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आजादी के 70 सालों बाद भी नहीं पहुंची बिजली, 'ढिबरी युग' में जीने क मजबूर हैं लोग - ईटीवी भारत

घाटशिला, जमशेदपुर: जमशेदपुर संसदीय क्षेत्र के मुसाबनी प्रखंड के लोग इस बार मतदान को लेकर उत्साहित नहीं हैं. उनके दिलो-दिमाग में अपने इलाके के मुद्दे हैं, नौकरी और रोजगार के सवाल पर पूरी तरह सजग तो हैं, साथ ही आजादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी कई गांवों में बिजली नहीं पहुंची है.

ढिबरी के सहारे पढ़ती स्कूली छात्रा
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Published : Apr 18, 2019, 12:29 PM IST

पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी प्रखंड के पहाड़ियों पर बसे फॉरेस्ट ब्लॉक पंचायत में सूर्यबेड़ा, बंकाय,नेत्राबेड़ा,बोडोंपोल,जोजोगोड़ा,जोजो डूंगरी, भालुबासा, लयडीयाम कोचा, आमडा़ कोचा, कुदाबेडा़, टेडा़कोचा गांव में आज तक बिजली नहीं पहुंची है. आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी यहां के लोग ढिबरी युग में जीने क मजबूर हैं.

देखें पूरी खबर
यहां लगभग 600 वोटर्स निवास करते हैं. सरकार द्वारा चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं से भी ये महरूम हैं. शौचालय भी बने वो भी इक्का- दुक्का उज्जवला योजना का तो यहां नामोनिशान नहीं है. वहां बड़ी ही मुश्किल से पहुंचे. पहले मोटरसाइकिल से 20 किलोमीटर चले उसके बाद पैदल ही 3 से 4 किलोमीटर चले तीन पहाड़ को पार करने के बाद तब जाकर इन इस गांव पर पहुंच सके और हमने वहां केे लोगों से बातचीत की तो पता चला ज्यादातर लोग हिंदी बोल नहीं सकते और कुछ जो हैं हिंदी समझ सकते हैं तो बोल नहीं सकते.

ग्रामीणों से बातचीत करने पर पता चला सरकार द्वारा चलाए गए अनेक काल कल्याणकारी योजना से भी ये महरूम हैं. शौचालय तो बने हैं लेकिन इक्का-दुक्का और उज्जवला योजना का यहां कोई नामो निशान नहीं है. लोगआज भी लकड़ी से ही खाना बनाते हुए नजर आते हैं. बहरहाल, यहां के ग्रामीणों का कहना है कि हर 5 साल बाद हमें उम्मीद जगती है कि शायद इस बार हमारे गांव में बिजली पहुंचेगी. लेकिन चुनाव जीत जाने के बाद नेता मुंह मोड़ने की भी जरूरत नहीं समझते. अब देखना यह है कि इन गांवों में विकास की रोशनी कब तक पहुंचेगी.

पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी प्रखंड के पहाड़ियों पर बसे फॉरेस्ट ब्लॉक पंचायत में सूर्यबेड़ा, बंकाय,नेत्राबेड़ा,बोडोंपोल,जोजोगोड़ा,जोजो डूंगरी, भालुबासा, लयडीयाम कोचा, आमडा़ कोचा, कुदाबेडा़, टेडा़कोचा गांव में आज तक बिजली नहीं पहुंची है. आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी यहां के लोग ढिबरी युग में जीने क मजबूर हैं.

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यहां लगभग 600 वोटर्स निवास करते हैं. सरकार द्वारा चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं से भी ये महरूम हैं. शौचालय भी बने वो भी इक्का- दुक्का उज्जवला योजना का तो यहां नामोनिशान नहीं है. वहां बड़ी ही मुश्किल से पहुंचे. पहले मोटरसाइकिल से 20 किलोमीटर चले उसके बाद पैदल ही 3 से 4 किलोमीटर चले तीन पहाड़ को पार करने के बाद तब जाकर इन इस गांव पर पहुंच सके और हमने वहां केे लोगों से बातचीत की तो पता चला ज्यादातर लोग हिंदी बोल नहीं सकते और कुछ जो हैं हिंदी समझ सकते हैं तो बोल नहीं सकते.

