सोलनः मानव भारती यूनिवर्सिटी पर 7 साल में 5 लाख फर्जी डिग्रियां बेचने के आरोप हैं. मामले में अब तक 3 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है और यूनिवर्सिटी का मालिक राजकुमार राणा फरार चल रहा है. पुलिस की शुरुआती जांच में सामने आए तथ्य बड़े गोरखधंधे की ओर इशारा कर रहे हैं.
इतने बड़े घोटाले के पीछे राजनीतिक संरक्षण और सरकारी अफसरों की मिलीभगत होने की भी पूरी आशंका है. फर्जी डिग्रियों के इस धंधे में अब तक क्या क्या खुलासे हुए हैं, आप इस रिपोर्ट में पढ़िए.
2009 में सोलन के कुमारहट्टी में मानव भारती चैरिटेबल ट्रस्ट ने मानव भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की. MBU की वेबसाइट के मुताबिक इसे हिमाचल सरकार, UGC, BCI, PCI, AICTE और NAAC से मान्यता प्राप्त है. MBU फार्मेसी, इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, कंप्यूटर सांइस, मैनेजमेंट और लॉ के कोर्सेज करवाता है.
मानव भारती यूनिवर्सिटी में बीते कई सालों से बड़े गड़बड़झाले की बू आ रही थी, लेकिन सरकार और जांच एंजेसियां मामले में ढील देती रहीं.
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अगस्त 2017 में निजी शिक्षण संस्थान नियामक आयोग ने डीजीपी को पत्र लिखकर कहा कि MBU में 103 डिग्रियां फर्जी पाई गई हैं. मामला सीआईडी को सौंपा गया, लेकिन मामले में कोई इन्वेस्टिगेशन नहीं हुई.
2018 में पुणे की स्पाइसर एडवेंटिस्ट यूनिवर्सिटी के वीसी रहे नोबल प्रसाद पिल्लई पीएचडी की डिग्री फर्जी पाई गई. पिल्लई के साथ 5 अन्य लोगों ने MBU से जाली डिग्रियां हासिल की थी. आरोप साबित होने के बावजूद MBU का धंधा चलता रहा.
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इसके बाद 30 अगस्त 2019 को लोगों से मिली शिकायतों के आधार पर UGC ने हिमाचल सरकार को एक लेटर जारी किया, जिसमें फर्जी डिग्रियां बेचने वाली देशभर की 13 यूनिवर्सिटीज के नाम थे. इसमें सोलन की मानव भारती यूनिवर्सिटी और शिमला की एपीजी यूनिवर्सिटी भी शामिल थीं.
लेटर के मुताबिक APG यूनिवर्सिटी ने 15 करीब हजार, तो MBU ने 7 सालों में करीब लाख डिग्रियां बेचीं. MBU ने डिग्रियां बेचने के लिए पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, यूपी, बिहार, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत में ऐजेंट रखे हैं. यहां तक कि विदेशी संस्थान की डिग्री तक खुद प्रिंट करके बेच डाली है. UGC ने लिखा कि मानव भारती यूनिवर्सिटी के संस्थापक ने इससे मोटी कमाई की.
चिट्ठी मिलने के बाद जयराम सरकार ने निजी शिक्षण संस्थान नियामक आयोग को जांच का जिम्मा सौंपा. आयोग ने फिर डीजीपी को पत्र लिख कर जांच की मांग की.
27 फरवरी को सदन में विपक्ष ने जब मामला उठाया तो शिक्षा मंत्री ने जवाब में कहा कि जितना हौवा बनाया गया, उतना बड़ा मामला नहीं है. राज्य निजी शिक्षण संस्थान नियामक आयोग और पुलिस एपीजी विश्वविद्यालय शिमला और मानव भारती विश्वविद्यालय सोलन के रिकॉर्ड की जांच कर रही है.
इसके बाद 3 मार्च को धर्मपुर थाने में एक पत्र आया जिसमें हरियाणा की एक महिला ने आरोप लगाया कि मनोविज्ञान स्नातकोत्तर में कक्षाएं लगाने के बावजूद MBU ने उसे फर्जी डिग्री प्रदान की है.
6 मार्च को पुलिस ने MBU में रेड की, कई दस्तावेज, हार्डडिस्क्स और लैपटॉप कब्जे में लिए. रद्दी के नीचे दबाए गए 2009 से 2015 के 305 डिटेल मार्क कार्ड और 15 डिग्रियां मिलीं.
