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नगर निगम संग्राम: भाजपा को वर्चस्व तो कांग्रेस को किला भेदने की चुनौती

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Published : Apr 6, 2021, 2:29 PM IST

1972 को सोलन का निर्माण होने के बाद जिला सोलन को अब नगर निगम का दर्जा मिल चुका है. सोलन नगर निगम के 17 वार्ड हैं, जिनमे करीब 36,435 मतदाता हैं. प्रदेश की दूसरी नगर परिषद सोलन इस बार नगर निगम बन गई है. यह पहला मौका है जब यहां नगर निगम के चुनाव होने जा रहे हैं.

Solan got the status of Municipal Corporation
फोटो

सोलन : मां शूलिनी की नगरी सोलन, जो आज देश के साथ-साथ विदेश में भी विख्यात है, देश में अगर सबसे तेज गति से बढ़ते शहरों की गिनती की जाए तो सोलन का नाम सबसे पहले आता है, जहां सोलन को मशरूम सिटी ऑफ इंडिया, रेड गोल्ड सिटी ऑफ इंडिया और औद्योगिक हब के नाम से जाना जाता है. वहीं, अब सोलन को नगर निगम का दर्जा भी मिल चुका है.

सोलन को मिला नगर निगम का दर्जा

04 सिंतबर 1972 को सोलन का निर्माण होने के बाद जिला सोलन लगातार विकास की राह पर चल रहा है, लेकिन अब विकास की गति से जिला और तेजी से बढ़ने वाला है. क्योंकि सोलन को अब नगर निगम का दर्जा मिल चुका है. सोलन नगर निगम के 17 वार्ड हैं, जिनमे करीब 36,435 मतदाता हैं. प्रदेश की दूसरी नगर परिषद सोलन इस बार नगर निगम बन गई है. नगर परिषद में यहां पर अब तक भाजपा अपना वर्चस्व बनाए रखने में कामयाब हुई है. वहीं, कांग्रेस दूसरे पायदान पर है. वहीं अब हो रहे चुनाव में भाजपा अपना वर्चस्व बचाने और कांग्रेस भाजपा का किला भेदने के लिए मैदान में उतर चुकी है.

1950 में हुआ था सोलन नगर परिषद का गठन

सोलन नगर परिषद का गठन वैसे तो 1950 में हो गया था लेकिन पहला चुनाव यहां 1960 में हुआ, जिसे मोहन मीकिन समूह के मालिक एनएन मोहन ने जीता और लगातार नौ वर्ष तक शहर पर राज किया. इसके बाद 1969 में फिर चुनाव हुए और केजी खन्ना को अध्यक्ष बनने का मौका मिला. केजी खन्ना भी मोहन मीकिन समूह से ही संबंध रखते थे. इसके बाद एचएन हांडा और ब्रिगेडियर कपिल मोहन ने भी शहर की नगर परिषद में सत्ता संभाली. यहां लगातार 16 वर्ष तक मोहन मीकिन परिवार ने ही अपना दबदबा कायम रखा. इस समय तक यहां निर्दलीय चुनाव होते रहे.

1996 से 2000 तक बिंदल रहे अध्यक्ष

वर्ष 1996 में पहले चुनाव ऐसे हुए जिसमें कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों ने अपने समर्थित प्रत्याशियों को मैदान में उतारा और पहली जीत भाजपा को राजीव बिंदल ने दिलाई. राजीव बिंदल यहां 1996 से 2000 तक अध्यक्ष रहे और उसके बाद विधानसभा के लिए चुन लिए गए. उनके विधानसभा जाने के बाद कांग्रेस ने यहां शम्मी साहनी के रुप में अपना खाता खोला और उसके बाद से लगातार यहां कांग्रेस और भाजपा समर्थित उम्मीदवारों की जीत-हार होती रही है. पहली बार हो रहे नगर निगम के चुनाव अब यह पहला मौका है जब यहां नगर निगम के चुनाव होने जा रहे हैं और कांग्रेस और भाजपा दोनों बड़ी पार्टियां यहां अपने-अपने कार्यकर्ताओं को टिकट के आधार पर मैदान में उतारने जा रही हैं.

