दुमकाः कहते हैं जहां चाह होती है वहीं से नयी राह निकल आती है और नयी सोच को दुनिया सलाम करती है. ऐसी ही एक नयी सोच की मिसाल पेश की है दुमका में बनकाठी मध्य विद्यालय के शिक्षकों और यहां के ग्रामीणों ने. जिन्होंने कोरोना काल और लॉकडाउन के वक्त नई पद्धति से बच्चों के बीच शिक्षा की अलख जगाए रखा. आज उनकी इस सोच को डॉक्यूमेंट्री फिल्म के माध्यम से ओटीटी प्लेटफॉर्म पर उतारा गया है.
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दुमका में सदर प्रखंड के बनकाठी मध्य विद्यालय की पढ़ाई भी बंद हो गई थी. जब साल 2020 में कोरोना ने दस्तक दी और पूरा देश लॉकडाउन की चपेट में था. झारखंड के हर छोटे-बड़े और सरकारी-गैर सरकारी सभी शिक्षण संस्थान पर ताला लग गया. ऑनलाइन क्लास एक जरिया बनकर उभरा, पर बिना स्मार्ट फोन और मजबूत नेटवर्क के बिना ऐसी पढ़ाई हर कहीं संभव नहीं था. ऐसे में बनकाठी गांव के मध्य विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्याम किशोर सिंह गांधी ने शिक्षकों के साथ बैठक कर पढ़ाई जारी रखने का निर्णय लिया.
कुछ अच्छा करने का फैसला तो लिया गया, पर इसके आड़े कई मुश्किलें थीं. मसलन सरकारी आदेश, कोविड प्रोटोकॉल का पालन, सोशल डिस्टेंसिंग समेत कई अटकलें थी. फिर भी बनकाठी के शिक्षकों ने हार नहीं मानी और ग्रामीणों के साथ राय-शुमारी करके नयी पद्धति से पढ़ाने की सोची. फिर शुरू हुई नये प्रयोग के साथ सफलता की एक नयी कहानी.
गांव की गलियों और घर के चबूतरे पर जमी पाठशाला
बनकाठी स्कूल में एक से आठ कक्षा वाले लगभग ढाई सौ बच्चे थे. कुछ ही बच्चों के माता-पिता के पास स्मार्ट फोन था. गांव में नेटवर्क की समस्या तो ऑनलाइन पढ़ाई सोची ही नहीं जा सकती. ऐसे में सभी बच्चों को स्कूल की जगह गांव की गलियों और घर के बाहर के चबूतरे में सोशल डिस्टेंसिंग कर बैठा दिया गया. सभी बच्चे अपने-अपने घर से बोरा लेकर आते और उस पर बैठ जाते. शिक्षकों की ओर से माईक और लाउडस्पीकर लगाया गया और शिक्षकों ने माइक से पढ़ाई शुरू करवा दी.
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इसके बाद जब झारखंड सरकार के शिक्षा विभाग की ओर से मोबाइल फोन पर स्टडी मैटेरियल भेजा गया तो उस स्टडी मैटेरियल को फोन में डाउनलोड कर उसे प्ले करके माइक के सामने रख दिया जाता और बच्चों को उसे सुनवाया जाता. धीरे-धीरे और दिन बीते, स्टडी मैटेरियल को सामने से देखकर पढ़ाई कराने के लिए तीन टेलीविजन की व्यवस्था हुई और इस तरह बच्चों की पढ़ाई लगातार जारी रही और उनका सिलेवस भी पूरा होने लगा.
शिक्षा की इस नयी पद्धति को गांव वालों का भी भरपूर साथ मिली. बस्ती और गली-कूचों के घरों की दीवारों पर बच्चों की मदद से ग्रामीणों विभिन्न पशु-पक्षियों के साथ पेड़-पौधों के चित्र उकेरे और उनके नाम अंग्रेजी और हिंदी में लिखे गए. इतना ही नहीं घर की बाहरी दीवारों पर अंग्रेजी और हिंदी वर्णमाला लिखी गई. किसी-किसी घर में गिनती का पहाड़ा भी लिखा गया है. जिससे बच्चे उससे अपनी पढ़ाई पूरी कर सके.
