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यहां मां अपने भक्तों की भाषा नहीं बल्कि भावना समझती हैं, दुर्गा पूजा के दौरान संथाली भाषा में होता मंत्रोच्चारण

मां दुर्गा अपने भक्तों की भाषा नहीं बल्कि भावना समझती है. यही वजह है कि दुमका के कड़हलबिल पहाड़ी के ऊपर संथाल समाज के लोग संथाली भाषा में मां दुर्गा का मंत्रोच्चारण और आह्वान करते हैं (Mantra of Durga Puja is chanted in Santhali ). संथाल समाज की ओर ये यह मंत्रोच्चारण 65 वर्षीया लुखी मुर्मू करती है.

Mantra of Durga Puja is chanted in Santhali
Mantra of Durga Puja is chanted in Santhali
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Published : Oct 4, 2022, 3:13 PM IST

दुमका: झारखंड की उप राजधानी दुमका में दुर्गा पूजा की धूम है. भक्तों में काफी उत्साह नजर आ रहा है. वैसे तो सभी पूजा पंडालों में लगभग एक ही तरह के पूजा पद्धति अपनाई जाती है, लेकिन संथाल समाज के सफा होड़ समिति के द्वारा आयोजित दुर्गा पूजा खास होता है. यहां मां दुर्गा की पूजा पूरे विधि विधान से 65 वर्षीय लुखी मुर्मू करती हैं. खास बात ये है कि पूजा के दौरान मंत्रोच्चार संथाली भाषा में होता है (Mantra of Durga Puja is chanted in Santhali).

ये भी पढ़ें: झारखंड के चार देवी पीठों में होता है 16 दिनों का नवरात्रि अनुष्ठान, उमड़ रहे श्रद्धालु


दुमका जिले के सदर प्रखंड के कड़हलबिल के पहाड़ी के ऊपर वर्ष पिछले 51 वर्षों से (1970- 71) दुर्गापूजा का आयोजन हो रहा है. इस पूजा की शुरुआत करने में महादेव मरांडी की महत्वपूर्ण भूमिका थी, जो 1979 में दुमका के विधायक बने थे और कर्पूरी ठाकुर के मंत्रिमंडल में सूचना एवं जनसंपर्क मंत्रालय का कामकाज संभाला था. महादेव मरांडी ने सफा होड़ सांस्कृतिक समिति की स्थापना की थी. इसी सफा होड़ समिति के सदस्य उस वक्त से लगातार पहाड़ी के ऊपर दुर्गापूजा का आयोजन कर रहे हैं. यहां की खासियत यह है कि कम संसाधन और व्यवस्था की कमी की वजह से कहीं कोई तामझाम नजर नहीं आता. यहां मां दुर्गा की पूजा पूरे विधि विधान से 65 वर्षीय लुखी मुर्मू करती हैं. उन्हें यहां गुरु माता कहा जाता है, जो मंदिर की पुजारिन हैं.

देखें वीडियो



संथाली भाषा में होता है मंत्रोच्चार: यहां की सबसे बड़ी खासियत यह है कि 65 वर्षीय लुखी मुर्मू में संथाली भाषा में मां दुर्गा के सामने मंत्रोच्चार करती हैं और मां का आह्वान करती हैं. लुखी मुर्मू माता रानी से प्रार्थना करती है कि आपकी महिमा अपरंपार है, आप सर्वशक्तिमान हैं, सर्व व्यापी हैं, हम और हमारा समाज तुच्छ मात्र हैं, आप हम पर दया करें, हमारी झोली सुख समृद्धि और खुशियों से भर दें , हम आपके संतान हैं, हमारी सभी कष्टों को हर लें.

दूरदराज के भक्तों का लगता है जमावड़ा: संथाल समाज के जिस सफा होड़ समुदाय के द्वारा कड़हलबिल के पहाड़ी के ऊपर दुर्गापूजा का आयोजन होता है, उस समुदाय की खासियत यह होती है कि ये मांस, मदिरा से हमेशा दूर रहते हैं. ईश्वर के प्रति उनमें गहरी आस्था रहती है. यहां दुर्गापूजा के महानवमी के दिन झारखंड के साथ पश्चिम बंगाल और असम के श्रद्धालु भी यहां पहुंचते हैं. भक्तों का कहना है कि मां दुर्गा की शरण में आकर मन को काफी शांति मिलती है.

दुमका: झारखंड की उप राजधानी दुमका में दुर्गा पूजा की धूम है. भक्तों में काफी उत्साह नजर आ रहा है. वैसे तो सभी पूजा पंडालों में लगभग एक ही तरह के पूजा पद्धति अपनाई जाती है, लेकिन संथाल समाज के सफा होड़ समिति के द्वारा आयोजित दुर्गा पूजा खास होता है. यहां मां दुर्गा की पूजा पूरे विधि विधान से 65 वर्षीय लुखी मुर्मू करती हैं. खास बात ये है कि पूजा के दौरान मंत्रोच्चार संथाली भाषा में होता है (Mantra of Durga Puja is chanted in Santhali).

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दुमका जिले के सदर प्रखंड के कड़हलबिल के पहाड़ी के ऊपर वर्ष पिछले 51 वर्षों से (1970- 71) दुर्गापूजा का आयोजन हो रहा है. इस पूजा की शुरुआत करने में महादेव मरांडी की महत्वपूर्ण भूमिका थी, जो 1979 में दुमका के विधायक बने थे और कर्पूरी ठाकुर के मंत्रिमंडल में सूचना एवं जनसंपर्क मंत्रालय का कामकाज संभाला था. महादेव मरांडी ने सफा होड़ सांस्कृतिक समिति की स्थापना की थी. इसी सफा होड़ समिति के सदस्य उस वक्त से लगातार पहाड़ी के ऊपर दुर्गापूजा का आयोजन कर रहे हैं. यहां की खासियत यह है कि कम संसाधन और व्यवस्था की कमी की वजह से कहीं कोई तामझाम नजर नहीं आता. यहां मां दुर्गा की पूजा पूरे विधि विधान से 65 वर्षीय लुखी मुर्मू करती हैं. उन्हें यहां गुरु माता कहा जाता है, जो मंदिर की पुजारिन हैं.

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संथाली भाषा में होता है मंत्रोच्चार: यहां की सबसे बड़ी खासियत यह है कि 65 वर्षीय लुखी मुर्मू में संथाली भाषा में मां दुर्गा के सामने मंत्रोच्चार करती हैं और मां का आह्वान करती हैं. लुखी मुर्मू माता रानी से प्रार्थना करती है कि आपकी महिमा अपरंपार है, आप सर्वशक्तिमान हैं, सर्व व्यापी हैं, हम और हमारा समाज तुच्छ मात्र हैं, आप हम पर दया करें, हमारी झोली सुख समृद्धि और खुशियों से भर दें , हम आपके संतान हैं, हमारी सभी कष्टों को हर लें.

दूरदराज के भक्तों का लगता है जमावड़ा: संथाल समाज के जिस सफा होड़ समुदाय के द्वारा कड़हलबिल के पहाड़ी के ऊपर दुर्गापूजा का आयोजन होता है, उस समुदाय की खासियत यह होती है कि ये मांस, मदिरा से हमेशा दूर रहते हैं. ईश्वर के प्रति उनमें गहरी आस्था रहती है. यहां दुर्गापूजा के महानवमी के दिन झारखंड के साथ पश्चिम बंगाल और असम के श्रद्धालु भी यहां पहुंचते हैं. भक्तों का कहना है कि मां दुर्गा की शरण में आकर मन को काफी शांति मिलती है.

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