नगर परिषद में कब किसकी रही सरदारी

नगर परिषद सोलन पर नवंबर 1960 से लेकर 1969 तक एनएन मोहन अध्यक्ष बने. उसके बाद अगस्त 1969 से जून 1975 तक केजी खन्ना, जुलाई 1975 से मार्च 1976 तक एचएन हांडा, मार्च 1976 में ब्रिगेडियर कपिल मोहन यहां अध्यक्ष बने. हालांकि, इसके बाद 1976 से 1996 तक यहां लगभग 20 वर्ष तक नगर परिषद में चुनाव नहीं हुए. वर्ष 1996 में जब दोबारा चुनाव हुए तो राजीव बिदल यहां अध्यक्ष बने और उन्होंने जनवरी 1996 से फरवरी 2000 तक बतौर अध्यक्ष सेवाएं दीं. इसके बाद कांग्रेस समर्थित शम्मी साहनी जवनरी 2001 से फरवरी 2002 तक अध्यक्ष रहीं. जून 2002 में कांग्रेस समर्थित पूनम ग्रोवर ने अध्यक्ष का जिम्मा संभाला, जनवरी 2006 से जनवरी 2011 तक यहां भाजपा समर्थित देवेंद्र ठाकुर अध्यक्ष रहे.

कांग्रेस समर्थित कुल राकेश पंत जनवरी 2011 से जनवरी 2016 तक अध्यक्ष रहे. इसके बाद भाजपा समर्थित पवन गुप्ता जनवरी 2016 से जून 2017 तक अध्यक्ष रहे लेकिन अविश्वास प्रस्ताव के कारण उन्हें हटाया गया और एक माह के लिए मीरा आनंद को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद 2017 में भाजपा समर्थित देवेंद्र ठाकुर को दोबारा अध्यक्ष मनोनीत कर दिया गया और वर्तमान तक वह अध्यक्ष रहे.

ये भी पढ़े :- हिमाचल में अभी लॉकडाउन लगाना संभव नहीं, प्रदेश के लिए अर्थव्यवस्था सबसे महत्वपूर्ण: सीएम

सोलन : मां शूलिनी की नगरी सोलन, जो आज देश के साथ-साथ विदेश में भी विख्यात है, देश में अगर सबसे तेज गति से बढ़ते शहरों की गिनती की जाए तो सोलन का नाम सबसे पहले आता है, जहां सोलन को मशरूम सिटी ऑफ इंडिया, रेड गोल्ड सिटी ऑफ इंडिया और औद्योगिक हब के नाम से जाना जाता है. वहीं, अब सोलन को नगर निगम का दर्जा भी मिल चुका है.

सोलन को मिला नगर निगम का दर्जा

04 सिंतबर 1972 को सोलन का निर्माण होने के बाद जिला सोलन लगातार विकास की राह पर चल रहा है, लेकिन अब विकास की गति से जिला और तेजी से बढ़ने वाला है. क्योंकि सोलन को अब नगर निगम का दर्जा मिल चुका है. सोलन नगर निगम के 17 वार्ड हैं, जिनमे करीब 36,435 मतदाता हैं. प्रदेश की दूसरी नगर परिषद सोलन इस बार नगर निगम बन गई है. नगर परिषद में यहां पर अब तक भाजपा अपना वर्चस्व बनाए रखने में कामयाब हुई है. वहीं, कांग्रेस दूसरे पायदान पर है. वहीं अब हो रहे चुनाव में भाजपा अपना वर्चस्व बचाने और कांग्रेस भाजपा का किला भेदने के लिए मैदान में उतर चुकी है.

