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इनकी परंपरा में शामिल है "सोशल डिस्टेंसिंग", बिना स्पर्श किए होता है मेहमानों का स्वागत!

झारखंड के संथाल परगना प्रमंडल के छह जिलों में रहने वाले संथाली समुदाय में डोबो जोहार अभिवादन काफी प्रचलित है. संथाली आदिवासी समुदाय के लोग सदियों से डोबो जोहार अभिवादन के माध्यम से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हैं.

Dobo Johar tradition
सोशल डिस्टेंसिंग
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Published : Apr 20, 2020, 8:58 PM IST

Updated : Apr 20, 2020, 9:23 PM IST

जमशेदपुर: कोरोना वायरस से बचाव के लिए सोशल डिस्टेसिंग की बात चारों ओर हो रही है. लेकिन झारखंड के संथाली समुदाय के रीति-रिवाज में शामिल है सोशल डिस्टेसिग. इनके घरों में आने वाले मेहमानों का बिना स्पर्श किए सोशल डिस्टेसिंग का पालन करते हुए स्वागत किया जाता है. जिसे डोबो जोहार कहा जाता है.

देखिए स्पेशल रिपोर्ट

कोल्हान में रहने वाले संथाली समाज के लोग सदियों से डोबो जोहार के माध्यम से अपने घरों में आने वाले मेहमानों का स्वागत किया जाता है. जानकारी के अनुसार जब भी इनके घरों में मेहमान आते हैं. तो घर की महिला सदस्य पहले आंगन में खटिया निकाल कर उन्हें बैठाती हैं. उसके बाद उन्हें घर की महिला सदस्य लोटा में पानी भरकर अतिथि के सामने रखती हैं और झूककर जमीन स्पर्श कर डोबो जोहार करती हैं.

लौटते वक्त मेहमान ही उठाते हैं खटिया

अगर मेहमान उम्र में छोटे हैं तो उन्हें चूं जोहार कर अभिनंदन किया जाता है. उसके बाद अतिथि के सामानों को घर के सदस्य अपने कमरे में ले जाते हैं. वहीं दूसरी ओर अतिथि बारी-बारी से लोटे के पानी से पैर धोते हैं. पैर धोने के बाद अतिथियों के पास घर के लोग आकर बैठ कर हाल-चाल पूछते हैं. यही नहीं जब मेहमान वापस जाने लगते हैं तो खटिया उठाने की जिम्मेदारी मेहमानों की होती है. परिवार के लोग मेहमानों को बाहर छोड़ते हैं. वहा एक बार फिर डोबो जोहार किया जाता है.

ये भी पढ़ें- एक ऐसी जिंदगी जो न देखती है न बोलती है, लेकिन दर्द में भी ममता की मुस्कुराहट है बरकरार

डोबो जोहार परंपरा में नाराजगी भी जाहिर की जा सकती है अगर डोबो जोहार के समय दिये गये जल से मेहमान हाथ पैर नहीं धोते हैं. तो पता चल जाता है कि घर में आया हुआ मेहमान नाराज है. डोबो जोहार के मामले में शिक्षाविद नरेन हासंदा का कहना है कि यह परंपरा सदियों पुरानी है. उनका कहना है कि आदिवासी समाज जंगलों में रहता आ रहा है. लोग कई किलोमीटर चल कर खाली पैर एक-दूसरे के घर आते-जाते थे. इसलिए घरों में प्रवेश करने के पहले उन्हें बिना छुए अभिवादन किया जाता है. जिसे डोबो जोहार कहते हैं.

