बोकारो: बेरमो उपचुनाव को लेकर कांग्रेस की सक्रियता साफ तौर पर दिखाई दे रही है. वहीं प्रमुख विपक्षी पार्टी बीजेपी का उम्मीदवार कौन होगा इसे लेकर संशय बरकरार है. दावेदार तो कई हैं लेकिन मुख्य दावेदारों में तीन नामों पर ही विशेष चर्चा हो रही है.
पूर्व सांसद रविंद्र पांडे, पूर्व विधायक योगेश्वर महतो बाटुल या मृगांक शेखर यह सवाल सबके लिए अभी तक पहेली बनी हुई है. पूर्व विधायक बाटुल भी अपनी उपस्थिति बनाये हुये हैं, तो वहीं पांच बार सांसद रहे रवींद्र पांडे पार्टी के निर्णय को सर्वोपरि कहकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं. पूर्व सांसद रवींद्र पांडे का कहना है कि पार्टी का आदेश होगा तो मैं चुनाव लड़ने को तैयार हूं अन्यथा जो भी प्रत्याशी होगा उसे जिताने के लिये जो भी करना होगा किया जायेगा. भाजपा प्रदेश कार्यसमिति सदस्य मृगांक शेखर उपचुनाव को लेकर काफी संजीदा दिख रहे हैं. मृगांक के चुनाव में उसके सामने कौन है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. मुझे इस बात की संतुष्टि हैं कि भाजपा का एक एक कार्यकर्ताओं का भरोसा मेरे साथ है. मेरा जन्म बेरमो विधानसभा क्षेत्र के गोविंदपुर कोलियरी में हुआ, शुरुआती शिक्षा भी यही हुई उसके बाद में रजरप्पा डीएवी में पढ़ाई हुई. उसके बाद मध्य प्रदेश के ग्लावियर स्थित सिंधिया स्कूल में चौथी क्लास में एडमिशन हुआ. वहां से मैट्रिक पास करने के बाद मूझे 100 फीसदी स्कॉलरशिप मिली तो इंग्लैंड चला गया. लौटकर कर्नाटक से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इलेक्ट्रिकल में इंजीनियरिंग किया. एडीजी ग्लोबल और आरएसएम इंटरनेशनल में सात साल तक कॉरपोरेटिव से जुड़ा रहा.
'2019 से शुरू किया काम'
रांची से आईआईएम से एमबीए किया और एक एडैक्मिक प्रोजेक्ट से जुड़ा रहा, इसी सिलसिले में बेरमो आना जाना शुरू हुआ. अपने प्रोजेक्ट के लिए सर्वे के दौरान लोगों से मिलने लगा. जुलाई 2019 में मैंने यहां काम करना शुरू किया और सितंबर तक यह एक राजनीतिक रंग ले लिया. कांग्रेस का प्रेस कान्फ्रेंस मुझे राजनीति में लेकर आ गया. उसमें मेरे काम को राजनीति से जोड़कर देखा गया, जिसका नतीजा है कि आज मैं राजनीति में हूं. मृगांक शेखर बेरमो को अपना कार्यक्षेत्र बनाने के सवाल पर तर्क देते हैं कि मेरे नाना जी स्व. शंकर दयाल सिंह कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं. बाघमारा उनका चुनाव क्षेत्र था, जिसका सीधा प्रभाव बेरमो में भी पड़ता था. कोलियरी क्षेत्र होने के चलते यूनियन से भी जुड़े हुए थे. धनबाद से सांसद भी हुये और 80 के दशक तक नानाजी राजनीति से जुड़े रहे. बेरमो और धनबाद का राजनीतिक संबंध बना रहा. पिताजी का सीसीएल में अधिकारी होने की वजह से बेरमो से हमेशा लगाव रहा.
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'मेरी लड़ाई किसी व्यक्ति या परिवार से नहीं'
उन्होंने कहा कि बेरमो का उपचुनाव मेरे लिए आसान रहेगा या मुश्किल ये तो समय के गर्त में है. लोगों का कहना है कि आपका नाम टिकट के दावेदारों में सबसे ऊपर चल रहा है तो ऐसे मामले में मुझे सिर्फ इतना कहना है कि इसे लेकर मैं एक्साइटमेंट तो फील नहीं कर रहा परंतु खुश जरूर हूं. जहां मैने जन्म लिया वहीं के जनता की सेवा का मौका मिलता है तो खुशी होगी. यहां की समस्या का निराकरण कर सकूं इससे अधिक आत्मसंतुष्टि और क्या हो सकती है. चुनाव में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा होती है, व्यक्तिगत नहीं. मेरी लड़ाई यहां किसी एक व्यक्ति या परिवार से है ही नहीं. मैं ओछी राजनीति नहीं करता हूं, मैं क्षेत्र के ज्वलंत मुद्दों के समाधान को लेकर संघर्ष करूंगा. विस्थापन और बेरोजगारी की समस्या का निराकरण कैसे हो इसको लेकर मंथन होगा. भाजपा के सभी कार्यकताओं का सहयोग मिल रहा है, भाजपा एक संगठन है और चुनाव संगठन लड़ता है व्यक्ति नहीं. इसलिए जीत भाजपा की होगी व्यक्ति का नहीं, पार्टी अगर भरोसा करती है तो जनता के आशीर्वाद से यह सीट भाजपा की होगी.