शिक्षकों के साथ आए गांव के युवा
जब बच्चों की पढ़ाई लॉकडाउन और कोरोना काल में भी अच्छे से चलने लगी तो शिक्षकों को ग्रामीणों का भी साथ मिला. गांव के युवक-युवतियां जो पढ़े लिखे थे, वो भी शिक्षकों के साथ आकर बच्चों को पढ़ाने लगे. उनका कहना था कि हमारे गांव-घर के बच्चे हैं, शिक्षक जब इतनी मेहनत कर रहे हैं तो फिर हम क्यों ना करें. उनका कहना था कि भले ही हमें बच्चों को पढ़ाने का कोई मेहनताना नहीं मिलता पर हमें खुशी हो रही है कि हम अपने बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं.
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प्रयोग रहा सफल, सराहना मिली अब बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म
कोरोना काल में बनकाठी मध्य विद्यालय के शिक्षकों के द्वारा बच्चों की पढ़ाई सफलतापूर्वक होने लगी तो इस नए प्रयोग ने काफी सुर्खियां बटोरीं. 2021 में भी जब कोरोना की दूसरा लहर शुरू हुई तो भी वहां के शिक्षकों ने इस पद्धति से पढ़ाई जारी रखा. इस स्कूल का यह प्रयोग दूर-दूर तक पहुंचा. साथ ही इस पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बन गई. इसका नाम है, बनकाठी - शिक्षा आपके द्वार, इस फिल्म का निर्देशन सत्यजीत शर्मा ने किया है. इसे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर MX Player पर रिलीज किया गया है.
आज भी जारी है पढ़ाई
कई बार ऐसा देखा जाता है कि सफलता मिल गई, सुर्खियां बटोर ली गई, उसके बाद उस कार्य के प्रति शिथिलता बरती जाती है. लेकिन बनकाठी गांव में बच्चों की पढ़ाई लगातार वैसे ही जारी है जैसे शुरू की गई थी. आज भी बच्चे गांव की गलियों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए पढ़ते नजर आ रहे हैं. उसी प्रकार गांव की युवतियां शिक्षकों के साथ मिलकर अपने आने वाली पीढ़ी के भविष्य संवारने में लगी हुई हैं.
क्या कहते हैं प्रधानाध्यापक
बच्चों को पढ़ा रहे बनकाठी मध्य विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्याम किशोर सिंह गांधी से हमने बात की. उन्होंने कहा कि हमलोगों ने एक सकारात्मक पहल किया था जो काफी सफल साबित हुआ. हमारे प्रयास कि जब सराहना हुई तो इससे हमारा मनोबल काफी बढ़ा और हम दोगुने उत्साह से अपने काम में आज भी लगे हुए हैं.
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क्या कहते हैं विद्यालय के बच्चे और ग्रामीण
गांव की गलियों में बैठकर पढ़ रहे बच्चों से हमने बात की. उनका कहना था कि कोरोना की वजह से हमारा स्कूल बंद है, पर हमारे शिक्षकों ने पढ़ाई बंद नहीं किया, वह लगातार हमें पढ़ा रहे हैं. हमें टास्क मिल रहा है, हमारी पढ़ाई जारी है. शिक्षकों का साथ दे रहीं गांव की युवती मार्षिला टुडू कहती हैं कि हम यहां रोज पढ़ाते हैं क्योंकि शिक्षकों के द्वारा जब हमारे गांव के बच्चों के लिए इतना मेहनत किया जा रहा है तो हमारा भी फर्ज बनता है कि हम अपने बच्चों को पढ़ाएं उनका भविष्य संवारे.
यह स्कूल हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत- दुमका उपायुक्त
दुमका के बनकाठी मध्य विद्यालय के द्वारा 2020 और 2021 के कोरोना काल में नए-नए प्रयोग कर पढ़ाई जारी रखने के संबंध में हमने जिला के उपायुक्त रविशंकर शुक्ला से बात की. उन्होंने कहा कि बनकाठी गांव में जिस तरह से बच्चों को पढ़ाया जा रहा है वह हमारे लिए प्रेरणा स्रोत है. हमने सभी स्कूलों को इससे सीख लेने की बात कही है. उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से शिक्षकों का यह प्रयास सराहनीय है.
इस सकल प्रयास को सलाम
बनकाठी मध्य विद्यालय के शिक्षकों और ग्रामीणों ने जिस तरह से छोटे-छोटे बच्चे की पढ़ाई पिछले 2 साल से जारी रखे हुए है. इससे बच्चे खुश हैं, उनके अभिभावक खुश हैं, प्रशासन खुश है और पूरा समाज इसकी सराहना कर रहा है. हम भी इस सामुहिक प्रयास को सलाम करते हैं.