बिना स्पर्श किए मेहमान का अभिवादन

उसके बाद आने वाला मेहमान मिले लोटा से हाथ पैर धोते हैं. उसके बाद ही घरों में प्रवेश करने दिया जाता है. सोशल डिस्टेसिंग की बात भले आज लोगों के लिए नई लग रही हो. लेकिन संथाली समुदाय के लिए यह काफी पुरानी है. इससे आज भी संथाली समुदाय अपनी परंपरा को बचा कर रखा है. आज घर में आने वाले मेहमानों को बिना स्पर्श किए अभिवादन किया जाता है. जिसे डोबो जोहार कहते हैं. संथाल समुदाय का आज भी अपनी परंपरा को बचाकर रखना काबिले तारीफ है.

जमशेदपुर: कोरोना वायरस से बचाव के लिए सोशल डिस्टेसिंग की बात चारों ओर हो रही है. लेकिन झारखंड के संथाली समुदाय के रीति-रिवाज में शामिल है सोशल डिस्टेसिग. इनके घरों में आने वाले मेहमानों का बिना स्पर्श किए सोशल डिस्टेसिंग का पालन करते हुए स्वागत किया जाता है. जिसे डोबो जोहार कहा जाता है.

देखिए स्पेशल रिपोर्ट

कोल्हान में रहने वाले संथाली समाज के लोग सदियों से डोबो जोहार के माध्यम से अपने घरों में आने वाले मेहमानों का स्वागत किया जाता है. जानकारी के अनुसार जब भी इनके घरों में मेहमान आते हैं. तो घर की महिला सदस्य पहले आंगन में खटिया निकाल कर उन्हें बैठाती हैं. उसके बाद उन्हें घर की महिला सदस्य लोटा में पानी भरकर अतिथि के सामने रखती हैं और झूककर जमीन स्पर्श कर डोबो जोहार करती हैं.

लौटते वक्त मेहमान ही उठाते हैं खटिया

अगर मेहमान उम्र में छोटे हैं तो उन्हें चूं जोहार कर अभिनंदन किया जाता है. उसके बाद अतिथि के सामानों को घर के सदस्य अपने कमरे में ले जाते हैं. वहीं दूसरी ओर अतिथि बारी-बारी से लोटे के पानी से पैर धोते हैं. पैर धोने के बाद अतिथियों के पास घर के लोग आकर बैठ कर हाल-चाल पूछते हैं. यही नहीं जब मेहमान वापस जाने लगते हैं तो खटिया उठाने की जिम्मेदारी मेहमानों की होती है. परिवार के लोग मेहमानों को बाहर छोड़ते हैं. वहा एक बार फिर डोबो जोहार किया जाता है.

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डोबो जोहार परंपरा में नाराजगी भी जाहिर की जा सकती है अगर डोबो जोहार के समय दिये गये जल से मेहमान हाथ पैर नहीं धोते हैं. तो पता चल जाता है कि घर में आया हुआ मेहमान नाराज है. डोबो जोहार के मामले में शिक्षाविद नरेन हासंदा का कहना है कि यह परंपरा सदियों पुरानी है. उनका कहना है कि आदिवासी समाज जंगलों में रहता आ रहा है. लोग कई किलोमीटर चल कर खाली पैर एक-दूसरे के घर आते-जाते थे. इसलिए घरों में प्रवेश करने के पहले उन्हें बिना छुए अभिवादन किया जाता है. जिसे डोबो जोहार कहते हैं.

बिना स्पर्श किए मेहमान का अभिवादन

उसके बाद आने वाला मेहमान मिले लोटा से हाथ पैर धोते हैं. उसके बाद ही घरों में प्रवेश करने दिया जाता है. सोशल डिस्टेसिंग की बात भले आज लोगों के लिए नई लग रही हो. लेकिन संथाली समुदाय के लिए यह काफी पुरानी है. इससे आज भी संथाली समुदाय अपनी परंपरा को बचा कर रखा है. आज घर में आने वाले मेहमानों को बिना स्पर्श किए अभिवादन किया जाता है. जिसे डोबो जोहार कहते हैं. संथाल समुदाय का आज भी अपनी परंपरा को बचाकर रखना काबिले तारीफ है.

Last Updated : Apr 20, 2020, 9:23 PM IST
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