ETV Bharat / bharat

ग्लोबल साउथ पर जी-20 का फोकस विकासशील देशों के लिए महत्वपूर्ण, बोले पूर्व राजनयिक जितेंद्र त्रिपाठी - G20 SUMMIT

ब्राजील के रियो डि जेनेरियो में जी-20 समिट के बाद ब्राजील प्रमुख समूह की अध्यक्ष दक्षिण अफ्रीका को सौंप देगा, जो महत्वपूर्ण वैश्विक मंच की अध्यक्षता करने वाला पहला अफ्रीकी देश होगा. चंद्रकला चौधरी की रिपोर्ट.

G20 focus on the Global South makes it a crucial platform for reforms benefiting the developing nations
जी-20 समिट में पीएम मोदी (ANI)
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 18, 2024, 11:02 PM IST

नई दिल्ली: कोविड महामारी और मध्य-पूर्व तथा यूक्रेन में संघर्षों सहित बड़े भू-राजनीतिक चुनौतियों के मद्देनजर, उभरती अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक शासन के पश्चिमी-प्रभुत्व वाले ढांचों के विकल्प की तलाश कर रही हैं. जी-20 और ब्रिक्स जैसे मंच अधिक बहुध्रुवीय विश्व की इस इच्छा को मजबूत करते हैं.

वर्तमान में, ब्राजील जी-20 समिट की मेजबानी कर रहा है, जिसने 2023 में भारत से समूह की अध्यक्षता ग्रहण की थी. जी-20 समिट के आयोजन के बाद ब्राजील दक्षिण अफ्रीका को अध्यक्षता सौंप देगा, जिससे राष्ट्रों के बीच सहयोग का रचनात्मक चक्र जारी रहेगा. यह लगातार चौथा वर्ष है जब जी-20 की अध्यक्षता ग्लोबल साउथ के किसी देश ने की है, जिसकी शुरुआत 2022 में इंडोनेशिया से हुई थी. जी-20 का नेतृत्व करना न सिर्फ विकासशील देशों के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है, बल्कि वैश्विक मुद्दों पर अधिक समावेशी संवाद को भी प्रोत्साहित करता है.

इसके अलावा, ब्रिक्स समूह ग्लोबल साउथ के देशों के लिए जरूरी मंच के रूप में उभरा है, जो इन देशों को अपनी जरूरतों और चिंताओं को व्यक्त करने के लिए सहयोगी स्थान प्रदान करता है, जिससे एकता और प्रगति की भावना को बढ़ावा मिलता है.

दरअसल, दक्षिण अफ्रीका महत्वपूर्ण वैश्विक मंच जी-20 की अध्यक्षता करने वाला पहला अफ्रीकी देश होगा. लंबे समय से, यह पूरे अफ्रीका महाद्वीप की एकमात्र आवाज रहा है. पिछले साल, अफ्रीकी संघ भारत की अध्यक्षता में जी-20 का स्थायी सदस्य बना था. यह बदलाव मंच को और अधिक समावेशी बनाता है और विश्व राजनीति से अलग रखे गए देशों को अपनी बात रखने का मौका देता है.

ब्राजील के साओ पाउलो में भारत के राजदूत रहे जितेंद्र त्रिपाठी ने ग्लोबल साउथ की आवाज के रूप में भारत की भूमिका पर बात की. दिल्ली में ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता चंद्रकला चौधरी से एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में त्रिपाठी ने कहा, "भारत ने पिछले साल जनवरी में अपनी पहली जी-20 वर्चुअल बैठक की मेजबानी करके ग्लोबल साउथ की वकालत करने का बीड़ा उठाया था. इस पहल के बाद इस उद्देश्य को लेकर कई बैठकें आयोजित की गईं, जिसका समापन सितंबर में भारत में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन में हुआ, जिसमें 54 देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले अफ्रीकी संघ की भागीदारी भी शामिल थी. इस विकास ने ग्लोबल साउथ पर जी-20 के फोकस को रेखांकित किया, जिससे इसे इन देशों को लाभ पहुंचाने वाले सुधारों के लिए महत्वपूर्ण मंच के रूप में स्थापित किया गया."

