहां पर्यटक घूमने आते हैं. टाइगर रिजर्व कोयल के इलाके में कोयल और औरंगा नदी है. मंडल डैम भी इसी इलाके में है.
पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में पौधों की 970 प्रजातियां हैं,131 प्रकार के जड़ी- बूटी है. 47 प्रकार के स्तनधारी जातियां 174 प्रकार के पक्षी हैं, स्तनधारी में बाघ, हाथी, तेंदुआ, सांभर, हिरण,लंगूर आदि प्रमुख हैं.

पलामू टाइगर रिजर्व पर संकट
पलामू टाइगर रिजर्व इलाका नक्सल प्रभावित होने के कारण यहां बड़े-बड़े नक्सल अभियान होते रहते हैं. जिससे गोलीबारी में जंगली जानवरों को नुकसान पहुंचता है. इसके अलावा जंगली इलाकों में लोगों की बढ़ती भीड़ और हस्तक्षेप के कारण ग्रास एरिया कम होते जा रहे हैं. इससे जंगली जानवरों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. बाघों को शिकार के लिए जानवर नहीं मिल रहे हैं.

ये भी पढ़ें- घाटशिला मामले की जांच शुरू, डॉक्टर ने दी थी महिला को पुरुष गर्भ निरोधक इस्तेमाल करने की सलाह​​​​​​​

लोगों को गर्व हो की उनके इलाके में बाघ है
पलामू टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर वाईके दास बताते है कि इस बार का इंटरनेशनल टाइगर डे पर लोगों से कहा जाएगा कि उन्हें गर्व होना चाहिए की उनके इलाके में बाघ हैं. वाईके दास बताते है कि हमे बाघ से नफरत नहीं करनी चाहिए बल्की गर्व करना चाहिए. उन्होंने कहा कि लोगों से अपील है की वे बाघों को संरक्षित करने में मदद करें. उन्होंने कहा कि टाइगर प्रोजेक्ट के इलाके में लोग बाघ या जानवरों के कारण वैमनस्य पाल लेते हैं लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए.

Intro:ग्लोबल टाइगर डे- पलामू टाइगर रिजर्व में 1974 में थे 50 बाघ ,2019 में सिर्फ 03

नीरज कुमार । पलामू

29 जुलाई को ग्लोबल टाइगर डे मनाया जा रहा है। झारखंड के कुछ इलाके ऐसे हैं जंहा टाइगर अभी भी जिंदा है। पूरे विश्व मे कुछ सौ बाघ ही बचे है। पलामू टाइगर रिजर्व जो पलामू, गढ़वा, लातेहार और छत्तीसगढ़ सीमा से सटा हुआ है बाघ के लिए महशूर रहा हैं पलामू टाइगर रिजर्व 1026 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है जबकि इसका कोर एरिया 226 वर्ग किलोमीटर में हैं। 1974 में पूरे देश मे बाघों को संरक्षित करने के लिए एक साथ नौ इलाक़ो में टाइगर प्रोजेक्ट की योजना शुरू की गई थी। पलामू टाइगर रिजर्व उन नौ इलाकों में से एक है जंहा बाघों को संरक्षित करने का काम शुरू हुआ था। 1974 में पलामू टाइगर प्रोजेक्ट के इलाके में 50 बाघ बताए गए थे। देश मे पहली बार 1932 बाघों की गिनती पलामू से ही शुरू हुई थी।


Body:पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में कितने बाघ !

1974 में पलामू टाइगर प्रोजेक्ट शुरू हुआ था तो बताया गया था की 50 बाघ है। 2005 में जब बाघों की गिनती हुई तो बाघों की संख्या घट कर 38 हो गई। 2007 में जब फिर से गिनती हुई तो बताया कि पलामू टाइगर प्रोजेक्ट में 17 बाघ है। 2009 में वैज्ञानिक तरीके से बाघों की गिनती शुरू हुई तो बताया गया कि सिर्फ छह बाघ बचे हुए हैं। उसके बाद से कोई भी नया बाघ रिजर्व एरिया में नही मिला। 2018 में उस वक्त विवाद खड़ा हो गया जब बताया कि की पलामू टाइगर रिजर्व में एक भी बाघ नही बचे हैं। पलामू टाइगर प्रोजेक्ट के अधिकारी मामले में कुछ भी कैमरे के सामने नही बोलते। वे बताते है कि पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में तीन बाघ है , जिसमे से दो बाघ है जबकि एक बाघिन हैं । अधिकारियों का बाघ का बाघिन के मिलाप का इंतजार है ताकि मिलाप के बाद प्रजजन हो सके।


पलामू टाइगर रिजर्व कुछ जानकारियां

पलामू टाइगर रिजर्व का इलाका पूरी तरह से नक्सल प्रभावित है। टाइगर प्रोजेक्ट के कोर एरिया में नौ परिवार रहते हैं जबकि बफर एरिया में 78 परिवार। जबकि 136 गांव है।


पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में बेतला नेशनल पार्क है जंहा पर्यटक घूमने आते हैं। टाइगर रिजर्व कोयल के इलाके में कोयल और औरंगा नदी है। मंडल डैम भी इसी इलाके में है।


पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में पौधों की 970 प्रजातियां है। 131 प्रकार के जड़ी बूटी। स्तनधारी जातियां 47 , पक्षी 174 प्रकार। स्तनधारी में बाघ, हाथी, तेंदुआ, सांभर, हिरण,लंगूर आदि प्रमुख।

पलामू टाइगर रिजर्व में शुष्क मिश्रित वन है। तीन प्रकार के वन है। शुष्क साल, नम साल, पठारी इलाक़ो का साल। नम मिश्रीत वन


पलामू टाइगर रिजर्व पर संकट

पलामू टाइगर रिजर्व इलाका नक्सल प्रभावित होने के कारण, बड़े बड़े नक्सल अभियान। गोली बारी में जंगली जानवरों को नुकशान। जंगली इलाक़ो में लोगों की बढ़ती भीड़ और हस्तक्षेप। ग्रास एरिया कम होना, ग्रास एरिया कम होने से जंगली जानवरों पर संकट। बाघ को शिकार के लिए जानवर नही मिलते।


Conclusion:विभाग ने कहा लोगों को गर्व हो की उनके इलाके में बाघ है

पलामू टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर वाईके दास बताते है कि इस बार का ग्लोबल टाइगर डे पर लोगो से कहा जाएगा कि उन्हें गर्व होना चाहिए की उनके इलाके में बाघ है। वाईके दास बताते है कि हमे बाघ से नफरत नही करनी चाहिए बल्की गर्व करना चाहिए। उन्होंने कहा कि लोगो से अपील है की वे बाघों को संरक्षित करने में मदद करें। उन्होंने कहा कि टाइगर प्रोजेक्ट के इलाके में लोग बाघ या जानवरों के कारण वैमनस्य पाल लेते हैं लेकिन ऐसा नही होना चाहिए।
Last Updated : Jul 29, 2019, 11:29 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.