कोरापुट : ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से करीब 488 किलोमीटर दूर कोरापुट जिला पहाड़ियों और जंगलों से घिरा हुआ है. यहां की आबादी का आधा हिस्सा यानी 50.56 फीसदी आदिवासियों का है. 49.21 फीसदी साक्षरता दर वाले इस जिले के पिछड़ेपन का अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि यहां के लोगों के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना भी मुश्किल है.
ऐसे में इनके बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लासेस किसी सपने के जैसा है. इनमें ज्यादातर के पास पास स्मार्ट फोन ही नहीं है, फिर भला ऑनलाइन क्लासेस कैसे करें? आखिर व्हाट्सएप पर आए पढ़ाई के वीडियोज को कैसे देखें? सरकार ने बच्चों को नई किताबें तो थमा दी हैं, लेकिन टीचर के बिना उसे समझना बच्चों के लिए बड़ी चुनौती है. यहां की एक आशा कार्यकर्ता ने बताया कि उसके पास स्मार्ट फोन है, लेकिन अपने कामकाज के कारण, वह बच्चों को समय नहीं दे पाती.
राज्य के शिक्षा विभाग ने वाट्सएप के जरिए छात्रों के साथ जुड़ने का कार्यक्रम तो शुरू किया है, लेकिन उसका नतीजा सिफर है. सातवीं की छात्रा सुनी किरसानी ने ईटीवी भारत को बताया कि वह पढ़ाई नहीं कर पाती है क्योंकि उसके पास मोबाइल नहीं है. ऐसा ही हाल दसवीं के छात्र हितेश बाग का भी है. हितेश ने कहा कि उसके पास बड़ा मोबाइल नहीं है.
उसके पिता मोबाइल लेकर काम पर चले जाते हैं. वहीं अभिभावकों के अनुसार सभी बच्चों को मोबाइल संभालना नहीं आता है और सभी के पास मोबाइल है भी नहीं. कई माता-पिता अनपढ़ हैं. नेटवर्क भी यहां एक मुद्दा है. ज्यादातर समय बिजली नहीं रहती है. स्थानीय मदन किरसानी ने सवाल किया कि ऑनलाइन क्लासेस हास्यास्पद है. इस गांव में व्हाट्सएप से पढ़ाई की सलाह किसने दे दी?
एक ओर देश डिजिटल युग में कदम रख चुका है और शहरों में नई तकनीक से पढ़ाई हो रही है. वहीं दूसरी ओर पिछड़े इलाकों में ऑनलाइन क्लास की बात करना भी बेमानी है. इस ओर शायद गंभीरता से सोचा ही नहीं गया. कोरापुट के जिला शिक्षा अधिकारी रामचंद्र नाहाक ने भी माना कि केवल साठ से सत्तर फीसदी छात्र ही इस सुविधा का लाभ उठा पाएंगे. पिछड़े इलाकों के सभी बच्चों तक वाट्सएप के जरिए शिक्षा पहुंचाने की कोशिश मृगतृष्णा बन गई है.
ऑनलाइन क्लासेस की बातें सुनना आधुनिकता का अहसास कराता है, लेकिन वास्तविकता बिलकुल अलग है. राज्य सरकार विकसित जिलों में सफलता के बाद इसे पिछड़े जिलों में भी कामयाब बनाना चाहती हैं लेकिन ऐसा लगता है कि वह शहरों और गांवों में उपलब्ध सुविधाओं के बुनियादी अंतर को ही भूल गई है.