पूर्व राजनयिक ने कहा कि इसके बाद, ब्रिक्स प्लस में कई अन्य देशों को शामिल करने के लिए विस्तार किया गया है. रूस को शुरू में विकसित राष्ट्र के रूप में देखा गया था और सऊदी अरब को अभी भी पूरी तरह से शामिल होना बाकी है, यूएई जैसे अन्य सदस्य अभी भी विकासशील राष्ट्र माने जाते हैं. यह दर्शाता है कि ब्रिक्स प्लस काफी हद तक ग्लोबल साउथ से प्रभावित है. इस संदर्भ में भारत की भूमिका उल्लेखनीय रूप से अनूठी और हितकारी है. भारत ग्लोबल साउथ के अनौपचारिक लेकिन व्यापक रूप से स्वीकृत प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है और पिछले आठ वर्षों से जी-7 शिखर सम्मेलन में भागीदार भी रहा है. यह दोहरी स्थिति भारत को ग्लोबल साउथ और अमीर देशों के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करने, विकासशील देशों की चिंताओं पर बातचीत को सुविधाजनक बनाने और उनके हितों की वकालत करने की अनुमति देती है.

ट्रोइका सदस्य के रूप में भारत की भूमिका
त्रिपाठी ने इस बात पर जोर दिया कि भारत ने ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के साथ जी-20 ट्रोइका के हिस्से के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्होंने कहा, "ट्रोइका के हिस्से के रूप में, भारत ने लगातार युद्ध और हिंसक उपायों का सहारा लेने के बजाय संघर्षों के शांतिपूर्ण और बातचीत के जरिये समाधान की वकालत की है. इसी कोशिश में, भारत ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की और रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ-साथ इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू और फिलिस्तीनी राष्ट्रपति अब्बास सहित वैश्विक नेताओं के साथ चर्चा की है. यूक्रेन-रूस संघर्ष के संदर्भ में, राष्ट्रपति जेलेंस्की और राष्ट्रपति पुतिन दोनों ने भारत के सौहार्दपूर्ण समाधान हासिल करने के उद्देश्य से रचनात्मक बातचीत की सुविधा के लिए अपनी इच्छा व्यक्त की है. हालांकि, इस प्रक्रिया में अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो सैन्य गठबंधन द्वारा अपनाए गए दृढ़ रुख और इसी के अनुरूप रूस की स्थिति के कारण बाधा उत्पन्न हुई है. फिर भी, इस बात को लेकर आशावाद है कि डोनाल्ड ट्रंप की वापसी से बातचीत और तनाव कम करने के लिए अनुकूल माहौल बन सकता है. इस तरह के घटनाक्रम क्षेत्र में शांतिपूर्ण समाधान की संभावनाओं को काफी हद तक बढ़ा सकते हैं.

यह भी पढ़ें- G20 Summit: भुखमरी और गरीबी के खिलाफ ब्राजील की पहल का समर्थन, जी-20 समित में बोले पीएम मोदी

नई दिल्ली: कोविड महामारी और मध्य-पूर्व तथा यूक्रेन में संघर्षों सहित बड़े भू-राजनीतिक चुनौतियों के मद्देनजर, उभरती अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक शासन के पश्चिमी-प्रभुत्व वाले ढांचों के विकल्प की तलाश कर रही हैं. जी-20 और ब्रिक्स जैसे मंच अधिक बहुध्रुवीय विश्व की इस इच्छा को मजबूत करते हैं.

वर्तमान में, ब्राजील जी-20 समिट की मेजबानी कर रहा है, जिसने 2023 में भारत से समूह की अध्यक्षता ग्रहण की थी. जी-20 समिट के आयोजन के बाद ब्राजील दक्षिण अफ्रीका को अध्यक्षता सौंप देगा, जिससे राष्ट्रों के बीच सहयोग का रचनात्मक चक्र जारी रहेगा. यह लगातार चौथा वर्ष है जब जी-20 की अध्यक्षता ग्लोबल साउथ के किसी देश ने की है, जिसकी शुरुआत 2022 में इंडोनेशिया से हुई थी. जी-20 का नेतृत्व करना न सिर्फ विकासशील देशों के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है, बल्कि वैश्विक मुद्दों पर अधिक समावेशी संवाद को भी प्रोत्साहित करता है.

इसके अलावा, ब्रिक्स समूह ग्लोबल साउथ के देशों के लिए जरूरी मंच के रूप में उभरा है, जो इन देशों को अपनी जरूरतों और चिंताओं को व्यक्त करने के लिए सहयोगी स्थान प्रदान करता है, जिससे एकता और प्रगति की भावना को बढ़ावा मिलता है.

