नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गिर सोमनाथ जिले में ध्वस्तीकरण मामले मेंशुक्रवार को सुनवाई की. अदालत ने गुजरात के गिर सोमनाथ जिले में अब ध्वस्त हो चुकी दरगाह पर उर्स उत्सव आयोजित करने के अनुमति मांगने संबंधी आवेदन पर विचार करने से इनकार कर दिया. यह मामला जस्टिस बी आर गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच के समक्ष आया. अर्जी में 1 से 3 फरवरी तक उर्स उत्सव आयोजित करने की अनुमति मांगी गई थी.
सुनवाई के दौरान, गुजरात के अधिकारियों का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि, 1951 में, यह भूमि सरदार पटेल ने सोमनाथ ट्रस्ट को आवंटित की थी. कोई राहगीर अवमानना याचिका दायर कर रहा है और वह (शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित मामले में) मुख्य याचिकाकर्ता नहीं है. मेहता ने अदालत का ध्यान विध्वंस की प्रक्रिया और ध्वस्त की गई संरचनाओं की ओर दिलाया.
बेंच ने बताया कि, 8 अक्टूबर, 2023 को हटाने के पहले चरण में 26 अतिक्रमण हटाए गए, जिनमें से एक अतिक्रमणकारी हिंदू समुदाय का था. कोर्ट ने कहा कि, सभी धर्मों में, जो भी अनधिकृत था, उसे ध्वस्त कर दिया गया.
मेहता ने पीठ को बताया कि दूसरे चरण में 27 जनवरी 2024 को 174 अतिक्रमण हटाए गए, जिनमें हिंदू समुदाय के सभी मंदिर शामिल थे. मेहता ने दलील दी कि, तीसरे चरण में 27 जनवरी और 28 जनवरी 2024 को एक गांव से सार्वजनिक सड़कों पर 155 अतिक्रमण हटाए गए, जिनमें से 147 अतिक्रमण हिंदू समुदाय के सदस्यों के थे और 8 अतिक्रमण मुस्लिम समुदाय के थे.
मेहता ने कहा कि, चौथे चरण में 40 अतिक्रमण हटाए गए, जो सभी हिंदू समुदाय के सदस्यों के थे. पांचवे चरण में 102 एकड़ सरकारी जमीन को अतिक्रमण से मुक्त किया गया. उन्होंने जोर देकर कहा कि अवमानना की याचिका अदालत के उस आदेश की पृष्ठभूमि में दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि बिना प्रक्रिया के तोड़फोड़ नहीं की जानी चाहिए. हालांकि, अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया था कि सार्वजनिक स्थान या सरकारी जमीन पर किसी भी अतिक्रमण को नहीं बचाया जा सकता.
मेहता ने कहा कि,यह निर्विवाद रूप से सरकारी जमीन है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह भी कहा कि, उन्होंने अदालतों, निचली अदालत और हाई कोर्ट के समक्ष अवमाननायाचिका दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया. मेहता ने कोर्ट की बेंच के समक्ष स्पष्ट किया कि उक्त भूमि पर हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों सहित किसी भी गतिविधि की अनुमति नहीं दी जा रही है, जो पहले अतिक्रमण के अधीन थी. हालांकि, आवेदक की ओर से पेश हुए वकील ने तर्क दिया कि एक सरकारी अधिसूचना है कि यह एक संरक्षित स्मारक है, और बताया कि संरचना संरक्षित स्मारकों की सूची में थी.
इस पर जस्टिस गवई ने कहा कि, अधिकारियों ने दो मंदिरों को ध्वस्त कर दिया है. पुरातत्व विभाग की प्रतिक्रिया का हवाला देते हुए, मेहता ने तर्क दिया कि विभाग ने कहा था कि 2023 में इस विध्वंस से पहले, उन्होंने एक सर्वेक्षण किया था और विभाग को कोई पुरातात्विक स्मारक नहीं मिला था और एक साल पहले विस्तृत कार्यवाही हुई थी. वहीं, आवेदक के वकील ने कहा कि, वहां एक दरगाह थी, जिसे अधिकारियों ने ध्वस्त कर दिया. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दरगाह पर 'उर्स' उत्सव आयोजित करने की परंपरा पिछले कई सालों से चली आ रही है.
वकील ने आगे बताया कि, अधिकारियों ने गुरुवार को इसके लिए अनुमति देने से इनकार कर दिया था और अदालत से कम से कम 20 लोगों को इकट्ठा होने की अनुमति देने का अनुरोध किया था. जस्टिस गवई ने मेहता से कहा, "आपको किसी भी धार्मिक समारोह की अनुमति नहीं देनी चाहिए, यहां तक कि हिंदुओं को भी नहीं." मेहता ने जवाब दिया कि सोमनाथ ट्रस्ट है और इसे भी अधिकारियों से अनुमति नहीं मिली है. जस्टिस गवई ने आवेदक के वकील से सवाल किया, "अवमानना याचिका में, आप यह राहत कैसे मांग रहे हैं…"
दलीलें सुनने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, मुख्य मामले को सुने बिना आवेदन में प्रार्थना को स्वीकार नहीं किया जा सकता है. इसके साथ अदालत ने आवेदन को खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने 27 जनवरी को कहा था कि, वह तीन सप्ताह के बाद गिर सोमनाथ जिले में अदालत की पूर्व अनुमति के बिना आवासीय और धार्मिक संरचनाओं को कथित रूप से ध्वस्त करने के लिए गुजरात अधिकारियों के खिलाफ अवमानना याचिका सहित याचिकाओं पर सुनवाई करेगा.
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