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अमेरिकी मटर प्रजाति स्नोपीस का हिमाचल में उत्पादन शुरू, 300 रुपये किलो है कीमत

मटर प्रजाति स्नोपीस का हिमाचल में उत्पादन शुरू हो गया है. नौणी विवि ने लंबे शोध के बाद इस प्रजाति को विकसित किया है, जिससे अब हिमाचल में भी स्नोपीस मटर का उत्पादन हो सकेगा.

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Published : Nov 23, 2019, 7:46 PM IST

सोलन: अमेरिका में उत्पादित मटर प्रजाति स्नोपीस का हिमाचल में उत्पादन शुरू हो गया है. नौणी विवि ने लंबे शोध के बाद इस प्रजाति को विकसित किया है, जिससे अब हिमाचल में भी स्नोपीस मटर का उत्पादन हो सकेगा.शुरुआती दौर में अपर शिमला के क्षेत्रों में सेब के बगीचों में इसे प्रयोगिक तौर पर लगाया जा रहा है. देश के महानगरों और शहरों में विदेशी सब्जियों की बढ़ती मांग को देखते हुए कृषि वैज्ञानिक आवश्यकता और बागवानी फसल पैटर्न में बदलाव की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं.

डॉ. वाईएस परमार उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के तहत काम कर रहे कृषि विज्ञान केंद्र शिमला की सक्रिय पहल से किसान और वैज्ञानिकों को काफी उत्साह जनक परिणाम मिले हैं. विदेशी सब्जियां स्नोपीस (सलाद के मटर), लेट्यूस, पोकचोई, केल, कौरगेटस, चेरी, टमाटर और बीज रहित खीरों पर किसानों के खेतों में परीक्षण केंद्र लगाए हैं.

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कृषि विज्ञान केंद्र शिमला में कार्यरत सब्जी वैज्ञानिक डॉ. अशोक ठाकुर उपयुक्त उत्पादन क्षेत्र के चयन और इन सब्जियों के रोपण सीजन के लिए विभिन्न मौसमों में परीक्षण कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि केंद्र के कई विविधीकरण पहलों में से एक किसान के खेत में स्नोपीस की ऑफ-सीजन खेती का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया गया है.

दिल्ली में 200 से 300 रुपये प्रति किलो हुई बिक्री.

तहसील रोहड़ू के शीलगांव के किसान राकेश दुल्टा ने बताया कि उन्होंने खेत में स्नोपीस फली किस्म के परीक्षणों में करीब सात क्विंटल प्रति बीघा की उत्पादकता प्राप्त की है. उच्च गुणवत्ता वाला ये उत्पाद नई दिल्ली की आजादपुर सब्जी मंडी में 200 से 300 रुपये प्रति किलोग्राम बीक रहा है. परिणामों से उत्साहित, राकेश दुल्टा अब साथी किसानों को स्नोपीस और अन्य विदेशी सब्जियों की व्यावसायिक खेती को अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं.

सोलन: अमेरिका में उत्पादित मटर प्रजाति स्नोपीस का हिमाचल में उत्पादन शुरू हो गया है. नौणी विवि ने लंबे शोध के बाद इस प्रजाति को विकसित किया है, जिससे अब हिमाचल में भी स्नोपीस मटर का उत्पादन हो सकेगा.शुरुआती दौर में अपर शिमला के क्षेत्रों में सेब के बगीचों में इसे प्रयोगिक तौर पर लगाया जा रहा है. देश के महानगरों और शहरों में विदेशी सब्जियों की बढ़ती मांग को देखते हुए कृषि वैज्ञानिक आवश्यकता और बागवानी फसल पैटर्न में बदलाव की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं.

डॉ. वाईएस परमार उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के तहत काम कर रहे कृषि विज्ञान केंद्र शिमला की सक्रिय पहल से किसान और वैज्ञानिकों को काफी उत्साह जनक परिणाम मिले हैं. विदेशी सब्जियां स्नोपीस (सलाद के मटर), लेट्यूस, पोकचोई, केल, कौरगेटस, चेरी, टमाटर और बीज रहित खीरों पर किसानों के खेतों में परीक्षण केंद्र लगाए हैं.

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कृषि विज्ञान केंद्र शिमला में कार्यरत सब्जी वैज्ञानिक डॉ. अशोक ठाकुर उपयुक्त उत्पादन क्षेत्र के चयन और इन सब्जियों के रोपण सीजन के लिए विभिन्न मौसमों में परीक्षण कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि केंद्र के कई विविधीकरण पहलों में से एक किसान के खेत में स्नोपीस की ऑफ-सीजन खेती का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया गया है.

दिल्ली में 200 से 300 रुपये प्रति किलो हुई बिक्री.

