नाहनः हिमाचल प्रदेश का सिरमौर जिला कभी रियासत हुआ करता था. उस जमाने में इसे सिरमौर रियासत ही कहा जाता था. यही कारण है कि नाहन एक ऐतिहासिक शहर होने के साथ-साथ रियासत के कई अहम इतिहास को भी अपने अंदर समेटे हुए है.
रियासतकाल के एक ऐसा ही एक रोचक पहलू है नाहन शहर की ऐतिहासिक इमारत लिटन मैमोरियल (दिल्ली गेट) के नीचे बीचोंबीच खड़ी तोप. यहां की नगर परिषद ने इस तोप के इतिहास को लेकर एक बोर्ड जरूर लगाया है. उसके माध्यम से थोड़ी बहुत जानकारी लोगों को होने लगी है.
मगर ईटीवीने इस तोप के पूरे इतिहास के बारे में जानना चाहा, तो इसके बारे में शाही परिवार के सदस्य एवं पूर्व विधायक कंवर अजय बहादुर सिंह ने विस्तृत रूप से जानकारी दी. नाहन शहर के चौगान मैदान के साथ एक बेहद खूबसूरत व ऐतिहासिक धरोहर लिटन मैमोरियल स्थित है, जिसका निर्माण रियायतकाल में महाराजा शमशेर प्रकाश ने वर्ष 1877 में भारत के वायसराय लार्ड लिटन के नाहन आगमन की स्मृति में किया था. इसी लिटन मैमोरियल के ठीक नीचे एक तोप देखी जा सकती है. समय बताने के लिए चलती थी कभी ये तोप!
जिस स्थान पर आज यह तोप रखी गई है, बताया जाता है कि रियासत काल में इसी स्थान पर जनता की सुविधा के लिए प्रतिदिन दोपहर 12 बजे इसे चलाया जाता था. ऐसा इसलिए ताकि लोगों को समय अवगत करवाया जा सके. उस समय में जब यह तोप चलाई जाती थी तो नाहन सहित आसपास के बहुत से गांवों में समय का पता चल जाता था और उसी के आधार पर लोग अपने कम निपटाया करते थे. आज भी ये तोप यहां आने वाले लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बिंदु रहती है.
जानिये तोप का इतिहास, शाही परिवार के सदस्य की जुबानी
शाही परिवार के सदस्य एवं पूर्व विधायक कंवर अजय बहादुर सिंह ने बताया कि रियासत के जमाने पर जब घड़िया इत्यादि लोगों के पास न के बराबर होती थी और लोगों को समय के बारे में सूचित करना होता था, तो उस समय बताने के लिए रियासत की तरफ से प्रबंध किया गया था. लोगों को समय का ज्ञान करवाने के लिए तोप से फायर किया जाता था और पता चल जाता था कि इस वक्त दिन के 12 बज गए हैं. ठीक 12 बजे ड्यूटी लगाई जाती थी, जो आर्मी का जवान होता था वो यह तोप चलाता था, जोकि पैलेस के बाहर चौगान मैदान के साथ ही रखी गई थी. उस हिसाब से उसकी आवाज होती थी.
कंवर कहते है कि तोप में कोई गोला नहीं भरा जाता था, बल्कि सिर्फ बारूद का इस्तेमाल होता था. उसकी इतनी आवाज होती थी कि नजदीक के जिनते भी गांव जैसे निचले इलाके के कौलांवालाभूड इत्यादि और उपरी धारटी क्षेत्र के गांव. यहां के लोग आवाज सुनकर अंदाजा लगा लेते थे कि दिन के 12 बज गए हैं. उसके हिसाब से वो आगे अपना काम करते थे.