मिले दस्तावेजों के आधार पर 7 मार्च को धर्मपुर थाने में मामला दर्ज किया गया. वहीं मामले को लेकर एसआईटी का गठन किया गया जिसमें प्रभारी एसपी सोलन अभिषेक यादव और एएसपी सोलन और डीएसपी शामिल हैं.
8 मार्च को गुप्तचर विभाग शिमला की 103 जाली डिग्रियों की शिकायत पर मामला दर्ज किया गया. 8 मार्च को ही MBU के मामलों में सहायक रजिस्ट्रार मनीष गोयल को गिरफ्तार किया गया जिसको 3 दिन हिरासत में रखा गया.
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10 मार्च को पुलिस ने मानव भारती यूनिवर्सिटी के एक कर्मचारी हरियाणा निवासी प्रमोद सिंह को गिरफ्तार किया, यह इस मामले में दूसरी गिरफ्तारी है. प्रमोद मानव भारती यूनिवर्सिटी में डाटा ऑपरेटर था और कंप्यूटर से संबंधित कामकाज में वही डील करता था.
जांच में पता चला कि MBU में पुलिस रेड के डर से दस्तावेज माधव यूनिवर्सिटी शिफ्ट किए गए थे. बता दें राजस्थान के माउंट आबू में स्थित माधव यूनिवर्सिटी का मालिक भी राजकुमार राणा ही है. एसआईटी ने प्रमोद सिंह की निशानदेही पर मंगलवार देर रात 12 बजे राजस्थान में माधव यूनिवर्सिटी में रेड की. यहां से 1376 खाली डिग्रियां, 14 मोहरें, 4 डिस्पैच रजिस्टर, 50 माइग्रेशन सर्टिफिकेट, 199 खाली ऐनवेलेप, 485 खाली पेपरहेड्स, 319 खाली डिटेल मार्क्स, 2 कंप्यूटर, 6 भरी हुई डिग्रियां और कई दस्तावेज मिले.
मानव भारती विवि के मालिक और फर्जी डिग्री मामले के मुख्य आरोपी राजकुमार राणा के साथ विवि की रजिस्ट्रार अनुपमा ने सोलन कोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए याचिका दाखिल की थी. शुक्रवार को सोलन कोर्ट ने अनुपमा की जमानत याचिका को खारिज कर दिया और राणा ने सुनवाई से पहले ही अपनी याचिका वापस ले ली. विवि की रजिस्ट्रार अनुपमा की जमानत याचिका खारिज होने के बाद पुलिस ने शुक्रवार को ही उसे गिरफ्तार कर लिया.
कोर्ट ने मामले में गिरफ्तार सहायक रजिस्ट्रार मनीष गोयल, कंप्यूटर ऑपरेटर प्रमोद सिंह और रजिस्ट्रार अनुपमा को 16 मार्च तक पुलिस रिमांड में भेजा.
अब तक की एसआईटी जांच में खुलासा हुआ है कि फर्जी डिग्रियां एक लाख रुपए तक में बेची गईं, जिससे राजकुमार राणा ने अरबों रुपये बनाए. जांच में राजकुमार राणा की कुछ महिला मित्रों की संलिप्तता भी सामने आई है, जिनके माध्यम से डिग्रियां पूरे भारत में बांटी गई हैं.
राजकुमार राणा मानव भारती और राजस्थान के माधव विश्वविद्यालय के मालिक हैं. पुलिस जांच में खुलासा हुआ है कि दोनों विश्वविद्यालयों से हजारों अन्य छोटे-छोटे संस्थानों ने मान्यता ली है. दो-दो कमरों में चल रहे कई संस्थानों के माध्यम से देश और प्रदेश के कोने-कोने में विभिन्न कोर्स करवाए जा रहे थे. पुलिस अब MBU से मान्यता प्राप्त संस्थानों पर भी रेड कर रही है.
वहीं ऊना के हरोली में भी डिग्री फर्जीवाड़े की शिकायत दर्ज हुई है. शिकायत के मुताबिक इंडस विश्वविद्यालय बाथुर ने 3 लड़कियों को अपने पास नौकरी दी और साथ ही उन्हें नियमित छात्राएं दिखाकर डिग्री दी. फिर उन्हीं डिग्रियों के आधार पर नौकरी का अनुभव प्रमाणपत्र प्रदान किया गया.
वहीं, UGC के पत्र के मुताबिक APG यूनिवर्सिटी में भी 15 हजार फर्जी डिग्रियां जारी करने का आरोप है. सीआईडी मामले में जांच कर रही है. इतने बड़े खुलासे के बाद प्रदेश के तमाम प्राइवेट विश्वविद्यालय भी शक के घेरे में आ गए हैं.