ग्रामीणों से बातचीत करने पर पता चला सरकार द्वारा चलाए गए अनेक काल कल्याणकारी योजना से भी ये महरूम हैं. शौचालय तो बने हैं लेकिन इक्का-दुक्का और उज्जवला योजना का यहां कोई नामो निशान नहीं है. लोगआज भी लकड़ी से ही खाना बनाते हुए नजर आते हैं. बहरहाल, यहां के ग्रामीणों का कहना है कि हर 5 साल बाद हमें उम्मीद जगती है कि शायद इस बार हमारे गांव में बिजली पहुंचेगी. लेकिन चुनाव जीत जाने के बाद नेता मुंह मोड़ने की भी जरूरत नहीं समझते. अब देखना यह है कि इन गांवों में विकास की रोशनी कब तक पहुंचेगी.

Intro:आजादी के 70 साल बाद 13 सांसद बने और 11 विधायक फिर भी नहीं पहुंचे इन गांव में बिजली आज तक

घाटशिला (पूर्वी सिंहभूम)- - पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी प्रखंड के पहाड़ियों पर बसा फॉरेस्ट ब्लॉक पंचायत मैं इन गांव पर आजादी के 70 साल बाद भी सूर्यबेड़ा,बंकाय, नेत्राबेड़ा,बोडोंपोल,जोजोगोड़ा, जोजो डूंगरी ,भालुबासा, लयडीयाम कोचा,आमडा़ कोचा, कुदाबेडा़,टेडा़कोचा आदि गांव में आज तक बिजली नहीं पहुंची है आज भी यहां के लोग डिबरी युग पर जीते हैं। कुल मिला के सभी गाने 100 से 150 घर हैं लगभग 600 वोट निवास करते हैं यह गांव मुसाबनी मुख्य बाजार से 25 किलोमीटर दूरी पर पहाड़ियों के बीच में बसा है यह गांवBody:हम वहां बड़ी ही मुश्किल से पहुंचे पहले तो मोटरसाइकिल से चले 20 किलोमीटर लगभग उसके बाद पैदल ही 3 से 4 किलोमीटर चले तीन पहाड़ को पार करने के बाद तब जाकर इन इस गांव पर पहुंच सके और हमने वहां केे लोगों से बातचीत की तो पता चला ज्यादातर लोग हिंदी बोल नहीं सकते और कुछ जो हैै हिंदी समझ सकते हैं तोो बोल नहीं सकते । हमें बातचीत मेंं वहां की ग्रामीणों से बातचीत पर पता चला सरकार द्वारा चलाए गए अनेक काल कल्याणकारी योजना से भी महरूम है शौचालय तो बने हैं लेकिन इक्का दुक्का उज्जवला योजना का यहां कोई नामोनिशान नहीं लोग आज भी लकड़ी से ही खाना बनाते हैं
हमने इसी क्रम में एक महिला को लकड़ी से खाना बनाते हुए देखा तो हमने उनसे पूछा तो वह महिला हिंदी बोल नहीं सकती थी वह अपने भाषा में ही कहा की हम लोगों को ना तो उजला योजना लाभ मिला है ना शौचालय है और ना ही हम लोग के घर में आज तक बिजली पहुंची हैConclusion:ग्रामीणों का कहना है कि 70 साल में हर 5 साल में हम लोगों का उम्मीद जगता है कि शायद इस बार हम लोग का क्षेत्र में विकास होगा लेकिन नेता तो आ जाते हैं वोट मांगने जब जीत जाते हैं तो इस तरह मुंह मोड़ने की भी जरूरत नहीं समझते वह लोग कहते हैं 70 साल पहले हम लोग जैसे थे आज भी उसी रूप में है
स्कूल में पढ़ने वाली बच्चियां आज भी डिबरी की रोशनी में अपने किताबों के पन्नों पर डिजिटल इंडिया की चमक ढूंढते रहते हैं और मन ही मन सोचते होंगे की हमारे गांव में कब बिजली के तार लगेंगे और हमारी अंधेरी जिंदगी कब उजालाा होगी
हमने इस विषय को लेकर घाटशिला बिजली विभाग के एसडीओ से भी बात की तो उन्होंने कहा कि हम कैमरे के सामने नहीं कर सकते पर बातचीत में उन्होंने यह कहा हम अपने स्तर से पता लगा रहे हैं कि इन गांव में बिजली है कि नहीं
अब देखना यह है कि कब तक इन लोगों को अपने अंधेरी जिंदगी में रोशनी होगी या फिर इस तरह ही उन लोगों का जीवन यापन होता रहेगा
बाईट
1. पुरुष ग्रामीण
2. महिला ग्रामीण (हो भाषा में कहां है)
3. फॉरेस्ट ब्लॉक पंचायत की मुखिया सुनीता बांद्रा
4. फॉरेस्ट ब्लॉक पंचायत के पूर्व मुखिया सोहन सिंह बांद्रा

रिपोर्ट
कनाई राम हेंब्रम
घाटशिला
9279289270
9304805270
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