1950 में हुआ था सोलन नगर परिषद का गठन

सोलन नगर परिषद का गठन वैसे तो 1950 में हो गया था लेकिन पहला चुनाव यहां 1960 में हुआ, जिसे मोहन मीकिन समूह के मालिक एनएन मोहन ने जीता और लगातार नौ वर्ष तक शहर पर राज किया. इसके बाद 1969 में फिर चुनाव हुए और केजी खन्ना को अध्यक्ष बनने का मौका मिला. केजी खन्ना भी मोहन मीकिन समूह से ही संबंध रखते थे. इसके बाद एचएन हांडा और ब्रिगेडियर कपिल मोहन ने भी शहर की नगर परिषद में सत्ता संभाली. यहां लगातार 16 वर्ष तक मोहन मीकिन परिवार ने ही अपना दबदबा कायम रखा. इस समय तक यहां निर्दलीय चुनाव होते रहे.

1996 से 2000 तक बिंदल रहे अध्यक्ष

वर्ष 1996 में पहले चुनाव ऐसे हुए जिसमें कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों ने अपने समर्थित प्रत्याशियों को मैदान में उतारा और पहली जीत भाजपा को राजीव बिंदल ने दिलाई. राजीव बिंदल यहां 1996 से 2000 तक अध्यक्ष रहे और उसके बाद विधानसभा के लिए चुन लिए गए. उनके विधानसभा जाने के बाद कांग्रेस ने यहां शम्मी साहनी के रुप में अपना खाता खोला और उसके बाद से लगातार यहां कांग्रेस और भाजपा समर्थित उम्मीदवारों की जीत-हार होती रही है. पहली बार हो रहे नगर निगम के चुनाव अब यह पहला मौका है जब यहां नगर निगम के चुनाव होने जा रहे हैं और कांग्रेस और भाजपा दोनों बड़ी पार्टियां यहां अपने-अपने कार्यकर्ताओं को टिकट के आधार पर मैदान में उतारने जा रही हैं.

नगर परिषद में कब किसकी रही सरदारी

नगर परिषद सोलन पर नवंबर 1960 से लेकर 1969 तक एनएन मोहन अध्यक्ष बने. उसके बाद अगस्त 1969 से जून 1975 तक केजी खन्ना, जुलाई 1975 से मार्च 1976 तक एचएन हांडा, मार्च 1976 में ब्रिगेडियर कपिल मोहन यहां अध्यक्ष बने. हालांकि, इसके बाद 1976 से 1996 तक यहां लगभग 20 वर्ष तक नगर परिषद में चुनाव नहीं हुए. वर्ष 1996 में जब दोबारा चुनाव हुए तो राजीव बिदल यहां अध्यक्ष बने और उन्होंने जनवरी 1996 से फरवरी 2000 तक बतौर अध्यक्ष सेवाएं दीं. इसके बाद कांग्रेस समर्थित शम्मी साहनी जवनरी 2001 से फरवरी 2002 तक अध्यक्ष रहीं. जून 2002 में कांग्रेस समर्थित पूनम ग्रोवर ने अध्यक्ष का जिम्मा संभाला, जनवरी 2006 से जनवरी 2011 तक यहां भाजपा समर्थित देवेंद्र ठाकुर अध्यक्ष रहे.

कांग्रेस समर्थित कुल राकेश पंत जनवरी 2011 से जनवरी 2016 तक अध्यक्ष रहे. इसके बाद भाजपा समर्थित पवन गुप्ता जनवरी 2016 से जून 2017 तक अध्यक्ष रहे लेकिन अविश्वास प्रस्ताव के कारण उन्हें हटाया गया और एक माह के लिए मीरा आनंद को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद 2017 में भाजपा समर्थित देवेंद्र ठाकुर को दोबारा अध्यक्ष मनोनीत कर दिया गया और वर्तमान तक वह अध्यक्ष रहे.

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