तहसील रोहड़ू के शीलगांव के किसान राकेश दुल्टा ने बताया कि उन्होंने खेत में स्नोपीस फली किस्म के परीक्षणों में करीब सात क्विंटल प्रति बीघा की उत्पादकता प्राप्त की है. उच्च गुणवत्ता वाला ये उत्पाद नई दिल्ली की आजादपुर सब्जी मंडी में 200 से 300 रुपये प्रति किलोग्राम बीक रहा है. परिणामों से उत्साहित, राकेश दुल्टा अब साथी किसानों को स्नोपीस और अन्य विदेशी सब्जियों की व्यावसायिक खेती को अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं.

Intro:
Himachal Farmers Will Be Rich With Peas Of America, Nauni University Did Successful Production


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अमेरिका के मटर से मालामाल होंगे हिमाचल के किसान, नौणी विवि ने किया सफल उत्पादन

:- अमेरिका में उत्पादित मटर प्रजाति स्नोपीस का हिमाचल में उत्पादन शुरू

:-रोहड़ू के शीलगांव के किसान राकेश दुल्टा बने हिमाचल के पहले स्नोपीस की ऑफ-सीजन खेती करने वाले सफल किसान

:- 200-300 रुपये बिक रही मटर की यह प्रजाति



अब हिमाचल के किसान मटर की खेती से मालामाल होने वाला है, ये हम नहीं नौणी विश्विद्यालय द्वारा अमेरिका में उत्पादित मटर का हिमाचल के किसान द्वारा सफल उत्पादन करना बता रहा है।

अमेरिका में उत्पादित मटर प्रजाति स्नोपीस का हिमाचल में उत्पादन शुरू हो गया है। नौणी विवि ने लंबे शोध के बाद इस प्रजाति को विकसित किया है ताकि हिमाचल के वातावरण में स्नोपीस का उत्पादन हो सके और अब शुरूआत दौर में अपर शिमला के क्षेत्रों में सेब के बगीचों में इसे प्रायोगिक तौर पर लगाया जा रहा है।


देश के महानगरों, शहरों और पर्यटन स्थलों में विदेशी सब्जियों की बढ़ती मांग को देखते हुए कृषि वैज्ञानिक आवश्यकता और बागवानी फसल पैटर्न में बदलाव की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। डॉ. वाईएस परमार उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के अधीन कार्य कर रहे कृषि विज्ञान केंद्र शिमला की सक्रिय पहल से किसान और वैज्ञानिकों को काफी उत्साह जनक परिणाम मिले हैं। विदेशी सब्जियां स्नोपीस (सलाद के मटर), लेट्यूस, पोकचोई, केल, कौरगेटस, चेरी टमाटर और बीज रहित खीरे पर किसान के खेतों में परीक्षण लगाए हैं।

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कृषि विज्ञान केंद्र शिमला में कार्यरत सब्जी वैज्ञानिक डॉ. अशोक ठाकुर उपयुक्त उत्पादन क्षेत्र के चयन और इन सब्जियों के रोपण सीजन के लिए विभिन्न मौसमों में परीक्षण कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि केंद्र के कई विविधीकरण पहलों में से एक किसान के खेत में स्नोपीस की ऑफ-सीजन खेती का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया गया है।


दिल्ली में 200 से 300 रुपये प्रति किलो हुई बिक्री.......
तहसील रोहड़ू के शीलगांव के किसान राकेश दुल्टा ने बताया कि उन्होंने खेत में स्नोपीस फली किस्म के परीक्षणों में लगभग सात क्विंटल प्रति बीघा की उत्पादकता प्राप्त की है। उच्च गुणवत्ता वाला यह उत्पाद नई दिल्ली की आजादपुर सब्जी मंडी में 200-300 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत से बिका। परिणामों से उत्साहित, राकेश दुल्टा अब साथी किसानों को स्नोपीस और अन्य विदेशी सब्जियों की व्यावसायिक खेती को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।


Conclusion:

ऊंची और मध्यम पहाड़ियों पर हो सकता है उत्पादन......
डॉ. अशोक ठाकुर ने बताया कि विभिन्न विदेशी सब्जियों को सफलता पूर्वक मध्य और ऊंची पहाडिय़ों में उगाया जा सकता है। यह किसानों की आय बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप हो सकता है। ये फसलें सेब और अन्य फलों की फसलों के साथ उत्पादन के लिए सबसे उपयुक्त हैं। केवीके शिमला के प्रभारी डॉ एनएस कैथ ने कहा कि सेब उगाने वाले क्षेत्रों का कम अवधि के उच्च मूल्य वाली नकदी फसलों के साथ विविधीकरण पहाड़ी राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए एक वरदान बन सकता है।


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