दरअसल, दक्षिण अफ्रीका महत्वपूर्ण वैश्विक मंच जी-20 की अध्यक्षता करने वाला पहला अफ्रीकी देश होगा. लंबे समय से, यह पूरे अफ्रीका महाद्वीप की एकमात्र आवाज रहा है. पिछले साल, अफ्रीकी संघ भारत की अध्यक्षता में जी-20 का स्थायी सदस्य बना था. यह बदलाव मंच को और अधिक समावेशी बनाता है और विश्व राजनीति से अलग रखे गए देशों को अपनी बात रखने का मौका देता है.

ब्राजील के साओ पाउलो में भारत के राजदूत रहे जितेंद्र त्रिपाठी ने ग्लोबल साउथ की आवाज के रूप में भारत की भूमिका पर बात की. दिल्ली में ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता चंद्रकला चौधरी से एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में त्रिपाठी ने कहा, "भारत ने पिछले साल जनवरी में अपनी पहली जी-20 वर्चुअल बैठक की मेजबानी करके ग्लोबल साउथ की वकालत करने का बीड़ा उठाया था. इस पहल के बाद इस उद्देश्य को लेकर कई बैठकें आयोजित की गईं, जिसका समापन सितंबर में भारत में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन में हुआ, जिसमें 54 देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले अफ्रीकी संघ की भागीदारी भी शामिल थी. इस विकास ने ग्लोबल साउथ पर जी-20 के फोकस को रेखांकित किया, जिससे इसे इन देशों को लाभ पहुंचाने वाले सुधारों के लिए महत्वपूर्ण मंच के रूप में स्थापित किया गया."

पूर्व राजनयिक ने कहा कि इसके बाद, ब्रिक्स प्लस में कई अन्य देशों को शामिल करने के लिए विस्तार किया गया है. रूस को शुरू में विकसित राष्ट्र के रूप में देखा गया था और सऊदी अरब को अभी भी पूरी तरह से शामिल होना बाकी है, यूएई जैसे अन्य सदस्य अभी भी विकासशील राष्ट्र माने जाते हैं. यह दर्शाता है कि ब्रिक्स प्लस काफी हद तक ग्लोबल साउथ से प्रभावित है. इस संदर्भ में भारत की भूमिका उल्लेखनीय रूप से अनूठी और हितकारी है. भारत ग्लोबल साउथ के अनौपचारिक लेकिन व्यापक रूप से स्वीकृत प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है और पिछले आठ वर्षों से जी-7 शिखर सम्मेलन में भागीदार भी रहा है. यह दोहरी स्थिति भारत को ग्लोबल साउथ और अमीर देशों के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करने, विकासशील देशों की चिंताओं पर बातचीत को सुविधाजनक बनाने और उनके हितों की वकालत करने की अनुमति देती है.

ट्रोइका सदस्य के रूप में भारत की भूमिका
त्रिपाठी ने इस बात पर जोर दिया कि भारत ने ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के साथ जी-20 ट्रोइका के हिस्से के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्होंने कहा, "ट्रोइका के हिस्से के रूप में, भारत ने लगातार युद्ध और हिंसक उपायों का सहारा लेने के बजाय संघर्षों के शांतिपूर्ण और बातचीत के जरिये समाधान की वकालत की है. इसी कोशिश में, भारत ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की और रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ-साथ इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू और फिलिस्तीनी राष्ट्रपति अब्बास सहित वैश्विक नेताओं के साथ चर्चा की है. यूक्रेन-रूस संघर्ष के संदर्भ में, राष्ट्रपति जेलेंस्की और राष्ट्रपति पुतिन दोनों ने भारत के सौहार्दपूर्ण समाधान हासिल करने के उद्देश्य से रचनात्मक बातचीत की सुविधा के लिए अपनी इच्छा व्यक्त की है. हालांकि, इस प्रक्रिया में अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो सैन्य गठबंधन द्वारा अपनाए गए दृढ़ रुख और इसी के अनुरूप रूस की स्थिति के कारण बाधा उत्पन्न हुई है. फिर भी, इस बात को लेकर आशावाद है कि डोनाल्ड ट्रंप की वापसी से बातचीत और तनाव कम करने के लिए अनुकूल माहौल बन सकता है. इस तरह के घटनाक्रम क्षेत्र में शांतिपूर्ण समाधान की संभावनाओं को काफी हद तक बढ़ा सकते हैं.

यह भी पढ़ें- G20 Summit: भुखमरी और गरीबी के खिलाफ ब्राजील की पहल का समर्थन, जी-20 समित में बोले पीएम मोदी

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.